सरज़मीने हिंदुस्तान और मुग़ल ख़ानदान :- सरज़मीने हिंदुस्तान पर मुग़ल ख़ानदान की 6 सौ साल हुकूमत रही और ये हिंदुस्तान की इस्लामी तारीख का सुनेहरा बाब (चेपटर) है लेकिन मुग़ल बादशाहों में ख़ास तौर से शहंशाहे हिंदुस्तान हज़रत औरंग ज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह का दौरे हुकूमत हिंदुस्तान की तामीर व तरक़्क़ी और खुशहाली में नुमाया हैसियत रखता है उन्होंने पूरे जाहो जलाल के साथ हिंदुस्तान पर हुकूमत की और उसे अमन व अमान चैन व सुकून का गहवारा बना दिया था | वो उम्मते मुस्लिमा के दाखली व ख़ारजी मसाइल पर हस्सास नज़र रखते थे मुसलमानो की हालाते ज़ार पर आंसू बहाते और फरयादियों की फ़रया दरसी क्या करते थे | वक़्त के माया नाज़ शहंशाह होने के बावजूद एक ही वक़्त में आलिमे दीन, वलिए कामिल और आप “मुजद्दिदे वक़्त थे” जबकि आपको बादशाहियत अता हुई तो आपने अपनी हुकूमत की बुनियाद मिन्हाज शरीअत पर रखी और अल्लाह की अता से इल्मो इक़्तिदार से इस्लाम की खूब नशरो इशाअत के लिए ऐसी बेशुमार खिदमात अंजाम दीं जो तारीख के सफ़हात पर आबे ज़र से (सोने का पानी) लिखी जाने के क़ाबिल हैं इन तमाम वुजुहात को मद्दे नज़र रखते हुए उल्माए किराम फुक़हाए किराम मुहद्दिसीन ने आपको ग्यारवी सदी का “मुजद्दिदे इस्लाम क़रार दिया है”
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आपकी विलादत बा सआदत :- शाहजहां की मेहबूब बीवी, अर्जमन्द बानो बेगम मारूफ, “मुमताज़ महिल” के बतन से मालवाह गुजरात के सरहदी मक़ाम “दोहद” में रात के वक़्त 15 ज़ीक़ादा 1072 हिजरी मुताबिक़ 24 अक्टूबर 1618 ईस्वी को हिंदुस्तान के जलीलुल क़द्र बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर पैदा हुए | आपकी विलादत और पेशन गोई से मुतअल्लिक़ आपके दादा जहांगीर अपने रोज़नामचा में लिखते हैं: “औरंगज़ेब आलमगीर की विलादत 15 ज़िलकादा 1072 ईस्वी को हुई | इसकी पैदाइश इस सल्तनत के लिए बाइसे बरकत है”
(तुज़्क़ जहांगीर, सालनामा बागे फिरदोस मुजद्दिदीने इस्लाम मंबर)
आपकी पैदाइश की ख़ुशी :- में आपके वालिद शाहजहां ने हस्बे दस्तूर अपने वालिद जहांगीर को एक हज़ार अशरफी नज़र की और इस फखरे रोज़गार बच्चे का नाम दादा जहांगीर ने “औरंज़ेब” रखा | मुल्ला मुहम्मद सालेह के मुताबिक़ जब “दोहद” से कूच करके शाहजहां और उसके लश्कर सूबा “मालवाह” में पहुंचे तो शाहजहां के हुक्म से “उज्जैन” में जशने विलादत मुनअक़िद हुआ जहांगीर मुबारक बाद देने के लिए खुद तशरीफ़ लाए | शाहजहां ने बेश क़ीमत जवाहिरात और 50 तनु मंद हाथी अपने वालिद जहांगीर को नज़र किए | (शाहजहां नामा)
आपकी तालीम व तरबियत :- हज़रत मुहीउद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की तअलीम व तरबियत अज़ीमुश्शान पैमाने पर हुई और मशाहीर उल्माए दहिर व फ़ुज़लाए असर आपकी तअलीम के लिए मुक़र्रर किए गए | बक़ौल हज़रत अल्लामा फ़ज़्ले हक़ खैराबादी: आपने मुल्ला अबुल वाइज़ हर गाई से शुरू की तअलीम हासिल की व अदब में मौलवी सय्यद कन्नौजी से शागिर्दी का शरफ़ हासिल किया | इनके अलावा मौलाना अब्दुल लतीफ़ सुलतानपूरी, मुल्ला मुहीउद्दीन बिहारी, मुल्ला जीवन अमेठी, सय्यद अब्दुल क़य्यूम रहमतुल्लाह अलैहिम से खूब फैज़ हासिल क्या | इन हज़रात की सुहबत ने आपको क़ुतुब बीनी और मेहनते शाक़्क़ा का जज़्बा और शोक पैदा कर दिया जिसका असर ये हुआ के आपने शाही खानदान होने के बावजूद ऐश व आराम को छोड़कर क़ुतुब खाना में अपना सारा वक़्त खर्च करते | हज़रते इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की किताबें, शैख़ शरफुद्दीन याहया मनीरी के मक्तूबात, और शैख़ शमशुद्दीन, मुहीउद्दीन इबने अरबी के रसाइल, से ख़ास लगाओ था और ये किताबें अक्सर आपके मुतआला में रहती थीं |
आपकी सीरत व किरदार :- आप एक बाकमाल आलिमे दीन, बेमिसाल फ़क़ीह, बुलंद पाया नसर निगार और लाजवाब अदीब व ख़त्तात थे | इन खूबियों के साथ आप क़ुरआन शरीफ के बेहतरीन हाफ़िज़ भी थे और तअज्जुब की बात ये सआदत बचपन में नहीं बल्कि अपनी उम्र की 43 बहारें गुज़र जाने के बाद हासिल की थी | आप सादा फ़िक्र शख्सियत में इल्म व हिकमत और फ़ज़ल व कमाल का रंग भरने और बातनि कमाल से आरास्ता सवारने में यगानाये रोज़गार थे रईसुल मुफ़स्सिरीन हज़रत मुल्ला जीवन अहमद रहमतुल्लाह अलैह का भी बड़ा अहम रोल था | और हज़रत औरंग ज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह रासिख़ सुननी, सहीहुल अक़ीदा मुस्लमान और हज़रते मुजद्दिदे अल्फिसानी के फ़रज़न्द हज़रत ख्वाजा मासूम नक्शबंदी के मुरीद थे आप शरीअत पे पूरी तरह कार बंद और अहयाए दीनको अपना फ़रीज़ा समझते थे मज़हबे इस्लाम से बहुत मुहब्बत थी आपने अहयाए दीन व मिल्लत को खूब ज़िंदह किया इस लिए उल्माए असर ने आपको “मुहीउद्दीन” के लक़ब से नवाज़ा | साक़ी मुस्तअद खान लिखते हैं हज़रत औरंग ज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह मज़हबी एहकाम व शिआईर के बेहद पाबंद थे हनफिउल मज़हब सुननी थे, फ़राइज़ खम्सा की पाबन्दी हमेशा करते और आप हमेशा बावुज़ू रहते नमाज़ शुरू वक़्त मस्जिद में जमात के साथ अदा फरमाते रोज़ों के पाबंद थे हक़ के शैदाई थे रमज़ान में मस्जिद में एतिकाफ करते | और आप बचपन से ही तमाम मकरूहात व मोहर्रमात से शदीद परहेज़ करते नगमा सुरूर गाने से नफरत थी और उसे हराम क़रार दिया था और सोने चांदी के बर्तनों से परहेज़ करते, तमाम मुल्क में शरई हुक्म जारी किया, गरज़ के हज़रत के अहिद में दीने मतीन की आवाज़ बुलंद फ़रमाई | हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के सीरत व किरदार का ये आलम था के हज़रत ख्वाजा मासूम रहमतुल्लाह अलैह शैख़े तरीक़त होने के बावजूद आप उनको “सुल्तानुल इस्लाम, और अमीरुल मोमिनीन” के लक़ब से याद फरमाते थे | (मक्तूबाते मासूमिया, तज़किराए मुजद्दिदीने इस्लाम पाकिस्तान)
बुज़ुरगों का अदब :- हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह बुज़ुरगों का अदब व एहतिराम बहुत करते थे, उनको दावत देते और खत लिखते और उनकी तशरीफ़ लाने से पहले 12 मील बाहर निकलकर उनका इस्तक़बाल करते थे | अल्लामा एहसान सरहिंदी लिखते हैं जब
हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर ने हज़रत ख्वाजा मासूम रहमतुल्लाह अलैह की तशरीफ़ लाने की खबर सुनी तो आपने इस मौके को गनीमत जानकार “दरयाए नर्बदा” उबूर करके मुलाक़ात का शरफ़ हासिल किया आपने अपने हाथ से ताजे सल्तनत इनके सर पे रखा और वो इससे बहुत खुश हुए | (रौज़तुल क़य्यूमिया, जिल्द 2)
बैअत व खिलाफत :- शहंशाहे हिन्द मुहीउद्दीन औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह उरवतुल वुस्क़ा को जो रोहानि कमालात हासिल थे इनमे मुजद्दिदे अल्फिसाने के साहबज़ादगान मसलन हज़रत ख्वाजा मुहम्मद मासूम सरहंदी और हज़रत ख्वाजा मुहम्मद सईद रहमतुल्लाह अलैह का बड़ा अहम किरदार है | शहंशाहे हिन्द मुहीउद्दीन औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ख्वाजा मुहम्मद मासूम सरहंदी बिन हज़रत मुजद्दिदे अल्फिसाने रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते हक़ परास्त पे बैअत हुए, बैअत व इरादत के बाद हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी में एक अज़ीम इन्क़िलाब बरपा हुआ और हिंदुस्तान जैसी हमा गीर सल्तनत के हाकिम और शहंशाह होने के बावजूद औरंज़ेब आलमगीर दुरवेशाना (फ़क़ीरी) ज़िन्दगी को अपनाया, आपकी क़लंदराना शख्सियत, आरिफाना मिजाज़, इबादत व रियाज़त व तक़वा और आपके फ़ज़्लो कमाल के मुतआला से “पढ़ना” बड़े बड़े मशाइख बुजरुग सूफ़िया वलीउल्लाह की याद ताज़ह हो जाती है | वो आपने पिरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा मुहम्मद मासूम सरहंदी का भरपूर अदब व एहतिराम क्या करते थे और उन्ही की तालीमात से अपनी बातनि दुनिया संवारा करते थे | आप शुजाअत और बहादुरी में आपने आबाओ अजदाद से भी बढ़कर थे | खानदाने तैमूरिया मुगलिया में बड़े बड़े बहादुर पैदा हुए मगर इन सूरमाओ और बहादुरों में आपकी ज़ात बहुत ऊंची है | एक बार नमाज़ के वक़्त एक खूंख्वार शेर ने आप पर हमला कर दिया आपने नमाज़ छोड़कर फ़ौरन शेर को ख़त्म किया और खौफ खाए बगैर दोबारा नमाज़ शुरू कर दी आपकी हिम्मत व जुरअत बहादुरी के ऐसे बेशुमार वाक़ियात तारीख के (हिस्टिरि) के सफ़हात में मौजूद हैं आप 80 साल की उम्र में भी जोश व खरोश का मुज़ाहिरा फरमाते |
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बाप और भाइयों से जंग के सिलसिले में गलत फैहमियों का इज़ाला (खात्मा)
शाहजहां के चार साहबज़ादे दाराशिको, मुहम्मद शुजा, मुराद बख्श, और हज़रत आलमगीर थे 1657 ईस्वी में शाहजहां एक मुहलिक (खतरनाक) मर्ज़ में मुब्तला हुआ, उसके बीमार होते ही सबसे पहले शुजा ने बादशाहियत का एलान किया और आपने नाम के सिक्के जारी कर दिए इसके अलावा ज़बरदस्त लश्कर लेकर आगरा की तरफ बढ़ा लेकिन दारा शिको के बेटे ने उसे सिकश्त देकर बंगाल की तरफ भगा दिया, हज़रत औरंज़ेब आलमगीर ने मुराद को अपनी तरफ कर लिया इनकी फौजें और दारा की फौजें आगरा की तरफ बढ़ीं, दारा की तरफ जसूनत सिंह मुक़ाबले के लिए निकला मगर शिकस्त खाकर भाग गया | शाहजहां सेहत मंद हो चुका था और चाहता था के हज़रत औरग़ज़ेब के मुक़ाबले में खुद निकले मगर दारा ने ये बात क़बूल न की वो खुद एक ज़बरदस्त फौज लेकर आपने भाइयों के मुक़ाबले में आ गया 29 मई 1657 ईस्वी “सामूगढ़” के मक़ाम पर एक अज़ीम मार्का (जंग) हुई जिसमे दारा को शिकस्त हुई और हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर ने आगरा पे क़ब्ज़ा कर लिया | शाहजहां ने औरंगज़ेब को क़िले में बुलाया मगर वो जानते थे की वो इन्हें क़त्ल कर देगा लिहाज़ा उन्होंने बाप को क़िले में नज़र बंद कर दिया इधर मुराद ने मथरा में खूब जशन मनाया और बेइंतहा दादे ऐश दी | हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने उसे भी फ़रोख्ता होकर गोअलिअर के क़िले में बंद कर दिया जहां उसे क़त्ल कर दिया गया | शुजा ने फिर एक बार पेश क़दमी की लेकिन शिकस्त खाकर अरकान पहाड़ियों की तरफ भाग गया यहाँ के राजा ने उसे अहलो अयाल के साथ क़त्ल कर दिया दारा शिको सिंध की तरफ भाग गया और एक मुल्क के यहाँ पनाह ली उसने उसके साथ गद्दारी की और उसे औरंज़ेब की बारगाह में पेश कर दिया उसे भी क़त्ल कर दिया गया | इस तरह औरंगज़ेब तख्तो ताज के मालिक बन गए | (रियाज़ुत तारीख)
दाराशिको कुफ्र की वजह से क़त्ल किया गया :- हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने दारा को क़त्ल किया मगर उसके कुफरिया किरदार को सामने रखकर उल्माए वक़्त और उनकी बहिन रोशन आरा बेगम और दूसरे रिश्तेदारों ने उसके क़त्ल पे साद (इक़रार) किया तज़किराए सलातीन चुगताई, वाक़िआते आलमगीरी, नुसखाए दिलकशा, और फतूहाते आलमगीरी जैसी तमाम मोअतबर मुस्तनद (सॉलिड) किताबों में लिखा है के दारा के क़त्ल से पहले उल्माए किराम से क़ानूनी फतवा हासिल किया गया था | बाज़ आज़ाद ख्याल जाहिल क़िस्म के लोग हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर के इस किरदार पे ऊँगली उठाते हैं और लान तान करते हुए ये कहते हैं के आलमगीर ने आपने बाप के साथ क्या सुलूक किया भाइयों के साथ किस अंदाज़ से पेश आये इस क़िस्म के एतिराज़ करने वाले लोग उनके अज़ीम मिशन से क़तई बेगाना हैं | जिस इंसान के सामने खुदा तआला और रसूले पाक सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन की सर बुलंदी और उसकी तरवीज व इशाअत मक़सूद हो वो अपने हक़ न आशना बाप और दीन के दुश्मन भाइयों के गले में फूलों का हार क्यों कर डाल सकता है? उन्होंने आपने खुनी रिश्तों पर इस्लाम की बक़ा और उसकी सलीमियत को तरजीह दी | ये एक मोमिन कामिल का किरदार है हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर आपने वालिद को नज़र बंद करने के बाद भी उनके साथ बढ़े अदब व एहतिराम से पेश आते थे उन्होंने शाहजहां के नाम एक खत में दर्द अंगेज़ अलफ़ाज़ से अपना मुद्दआ इस तरह बयान किया है के: खुदा ना ख्वास्ता अगर आपकी हिमायत से वो दारा कामयाब हो जाता तो सारा आलम कुफ्र की ज़ुल्मत और ज़ुल्म व सितम से तरीक हो जाता शरीअत से रौनक जाती रहती और क़यामत के दिन आपसे इस का जवाब देना बहुत ही मुश्किल हो जाता | हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर ने अपने बाप की शान में कभी बे अदबी नहीं की नज़र बंद होने के बावजूद वो बा दस्तूर तख़्त पर बैठता था और बड़े बड़े उमरा आकर उसे शाहाना सलाम करते और हर काम के मुतअल्लिक़ वो हुक्म जारी करता | (शाहे हिन्द औरंज़ेब आलमगीर, तज़किराए मुजद्दिदीने इस्लाम, सालनामा बागे फिरदोस)
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हज़रत औरंज़ेब आलमगीर पर होने वाले एतिराज़ का तहक़ीक़ी जवाब
क्या बुत खाने गिरा दिए? :- अकबर ने जो पॉलिसी इख्तियार की थी इस में हिन्दू राजा भी शरीक हो गए थे | अकबर के जबर व सितम का सिक्का बैठा हुआ था इस लिए हिंदूंओं को सर कशी और बगावतब का मौक़ा नहीं मिला मगर जहांगीर की नरमी और सरमस्ति ने उन्हें खुद सरी का खूब मौक़ा दिए | नर सिंह देओबंदीला ने जहांगीर की वली अहदी के ज़माने में अबुल फ़ज़ल को फरेब से क़त्ल करके तमाम मालो असबाब और शाही खज़ाना लूट लिया और जहांगीर की हुक्मरान के ज़माने में इसी की इजाज़त से नर सिंह ने मथरा में बुत खाना की तामीर की और ऐलानिया मुसलमानो पर जबरो ज़ुल्म करने लगा और यहाँ तक के मुस्लमान औरतों से जबरन शादी की और मसाजिद को तोड़कर अपनी इमारतों में शामिल किया जैसा के “बादशाह नामा” में तहरीर है: 70 मुस्लमान औरतें और लड़कियां कुफ्फार के क़ब्ज़े से निकाली गईं और जो मस्जिदें हिंदूंओंग की इमारतें बनाली गईं थीं उन्हें इनसे आज़ाद कराया गया और कुछ जुरमाना लगा कर उनकी मरम्मत कराइ गई | चुनाचे बहुत सी औरतें कुफ्फार के क़ब्ज़े से निकाली गईं और मुसलमानों के निकाह में लाई गईं बाज़ कुफ्फार ने इस्लाम कबूल करके दोज़ख की आग से निजात पाई और जिन मस्जिदों को मंदिर में बदल दिए गया था | उन्हें तोड़कर के उनकी जगह पर मसाजिद तामीर की गईं | (बादशाह नामा , जिल्द अव्वल)
इससे ये बात साफ़ मालूम हो गई के जहांगीर के ही ज़माने में हिन्दुओं की ज़ालिमाना करवाई शुरू हो गई थी और बगावत व फसाद के आसार रूनुमा होने लगे थे तो हज़रत आलमगीरने अपनी तख़्त नाशिनी के बाद उन्हें रोकने की कोशिश की और ज़िलकादा 1089 हिजरी यानि तख़्त नाशिनी के बारवी बर्स हज़रत आलमगीर को जब खबर मिली के हिन्दू मुसलमानों को अपने मज़हबी उलूम पढ़ते हैं तो उन्हेने इसकी हिफाज़त का हुक्म दिया इस वाक़िए के महीना भर के बाद मथरा के अतराफ़ में हिन्दुओं ने शोरिश की जिसको कम करने के लिए अब्दुन नबी खान मथरा का फौजदार मुतअय्यन किया गया और मारा गया | (तारीखे फरिश्ता जिल्द अव्वल)
इसी ज़माने के क़रीब यानि 1080 हिजरी में बनारस का बुत खाना काशी नाथ और मथरा का वो बुत खाना जो अबुल फ़ज़ल के लूट से नर सिंह देव ने बनवाया था, तोड़ दिए इसके बाद उदय पुर वगैराह बुत खानो पर आफत आयी | योरपीन और हिन्दू मुअर्रिख़ कहते हैं के आलमगिर ने बुत खाने गिराए इस लिए बगावत हुई इस लिए बुत खाने गिराए गए क्यूंकि औरंग जेब के एहद में जिन बुत खानो का ज़िक्र मिलता है ये वही बुत खाने थे जो पहले मस्जिद थे और हिंदुओंने शाजहाँ के एहद में उसे गिरा कर बुत खाना बना लिया था |
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हिंदू राज पूतों को अज़ीयत दी :- हिंदू राज पूतों के 3 तीन मरकज़ थे: जयपुर, जोधपुर, और उदय पुर, जोधपुर का रईस जसूनत सिंह इंतिहाई शरकश और गद्दार था इसने हज़रत आलमगीर के साथ जो बर्ताव किया वो ये थे के सबसे पहले हज़रत आलमगीर के साथ बर सरे मुक़ाबला आया, हज़रत आलमगीर ने फ़तेह पाकर उसको माफ़ कर दिया और फौज का अफसर मुक़र्रर क्या लेकिन शुजा की लड़ाई में निहायत गद्दार तरीके से रात को छुपकर दुश्मन से जा मिला जिससे हज़रत आलमगीर की तमाम फौज दरहम वरहम हो गई हज़रत आलमगीर ने फिर अफू से काम लिया और जागीरों व ख़िताब व मनसब अता करके दक्कन भेजा वहाँ शिवाजी से साज़िश की अब इसके मरने के बाद राजपूत हज़रत आलमगीर से दरख्वास्त करते है के इसके एक माह के बच्चे को वालिए रियासत बना दिया जाए हज़रत आलमगीर जवाब देते है के इनको दरबार में भेज दो सने शऊर के बाद इनको सब कुछ मिलेगा राजपूत जवाब का भी इन्तिज़ार नहीं करते और दरयाए अटक पर शाही ओहदे दारो को माते दहाड़ते दिल्ली पहुंच जाते है हज़रत आलमगीर इनको नज़रबंद कर देते है आप ज़रा गौर करे इनमे कौन सी बात इन्साफ के खिलाफ है | योरपीन मुअर्रिख़ कहते हैं के एक राज पूत ने भी आलमगीर की हिमायत में ऊँगली नहीं हिलाई हक़ीक़त ये है के न सिर्फ फौजी राज पूत बल्कि राजपूतों के बड़े बड़े राजा महाराज आखिर वक़्त तक हज़रत आलमगीर के साथ फौजी मुहिम में शरीक रहे और मुरहटों को पामाल करने में वो मुस्लमान अफसरों के दाहिने हाथ थे, राजपूतों की असल ताक़त जोधपुर, और उदयपुर, थी उदयपुर के दो शहज़ादे खुद हज़रत आलमगीर की फौज में मुअज़ज़ उहदों पर मुमताज़ थे और आखिर वक़्त तक साथ रहे | और बहुत से राजपूत राजाओं और रईसों के जो हज़रत आलमगीर के साथ दक्कन में शरीक थे और निहायत जांबाज़ी और वफादारी के साथ खुद अपने हम मज़हब मुरहटों से लड़ते थे | इन तमाम वाक़िआत के बाद भी अगर हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर पर इलज़ाम आइद किया जाए के उन्होंने हिन्दू राजपूतों को बिला किसी सबब के तकलीफ पहुंचाई तो ये सरा सर न इंसाफ़ी है |
हिन्दुओं को मुलाज़िमत से हटा दिया :- हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह पर एक इलज़ाम ये लगाया जाता है के उन्होंने मुलाज़िमत और मनसब से बरतरफ़ कर दिया इस में इसी क़द्र सचाई है के 1082 हिजरी में उन्होंने ये हुमक दिया के सूबेदारों और तालुका दरों के पेशकर, दीवान और महसूलात वुसूल करने वाले हिन्दू न मुक़र्रर किए जाएँ | ये ज़ाहिर है के इन उहदों पर अक्सर कायस्थ मुक़र्रर होते थे, जो रिशवत लेने में मशहूर थे, इस हुक्म को मज़हबी तफ़रीक़ से कोई तअल्लुक़ न था लेकिन ये हुक्म भी क़ाइम न रहा बल्कि इसकी इस्लाह इस तरह कर दी गई के एक पेश कार हिन्दू और मुस्लमान मुक़र्रर किया जाए | इस इंतिज़ाम से इसके सिवा और किया मक़सद हो सकता है के हिन्दुओं की रिशवत खोरी और गबन की निगरानी रहे वरना अगर मज़हबी तअसुब्ब इसका बाइस होता तो मुसलमान के शरीक होने से इसका क्या तअल्लुक़ होता | अगर आप तारीख (हिस्टिरी) को पढेंगें तो मालूम होगा के वो हिन्दू जो हज़रत औरंगज़ेब की हुकूमत में किसी उहदे पर क़ाइम थे वो सिर्फ नाम के उहदे दार न थे मार्कों (जंग) में हैरत अंगेज़ ज़ाफ़शानियाँ दिखाते थे, इन उहदा दारों में हर क़िस्म के उहदा दार थे यानि फौजी भी, मुल्की भी, आप ज़रा गौर करें फोजोंकी अफसरी, क़िलों की क़िलादारी ज़िलों की निज़ामत व फौजदारी इन सब से बढ़कर ज़िम्मेदारी और एतिमाद के क्या उहदे हो सकते हैं ये सब उहदे हिन्दुओं को हासिल थे | राम भीम सिंह, इन्दर सिंह, बहादुर सिंह, राजा मान सिंह, और राओ अनूप सिंह वगैरह अपने अपने उहदे पर फ़ाइज़ कामयाब थे | अब इसके बावजूद ये कहा जाए के आलमगीर ने तमाम हिन्दुओं को मुलाज़िमत और मनसब से बरतरफ़ कर दिया तो ये तअसुब और बेइंसाफी की बात होगी |
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हिन्दुओं की दरस गाहें (स्कूल) बंद करा दिए :- हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह से बुग्ज़ व इनाद और दुश्मनी रखने वाले मुअर्रिखों ने लिखा है के आलमगिरने हिन्दुओं के तमाम मदरसे बंद कर दिए और इबादत गाहें ढादीं लेकिन हक़ीक़त ये है की शाजहाँ के ज़माने में हिन्दू मुसलमानों पर मज़हबी जबर करने लगे थे | दारा शिको के तर्ज़े अमल ने उनको और जरी (बहादुर) कर दिया था वो अपने पाठ शालाओं में मुसलमानों के बच्चो को अपने मज़हबी उलूम सिखाते थे और ऐसी तरग़ीब देते थे के दूर दूर से मुस्लमान उनके मदरसों और पाठ शालाओं में आते थे हज़रत आलमगीर ने इन्ही मदरसों को बंद किया था | उनहोंने जिस वजह से ये हुक्म दिया था उसका मक़सद सिर्फ ये था के मुसलमानों के बच्चे मुनहरिफ़ (फिरा हुआ, फिर जाना) न हों और बा इक़्तिदार इन्सान को अपने मज़हब और उसके मानने वाले के खिलाफ पिरोपेगण्डा को खत्म करने का हक़ हासिल है |
एहदे आलमगीरी की खिदमात और उनकी मुल्की इस्तिलाहात
शाहजहां के शहज़ादों में सबसे ज़्यादह होशियार, संजीदह, बुर्द बार, जफ़ा कश, तजुर्बा कार, बहादुर, और पुख्ता किरदार, हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह थे | इन बातों के साथ आप दीन के आलिम, शरीअत के हामी और पाकीज़ा चाल चैनल के आईनादार थे आपके भाइयों में सब से बड़ा दारा शिको था लेकिन पस्त हिम्मत, बुज़दिल और मुस्लमान कहलाते हुए इस्लामी शरीअत का दुश्मन और मुलहिदों (काफिरों) का तरफ दार था | बर्हिमो की सुहबत में रहकर उसने नमाज़ रोज़ा सब कुछ छोड़ दिया, उसे भाइयों में सब से ज़्यादा बुग़्ज़ो हसद हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह से था शाहजहां के ज़माने में जब उसने संतान की बाग़ डोर अपने हाथ में ली तो उसने औरंज़ेब आलमगीर को नेस्त व नाबूद करने में कोई क़स्र बाक़ी नहीं रखी लेकिन अल्लाह तआला ने अपने फ़ज़्लो करम से हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर को हर मोड़ पर कामयाबी अता फ़रमाई और दारा शिको को शिकस्त से दोचार हुआ |
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24 रमज़ानुल मुबारक 168 हिजरी मुताबिक़ 25 जून 1658 ईस्वी को हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर ने शहंशाहे हिंदुस्तान की हैसियत से ज़मामे सल्तनत अपने हाथ में ली और ताज पोशी की रस्म 10 रमज़ानुल मुबारक 1069 हिजरी को अदा की गई | तख़्त नाशिनी के कुछ अरसे बाद 1658 ईस्वी को शाहजहां का इन्तिक़ाल हो गया, उसके बाद से औरंगज़ेब आलमगीर का तवील (लंबा) दौर शुरू होता है | उन के 50 साला एहदे हुकूमत को दो हिस्सों में तक़सीम (बांटना) किया जाता है, पहला हिस्सा 1658 ईस्वी से 1681 तक जिसमे उन्होंने शोमालि हिंदुस्तान के मुआमलात तय करने में ज़बरदस्त कमाल दिखाया | दूसरा हिस्सा 1682 ईस्वी से 1707 ईस्वी है जिसमे उन्होंने दक्कन के मुआमलात सुलझाने यानि बीजापुर, गोल्कुंडाह, की शीआ रियासतों और मुरहटों के खिलाफ दिल खोल कर जंग की | हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर की दीनदारी और इस्लाम पसंदी की वजह से तमाम ताग़ूती (शैतानी) ताक़तें उनके खिलाफ थीं शीआ राजपूत, जाट और मरहटों सब उनके साथ बरसरे पैकार हुए (लड़ने को तय्यार रहना) लेकिन उन्होंने हर मैदान में हक़ व सदाक़त का परचम बुलंद किया | नाज़नों की तक़रीबन पचास हज़ार अफ़राद ने बगावत करदी, हज़रत आलमगीर ने उन्हें भी ठिकाने लगाया, राजपूतों पर जिज़्या (टेक्स इस्लामी हुकूमत में गैरमुस्लिम पर सालाना महसूल, बदले का रूपया) नाफ़िज़ फ़रमाया इससे ज़िद्दी लोग मुशतअल (भड़क जाना, जोश) हो गए इसकी कोई परवाह न थी |
(तज़किराए मुजद्दिदे इस्लाम नंबर)
हज़रत औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह में बातिल और बातिल परस्तों का खात्मा करने का जज़्बा कूट कूट कर भरा हुआ था | उन्होंने मुल्ला शाह बाद खशी, चन्दर भान बिरहमन हुए मुहसिन फानी कश्मीरी जैसे लोगों का मुहास्बा (पूछ गूच, किसी से हिसाब लेना) किया, जो वहदत अदयान के दाई थे (खुदा को एक मानने वाला) और दारा के गुमराही का सबब बने थे बाद में इन सब ने मस्लिहत को तरजी दी और हज़रत आलमगीर की मुलाज़िमत में रहे, शाह मुहिब्बुल्लाह इलाह बादी के गलत अफ़कार पर मुश्तमिल इसका रिसाला रिसालाए “सतुविया” जला दिया | हिन्दुस्तान में वहदते वुजूद की गलत ताबीरात का बहुत ज़ोर था, अपनी कामयाबी दारा का क़त्ल और मर्कज़ की मज़बूती के नज़रिए को हज़रत औरंगज़ेब ने ता हयात उभरने न दिया | (मुक़द्दमा हसनातुल हरमैन)
हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की तख़्त नशीनी से पहले शाहजहां के ज़माने ही में अख़लाक़ी और इज्तिमाई हालत निहायत खराब थी, बद अख़लाक़ी तौ हम परस्ती और इल्हाद (दीन से फिर जाना) से दुनिया भरी पड़ी थी | जब हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह तख़्त नशीन हुए तो उन्होंने अपनी सारी कोशिशें उन खराबियों का किला कोमा (उखाड़ के फेंक देना) किया जैसे भांग की काश्तकारी, शराब नोशी, नाजाइज़ क़रार दी जूँआ, बंद किया और बाज़ारी औरतों को हुक्म दिया के या तो वो शादी करलें या मुल्क छोड़ दें इन एहकाम की तामील कराने के लिए मुहतसिब (हिसाब लेने वाला) मुक़र्रर किए आपने अपने एहदे हुकूमत में तमाम गैर शरई टेक्स जिनकी तादाद 80 थी मसलन: राहदारी पंडारी, अबवाब यात्रा वगैरा मंसूख करके हिन्दुओं से जिज़्या और मुसलमानो से ज़कात वुसूली पर ज़ोर दिया तमाम गैरइस्लामी रुसुमात मसलन: गैर खुदा को सिजदा, नौरोज़, होली, दिवाली, दसहरा मोक़ूफ़ कर दिया सती नशा, और जूँआ नाजाइज़ क़रार दिया झूटी शाइरी, मूसीक़ी, नुजूम, रक़्स व नाच, तस्वीर कशी से शाही दरबार को पाक कर दिया गया, मसाजिद और ख़ानक़ाहों की मरम्मत करा कर मदरसों, उलमा और तलबा के लिए जागीरें वक़्फ़ कीं सोने चांदी और रेशमी कपड़े का इस्तेमाल बंद कर दिया गया, सिक्कों पर कलमा तय्याबा और आयाते क़ुरआनी लिखने की मुमानिअत कर दी गई | (मुहम्मद बिन क़ासिम से औरंगज़ेब तक)
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हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की वसीयत :- दर साल हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर ने अपने सर पर शहंशाही का ताज इस लिए नहीं रखा था की खुद ऐश व आराम की ज़िन्दगी गुज़ारें अपने ठाठ बाट के लिए रियाया पर तरह तरह के टेक्स लगाएं बल्कि बादशाहियत आपने इस लिए क़बूल की थी ताकि रियाया (किसी बशाह की हुकूमत में रहने वाले लोग) अमन व सुकून की ज़िन्दगी बसर करें, मुल्क में अद्ल व इन्साफ का झंडा लहरा दिया जाए, ताक़तवर कमज़ोरों पर ज़ुल्म न करें मुस्लमान इस्लामी क़वानीन पर अमल करें | आपने अद्ल व इन्साफ का ऐसा अज़ीम शामियाना लगाया जिसके नीचे भेड़िया भी एक दुबली कमज़ोर बकरी पर हमला करने की हिम्मत नहीं कर सकता था | हज़रत औरंगज़ेब हिंदुस्तान के एक अज़ीम बादशाह थे शाही ख़ज़ानों का दरिया आपके क़दमों के नीचे से बह रहा था और इस दरिया से सारा हिन्दुस्तान सैराब हो रहा था | लेकिन दुनिया ये सुनकर हैरत करेगी की आपने अपनी ज़ात के लिए शाही ख़ज़ाने से एक पैसा नहीं लिया आपने बड़ी सादगी के साथ ज़िन्दगी के लम्हात गुज़ारे, टोपियों के पल्ले में बेलबूटे निकालकर उसको बेचा करते थे इसके अलावा अपने हाथ से क़ुरआन मजीद लिखकर उसको हदिया करते और इन दोनो की आमदनी से अपना ज़ाती खर्च पूरा करते हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने 2 क़ुरआन मजीद अपने खामए मख़सूस (खास कलम) से तहरीर फरमाकर (लिखकर) मदीना शरीफ में मस्जिदे नबवी के अंदर बतौर हदिया रखवा दिया आपके दस्ते मुबारक से लिखे हुए क़ुरआन मजीद के मुतअद्दिद नुस्खे आज भी हिंदुस्तान की मुख्तलिफ अज़ीमुश्शान लाइब्रेरियों को ज़ीनत बख्श रहें हैं आप अपने वसीयत नामे में लिखते हैं: 4 रुपये जो मेने टोपियां बना कर कमाए हैं वो मेरे कफ़न में खर्च हों और 305 रुपये जो मेने क़ुरआन शरीफ की किताबत से हासिल किए वो गरीबों में खैरात कर दिए जाएं | आपके इसी हुस्ने किरदार से साबित होता है की आप ने हिंदुस्तान की शहंशाही का मनसब ऐश व आराम उठाने या अपनी अज़मत व शान बढ़ाने के लिए नहीं था अल्लाह तआला ने अज़मत व जलाल रिफ़अत व बुलंदी आप को अता फ़रमाई थी वो मुग़ल बादशाहो में तैमूर लंग से लेकर बहादुर शाह ज़फर तक किसी को हासिल नहीं आप के दोरे हुकूमत में मुसलमानो के साथ गैर मुस्लिम रियाया भी चैन व सुकून की ज़िन्दगी गुज़ारा करती थी |
हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर की दीनी खिदमात :- हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर के एहदे हुकूमत में तालीमी व इल्मी तरक़्क़ीयाँ बर्रे सगीर हिंदुस्तान पाकिस्तान में शहाने सल्फ से बढ़कर मरकज़ी शहरों के अलावा छोटे-छोटे शहरो को व कस्बो शुरफ़ा की बस्तियों में तालीम फ़ैलाने के लिए हुकूमत की जानिब से मदरसे क़ाइम किए ये मदारिस उलमा के मदरसों के अलावा थे तालिबे इल्मो के लिए वज़ीफ़े जारी किये गए और ज़ाती मदरसे जिन उलमा के थे उनको और सरकारी मदारिस के पढ़ने वालो को मइशत की तरफ बहाल किया गया और जागीरे दी गई गरज़ के हर सूबा हर शहर और हर कसबे में तालीम की इशाअत आम हो गई |
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फ़तावा आलमगीरी की तदवीन :- हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर का एक अज़ीम कारनामा है यूं तो एहदे आलमगीरी में कई अहम तसानीफ़ मन्ज़रे आम पर आयीं लेकिन उनमे सब से अहम “फ़तावा आलमगीरी” है बिलाशोबाह हिंदुस्तान के हनफ़ी उलमा हिदाया के बाद बेहतरीन फ़िक़्ही किताब तस्लीम करते हैं हक़ीक़त ये है के इस किताब ने उलमा और तलबा को फ़िक़्हा की दूसरी किताब से बहुत हद तक बेनियाज़ कर दिया है इस किताब की लिखने की वजह ये है के आपने इरादा फ़रमाया के सारे आलम में उमूरे दीन और एहकामे इस्लामिया की नशर व इशाअत हो और क़ज़ा या मुआमलात के फैसले फ़िक़्हे हनफ़ी के अक़वाल के मुताबिक़ हो लेकिन चूंकि उस वक़्त फ़िक़्हे हनफ़ी की कोई मबसूत और जामे किताब न थी इस लिए फैसला सादिर करने में दुशवारी पेश आती थी लिहाज़ा आप ने हिंदुस्तान के मश्हूरो मारुफ 500 उलमाओं फ़िक़्ह की जमात (टीम) से गुज़ारिश की के फ़िक़ह की तमाम किताबों से “मुफ़्ता बिहि” मसाइल मुन्तख़ब करके एक ऐसी किताब तय्यार करें जो फ़िक़ह के तमाम पहलु पर हावी हो इस जमात के सदर हज़रत शैख़ निजामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को मुन्तख़ब (छांटना चुनना) किया गया उल्माए किराम के लिए वज़ीफ़े मुक़र्रर किए गए इन उलमा ने निहायत ख़ुलूस व लिल्लाहियत और मेहनत व जां फ़शानि के साथ 8 साल की मुद्दत में “फतावा आलमगीरी” को मुदव्वन फ़रमाया इस की तय्यारी में हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर ने 2 लाख रूपये खर्च किये और खुद भी उसके तदवीन में शामिल रहे आप रोज़ाना मुल्ला निजामुद्दीन से एक सफा पढ़वा कर सुनते और उसपर जिरह होती इस तरह पूरी तहक़ीक़ व तदक़ीक़ के बाद उसे फ़तावा में शामिल किया गया यक़ीनन फतावा आलमगीर हज़रत औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैह का ऐसा अज़ीम कारनामा है के तारीख आपके इस कारनामे को भी फरामोश नहीं कर सकती और उम्मते मुस्लिमा आप के बारे एहसान तले दबी रहेगी आपके इसी अहयाए मिल्लत और तज्दीदे दीन की बुनियाद पर उल्माए ज़माना ने “मुजद्दिदे वक़्त” के लक़ब से नवाज़ा जिसकी तसरिहात किताबों में मौजूद है |
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आपको मुजद्दिद का लक़ब किसने दिया :- हुज़ूर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुजद्दिदे आज़म मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द व खलीफा हुज़ूर मलिकुल उलमा अल्लामा जफरुद्दीन बिहारी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “चौदवी सदी के मुजद्दिद” में हज़रत मौलाना गुलाम मुस्तफा मुजद्दिदी पाकिस्तान, ने “तज़किराए मुजद्दिदीने इस्लाम” में और हज़रत मौलाना यासीन अख्तर मिस्बाही अपनी किताब, “इमाम अहमद रज़ा और रद्दे बिदआत व मुन्किरात” में उन्हें “मुजद्दिद” लिखा है अल मुख़्तसर हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह हमा पहलू शख्सियत के मालिक थे निहायत ही सादा ज़िन्दगी बसर करते थे उन्होंने इस्लाम को ज़िंदह किया इसलिए गैर मुस्लिम मुअर्रिख़ इन्हें पसंद नहीं करते और इन पर लानतान करते है मुस्लिम मुअर्रिख़ीन ने उनके किरदार की अज़मत को सलाम क्या है |
विसाले पुर मलाल :- हज़रत औरंगज़ेब अलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की हुकूमत व सल्तनत का रकबा काफी वसई था, हिंदुस्तान, अफगानिस्तान, और तिब्बत इन तीनो मुल्को के आप वाहिद (तनहा अकेले) शहंशाह (बादशाह) थे, आपने पचास साल एक महीना 15 दिन तक मंसबे इक़्तिदार पर फ़ाइज़ रहे और (हुकुम का मनसब) 8 ज़िलकादा 1118 हिजरी मुताबिक़ 11 फरवरी 1707 ईस्वी को जुमा के दिन अहमद नगर सूबा महाराष्ट्र में इन्तिक़ाल फ़रमाया और क़स्बा खुल्दा बाद में जो शहर औरंगाबाद से 12 मील के फासले पर है वहीँ आपका मज़ार शरीफ मरजाए खलाइक़ है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
(तुज़्क़ जहांगीर, सालनामा बागे फिरदोस, मुजद्दिदीने इस्लाम मंबर)
(तारीखे हिन्द मुस्लिम एहदे हुकूमत से क़यामे जम्हूरियत तक)
(मुहम्मद बिन क़ासिम से औरंगज़ेब तक)
(मुक़द्दमा हसनातुल हरमैन,तामीरे अदब)
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Bahut khub
Shukriya