आपकी विलादत बा सआदत :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की विलादते मुबारक इक्कीस (21) सफारुल मुज़फ्फर (1300) तेहराह सौ हिजरी मुताबिक़ एक (1) जनवरी अठ्ठारह सौ तिरासी (1883) ईस्वी बरोज़ पीर के दिन मुल्के हिंदुस्तान के शहर “मुरादाबाद” में हुई |
आप का नाम और वालिदे मुहतरम की नज़्र :- आप रहमतुल्लाह अलैह का नाम “नईमुद्दीन” रखा गया जबकि इल्मे “अब्जद” के एतिबार से तारीखी नाम “गुलाम मुस्तफा” तजवीज़ हुआ | आप के वालिद माजिद हज़रत मौलाना मुहम्मद मुईनुद्दीन नुज़हत और जद्दे अमजद यानि आपके दादा जान सय्यद अमीनुद्दीन रासिख़ रहमतुल्लाह अलैह अपने अपने दौर में उर्दू और फ़ारसी के उस्ताद माने गए हैं | आप रहमतुल्लाह अलैह के वालिद हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद मुईनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के कई फ़रज़न्द क़ुरआन के हाफ़िज़ होने के बाद वफ़ात पा चुके थे | सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश पर आप के वालिदे मुहतरम रहमतुल्लाह अलैह ने “नज़्र” मानी के अल्लाह तआला ने इसे ज़िन्दगी बख्शी तो खिदमते दीन के लिए इस बेटे को वक़्फ़ कर दूंगा |
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आप की तअलीम व तरबियत :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने उर्दू और फ़ारसी की तालीम वालिदे गिरामी मुईनुद्दीन नुज़हत रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की फिर हज़रत मौलाना अबुल फ़ज़ल अहमद रहमतुल्लाह अलैह से अरबी की चंद किताबें पढ़ीं हज़रत मौलाना अबुल फ़ज़ल अहमद रहमतुल्लाह अलैह को नाते सरकारे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इश्क़ था | जैसा के हर जुमा को बाद नमाज़े जुमा मस्जिद की चौकी हसन खान मुरादाबादी में नात शरीफ की महफ़िल करवाते जिस में शहर भर से बहुत सारे लोग शरीक हुआ करते |
दरसे निज़ामी की तकमील :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के उस्तादे मुहतरम हज़रत मौलाना अबुल फ़ज़ल रहमतुल्लाह अलैह आपको साथ लेकर हज़रत अल्लामा व मौलाना सय्यद मुहम्मद गुल क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में लेकर हाज़िर हुए और अर्ज़ की “ये साहबज़ादे निहायत ज़की व फहीम यानि निहायत ज़हीन व समझदार हैं” मेरी ख़्वाइश है के बक़िया दरसे निज़ामी की आप से तकमील करें हज़रत ने क़बूल फ़रमाया | चुनाचे सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने उस्ताज़ुल असातिज़ा हज़रत अल्लामा मौलाना सय्यद मुहम्मद गुल क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह से मंतिक, फलसफा, रियाज़ी, उक़लीदस, तौक़ीत व हय्यत, अरबी बहुरूफ़े गैर मंकूता, यानि बगैर नुक़्तों के हुरूफ़ वाली अरबी तफ़्सीर, हदीस, और इल्मे फ़िक़्ह, वगैरह बहुत से मुरव्वजाह दरसे निज़ामी और गैर दरसे निज़ामी उलूम व फुनून की सनादें हासिल कीं और बहुत से सलासिल अहादीस व उलूमे इस्लामियां की सनादें तफ़वीज़ हुईं यानि दी गईं | आप रहमतुल्लाह अलैह का सिलसिलए सनादें हदीस “कुद वतुल फुज़्ला, उम्दतुल मुहक़्क़क़ीक़ीन हज़रत मौलान सय्यद मुहम्मद मक्की रहमतुल्लाह अलैह खतीब व मुदर्रिस मस्जिदुल हराम के ज़रिए मुहश्शी दुर्रे मुख़्तार ख़ातिमुल मुहक़्क़क़ीक़ीन सय्यद अहमद तहतावी रहमतुल्लाह अलैह से मिलता है जिनकी सनद अरबो आजम में मशहूर है | फिर एक साल तक फतवा नवेसी की मश्क फरमाई 1320 तेहराह सौ बीस हिजरी मुताबिक़ 1902 उन्नीस सौ दो ईस्वी में 20 बीस साल की उमर में अज़ीमुश्शान जलसे में उल्माए किराम ने आपकी दस्तार बंदी फ़रमाई |
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आपने इल्मे तिब (हिकमत हकीमी काम) हासिल किया :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने इल्मे तिब हकीम हाज़िक़ हज़रत मौलाना हकीम फैज़ अहमद साहब अमरोहवी से हासिल किया | जिस तरह से आप को उलूमे मन्क़ूलिया व उलूमे मअक़ूलिया में हम असर उलमा में नुमाया हैसियत हासिल थी इसी तरह मैदाने तिब में भी आप कमाल की महारत रखते थे के उमूमन मरीज़ का चेहरा देखकर ही मर्ज़ पकड़ लिया करते थे | नब्बाज़ यानि नब्ज़ देख कर पहचान करने में यकताए ज़माना थे | मुफर्रादाते अदविया के खवास अज़बर यानि ज़बानी थे मुर्रक्काबात में भी खास सलाहियतों के मालिक थे | जामिया नयीमीया से फारिग होने वाले बहुत से उलमा ने आप से इल्मे तिब भी हासिल किया | आप का जो वक़्त तब्लीग व तदरीस से बचता था उस में तिब व हिकमत के ज़रिए खिदमते ख़ल्क़ फिसबीलिल्लाह फ़रमाया करते थे |
पीरो मुर्शिद की तलाश :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह पीरो मुर्शिद की जुस्तुजू यानि तलाश में पीलीभीत हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह बड़ी मुहब्बत व करम से पेश आए और इससे पहले के सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह कुछ कहें तो फ़रमाया मियां मुरादाबाद में मौलाना सय्यद मुहम्मद गुल क़ादरी बड़ी अच्छी सूरत हैं में मुरादाबाद जाता हूँ तो उनकी खिदमत में हाज़िर होता हूँ | आप जिस इरादे से आए हैं आप का हिस्सा वहीँ है | सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह मुरादाबाद वापस आए तो हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद गुल क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने देखते ही इरशाद फ़रमाया शाह जी मियां साहब के यहाँ हो आए अच्छा परसों जुमा है नमाज़े फजर के बाद आईए तो जो आपका हिस्सा है वो अता किया जाएगा तीसरे दिन जुमे को बाद नमाज़े फजर हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद गुल क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने क़ादरी सिलसिले में बैअत फ़रमाया और जो हिस्सा था वो अता किया |
आपको हुज़ूर शाह जी मुहम्मद शेर मियां ने दुआ दी थी के दो बेटे पैदा होंगे :- हुज़ूर शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह ने चलते वक़्त आप को दुआ दी थी के अल्लाह तआला आप को दुश्मनाने दीन पर फ़तेह मंद रखे और बच्चे अता फरमाए मुरादाबाद आने के बाद एक हफ्ता गुज़रा था के एक साथ दो फ़रज़न्द यानि दो बेटे पैदा हुए |
आपकी सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से पहली मुलाक़ात :- मेरे आक़ा आला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, वलीए नेमत, अज़ीमुल बरकत, परवानए शामए रिसालत, मुजद्दिदे दिनों मिल्लत, हामिए सुन्नत, माहिए बिदअत,आलिमे शरीअत पिरे तरीक़त, इमामे इश्क़ो मुहब्बत, बाइसे खैरो बरकत, हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहद्दिस अल्हाज अल हाफिज़ अल कारी अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु की मुहक़्क़िक़ाना तसानीफ़ के मुताले से सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के दिल में गाइबाना तौर पर आप की गहरी मुहब्बत व अक़ीदत पैदा हो गई थी | एक दफा किसी बद मज़हब ने एक अख़बार में आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के खिलाफ मज़मून लिखा जिसमे दिल खोल कर दुशनाम तराज़ी का मुज़ाहिरा किया | हज़रते सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह ने उस मज़मून को देखा तो सख्त सदमा पहुंचा हाथों हाथ उस के जवाब में एक वज़ाहति मज़मून तहरीर फ़रमाया और किसी तरकीब से उसी अख़बार में छपवा दिया | आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह को पता चला तो मुरादाबाद में अपने एक अकीदतमंद हाजी मुहम्मद अशरफ शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह को तहरीर फ़रमाया के मौलाना मुहम्मद सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह को साथ लेकर बरैली आएं पहली ही मुलाक़ात में सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की शफ़क़त व मुहब्बत से इस क़द्र मुतअस्सिर हुए के फिर कोई महीना बरैली शरीफ की हाज़री से खाली नहीं जाता आप खुद फरमाते हैं “सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के आस्ताने के सफर के लिए कभी मेरा बिस्तर खुला ही नहीं में लाज़मी हर पीर और जुमेरात को सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में जाता था | “मशहूर है के “सदरुल्ला फ़ाज़िल” का लक़ब आपको सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ही ने दिया | सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने भी आपको खिलाफत अता फ़रमाई |
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बीस (20) साल की उमर में पहली तसनीफ़ :- दौराने तालिबे इल्मे यानि जब आप इल्मे दीन हासिल कर रहे थे यानि सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने सहाफ़ती तरीके से तबलीग़े दीन के लिए मुख्तलिफ रसाइल व जराइद में मज़ामीन लिखने का सिलसिला शुरू किया | ये मज़ामीन हिंदुस्तान के शहर कलकत्ता के “अलहिलाल” और “अल बलाग” में छपते रहे | इसी दौरान आप ने ये ख्याल फ़रमाया के प्यारे मदनी आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के “इल्मे ग़ैब” पर एक ऐसी जामे किताब होनी चाहिए जिससे मुआतज़िरीन के तमाम औहाम व शुकूक और बातिल नज़रयात का शाफी व वाफी मुहज़्ज़ब पैराए में जवाब हो | चुनचे आपने एक मुस्तक़िल किताब लिखनी शुरू की | उस वक़्त चूंकि आप के पास ऐसा जमे क़ुतुब खाना नहीं था के जिस में हर क़िस्म की किताबें मौजूद हों लिहाज़ा आपने मुस्तफाबाद यानि हिंदुस्तान के शहर रामपुर के क़ुतुब खाने कीतरफ रुजू किया आप सफर करके रामपुर जाते वहां के क़ुतुब खाने से हवाला जात देख कर आते और मुरादाबाद में किताब लिखते जब बीस साल की उमर में आप की दस्तार बंदी हो गई तो वो किताब भी मुकम्मल हो गई जिसका नाम “अल कलिमतुल उलिया लीइलाई इल्मे मुस्तफा” है |
सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह का खिराजे तहसीन :- जब ये किताब शाए हुई यानि छपी तो हाजी मुहम्मद अशरफ शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह इस किताब को लेकर सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए |सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने इस को मुलाहिज़ा करके फ़रमाया: माशा अल्लाह बड़ी उम्दह नफीस किताब है ये नो उमरी और अहसन दलाइल के साथ इतनी बुलंद किताब मुसन्निफ़ के होनहार होने पर दाल यानि दलालत करती है |
सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की ख़ास इनायत :- ख़लीफ़ए मुफ्तिए आज़म हिन्द मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद एजाज़ वली रज़वी क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं बातिल फ़िरक़ों और मुआनिदीन यानि मुख़ालिफ़ीन से गुफ्तुगू व मुनाज़िरात में सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने बारहा सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह को अपना वकील खास बनाया |
मशवरों की क़द्र फरमाते :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के उन मुमताज़ खुलफ़ा मे से हैं जिन्हें इममे अहले सुन्नत सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के मिजाज़ आली में बड़ा दख़्ल था सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के मशवरों को क़बूल भी फरमातें और इज़हारे मसर्रत व शादमानी फरमाते “अत्तारी उद्दारी” की तसनीफ़ पर मुसव्वदाह सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह को दिखाया गया तो आपने उस में से कसीर मज़मून के बारे में सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से दरख्वास्त की ये निकल दिया जाए | सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने बिला तअम्मुल उसे काट दिया और सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह से ये भी न फ़रमाया के क्यों ये तरमीम पेश की सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह की सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से मुहब्बत व अक़ीदत का ये आलम था के उनकी इजाज़त के बगैर कोई सफर नहीं करते |
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सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की तदरीसी महारत :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने 1327 हिजरी में मुरादाबाद में मदरसा अंजुमन अहले सुन्नत व जमात की बुनियाद रखी जिस में माक़ूलात व मन्क़ूलात की तालीम का आला पैमाने पर इंतिज़ाम किया गया 1302 हिजरी में सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के “इसमें गिरामी नईमुद्दीन” की निस्बत से उस का नाम जामिआ नईमिअ रखा गया | सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह को अल्लाह तआला ने बेशुमार खूबियों से नवाज़ा था आप बेहतरीन मुक़र्रिर, बा अमल मुबल्लिग मंझे हुए मुफ़्ती और पुर असर मुसन्निफ़ होने के साथ साथ क़ाबिल तिरीन मुदर्रिस भी थे इल्मे हदीस में आप ख़ास व आम थे | बड़े बड़े उलमा किराम इस बात का ऐतिराफ़ किया करते थे की जिस तरह हदीस की तालीम आप देते हैं उनके कानो ने कभी और कहीं इस की समाअत नहीं की | इस जमइयत से मुख़्तसर अलफ़ाज़ बयान फरमाते थे के मफ़हूम ज़हिन की गहराईयों में उतर जाता था फुनूने अकलिया की किताबों की पुर मगज़ मुदल्लल तकारीर ज़बानी क्या करते थे | दरस के वक़्त अपने सामने फुनूने अकलिया की किताब नहीं रखते थे | जब तलबा इबारत पढ़ चुकते और आप किताब पर तक़रीर फरमाते तो ऐसा गुमान होता के शायद आप ही इस किताब के मुसन्निफ़ हैं जो किताब की गहराईयों और इबारत के रुमूज़ व असरार की वज़ाहत फरमा रहे हैं | इल्मे तौक़ीत जिसे इल्मे हय्यत भी कहते हैं इस में आपको खुदा दाद महारत हासिल थी आप ने मुतअददिद कुर्रए फलकी तय्यार कराए जिस में “सबा सवाबित” यानि सात आसमानो और सय्यारगान को कुर्रा में चांदी के नुक़्तों से वाज़ेह फ़रमाया जब आप इल्मे हय्यत की तालीम देते थे तो वो कुर्रा सामने रखकर तलबा को गोया आसमान की सैर करा देते थे तदरीस में आपकी बेमिसाल महारत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है के फकीहे आज़म हिन्द शरह बुखारी हज़रत मौलाना मुफ़्ती शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेने मुदर्रिस दो ही देखे हैं एक सद रुश्शारिया और दुसरे सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैहिमा फ़र्क़ सिर्फ इतना था के सद रुश्शारिया रहमतुल्लाह अलैह इस शोबे से ज़्यादा वाबस्ता रहे और सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह ज़रा कम |
आप के मशहूर शागिर्द :- हज़रत अल्लामा सय्यद अबुल बरकात अहमद क़ादरी (बानी दारुल उलूम हिज़्बुल अहनाफ मरकज़ुल औलिया लाहौर) मुफ़स्सिरे क़ुरआन हज़रत अल्लामा सय्यद अबुल हसनात मुहम्मद अहमद अशरफी, (मरकज़ुल औलिया लाहौर) ताजुल उलमा मुफ़्ती मुहम्मद उमर नईमी (बाबुल मदीना कराची) हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी (गुजरात) फकीहे आज़म मुफ़्ती मुहम्मद नूरुल्लाह नईमी, मुफ़्ती सय्यद गुलाम मुईनुद्दीन नईमी,(मरकज़ुल औलिया लाहौर) मुफ़्ती मुहम्मद हुसैन नईमी संभल बानी जामिआ नईमिया,(मरकज़ुल औलिया लाहौर) ख़लीफ़ए क़ुत्बे मदीना मौलाना गुलाम क़ादिर अशरफी, मुफ़्ती मुहम्मद हबीबुल्लाह नईमी, (शैखुल हदीस जामिया नईमिया मुरादाबाद) |
दारुल इफ्ता :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मसरूफियात के बावजूद दारुल इफ्ता भी बड़ी खूबी और बा क़ाइदगी के साथ चलाते और हिंदुस्तान और हिंदुस्ता से बाहर मुरादाबाद के अतराफ़ व अकनाफ से बे शोमर इस्तिफता और इस्तिफ़सारात आते और तमाम जवाबात आप खुद अता फरमाते बिफजलिहि तआला फ़िक़्ही जुज़ियात इस क़द्र मुस्तहज़र थे के जवाबात लिखने के लिए क़ुतुब फ़िक़्ह की तरफ मुराजिअत की ज़रुरत बहुत ही कम पेश आती है शेह्ज़ादाए सदरुल्ला फ़ाज़िल हज़रत अल्लामा सय्यद इख्तिसामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह फरमाए करते थे के मीरास व फ़राइज़ के फतवे बहुत आते मगर हज़रत को जवाब लिखने के लिए किताब देखते हुए नहीं देखा आज तो एक बतन दो बतन चार बतन के फतवे अगर दारुल इफ्ता में आजाएं तो घंटो किताबें देखि जाती हैं तब कहीं फतवे का जवाब लिखा जाता है मगर सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह का ये हाल था के बीस बीस इक्कीस इक्कीस का फतवे भी दारुल इफ्ता में आए मगर हज़रत बगैर किताब देखे जवाब देते थे अलबत्ता उँगलियों पर कुछ शोमर करते ज़रूर देखा जाता और आपके फतवे के इस्तिर दाद यानि रद करने की कभी नौबत नहीं आयी |
तर्जुमा कंज़ुल ईमान की पहली इशाअत :- आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह के शोहरए आफ़ाक़ तर्जुमए क़ुरआन “कंज़ुल ईमान” की पहली इशाअत का सेहरा भी सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के सर है तर्जुमए क़ुरआन “कंज़ुल ईमान” की पहली उम्दह और खूबसूरत छपाई के लिए आपने जामिया नईमिया मुरादाबाद में ज़ाती प्रेस गलवाई | जिस में काम करने वाले सारे अफ़राद खुश अक़ीदह मुस्लमान थे जो ब वुज़ू होकर कंज़ुल इमाम की किताबत से लेकर जिल्द साज़ी तक के तमाम मराहिल बड़े इनहिमाक और अक़ीदे से तय करते थे | इस सारे अमल की निगरानी आप खुद करते थे | आज दुनिया में जो कंज़ुल ईमान है ये वही कंज़ुल ईमान है जिसे सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने शाए (छप छपवाना) कराया था | फिर आप ने कंज़ुल ईमान पर तफ़्सीरी हाशिया ब नाम “खज़ाइनुल इरफ़ान फि तफ़्सीरे क़ुरआन” लिख जो अपनी नोईयत के एतिबार से पहला मुकम्मल हाशिया है और इस की मक़बूलियत का अंदाज़ा सिर्फ एक बात से ही लगाया जा सकता है के आज कंज़ुल ईमान “खज़ाइनुल इरफ़ान फि तफ़्सीरे क़ुरआन” दोनों लाज़िम व मल्ज़ूम हैं यानि दोनों ही ज़रूरी हैं |
वालिद साहब की रेहलत और सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह का ताज़ियत नामा :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के वालिद बुज़ुर्गवार उसताज़ुश शोरा हज़रत मौलाना मुईनुद्दीन साहब नुज़हत सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे आप 80 अस्सी साल की उमर में चार दिन बुखार में मुब्तला होकर कलमा शरीफ पढ़ते हुए इस दुनिया से रुखसत हुए हज़रत के इन्तिक़ाले की खबर जब सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह को पहुंची तो जो आपने मक्तूबे गिरामी इरसाल फ़रमाया उसका खुलासा ये है अस्सलामु अलइकुम व रहमतुल्लाहि व बारकातुह: बेशक अल्लाह तआला ही को है जो वो अता करता है और जो वपास ले लेता है बेशक उस के यहाँ वक़्त हर चीज़ को मुक़र्रर है सब्र करने वालों को बेहिसाब अजर मिलता है | अल्लाह तआला मौलाना मुईनुद्दीन की मगफिरत फरमाए उनके नामए अमाल को इल्ली ईन में रखे क़यामत के दिन उनका चेहरा रोशन फरमाए और उन्हें सय्यदुल मुर्सलीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात क़ा शरफ़ बख्शे अल्लाह तआला आपको सबरे जमील और अज्रे जज़ील बख्शे और आपके अधूरे कम को मुकम्मल फरमाए और आपको मज़ीद इज़्ज़त बख्शे | सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं ये पुरमालाल कार्ड ईद के दिन आया में नमाज़े ईद पढ़ने नैनीताल गया हुआ था | रात को बे ख्वाब रहा था और दिन को बे खुर्द ख्वाब यानि खाए और सोए बगैर और आते जाते डांडी में चौदह मील को सफर दुसरे दिन बाद नमाज़े सुबह सो रहा था सोकर उठा तो ये कार्ड पाया इसी दिन से मौलाना मरहूम का नाम ता बकाए हयात इंशा अल्लाह तआला रोज़े इसाले सवाब के लिए दाखिले वज़ीफ़ा कर लिया वो इंशा अल्लाह तआला बहुत अच्छे गए मगर दुनिया में उन से मिलने की हसरत रह गई मौला तआला आख़िरत में ज़ेरे लिवाए सरकारे ग़ौसियत यानि गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के झंडे तले मिलाए |
यानि रमज़ान शरीफ में मरना शहादत की एक क़िस्म है, जुमा के दिन मरना शहादत की दूसरी क़िस्म है, बुखार में मरना शहादत की तीसरी क़िस्म है इन तीनो शहादतों का ज़िक्र हदीस में मौजूद है | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
फसादी लोगों ने तौबा की :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह का अंदाज़े बयान ऐसा था के आपने तो दाद देते ही मुख़ालिफ़ीन भी दमबख़ुद रह जाते थे एक मर्तबा “राना धोल पुर” के इलाक़े में आपका बयान था लोगों को मालूम हुआ तो उन्होंने जोक दर जोक शिरकत की | जब बयान शुरू हुआ तो शर पसंदों का एक टोला आया और बैठ गया | जब उन्होंने आपका बयान सुना तो वो मसहूर होकर रह गए | उनकी तुरकी तमाम हो गई और उन्हें अपने तही दामन होने का एहसास हो गया | आप ने बयान के बाद एलान फ़रमाया अगर किसी को मेरी तक़रीर पर कोई इश्काल व एतिराज़ हो तो बयान करे उसको मुतमइन किया जाएगा | तो ये पूरी जामात खड़ी हो गई और कहा हुज़ूर इश्काल तो कोई नहीं पर इतनी अर्ज़ है के हम फसाद के लिए आए थे और कहा हुज़ूर लेकिन आपकी तक़रीर ने हमारी आंखें खोल दी हैं | अब इतना करम फ़रमाई के हमें तौबा कराएं और आज शाम इसी मौज़ो पर हमारे मोहल्ले में भी बयान फरमाएं |
दाढ़ी रखने के लिए :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के एक खिदमत गुज़ार का बयान है | शुरू में मेरी दाढ़ी खशखशी होती थी और सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह इस बात को पसंद नहीं फरमाते थे | एक दिन बड़े प्यार भरे अंदाज़ में मेरे चेहरे को आपने दोनों हाथों में लेकर बड़े मन ख़ेज़ अंदाज़ में मुस्कुराते हुए फरमाने लगे मौलाना किया हाल है? आपके इस अंदाज़े नसीहत से में इतना मुतअस्सिर हुआ आज 60 बरस से ज़ाइद होने को आए हैं कभी दाढ़ी हद्दे शरआ यानि एक मुठ्ठी से कम नहीं हुई |
आपकी तसनीफ़ व तालीफ़ :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने बे पनाह दीनी व मिल्ली मसरूफियात के बावजूद तसनीफ़ व तालीफ़ का बड़ा ज़खीराह याद गार छोड़ा | आपने 1334 हिजरी मुताबिक़ 1924 ईस्वी में मुरादाबाद से महनामा “सवादे आज़म” जारी फ़रमाया जिस में मुसलमानो की खूब तरबियत फ़रमाई आप की यादगार क़ुतुब ये हैं: तफ़्सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान, नईमुल बयान फी तफ़्सीरे क़ुरआन, अल कलिमतुल उलिया इल्मे मुस्तफा, अतिबुल बयान दर रद्दे तक़वीयतुल इमाम, आदाबुल अखियार,सवानेह कर्बला, सीरते सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम, इर्शादुल अनाम फी महफिले मौलूद वलकयाम, गुलबन गरीब नवाज़, रयाज़े नीम मजमूआ, ज़ादुल हैरमैन, प्राचीन काल, किताबुल अक़ाइद,
आपकी खैर ख़्वाही :- ख़लीफ़ए सदरुल्ला फ़ाज़िल हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद गुलाम मुईनुद्दीन नईमी रहमतुल्लाह का बयान है के सदरुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह के विसाल से तीन रोज़ कब्ल का वाक़िअ है के मेरे कान में शदीद दर्द था और बेसाख्ता सोते जागते कान पर हाथ जाता था आप ने सुबह के वक़्त इशारे से क़लम दवात तलब फ़रमाई | हुक्मकि तामील कर दी गई आपने बीमारी की हालत में लिखा में रात को देखता हूँ के बे इख़्तियार बार बार तुम्हारा हाथ कान पर जाता है डाक्टर मुश्ताक़ को दिखाओ |
आपका विसाले बाकमाल :- ख़लीफ़ए सदरुल्ला फ़ाज़िल हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद गुलाम मुईनुद्दीन नईमी रहमतुल्लाह का बयान है के 11 ग्यारह बजे का वक़्त था सद रुला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी सहदरी के तीनो दरवाज़े बंद कर दिए | कमरे में मेरे और हज़रत के सिवा कोई नहीं था | थोड़ी देर मुझ से गुफ्तुगू फ़रमाई उसके बाद आप खामोश हो गए | तक़रीबन साढ़े ग्यारह बजे फ़रमाया पंखा खोल दो मेने खोल दिया फिर फ़रमाया कम कर दो मेने उसकी रफ़्तार नंबर दो पर करदी फिर फ़रमाया और कम कर दो मेने नंबर तीन पर रफ़्तार करदी कुछ वक़्फ़े के बाद फ़रमाया और कम कर दो अब में ने पंखे का रुख दिवार की तरफ कर दिया ताके दिवार से टकराकर हवा पहुंचे कुछ देर के बाद फ़रमाया बंद कर दो | उसके बाद फरमाने लगे:
मेरा बाज़ू दबाओ में चार पाई की दाहिनी तरफ बैठ कर बाज़ू और कमर दबाने लगा देखा के ज़बाने अक़दस से कुछ फरमा रहे हैं और चेहरे अक़दस पर बेहद पसीना है मेने रूमाल से चेहरे का पसीना खुश्क किया आपने नज़र मुबारक उठाकर मेरी तरफ मुलाहिज़ा फ़रमाया फिर आवाज़ से कलमा शरीफ पढ़ना शुरू किया लेकिन दमबदम आवाज़ कम होती चली गई, ठीक बारह बजकर 25 मिनट पर मुझे फेफड़ों की हरकत बंद होती मालूम हुई खुद ही आप क़िब्ले की तरफ होकर आपने हाथ पैर सीधे कर लिए थे इस तरह आप उन्नीस (19) ज़िल हिज्जा 1367 हिजरी को कलमा शरीफ पढ़ते हुए आप दुनिया से तशरीफ़ ले गए | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी बेहिसाब मगफिरत हो |
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मेरे जनाज़े की नुमाइश न करना :- हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद गुलाम मुइनुद्दीन नईमी रहमतुल्लाह अलैहि का बयान है के सदारुल्ला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह ने मुझसे फ़रमाया मेरे जनाज़े की नुमाइश न करना अगर लोग ज़्यादा इसरार करे तो सिर्फ मोहल्ला चौकी हसन खान तहसीली स्कूल नई सड़क और काठ दरवाज़े से होते हुए मदरसे के सिहन में नमाज़े जनाज़ा अदा करना वहाँ से सीधा मेरी आखरी आरामगाह ले जाना |
ईमान अफ़रोज़ ख्वाब :- सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह की वफ़ात से पहले हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद गुलाम मुईनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने एक ईमान अफ़रोज़ ख्वाब ख्वाब देखा के एक निहायत ही आलिशान नूर का कामराह है | चरों तरफ से कालीन पर तकिए लगे हुए हैं एक तरफ हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु रौनक अफ़रोज़ हैं, एक तरफ हज़रत सय्यदना उस्माने गनी ज़ुन्नुरैन एक तरफ हज़रत सय्यदना मौला मुश्किलकुशा अली मुर्तज़ा कर्रामल्लाहू तआला वजहहुल करीम, एक तरफ हज़रत सय्यदना अबू हुरैराह और दीगर सहाबाए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम तकिए लगाए रौनक अफ़रोज़ हैं, आखिर में एक कोने पर एक जगह ख़ाली है कमरे के दरवाज़े पर हज़रत सय्यदना फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु किसी के इन्तिज़ार में खड़े हैं के एक तरफ से सफ़ेद इमामा बांधे सफ़ेद मलमल की अचकन पहने हज़रत सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह आ रहे हैं हज़रत सय्यदना फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: तुम्हारी ख़ाली जगह अंदर है आप ने कहा मेरे लिए यही बड़ी सआदत है के जूतियों में जगह मिल जाए मगर हज़रत सय्यदना फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु हाथ पकड़कर अंदर ले गए यह कहकर अंदर दाखिल हो गए हुक्मे अदब पर फ़ौक़ियत रखता हूँ उस ख़ाली जगह में ले जाकर आपको बिठा दिया | आप अभी पूरे बैठे भी नहीं थे के मेरी आँख किसी वजह से खुल गई मेने सुबह को हज़रत सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह के सामने अपना ख्वाब बयान किया जिसे सुनकर हज़रते के ख़ुशी से आंसू निकल आए फ़रमाया मेरा इन्तिज़ार रहे अब में जा रहा हूँ यही इस की ताबीर है इस के बाद अपने अपनी गैर मनकूला जायदाद को अपने चरों साहबज़ादों को मुन्तक़िल फ़रमाया | मनकूला जायदाद को तक़सीम किया यानि बाँट दिया सिर्फ आठ सौ रूपया (800) अपने तज्हीज़ व तकफीन और इलाज वगैरह के लिए बाक़ी रखा
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विसाल फरमाने के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बगाह में आपकी हाज़री :- मुफ़स्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाह हज्जे बैतुल्लाह पर तशरीफ़ ले गए | मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में जब सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में हाज़िर हुए तो सुन्हेरी जालियों के क़रीब देखा के हज़रत सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह
भी मजमे में मौजूद हैं मुलाक़ात की हिम्मत न हुई | क्यूंकि बा अदब लोग तो वहां बात चीत नहीं करते | सलातो सलाम से फारिग होने के बाद बाहर तलाश किया मगर मुलाक़ात नहीं हुई | हज़रत शैखुल फ़ज़ीलत शैखुल अरब वल अजम क़ुत्बे मदीना सय्यदी व मौलाई ज़ियाउद्दीन अहमद क़ादरी रज़वी रहमतुल्ल अलैहि के दरबारे फैज़ आसार पर हाज़िर हुए के अरब व अजम के तमाम उल्माए हक़ और मशाइखे किराम हरमैन तय्येबैन की हाज़री के दौरान हज़रत शैखुल फ़ज़ीलत रहमतुल्ल्ह अलैह की ज़्यारत के लिए ज़रूर हाज़िर होते थे | वहां भी हज़रत सदरुला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह के मुतअल्लिक़ कोई मालूमात हासिल न हुई हैरान थे के हज़रत सदरुला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह अगर तशरीफ़ लाए हैं तो कहा गए हैं? इस बीच में हिंदुस्तान के शहर मुरादाबाद से हज़रत शैखुल फ़ज़ीलत रहमतुल्लाह अलैह के आस्ताने पर तार यानि खबर आयी के फुलां फुलां वक़्त हज़रत सदरुला फ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह का मुरादाबाद में विसाल हो गया | मुफ़स्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाह ने जब वक़्त मिलाया तो वही वक़्त था जिस वक़्त सुन्हेरी जालियों के क़रीब हज़रत सदरुल्ला फ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह नज़र आये थे आप फ़ौरन समझ गए की जैसे ही इन्तिक़ाल फ़रमाया बारगाहे रिसालत में सलातो सलाम के लिए हाज़िर हो गए |
मदीने का मुसाफिर हिन्द से पंहुचा मदीने में क़दम रखने की नौबत भी न आयी थी सफ़ीने में
आप का मज़ार शरीफ :- जामिआ नईमिया (हिन्दुतान के शहर मुरादाबाद में) मस्जिद के बाएं गोशे यानि कोने में आप रहमतुल्लाह अलैह का मज़ारे पुर अनवार है | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें आप रहमतुल्लाह अलैह के फ्यूज़ से मुस्तफ़ीज़ फरमाए | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी बेहिसाब मगफिरत हो |
(हयाते सदरुला फ़ाज़िल, तज़किराए सदरुला फ़ाज़िल)
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ग्यारवी सदी के मुजद्दिद हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर की हालाते ज़िन्दगी