आप की राए से क़ुरआन शरीफ की मवाफ़िक़त :- (सेम वैसा ही, उसी तरह, उस जैसा ही) हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की एक बहुत बड़ी फ़ज़ीलत ये है के क़ुरआन शरीफ की आप की राए के मवाफ़िक़ (सेम वैसा ही, उसी तरह, उस जैसा ही) नाज़िल होता था |

राए के मवाफ़िक़ नुज़ूले आयात :- हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के क़ुरआने करीम में हज़रत उमर की राए मौजूद हैं | हज़रते इबने उमर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के अगर किसी मुआमला में लोगों की राए दूसरी होती और हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु की राए दूसरी तो क़ुरआन मजीद हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की राए के मवाफ़िक़ नाज़िल होता था |
और हज़रत मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है के हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु किसी मुआमला में जो कुछ मशवरा देते थे, क़ुरआन शरीफ की आयतें इसी के मुताबिक़ नाज़िल होती थीं
“हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के उन के रब ने उन से इक्कीस (21) बातों में मवाफ़िक़ात फ़रमाई” उन में से चंद बातों का ज़िक्र किया जाता है |
हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मेने सरकारे सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप की खिदमत में हर तरह के लोग आते जाते हैं और हुज़ूर की खिदमत में अज़्वाजे मुताहिरात भी होती हैं बेहतर ये है के आप उन को पर्दा करने का हुक्म फरमाए | हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मेरी इस अर्ज़ के बाद उम्माहातुल मोमिनीन (यानि मोमिनो की माँ) के परदे के बारे में ये आयते मुबारिका नाज़िल हुई | पारा 22 रुकू चार |


وَ اِذَا سَاَلْتُمُوْهُنَّ مَتَاعًا فَسْــٴَـلُوْهُنَّ مِنْ وَّرَآءِ حِجَابٍؕ

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- और जब तुम उम्माहातुल मोमिनीन से इस्तेमाल करने की कोई चीज़ मांगो तो परदे के बाहर से मांगो |
मुल्के शाम के एक काफिले के साथ अबू सुफ़यान के आने की खबर पाकर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने असहाब के साथ उन के मुक़ाबले के लिए रवाना हुए मक्का मुअज़्ज़मा से अबू जहिल कुफ्फारे कुरैश का एक भरी लश्कर लेकर काफ्ले की इम्दादा के लिए रवाना हुआ | अबू सुफ़यान तो रास्ते से हट कर अपने काफ्ले के साथ समंदर के साहिल की तरफ चल पढ़े | तो अबू जहिल के साथियों ने उससे कहा के काफिला तो बच गया अब मक्का मुअज़्ज़मा वापस चलो मगर उस ने इंकार कर दिया और हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जंग करने के इरादे से बदर की तरफ चल पड़ा | हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन से जंग करने के बारे में मशवरा किया तो बाज़ यानि कुछ लोगों ने कहा के हम इस तय्यारी से नहीं चले थे न हमारी तादाद ज़्यादा है न हमारे पास काफी असलहा है मगर इस वक़्त हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने बदर की तरफ निकल कर काफिरों से मुक़ाबला करने ही का मशवरा दिया तो ये आयते मुबारिका नाज़िल हुई: “कमा अख रजा का रब्बुका मिम बैतिका बिल हक़्क़ी व इन्ना फ़रीक़म मिनल मोमिनीन लकारिहून”
तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- ऐ महबूब तुम्हे तुम्हारे रब ने तुम्हारे घर से हक़ के साथ बदर की तरफ बर आमद किया और बेशक मुसलमानो का एक गिरोह इस पर न खुश था |

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वो अल्लाह का दुश्मन है जो..? हज़रते अब्दुर रहमान अबू याला रदियल्लाहु अन्हु बयान फरमाते हैं के एक यहूदी हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु से मिला और आप से कहने लगा के जिब्राइल अलैहिस्सलाम फिरिश्ता जिस का तज़किराह तुम्हारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम करते हैं वो हमारा सख्त दुश्मन है इस के जवाब में हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:


مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِّلّٰهِ وَ مَلٰٓىٕكَتِهٖ وَ رُسُلِهٖ وَ جِبْرِیْلَ وَ مِیْكٰىلَ فَاِنَّ اللّٰهَ عَدُوٌّ لِّلْكٰفِرِیْن

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- जो कोई दुश्मन हो अल्लाह और उस के फरिश्तों और उस के रसूलों और जिब्राइल व मिकाइल तो अल्लाह दुश्मन है काफिरों का | सूरह बकरा पहला पारा आयात 98
तो जिन अलफ़ाज़ के साथ हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने यहूदी को जवाब दिया बिलकुल इन्ही अलफ़ाज़ के साथ क़ुरआने मजीद की ये आयते मुबारिका नाज़िल हुई | आयते मुबारिका के आखरी जुमला, (فَاِنَّ اللّٰهَ عَدُوٌّ لِّلْكٰفِرِیْن) से मालूम हुआ के अम्बिया व मलाइका की अदावत यानि दुश्मनी “कुफ्र” है और मेहबुबाने हक़ से दुश्मनी करना अल्लाह पाक से दुश्मनी करना है | सूरह बकरा आयात 97 |

सेहरी में खुसूसी रियायत :- पहली शरीअतों में रोज़ा इफ्तार करने के बाद खाना पीना और हमबिस्तरी करना ईशा की नमाज़ तक जाइज़ था | ये सारी चीज़ें रात में भी हराम हो जाती थीं ये हुक्म हुज़ूर स ल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़मानए मुबारक तक बाक़ी रहा यहाँ तक के रमजान शरीफ की रात में नमाज़ ईशा के बाद हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु से हमबिस्तरी हो गई जिस पर वो बहुत नादिम और शर्मिंदा हुए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए और वाक़िअ बयान किया तो इस पर ये आयते मुबारिका नाज़िल हुई |


اُحِلَّ لَكُمْ لَیْلَةَ الصِّیَامِ الرَّفَثُ اِلٰى نِسَآىٕكُمْؕ

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- इस आयते करीमा का मतलब ये है के रोज़ों की रातों में अपनी औरतों के पास जाना (यानि उन से हमबिस्तरी करना) तुम्हारे लिए हलाल हो गया | सूरह बकरा आयत 187 पारा दो |

मुनाफ़िक़ की गर्दन उड़ा दी :- बिशर नामी एक मुनाफ़िक़ था | उस का एक यहूदी से झगड़ा था यहूदी ने कहा चलो सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से फैसला करालें | मुनाफ़िक़ ने ख्याल किया के हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हक़ फैसला करेंगें कभी किसी की तरफदारी और रियायत न फरमाएंगें| जिससे इस का मतलब हासिल न हो सकेगा इस लिए उस ने मुद्दई ईमान होने के बावजूद कहा के हम कअब बिन अशरफ यहूदी को पंच बनाएगें | यहूदी जिसका मुआमला था वो खूब जानता था के कअब रिशवत ख़ूर है और जो रिशवत ख़ूर होता है उससे सही फैसला की उम्मीद रखना गलत है इस लिए कअब के हम मज़हब होने के बावजूद यहूदी ने उस को पंच तस्लीम करने से इंकार कर दिया तो मुनाफ़िक़ को फैसले के लिए हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास मजबूरन आना पढ़ा |
हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो हक़ फैसला किया वो इत्तिफ़ाक़ से यहूदी के मवाफ़िक़ और मुनाफ़िक़ के मुखालिफ हुआ | मुनाफ़िक़ हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फैसला सुनने के बाद फिर यहूदी के दर पे हुआ और उसे मजबूर करके हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के पास लाया यहूदी ने आप से अर्ज़ किया के मेरा और उस का मुआमला सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तय फरमा चुके हैं | लेकिन सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं मानता आप से फैसला चाहता है | हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया ठहरो में अभी आकर फैसला किए देता हूँ | “ये फरमा कर मकान में तशरीफ़ ले गए और तलवार लाकर उस मुनाफ़िक़ मुददायी ईमान को क़त्ल कर दिया और फ़रमाया जो अल्लाह और उस के रसूल के फैसला को न माने उस के मुतअल्लिक़ मेरा यही फैसला है तो बयान वाक़िआ के लिए ये आयते करीमा नाज़िल हुई:


اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِیْنَ یَزْعُمُوْنَ اَنَّهُمْ اٰمَنُوْا بِمَاۤ اُنْزِلَ اِلَیْكَ وَ مَاۤ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ یُرِیْدُوْنَ اَنْ یَّتَحَاكَمُوْۤا اِلَى الطَّاغُوْتِ وَ قَدْ اُمِرُوْۤا اَنْ یَّكْفُرُوْا بِهٖؕ-وَ یُرِیْدُ الشَّیْطٰنُ اَنْ یُّضِلَّهُمْ ضَلٰلًۢا بَعِیْدًا

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- क्या तुम ने उन्हें नहीं देखा जिनका दावा है के वो ईमान लाए इस पर जो तुम्हारी तरफ उतरा और उस पर जो तुम से पहले उतरा फिर चाहते हैं के अपना पंच शैतान को बनाएं और उनको तो हुक्म ये था के उसे हरगिज़ न माने और इब्लीस ये चाहता है के उन्हें दूर बहका दे | पांचवां पारा छटा रुकू आयात 59| (तफ़्सीरे जलालैन व सावी)
फिर किसी ने हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खबर दी के हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने उस मुस्लमान को क़त्ल कर दिया जो हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में फैसले के लिए हाज़िर हुए था | फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया उमर से ऐसी उम्मीद नहीं के वो किसी मोमिन के क़त्ल पर हाथ उठाने की जुरअत कर सकें तो अल्लाह तबारक व तआला ने फिर ये आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई:

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فَلَا وَ رَبِّكَ لَا یُؤْمِنُوْنَ حَتّٰى یُحَكِّمُوْكَ فِیْمَا شَجَرَ بَیْنَهُمْ ثُمَّ لَا یَجِدُوْا فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَیْتَ وَ یُسَلِّمُوْا تَسْلِیْمًا

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- तो ऐ मेहबूब तुम्हारे रब की क़सम वो मुस्लमान न होंगें जब तक अपने आपस के झड़गे में तुम्हें हाकिम न तस्लीम करलें फिर जो कुछ तुम हुक्म फरमा दो अपने दिलों में उससे रुकावट न पाएं और दिल से मानलें पांचवां पारा छटा रुकू आयात 64, 65|
इन वाक़िआत से खुदा वनदे कुद्दूस की बारगाह में हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की इज़्ज़त व अज़मत का पता चलता है के उनकी बातें के मवाफ़िक़ वहीए इलाही और क़ुरआन मजीद की आयतें नाज़िल होती थीं | मज़ीद और ज़्यादा जानने के लिए “तारीख़ुल खुलफ़ा वगैरह का मुताअला करें |

हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की खिलाफत

आप खलीफा किस तरह मुक़र्रर हुए :- हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की खिलाफत का वाक़िआ हज़रत अल्लामा वाकदी रहमतुल्लाह अलैह की रिवायत के मुताबिक़ यूँ है के जब हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु की तबीयत अलालत के सबब बहुत ज़्यादा नासाज़ हो गई तो आप रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु को बुलाया जो अशरए मुबश्शारा में से हैं और उन से फ़रमाया के उमर के बारे में तुम्हारी किए राए है?
उन्होंने कहा के मेरे ख्याल में तो उससे भी बढ़ कर हैं जितना के आप उनके बारे में ख्याल फरमाते हैं | फिर आप रदियल्लाहु अन्हु ने उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को बुला कर उन से भी हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के बारे में दरयाफ्त फ़रमाया | उन्होंने भी यही कहा के मुझ से ज़्यादा आप उन के बारे में जानते हैं | हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया फ़रमाया के कुछ तो बतलाओ |
हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु ने कहा के उनका बातिन उनके ज़ाहिर से अच्छा है और हम लोगों में इन का मिस्ल कोई नहीं | फिर आप ने सईद बिन ज़ैद, उसैद बिन हज़ीर और दीगर अंसार व मुहाजिरीन रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन हज़रात से भी मशवरा लिया और उनकी राए मालूम कीं | हज़रत उसैद रदियल्लाहु अन्हु ने कहा के ख़ुदाए तआला खूब जानता है के आप के बाद हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु सब से अफज़ल हैं | वो अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहते हैं और अल्लाह जिस से नाखुश होता है उससे वो भी नाखुश रहते हैं और उनका बातिन उनके ज़ाहिर से भी अच्छा है और कारे खिलाफत के लिए उन से ज़्यादा मुस्ताअद और क़वी शख्स कोई नज़र नहीं आता | फिर कुछ और सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन आए | उन में से एक शख्स ने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु से कहा के हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की सख्त मिजाज़ी से आप वाक़िफ़ हैं इस के बावजूद अगर आप इन को खलीफा मुक़र्रर करेंगें तो ख़ुदाए तआला के यहाँ क्या जवाब देंगें? आप रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया खुदा की क़सम तुमने मुझ को खौफ ज़दह कर दिया मगर में बारगाहे खुदा वन्दी में अर्ज़ करूंगा के या इलाहल आलामीन मेने तेरे बन्दों में से बेहतरीन शख्स को खलीफा बनाया है और ऐ एतिराज़ करने वाले ये जो कुछ मेने कहा है तुम दुसरे लोगों को भी पहुंचा देना | इसके बाद हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को बुला कर फ़रमाया लिखिए :


بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِۙ

ये वसीयत नामा है जो अबू बक्र बिन अबू क़हाफ़ा ने अपने आखरी ज़माने में दुनिया से रुखसत होते वक़्त और एहदे आख़िरत के शुरू में आलमे बाला में दाखिल होते वक़्त लिखाया है | ये वो वक़्त है जब के एक काफिर भी ईमान ले आता है | एक फ़ासिक़ व फ़ाजिर भी यक़ीन की रौशनी हासिल कर लेता है और एक झूटा भी सच बोलता है मुसलमानो अपने बाद मैंने तुम्हारे ऊपर उमर बिन खत्ताब रदियल्लाहु अन्हु को खलीफा मुन्तख़ब (चुनना ) किया है |उनके अहकाम को सुनना और उनकी इताअत व फरमाबरदारी करना मैंने हत्तल इमकान खुदा और रसूल दीन और अपने नफ़्स के बारे में कोई तकसीर व गलती नहीं की है और जहा तक हो सका तुम्हारे साथ भलाई की है मुझे यकीन है की वो यानिहज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु अद्ल व इन्साफ से काम लेंगे अगर उन्होंने ऐसा किया तो मेरे ख़याल के मुताबिक होगा और अगर उन्होंने अद्ल व इंसाफ को छोड़ दिया और बदल गए तो हर शख्स अपने किए का जवाब देह होगा और ऐ मुसलमानो मैंने तुम्हारे लिए भलाई का क़स्द किया है |


وَ سَیَعْلَمُ الَّذِیْنَ ظَلَمُوْۤا اَیَّ مُنْقَلَبٍ یَّنْقَلِبُوْنَ۠

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- और ज़ालिम अनक़रीब जानेंगे के वो किस करवट पर पलटा खाएंगे
सूरह शोअरा आयात नंबर 227 पारा

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Aap Ka Mazare Pur Anwar Gunmbade Khazra Ke Andar Huzur Sallahu Alaihi Wasallam ke Pehlu Me Hai In Hi Jaaliyon Ke Andar

व अलइकुमुस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बर्कातहु

फिर अपने इस वसीयत नामा को सर ब मोहर करने का हुक्म दिया जब वो मोहर बंद हो गया तो अपने उसे हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के हवाले कर दिया जिसे लेकर वो गए लोगो ने राज़ी ख़ुशी से हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत की | इसके बाद अपने हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को तन्हाई में बुलाकर कुछ वसीयतें फरमाईं |
और जब वो चले गए तो हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने बारगाहे इलाही में दुआ के लिए हाथ उठाया और अर्ज़ किया या अल्लाह ये जो कुछ मैंने किया है इससे मेरी निय्यत मुसलमानो की फलाहो बहबूद (कामयाबी) है तू इस बात से खूब वाकिफ है के मैंने फितना फसाद को रोकने के लिए ऐसा काम किया है मैंने इसके बारे में अपनी राए के इज्तिहाद से काम लिया है मुसलमानो में जो सबसे बेहतर है मैंने उसको उनका वाली बनाया है और वो उनमे सबसे कवि और नेकी पर हरीस हैं |
और या अल्लाह मैं तेरे हुक्म से तेरी बारगाह में हाज़िर हो रहा हूँ खुदावंद तू ही अपने बन्दों का मालिकों मुख्तार है और उनकी बाग़ डोर तेरे ही दस्ते क़ुदरत में है या अल्लाह इन लोगों में दुसरस्तगी सलाहिय्यत पैदा करना और उमर रदियल्लाहु अन्हु को खुल्फ़ए राशिदीन में से करना और उनके साथ उनकी रियाया को अच्छी ज़िन्दगी बसर करने की तौफीक आता फरमा |

एक राफ्ज़ी का ऐतराज़ और उसका जवाब :- राफ्ज़ी लोग कहते हैं के हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने जो अपनी ज़िंदग में खलीफा मुन्तख़ब किए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालफत की इसलिए के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़ाहिरी ज़िन्दगी में किसी को खलीफा नहीं बनाया हालाँकि वो अच्छाई और बुराई को खूब जानते थे और अपनी उम्मत पर पूरी पूरी शफ़क़त रखते थे मगर इसके बावजूद आपने उम्मत पर किसी को खलीफा नामजद नहीं किया और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु को अपनी ज़िन्दगी में खलीफा नामज़द कर दिया जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खुली हुई मुखालफत है |
इस ऐतराज़ के तीन जवाब हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मोहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि ताला अलैह ने तहरीर फरमाएं हैं |
पहला जवाब ये है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अपनी ज़ाहिरी ज़िन्दगी में उम्मत पर खलीफा न बनाना खुला हुआ झूट और बोहतान है इसलिए के राफ्ज़ी सब के सब इस बात के क़ाइल हैं के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को खलीफा बनाया था लिहाज़ा अगर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने भी सुन्नते नबवी की पैरवी में खलीफा मुन्तख़ब कर दिया तो इसमें मुखालफत कहाँ से लाज़िम आ गयी | और अगर जवाब की बुनियाद मज़हबे अहले सुन्नत पर रखें तो अहले सुन्नत के मुहक़्क़िक़ीन इस बात के क़ाइल हैं की सरकार अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु को नमाज़ और हज में अपना नायब व खलीफा बनाया है और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रमज़ शनास आपके कामों की बारीकियों से अच्छी तरह बाख़बर थे और आपके इशारों को अच्छी तरह समझते थे उनके लिए इतना ही इशारा काफी था और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने सिर्फ इस नुक़्तए नज़र से खिलाफत नामा लिखवाया के अरबो आजम के नों मुस्लिम बग़ैर तसरीह व तनसीस के इससे वाक़िफ़ न हो सकेंगे |
और दूसरा जवाब ये है की सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस वजह से खलीफा मुक़र्रर नहीं फ़रमाया के आप वाहिये इलाही से पूरे यक़ीन के साथ जानते थे के आपके बाद हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ही खलीफा होंगे |सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन इन्ही पर इत्तिफ़ाक़ करेंगे और कोई दूसरा इसमें दखल अंदाज़ी नहीं कर सकेगा | जैसा की हदीसे मुबारिक जो अहले सुन्नत की सही किताबों में मौजूद हैं इस बात पर वाज़ेह तरीके से दलालत करती हैं मसलन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह और मुसलमान अबू बकर के सिवा किसी को क़बूल न करेंगे |
और हदीस शरीफ में है मेरे बाद अबू बक्र सिद्दीक़ खलीफा होंगे और जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यकीन कामिल था के खलीफा हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ ही होंगे तो खिलाफत नामा लिखने की कोई हाजत न थी जैसा कि मुस्लिम शरीफ की हदीस में है के मरज़े वफ़ात में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु और उनके साहब ज़ादे को बुलाया ताके खिलाफत नामा लिखें “फिर फ़रमाया की ख़ुदाए तआला और मुसलमान अबू बक्र के अलावा किसी और को खलीफा नहीं बनाएंगे लिखने की हाजत क्या है” आपने इरादा ख़त्म फरमा दिया बखिलाफ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु के आपके पास वही नहीं आती थी और न आपको इस बात का कतई इल्म था के मेरे बाद लोग बिला शुबा उमर बिन खत्ताब को खलीफा बनाएंगे और अपनी अक़्ल से इस्लाम और मुसलामानों के लिए हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की खिलाफत को अच्छा समझते थे इसलिए उनपर ज़रूरी था के जिस चीज़ मे उम्मत की भलाई देखें उस पर अमल करें | “बी हम्दिहि तआला आपकी अक़्ल ने सही काम किया के इस्लाम की शौकत इन्तिज़ामे उमूरे सल्तनत और काफिरों की ज़िल्लत जिस क़द्र हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के हांथो हुई तारीख इसकी मिसाल पेश करने से आजिज़ है |
और तीसरा जवाब ये है के खलीफा न बनाना और चीज़ है और खलीफा बनाने से मना करना और चीज़ है मुखालिफत जब लाज़िम आती के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खलीफा बनाने से रोकते और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु खलीफा बना देते और अगर खलीफा बनाना हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालफत करना है तो लाज़िम आएगा के हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु को खलीफा बनाकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालिफत की मअज़ल्लाह |

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हज़रते उमर को खलीफा बनाने की हिकमत :- हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को अपने बाद खलीफा बनाकर निहायत अक़्लमंदी और दानिशमंदी से काम लिया इसलिए के वो जानते थे इस्लाम अपनी खूबियों की बिनाह पर रोज़ ब रोज़ हर दिन फैलता ही जायेगा बड़ी बड़ी सल्तनतें ज़ेरे नगी होंगीं और बड़े बड़े मुल्क फ़तेह होंगे जहान से बहोत माले गनीमत आएगा लोग खुश हाल व मालदार हो जायेंगे और मालदारी के बाद अक्सर दुनियादारी आ जाती है दीनदारी काम हो जाती है ” इसलिए अब मेरे बाद उमर रदियल्लाहु अन्हु जैसे शख्स को खलीफा होना ज़रूरी है जो दीन के मामले में बहुत सख्त हैं और शरीयत के मामले में किसी की परवाह नहीं करते” |

जो खिलाफते शैख़ैन का मुनकिर हो :- हज़रते सुफियान सौरी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के जिस शख्स ने ये ख़याल किया के हज़रात अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रात उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हुमा से ज़्यादा खिलाफत के मुस्तहिक़ और हक़दार हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु थे तो उसने हज़रते अबू बक्र व हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हुमा को ख़ताकार ठहराने के साथ साथ तमाम अंसार व मुहाजिरीन रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन को भी ख़ताकार ठहराया मअज़ल्लाह | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो

(खुल्फ़ए राशिदीन) (कंज़ुल उम्माल, किताबुल फ़ज़ाइल) (सुनन तिरमिज़ी शरीफ) (तारीख़ुल खुलफ़ा) (तफ़्सीर बगवी) (तफ़्सीरे जलालैन) (सुनन कुबरा) (अत्तब क़ातुल कुबरा) (सही मुस्लिम शरीफ, किताबुल फ़ज़ाइले सहाबा) (तोहफए इसना अशरिया, मुतर्जिम) (हिलयतुल औलिया) (सूरह शोअरा आयात नंबर 227) (पांचवां पारा छटा रुकू आयात 64, 65) (पांचवां पारा छटा रुकू आयात 59) (सूरह बकरा आयत 187 पारा दो) (सूरह बकरा पहला पारा आयात 98) (पारा 22 रुकू चार)

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