आप की सैरो सिहायत :- अल्लाह वालों की ज़्यारत और मज़ाराते औलिया से फायदे की गरज़ से सफर की सओबतैं मुश्किलें बर्दाश्त करना ऐसा मुजाहिदा है जो मुशाहिदे की दौलत से नवाज़ता है, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने ये मुजाहिदा भी हद्दे कमाल को पंहुचा दिया तक़रीबन तमाम आलमे इस्लाम की सियाहत और वक़्त के मशाइख व सूफ़िया यानि वालियों से फैज़ हासिल किया, आप ने मुल्के शाम, इराक़, बग़दाद, आज़र बाईजान, तिब्रिस्तान, किरमान, खुरासान, मावरा उन्नहर और तुर्किस्तान वगैरह का सफर फ़रमाया और बुज़ुर्गों से मुलाक़ात का शरफ़ हासिल किया |
भूके शेर का इसार :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेने शैख़ अहमद हम्माद सर खसि रहमतुल्लाह अलैह से उन की तौबा का सबब पूछा तो कहने लगे एक बार मेने अपने ऊंटों को लेकर सर खस से रवाना हुआ, दौरान सफर जंगल में एक भूके शेर ने मेरा एक ऊँट ज़ख़्मी कर के गिरा दिया और फिर बुलंद टीले पे चढ़ कर डकारने लगा उसकी आवाज़ सुनते ही बहुत सारे दरिंदे इकठ्ठे हो गए, शेरे नीचे उतरा और उस ने उसी ज़ख़्मी ऊँट को चीरा फाड़ा मगर खुद कुछ न खाया बल्कि दोबारा टीले पे जा कर बैठा जितने दरिंदे जमा हुए थे वो ऊँट पर टूट पड़े और खा कर चलते बने बाक़ी गोश्त खाने के लिए शेर क़रीब आया के एक लंगड़ी लोमड़ी दूर से आती दिखाई दि शेर वापस अपनी जगह चला गया लोमड़ी हस्बे ज़रूरत खाकर जब जा चुकी तब शेर ने उस गोश्त में से थोड़ा सा खाया में दूर से ये सब देख रहा था, अचानक शेर ने मेरी तरफ रुख किया और फसीह ज़बान में बोला अहमद एक लुक़मे का इसार तो कुत्तों का काम है राहे हक़ के मर्द तो अपनी जान भी क़ुर्बान कर दिया करते हैं मेने इस अनोखे वाक़िये से मुताअस्सिर होकर अपने तमाम गुनाहों से तौबा की और दुनिया से किनारा कश हो कर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से लो लगा ली |
प्यारे इस्लामी भाइयों :- नफ़्स को मारना ही बहुत मुश्किल काम है बस किसी तरह इस को काबू करने की कोशिश करनी चाहिए और इस का एक तरीक़ा ये भी है के नफ़्स जो कहे उस का उलट किया जाए मसलन वो अच्छे अच्छे खानो चटपटे चटखारों का मशवरा दे या डट कर खाने की तरग़ीब दिलाए उस वक़्त उसकी ना माने सिर्फ ज़रूरत के मुताबिक़ ही खाए, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: सिद्दिक़ीन की ग़िज़ा और मुरीदों की राहे सुलूक है पहले लोग ज़िंदह रहने के लिए खाते थे मगर तुम खाने के लिए ज़िंदह रहते हो |
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मुर्शिद से बद एतिक़ादि के सबब चेहरा काला हो गया :- हज़रत सय्यदना जुनैदे बगदादी रहमतुल्लाह अलैह का एक मुरीद कुछ बदएतिक़ाद हो गया और समझा के उसे भी मक़ामे मारफ़त हासिल हो गया है अब उसे मुर्शिद की ज़रुरत नहीं रही, लिहाज़ा वो ख़ामोशी से हज़रत सय्यदना जुनैदे बगदादी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह से मुँह मोड़ कर चला गया फिर एक दिन ये देखने और आज़माने के लिए आया के हज़रत सय्यदना जुनैदे बगदादी रहमतुल्लाह अलैह इस के दिल के खयालात से आगाह हैं या नहीं? इधर हज़रत सय्यदना जुनैदे बगदादी रहमतुल्लाह अलैह ने भी नूरे फिरासत से उसकी हालत मुलाहिज़ा फ़रमाली,
जब वो मुरीद आया और आप से एक सवाल पूछा जिसका ये जवाब इरशाद फ़रमाया कैसा जवाब चाहता है लफ़्ज़ों में या मानो में? बोला दोनों तरह आपने फ़रमाया अगर लफ़्ज़ों में जवाब चाहता है तो सुन अगर मुझे आज़माने से पहले खुद को आज़मा और परख लेता तो तुझे मुझे आज़माने की ज़रूरत न होती और न ही तो यहाँ मुझे आज़माने आता, मानवी जवाब ये है के मेने तुझे मंसबे विलायत से माज़ूल किया, ये फरमाना था उसका चेहरा सियाह (काला) हो गया वो आहो ज़ारी करते हुए अर्ज़ करने लगा हुज़ूर यक़ीन की राहत मेरे दिल से जाती रही फिर तौबा की और फ़ुज़ूल बातों पर भी निदामत का इज़हार किया तो हज़रत सय्यदना जुनैदे बगदादी रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया तू नहीं जानता के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वली वालियाने असरार होते हैं तुझ में उनकी ज़र्ब की बर्दाश्त नहीं |
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हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की मज़ाराते औलिया पर हाज़री :- औलिया अल्लाह के मज़ारात पर हाज़री देने की बरकत से दुआएं क़बूल होती हैं, मुश्किलात व मसाइब से निजात मिलती है और ख़ास इस नज़रिये से औलियाए किराम के मज़ारात पर जाना भी हमारे अस्लाफ सूफ़िया बुज़ुर्गाने दीन का तरीक़ा रहा है, जैसा के हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह का भी यही मामूल था के बुज़ुर्गाने दीन के मज़ारात पर हाज़री के मुताअल्लिक़ आप ने कई वाक़िआत अपनी मशहूर व मारूफ किताब “कशफुल महजूब” में चंद वाक़िआत लिखे हैं मुलाहिज़ा कीजिए,
एक बार हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह मुल्के शाम में मुअज़्ज़िने रसूल सहाबिये रसूल हज़रत सय्यदना बिलाल हब्शी रदियल्लाहु अन्हु के मज़ार पर थे, वही आप ने ख्वाब में रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उन के साथ करोड़ों हनफ़ियों के इमाम हज़रते सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत की,
और फरमाते है के एक बार मुझे दीनी मुश्किल दरपेश हुई मेने उसके हल की कोशिश की मगर कामयाब न हुआ इससे पहले भी मुझे ऐसी ही मुश्किल आयी थी तो मेने हज़रत शैख़ बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ पर हाज़री दी थी और वो मेरी मुश्किल आसान हो गई थी, इस मर्तबा भी मेने इरादा किया के वहां हाज़री दूँ इसी नियत से तीन महीने तक मज़ार पर चिल्लाह कशी की ताके मेरी मुश्किल हल हो जाए,
हज़रत अबुल अब्बास क़ासिम बिन मेहदी रहमतुल्लाह अलैह के बारे में हुज़ूर दाता गंज बख्श फरमाते हैं आज तक उनका मज़ार “मर्व” में मौजूद है और बहुत मशहूर व मारूफ है लोग वहां मुरादे मांगने जाते हैं और बड़ी बड़ी मुश्किल हल करने के लिए उन से मदद तालाब करते हैं और उनकी इमदाद की जाती है बहुत मुजर्रब यानि कई बार की आज़माई हुई है,
प्यारे इस्लामी भाइयों :- देखा आप ने सय्यदना दाता अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह का भी ये अक़ीदह है के न सिर्फ मज़ारात पर जाना बरकत है बल्के वहां मुश्किलात भी हल होती है और यक़ीनन ये सब साहिबे मज़ार ही का फैज़ान होता है, किसी को ये वस्वसा आये के औलियाए किराम का ये फैज़ कैसे मिल सकता है? क्यूंकि वो इन्तिक़ाल कर चुके हैं, तो याद रखिये औलियाए किराम अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इनायात से मज़ारात में न सिर्फ हयात होते हैं बल्के ज़ायरीन की हिदायत व इनायत मदद भी करते हैं,
हज़रत सय्यदना इमाम इस्माईल हक़्क़ी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, अम्बिया, औलिया सूफ़िया वालियों और शहीदों के जिस्म क़ब्रों में भी न तो मुतागय्यर यानि तब्दील होते हैं और न ही बोसीदह होते हैं क्यूंकि अल्लाह पाक ने उनके जिस्मो को इस खराबी से जो गोश्त के गलने सड़ने से पैदा होती है मेहफ़ूज़ रखा है |
मुहक़्क़िक़े वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: हमारे ज़माने में वो बद तिरीन मख्लूक़ भी पैदा हो चुकी है जो दारे फानी से दारे बक़ा की तरफ कूच कर जाने वाले औलिया अल्लाह से इस्तिमदाद और इस्तिआनत की मुनकिर है वो अपने परवरदिगार के पास ज़िंदह हैं मगर लोगों को इस का शऊर नहीं वो बदतिरीन मख्लूक़ औलियाए किराम की तरफ तवज्जु देने वालों को मुशरिक समझ कर बुत्परस्तों जैसा क़रार देते हैं और बहुत सी खुराफात बक देते हैं उन्हें इस की हक़ीक़त का कुछ इल्म नहीं वो झूट बोल रहे हैं, एक और मक़ाम पर फरमाते हैं, इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया हज़रत सय्यदना मूसा काज़िम रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पर हाज़री दुआ की क़बूलियत के लिए बेहद मुजर्रब है हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली फरमाते हैं जिन से हयात में मदद तलब की जा सकती है उन तमाम से वफ़ात के बाद भी मदद तलब की जा सकती है, हज़रते अल्लामा मुल्ला अली कारी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं औलिया की दोनों हालातों (हयात व मामात) में असलन कोई फ़र्क़ नहीं के वो मरते नहीं बल्के एक घर से दुसरे घर में तशरीफ़ ले जाते हैं,
प्यारे इस्लामी भाइयों :- जलीलुल क़द्र अइम्मए किराम की तसरिहात से ये मालूम हुआ के अम्बिये किराम अलैहिमुस्सलाम शोहदाए इज़ाम और बुज़ुर्गाने दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहम अजमईन, सब अपने अपने मज़ारात में ज़िंदह होते हैं और तसर्रुफ़ भी फरमाते हैं इस लिए सिर्फ अवाम ही नहीं बड़े बड़े उलमा और फुज़्ला सूफ़िया अल्लाह वालों का ये मामूल रहा है के वो अपनी मुश्किलात के हल के लिए औलियाए किराम के मज़ारात पर हाज़री दिया करते थे आईये इस बारे में चार ईमान अफ़रोज़ अक़्वाले बुज़ुर्गाने दीन मुलाहिज़ा फरमाइए,
(1) जैसा के अपने ज़माने में हनाबिला यानि फ़िक़ा हम्बली के पैरोकार शैख़ इमाम अबू अली हसन बिन इब्राहीम खल्लाल रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, मुझे जब कोई मुआलमा दर पेश होता है तो में इमाम मूसा काज़िम बिन जाफर सादिक़ रदियल्लाहु तआला अन्हुम के मज़ार पर हाज़िर हो कर आप का वसीला पेश करता हूँ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मेरी मुश्किल को आसान करके मुझे मेरी मुराद अता फरमा देता है,
(2) जब के करोड़ों शफईयों के पेशवा हज़रत सय्यदना इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मुझे जब कोई हाजत पेश आती है तो में दो रकअत नमाज़ अदा कर के इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पुर अनवार पर जा कर दुआ मांगता हूँ अल्लाह पाक मेरी हाजत जल्द पूरी कर देता है,
(3) हज़रत सय्यदना याहया बिन सुलेमान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मुझे एक हाजत थी और में काफी तंग दस्त भी था, मेने हज़रत शैख़ मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्रे अनवर पर हाज़री दी, तीन बार सूरह इखलास की तिलावत की और उसका सवाब आप रहमतुल्लाह अलैह और तमाम मुसलमानो की अरवाह को पहुंचाया फिर अपनी हाजत बयान की जैसे ही में वहां से वापस आया मेरी हाजत पूरी हो चुकी थी,
(4) जलीलुल क़द्र मुहद्दिस हज़रते अल्लामा अब्दुर रहमान बिन अली जौज़ी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: हज़रत सय्यदना शैख़ मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार की हाज़री तिरयाक़ और मुजर्रब अमल है हज़रत सय्यदना अब्दुर रहमान बिन मुहम्मद ज़ेहरि रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं हज़रत सय्यदना शैख़ मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार की हाज़री क़ज़ाए हाजात के लिए मुजर्रब है और जो कोई उन के मज़ार के पास सौ बार सूरह इखलास की तिलावत करे फिर अल्लाह पाक से सवाल करे तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उस की हाजत को पूरा फरमा देगा,
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मरकज़ुल औलिया लाहौर शरीफ में आप की तशरीफ़ :- हज़रत अहमद हम्माद सरखसी और हज़रत अबू सईद हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह को साथ लेकर तीन अफ़राद के काफिले की सूरत में मरकज़ुल औलिया लाहौर की तरफ चल दिए और इन कठिन रास्तों से हो कर यहाँ तशरीफ़ लाए, बैरून भाटी दरवाज़ में क़याम फ़रमाया आप ने कुफ्रो शिर्क के अँधेरे में डूबे हुए इस शहर को नूरे इस्लाम से रौशन फरमा दिया, यही वजह है के हज़रत इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की वजह से मरकज़ुल औलिया लाहौर को हिंदुस्तान और पाकिस्तान के तमाम शहरों का क़ुतब क़रार देते हुए फ़रमाया इस शहर की बरकत पूरे हिंदुस्तान में फैली हुई है, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की कोशिशों से इस्लाम का क़िला बन गया आप के हुसने अख़लाक़ हुसने किरदार और नरम गुफ्तुगू से कई दिलों में आप की मुहब्बत रासिख़ हो गई, लाहौर में आप के क़याम की मुद्दत तक़रीबन तीस साल से ज़ाइद है इस तमाम अरसे में आप शबो रोज़ नेकी की दावत में मशगूल रहे आप की बेदाग़ सीरत दिलकश गुफ्तुगू पुरनूर शख्सीयत और दिलों में उतर जाने वाले इल्म व हिकमत से भरपूर मलफ़ूज़ात लोगों को कुफ्र और गुमराही की दलदल से निकाल कर हिदायत की राह पर गामज़न करते रहे |
मरकज़ुल औलिया लाहौर शरीफ से आप ने काबा शरीफ दिखा दिया :- सफ़िनतुल औलिया में के जब हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने लाहौर में क़याम फ़रमाया तो मस्जिद की तामीर शुरू की जिस की मेहराब लाहौर की दूसरी मस्जिदों की ब निस्बत दखिन की जानिब कुछ ज़्यादा झुकी हुई मालूम होती थी, वहां के कुछ उलमा को तशवीश हुई मगर आप खामोश रहे फिर जब मस्जिद तय्यार हो गई तो आप ने शहर के तमाम उलमा और फुज़्ला को दावत दी और खुद इमाम हो कर आप ने नमाज़ पढ़ाई नमाज़ के बाद सब लोगों का मुँह क़िब्ले की तरफ कर के खड़ा किया और फ़रमाया क़िब्ला किस तरफ है, ये कहना था के सब फ़ौरन लोगों की निगाहों से हिजाबात उठ गए काबा शरीफ सामने हो गया और उसे हर एक ने अपनी आखों से देख लिया,
हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की इस करामात के तहत साहिबे फतावा फ़ैज़ुर रसूल मुफ़्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: इस वाक़िये से मालूम हुआ के दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह का खुद अपने बारे में भी ये अक़ीदह के में इल्मे ग़ैब रखता हूँ बीच में हज़ारों परदे होने के बावजूद काबा शरीफ को यही से देख रहा हूँ और ज़रुरत पढ़ने पर दुसरे को भी देखा देता हूँ |
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अताए रसूल सुल्तानुल हिन्द हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पर हाज़री :- हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह आप के मज़ारे पुर अनवार पर हाज़िर हुए, और आप के मज़ार पर चिल्ला किया और रुखसती के वक़्त हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की शान में ये शेर फ़रमाया जो आज भी आप के मज़ार पर लिखा हुआ है,
गंज बख्श फैज़े आलम मज़हरे नूरे खुदा
नाक़िसा रा पीरे कामिल कामिला रा रहनुमा
यानि: हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह खज़ाना लुटाने वाले, आलम को फैज़ पहुंचाने वाले और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नूर के मज़हर हैं आप नकिसों के लिए पीरे कामिल और कमीलों के लिए रहनुमा हैं, और ये भी साबित हुआ के हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह का अक़ीदह है के सूफ़िया औलिया अल्लाह बुज़ुर्गाने दीन की मज़ारात पर हाज़री देना चाहिए और वो अपनी क़ुबूर में ज़िंदह हैं जभी तो हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमा रहे हैं के दाता साहब आलम यानि दुनिया को खज़ाना बाँट रहे हैं, और मज़ार पर जाना गलत होता तो हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह हरगिज़ नहीं जाते, इससे ये साबित हुआ के अल्लाह वालों की बारगाह में जाना बिलकुल जाइज़ और कारे सवाब है |
दाता अली हजवेरी हनफ़ी हैं :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह हनफ़ीयुल मज़हब थे, आप हज़रत सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु से ख़ास अक़ीदत भी रखते थे, यही वजह है के आप ने अपनी किताब “कशफ़ुल महजूब” में आप का नामे नामी इसमें गिरामी निहायत ताज़ीम के साथ इस तरह तहरीर फ़रमाया है: इमामे इमामा व मुक़्तदाए सुन्नियां, शरफ़े फुक़्हा इज़्ज़ो उलमा अबू हनीफा नोमान बिन साबित अल खिज़ाज़ रदियल्लाहु अन्हु,
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दाता दरबार यानि आप के मज़ार पर हाज़िर होने वाली शख्सियात :- आप रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार को अनवार व तजल्लियात का मरकज़ होने की वजह से खुसूसी अहमियत हासिल रही है अपने वक़्त के बड़े बड़े सूफ़िया यानि औलियाए किराम जैसे अताए रसूल सुल्तानुल हिन्द हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह और शैखुल इस्लाम शैखुल इस्लाम बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह हाज़िर होते रहे जब के मुता अख्खिरीन में शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी, पीर महर अली शाह गोलड़वि, शहज़ादए आला हज़रत अल्लामा हामिद रज़ा खान, सदरुल्ला फ़ाज़िल सय्यदना मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी और ख़लीफ़ए आला हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द, अबुल हामिद मुहम्मद मुहद्दिसे किछौछवी, हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी इमामुल मुहद्दिसीन हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद दीदार अली शाह मुहद्दिसे अलवरी रहमतुल्लाह अलैहिम अजमईन, हाज़री दी और आज तक मुल्क व बैरूनी मुल्क से उलमा व मशाइख दाता दरबार पर हाज़री देने आते हैं, और फैजाने दाता से फ़ैज़याब होते हैं,
आप का विसाल व मदफन (मज़ार शरीफ) :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने पूरी ज़िन्दगी खूब मेहनत व लगन से दीन की खिदमत की, दुखी इंसानियत को अमन व सुकून चैन का पैगाम दिया, आप का विसाले पुरमलाल अक्सर तज़किराह निगारों के नज़दीक बीस 20 सफारुल मुज़फ्फर चार सौ पैसठ 465, हिजरी को हुआ, आप का मज़ारे अनवर मरकज़ुल औलिया लाहौर शरीफ पाकिस्तान में भाटी दरवाज़े के बाहर के हिस्से में है इसी मुनासिबत से मर्कज़ुल औलिया और दाता नगर भी कहा जाता है, आप के विसाल को तक़रीबन 900 साल का लम्बा अरसा हो गया है, लेकिन आज भी अपने मज़ारे अनवर में रह कर अपने अक़ीदत मंदों की हाजत रवाई फरमाते हैं | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
मआख़िज़ व मराजे :- सय्यद हजवेर, मदीनतुल औलिया, मारिफे हजवेरिया, कशफ़ुल महजूब, बुज़ुर्गाने लाहौर, मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, बुज़ुर्गों के अक़ीदे, सवानेह हयात हज़रत अली बिन उस्मान, गंज बख्श फैज़े आलम, बुज़ुर्गाने लाहौर, फ़ैज़ाने दाता अली हजवेरी,
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ग्यारवी सदी के मुजद्दिद हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर की हालाते ज़िन्दगी