क़ादरी कर क़ादरी रख क़दरियों में उठा
क़दरे अब्दुल क़ादिर क़ुदरत नुमा के वास्ते

क्या औलियाए किराम अपनी क़बरों में ज़िंदह हैं और मज़ाराते औलिया पर जाना कैसा है? इस बारे में सरदारे औलिया गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का अक़ीदह क्या है?

हज़रत अल्लामा तादनी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के शैख़ कीमियाई, शैख़ बज़ाज़ और शैख़ अबुल हसन बयान करते हैं के हम लोग हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के साथ 27, ज़िल हिज्जा बा रोज़ बुद्ध 523, हिजरी मक़बरा शोनीज़ में मज़ारात की ज़्यारत के लिए गए, उस वक़्त आप के साथ फुक़्हा व कुर्रा हज़रात की एक बड़ी जमाअत भी थी, जब आप शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 525,) के मज़ार पर पहुंचे तो आप बहुत देर खड़े रहे यहाँ तक के गर्मी ने शिद्दत इख़्तियार करली यानि गर्मी बहुत ज़्यादा शुरू हो गयी लेकिन आप को देख कर तमाम लोग भी आप के पीछे खामोश खड़े रहे, जब आप वापस हुए तो आप के चेहरे पर बहुत ही ख़ुशी थी लोगों ने आप से देर तक खड़े रहने की वजह मालूम की तो हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने एक वाक़िआ बयान करते हुए फ़रमाया,
में जुमे के दिन 15, शाबानुल मुअज़्ज़म 499, हिजरी को शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह के साथ जुमे की नमाज़ के लिए मस्जिद की तरफ रवाना हुआ उस वक़्त हमारे साथ एक बहुत बड़ी जमाअत थी चुनाचे हम लोग कंतु यहूद पुल के क़रीब पहुंचे तो शैख़ हम्माद ने सख्त सरदी के बावजूद मुझे पानी के अंदर धक्का दे दिया मेने बिस्मिल्लाह पढ़ कर ग़ुस्ले जुमा की नियत करली उस वक़्त मेरे जिस्म पर एक ऊनी जुब्बा था और दूसरा जुब्बा मेरी आस्तीन में था,
जिसे निकाल कर मेने हाथ में उठा लिया ताके भीगने से मेहफ़ूज़ रहे शैख़ हम्माद मुझे धक्का देकर आगे बढ़ गए चुनाचे मेने पानी से निकल कर अपना जुब्बा निचोड़ा और उनके पीछे रवाना हो गया
मुझे देखकर लोगों ने अफ़सोस किया तो शैख़ हम्माद ने उन्हें झिड़क कर फ़रमाया मेने तो महिज़ सिर्फ इम्तिहान के तौर पर इनको नहिर में धकेला था लेकिन ये तो ऐसे कोहे गिरां जो अपनी जगह से हरकत ही नहीं कर सकते,
फिर हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के आज मेने शैख़ हम्माद को क़ब्र के अंदर ऐसी हालत में देखा के उन के जिस्म पर जवाहिरात का हुल्लाह है और आप के सर पर याक़ूत का ताज, हाथों में सोने के कंगन और दोनों पाऊँ में तलाई जूते हैं लेकिन आप का सीधा हाथ शिल है जब मेने पूछा के आप के हाथ को क्या हो गया है? तो आप ने फ़रमाया के इस हाथ से मेने आप को पानी में धक्का दिया था क्या मुझे माफ़ नहीं कर सकते मेने कहा बिला शुबा माफ़ किया, फिर आप ने फ़रमाया के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ करो के ये मेरा हाथ ठीक हो जाए, चुनाचे में जिस वक़्त खड़ा होकर दुआ कर रहा था तो पांच हज़ार औलियाए किराम अपने मज़ारात में मेरी दुआ पर अमीन कह रहे थे अल्लाह तआला ने मेरी दुआ क़बूल फरमा कर शैख़ हम्माद के हाथ की तकलीफ दूर करदी और आप ने मुझ से मुसाफा किया इस तरह मेरी और उनकी ख़ुशी पूरी हो गयी,
सबक़ :- इस वाक़िए से साबित हुआ के हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह का ये अक़ीदा है के अल्लाह वाले अपनी अपनी क़बरों में ज़िंदह हैं के आप ने फ़रमाया हज़रत शैख़ हम्माद ने मुझ से गुफ्तुगू की और हाथ ठीक होने के लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ की दरख्वास्त की और उन का हाथ बिलकुल ठीक हो गया और इससे ये भी साबित हुआ के मज़ारात पर जाना कोई आज का नया तरीक़ा नहीं है बल्के खुद सरदारे औलिया गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का तरीक़ा है अगर मज़ार पर जाना गलत होता तो गौसे आज़म हरगिज़ नहीं जाते,

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हज़रत शैख़ अली बिन हीती का अक़ीदा :- हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह, आप हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के ज़माने के मशहूर बुज़रुग हैं हज़रत अल्लामा तादनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते के शैख़ अली बिन हीती मशाइखे इराक़ के बड़े साहिबे करामात बुज़रुग हुए हैं और उन शीयूख में से एक हैं जो अंधों, और कोढ़ियों को अच्छा कर देते थे और अक्सर आप गैब की खबरे भी देते थे हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह आप की बहुत तारीफ करते थे और निहायत मुहब्बतों एहतिराम के साथ पेश आते थे और अक्सर फ़रमाया करते के बगदाद में जो औलियाए किराम दाखिल होते हैं वो हमारे ही मेहमान होते हैं लेकिन हम शैख़ अली बिन हीती के मेहमान रहते हैं,
हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह बयान फरमाते हैं के मेने हुज़ूर गौसे अज़ाम शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह और शैख़ बक़ा बिन बतू रहमतुल्लाह अलैह के साथ हम लोग हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पर गए जब हम आप के मज़ार पर पहुंचे तो हमने देखा के हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्र खुल गयी और आप क़ब्र से बाहर तशरीफ़ लाए, और हुज़ूर गौसे अज़ाम शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह को गले से लगा लिया आप से मुआनिका किया और आप को खिलअत अता करके फ़रमाया ए अब्दुल क़ादिर “तमाम लोग इल्मे शरीअत व तरिकक़्त में आप के मुहताज होनेगें,
फिर हम सब हुज़ूर गौसे अज़ाम रहमतुल्लाह अलैह के साथ हज़रत शैख़ मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 200, हिजरी) के मज़ार पर गए हुज़ूर गौसे अज़ाम रहमतुल्लाह अलैह ने सलाम किया और फ़रमाया ए शैख़ मारूफ हम आप से दो दर्जा बढ़ गए हैं उन्होंने क़ब्र में से सलाम का जवाब दिया और कहा ए ज़माने वालों के सरदार,
सबक़ :- हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह ने और हुज़ूर गौसे आज़म और शैख़ बक़ा बिन बतू ने इस बयान से साबित कर दिया के बुज़ुरगाने दीन औलियाए किराम अपनी क़बरों में ज़िंदह रहते हैं ज़िंदा रहते हैं तभी तो हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलैह अपनी क़ब्र से निकल कर बाहर तशरीफ़ लाए और गौसे आज़म को गले से लगाया और हज़रत शैख़ मारूफ करखी रहमतुल्लाह अलैह को आपने सलाम किया तो उन्होंने आप को जवाब सलाम का जवाब दिया इससे साबित हुआ के अल्लाह के वली बुज़ुरगाने दीन अपनी अपनी क़बरों में ज़िंदा हैं, और ये बात भी साबित हुई के मज़ाराते औलिया पर जाना आज का कोई नया तरीक़ा नहीं बल्के ये 900, साल पुराना तरीक़ा हैं, अगर मज़ार पर जाना गलत होता तो गौसे आज़म हरगिज़ नहीं जाते,

मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक


कौन कहता हैं के मोमिन मर गए
क़ैद से छूटे वो अपने घर गए

वसीले के बारे में गौसे आज़म का अक़ीदा क्या हैं? :- हज़रत अल्लामा नूरुद्दीन शतनूफी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के खबर दी हम को अबुल हसन बिन ज़करिया बगदादी ने उन्होंने कहा हम को क़ाज़ीउल क़ुज़्ज़ात अबू सालेह बिन हाफिज अबू बक्र अब्दुर रज़्ज़ाक बिन शैखुल इस्लाम मुहीयुद्दीन अबू मुहम्मद अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने बग़दाद में खबर दी उन्होंने कहा हम को शैख़ अब्दुर रज़्ज़ाक ने खबर दी हम को शैख़ अबू मुहम्मद अल हसन फ़क़ीह अबू इमराम मूसा शैख़ पेशवा क़रशी शाफ़ई ने काहिरा में खबर दी इन दोनों ने कहा के हम को शैख़ पेशवा अबुल हसन क़रशी ने दमिश्क में खबर दी के मेने शैख़ अबू मुहम्मद अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह से सुना वो फरमाते थे,
“जब तुम अल्लाह पाक से कोई हाजत तलब करो तो मेरे वसीले से तलब करो”
सबक़ :- हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के इस फरमान से वसीले के बारे में आप का अक़ीदा बिलकुल वाज़ेह हैं गर वसीला लेना न जाइज़ होता होता तो आप हरगिज़ नहीं कहते के मेरे वसीले से हाजत तलब करो,

गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का मुरगी को ज़िंदा करना :- हज़रत अल्लामा शतनूफी रहमतुल्लाह अलैह मुहद्दिसाना असानीद के साथ बयान करते हैं के एक औरत हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अपना एक लड़का लेकर हाज़िर हुई और अर्ज़ किया के मेरे इस बच्चे को आप से क़ल्बी लगाओ है इस लिए में इस के हक़ से दस्त बरदार होकर इस को अल्लाह की और फिर आप की सुपुर्दगी में देती हूँ हज़रत गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने उस की अर्ज़ क़बूल फ़रमाली और इस बच्चे को बुज़ुरगों के तरीके पर मुजाहिदात और रियाज़तें करने का हुक्म फ़रमाया, कुछ दिनों के बाद उसकी माँ अपने बच्चे से मिलने के लिए आयी देखा के इस का बेटा बहुत लागर कमज़ोर और ज़र्द हो गया है,
और देखा के जौं कि रोटी का टुकड़ा खा रहा है फिर जब वो आप की खिदमत में हाज़िर हुई तो देखा के आप के सामने बर्तन में मुरगी की हड्डियां रखी हुईं हैं जिस को आप तनावुल फ़रमा चुके हैं उस ने कहा ए मेरे सरदार आप खुद तो मुरगी खाते हैं और मेरे बेटे को जौं की रोटी खिलाते हैं उस वक़्त हज़रत गौसे आज़म ने इन हड्डियों पर अपना मुबारक हाथ रखा और फ़रमाया “उस अल्लाह के हुक्म से खड़ी हो जा जो बोसीदा हड्डियों को ज़िंदा फरमाएगा आप के इस हुक्म पर फ़ौरन वो मुरगी ज़िंदा होकर खड़ी हो गयी और चिल्लाई फिर आप ने उस औरत से मुखातिब होकर फ़रमाया जब तेरा बेटा इस दर्जे को पहुंच जाएगा तो फिर जो जी चाहेगा वो खाएगा,
सबक़ :- इस वाकए से हुज़ूर गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु ने अपना ये अक़ीदा साबित कर दिया के अल्लाह तआला ने मुझे खाई हुई मुरगी दोबारा ज़िंदा करने का इख़्तियार अता फ़रमाया है, ख़लीफ़ए सरकार आला हज़रत अल्लामा जमीले क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,


जिलाया इस तख्वाने मुर्ग को दस्ते करम रख कर
बयां क्या हो सके एहयाए मोता गौसे आज़म का

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चील का सर कट गया और ठीक भी हो गया :- हज़रत अल्लामा शतनूफी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के कई मोतबर रावियों का बयान है के एक मर्तबा हम लोग हज़रत गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु के पास बैठे हुए थे आप की मजलिस की ऊपर से एक चील चीखती चिल्लाती हुई गुज़री जिससे मजलिस के लोगों को उलझन हुई आप ने फ़रमाया “ए हवा इस चील का सर काटले ये कहते ही चील मुर्दा होकर ज़मीन पर गिर पड़ी एक तरफ उस का सर और दूसरी तरफ उस का धड़ गिरा, आप ने कुर्सी से उतर कर उस को एक हाथ से उठा कर दूसरा हाथ उस पर फेरा और बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ी वो अल्लाह के हुक्म से ज़िंदा होकर उड़ गयी और सब लोग देखते रह गए,
सबक़ :- इस वाक़िए से मालूम हुआ के हज़रत गौसे पाक रदियल्लाहु तआला अन्हु का ये अक़ीदा था के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनको हवा पर हुकूमत बख्शी है इस लिए उन्होंने हवा को हुक्म दे कर चील का सर कटवा दिया,

बे मौसम में सेब अता फरमाना :- हज़रत अल्लामा शतनूफी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के मुझ से अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन शैख़ अबुल अब्बास ख़िज़्र बिन अब्दुल्ला बिन याहया मूसली ने बयान क्या के मुझे मेरे बाप ने खबर दी के मेने खलीफा मुस्तनजिद बिल्लाह अबुल मुज़फ्फर युसूफ को हज़रत शैख़ सय्यदना अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में देखा उसने अर्ज़ किया के में आप की कोई करामत देखना चाहता हूँ ताके मुझे तस्सल्ली हो जाए आप ने फ़रमाया तुम क्या चाहते हो? उसने कहा मे गैब से सेब चाहता हूँ और पूरे मुल्के इराक़ में वो ज़माना सेब का नहीं था, हुज़ूर गौसे पाक ने हवा में हाथ बढ़ाया तो दो सेब आप के हाथ में आ गए तो एक सेब आप ने खलीफा को दिया, हज़रत ने अपने हाथ के सेब को काटा तो निहायत सफ़ेद खुशबूदार जिससे मुश्क की खुशबू आ रही थी और जब खलीफा मुस्तनजिद बिल्लाह ने अपने हाथ का सेब काटा तो उस में कीड़े थे,
खलीफा मुस्तनजिद बिल्लाह ने तअज्जुब से कहा ये क्या बात है के आप के हाथ का सेब तो में बहुत अच्छा और उम्दा देख रहा हूँ आप ने फ़रमाया ए अबुल मुज़फ्फर तुम्हारे सेब को ज़ुल्म के हाथ लगे तो उस में कीड़े पड़ गए,
सबक़ :- हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने इस वाक़िए से अपना ये अक़ीदा ज़ाहिर फरमा दिया के अल्लाह पाक ने मुझे वो क़ुदरत अता फ़रमाई है के में जिस मौसम में भी चाहूँ बगैर ज़ाहिरी असबाब के सिर्फ हाथ बढा कर सेब हासिल कर सकता हूँ,

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गौसे किसे कहते हैं इसके क्या माने हैं? :- “ग़ौसियत” बुज़ुरगी का एक खास दर्जा है लफ़्ज़े “ग़ौस” के लगवि माने हैं फ़रयादरस यानि फर्याद को पहुंचने वाला चूंकि हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह गरीबों बेकसों और हाजत मंदों के मददगार हैं इसी लिए आप को “गौसे आज़म” के ख़िताब से सरफ़राज़ किया गया और बाज़ अक़ीदत मंद आप को पीराने पीर दस्तगीर के लक़ब से भी याद करते हैं,

समंदरे तरीक़त गौसे आज़म रहमतुल्लाम अलैह के हाथों में :- हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद कबीर रिफाई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह वो हैं के शरीअत का समंदर उनके दाएं हाथ है और हक़ीक़त का समंदर उनके बाएं हाथ जिस में से चाहें पानी लें हमारे इस वक़्त में गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का कोई सानी नहीं,

सरकार गौसे आज़म ने चालीस 40, तक ईशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ पढ़ी :- शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अबुल फताह हरवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “मेने हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी क़ुत्बे रब्बानी रहमतुल्लाह अलैह की चालीस 40, साल तक खिदमत की, इस मुद्दत में आप ने इशा के वुज़ू से सुहब की नमाज़ पढ़ते थे और आप का मामूल था के जब बे वुज़ू होते थे तो उसी वक़्त वुज़ू फरमा कर दो रकत नमाज़े निफ़्ल पढ़ लेते थे,

15, साल तक हर रात में खत्म क़ुरआन मजीद :- हुज़ूर शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 15, साल तक रात भर में एक क़ुरआन शरीफ ख़त्म करते रहे,

मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

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गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह का चालीस 40, तक वाइज़ो नसीहत :- सय्यदी हुज़ूर गौसे पाक रहमतुआह अलैह के साहबज़ादे सय्यदना अब्दुल वहाब रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं के हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने 551, हिजरी से 561,तक 40, साल मख्लूक़ को वाइज़ो नसीहत फ़रमाई,

सरदारे औलिया गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के हाथ पर पांच सौ यहूदी और ईसाईयों का इस्लाम क़बूल करना :- हज़रत सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं “मेरे हाथ पर 500, से ज़्यादा यहूदियों और ईसाईयों ने इस्लाम क़बूल किया और एक लाख से ज़्यादा डाकू, चोर फुस्साक व फुज्जार फसादी और बिदअती लोगों ने तौबा की,

असा मुबारक (छड़ी लाठी) चिराग की तरह रोशन हो गया :- हज़रत अब्दुल मालिक ज़ियाल रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के “में एक रात हुज़ूर ग़ौस पाक रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे में खड़ा था के आप अंदर से एक असा मुबारक (छड़ी लाठी) हाथ में लेकर बाहर तशरीफ़ लाए मेरे दिल में ख्याल आया के काश हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह इस असा मुबारक (छड़ी लाठी) से कोई करामत दिखाएं, इधर ये मेरे दिल में ख्याल गुज़रा और उधर सरकार गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने असा मुबारक (छड़ी लाठी) को ज़मीन पर गाड़ दिया तो वो असा मुबारक (छड़ी लाठी) चिराग की तरह रोशन हो गया और बहुत देर तक रोशन रहा फिर सरकार गौसे आज़म ने उसे उखेड़ लिया तो वो असा जैसा था वैसा ही हो गया इस के बाद सरकार गौसे आज़म ने फ़रमाया बस ए ज़ियाल तुम यही चाहते थे,

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मिरगी की बीमारी बग़दाद से भाग गयी :- एक शख्स हज़रत सय्यदना सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में आया और अर्ज़ करने लगा के “में अस्बहान का रहने वाला हूँ मेरी एक बीवी है जिस को अक्सर मिरगी का दौरा रहता है और उसको किसी तावीज़ का असर नहीं होता सय्यदना सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के ये एक जिन्न है जो सर अनदीप की वादी का रहने वाला है उसका नाम खानिस है, और अब जब भी तुम्हारी बीवी पर मिर्गी आये तो उस के कान में ये कहना के ए खानिस तुम्हारे लिए शैख़ अब्दुल क़ादिर का फरमान है जो के बग़दाद में रहते हैं आज के बाद फिर नहीं आना वरना हलाक हो जाएगा, वो शख्स चला गया और दस साल तक गाइब रहा फिर वो आया और हमने उससे मालूम किया तो उसने कहा के मेने शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी के हुक्म के मुताबिक़ किया फिर आज तक उसपर मिर्गी का असर नहीं हुआ,


फ़ा हुकमी नाफिज़ुन फि कुल्ली हाली से हुआ ज़ाहिर
तसर्रुफ़ इनसो जिनन सब पर है आक़ा गौसे आज़म का

लागर कमज़ोर ऊंटनी की तेज़ रफ्तारी :- सरदारे औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अबू हफ्स उमर बिन सालेह हद्दादी अपनी ऊंटनी लेकर आया और अर्ज़ किया के मेरा हज का इरादा है और ये मेरी ऊंटनी है जो चल नहीं सकती और इस के सिवा मेरे पास कोई ऊंटनी नहीं है हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने उस को एक ऊँगली लगायी और उसकी पेशानी पर अपना हाथ रखा वो कहता था के मेरी ऊंटनी की ये हालत थी के तमाम सवारियों से आगे चलती थी हालांके वो इससे पहले सब से पीछे रहती थी,


मुरीदों को खतरा नहीं बेहरे गम
के बेड़े के हैं न खुदा गौसे आज़म

गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने सांप से गुफ्तुगू फ़रमाई :- हज़रत शैख़ अबुल फ़ज़ल अहमद बिन सालेह फरमाते हैं के में हुज़ूर सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के साथ मदरसा निज़ामिया में था आप रहमतुल्लाह अलैह के पास फुक़्हा और फुकरा जमा थे और आप से गुफ्तुगू फरमा रहे थे इतने में बहुत बड़ा सांप छत से आप रहमतुल्लाह अलैह की गोद में गिरा तो सब हाज़रीन वहां से हट गए और आप के सिवा वहां कोई न रहा वो आप के कपड़ों में दाखिल हुआ और आप के जिस्म पर से गुज़रता हुआ आप की गर्दन की तरफ से निकल आया और गर्दन पे लिपट गया, इस के बावजूद आप ने कलाम करना मोक़ूफ़ नहीं फ़रमाया और न अपनी जगह से उठे फिर वो सांप ज़मीन की तरफ उतरा और आप के सामने अपनी दुम पर खड़ा हो गया और आप से कलाम करने लगा आप ने भी उससे कलाम फ़रमाया जिस को हम्मे से कोई नहीं समझा,
फिर वो चला गया तो लोग आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में आये और उन्होंने आप से पूछा के उसने आप से क्या कहा और आप ने उससे क्या कहा? आप ने फ़रमाया के उसने मुझ से कहा के मेने बहुत से औलियाए किराम को आज़माया है मगर आप जैसा साबित क़दम किसी को नहीं देखा मेने उससे कहा तुम ऐसे वक़्त मुझ पर गिरे के में क़ज़ा व क़द्र के मुताअल्लिक़ गुफ्तुगू कर रहा था और तो एक कीड़ा ही है जिस को क़ज़ा हरकत देती है और क़द्र से साकिन हो जाता है तो मेने उस वक़्त इरादा किया के मेरा फेल मेरे क़ौल के मुखालिफ न हो,

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मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के हाथ पर एक जिन्न की तौबा :- गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादे हज़रत सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक़ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरे वालिद गिरामी सय्यदना शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में एक रात जमा मंसूर में नमाज़ पढ़ रहा था तो मेने सुतूनों पर किसी चीज़ की हरकत की आवाज़ सुनी फिर एक बड़ा सांप आया और उस ने अपना मुँह मेरे सिजदे की जगह में खोल दिया, मेने जब सजदे का इरादा किया तो अपने हाथ से उसको हटा दिया और सजदा किया फिर जब में अत्ताहिय्यात के लिए बैठा तो वो मेरी रान पर चलते हुए मेरी गर्दन पर चढ़ कर उससे लिपट गया जब मेने सलाम फेरा तो उस को नहीं देखा,
दुसरे दिन में जमा मस्जिद से बाहर मैदान में गया तो एक शख्स को देखा जिस की आँखें बिल्ली की तरह थीं और क़द लम्बा था तो मेने जान लिया के ये जिन्न है उस ने मुझ से कहा में वही जिन्न हूँ जिस को आप रहमतुल्लाह अलैह ने कल रात देखा था मेने बहुत से औलियाए किराम रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन को इस तरह आज़माया है जिस तरह आप को आज़माया है मगर आप की तरह कोई भी उन में से साबित क़दम नहीं रहा उन में बाज़ वो थे जो ज़ाहिरो बातिन से घबरागए, बाज़ वो थे जिन के दिल में इज़्तिराब हुआ और ज़ाहिर में साबित क़दम रहे बाज़ वो थे के ज़ाहिर में मुज़्तरिब हुए और बातिन में साबित क़दम रहे लेकिन मेने आप रहमतुल्लाह अलैह को देखा के आप न ज़ाहिर में घबराए और न ही बातिन में उस ने मुझ से सवाल किया के आप मुझे अपने हाथ पर तौबा करवाएं मेने उसे तौबा करवाई,

गरीबो और मुहताजों पर रहिम :- शैख़ अब्दुल्लाह जबाई रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के एक मर्तबा हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने मुझ से इरशाद फ़रमाया के मेरे नज़दीक भूकों को खाना खिलाना और हुसने कामिल ज़्यादा फ़ज़ीलत वाले आमाल हैं, फिर इरशाद फ़रमाया मेरे हाथ में पैसा नहीं ठहरता अगर सुबह को मेरे पास हज़ार दीनार आएं तो शाम तक उन में से एक पैसा भी न बचे,

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सखावत की एक मिसाल :- एक बार हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने एक शख्स को कुछ मगमूम रंजीदा और अफ़सुर्दा देख कर पूछा तुम्हारा क्या हाल है उस ने अर्ज़ क्या हुज़ूर दरयाए दजला के पार जाना चाहता था मगर मल्लाह ने बगैर किराए के कश्ती में नहीं बिठाया और मेरे पास कुछ भी नहीं इतने में एक अक़ीदत मंद ने हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर होकर तीस दीनार का नज़राना पेश किया तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने वो तीस दीनार इस शख्स को देकर फ़रमाया जाओ ये तीस दीनार उस मल्लाह को दे देना और ये कह देना के आइंदा वो किसी गरीब को दरिया उबूर (पार करना) कराने पर इंकार नहीं करना,

जानवर भी गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की फरमा बरदारी करते :- हज़रत अबुल हसन अलल अज़जी रहमतुल्लाह अलैह बीमार हुए तो हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह उन की इयादत के लिए तशरीफ़ ले गए आप रहमतुल्लाह अलैह ने उनके घर में एक कबूतरी और एक कुमरी (फाख्ता) को बैठे हुए देखा, हज़रत अबुल हसन रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ किया हुज़ूर ये कबूतरी छह 6, महीने से अंडे नहीं दे रही है और कुमरी (फाख्ता) नो महीने से बोलती नहीं है तो हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने कबूतरी के पास खड़े होकर उससे फ़रमाया अपने मालिक को फायदा पहुचाओ और कुमरी से फ़रमाया के अपने ख़ालिक़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तस्बीह बयान करो तो कुमरी ने उसी दिन से बोलना शुरू कर दिया और कबूतरी उमर भर अंडे देती रही,

मरीज़ों को शिफा देना और मुर्दों को ज़िंदा करना :- हज़रत शैख़ अबू सईद कील्वी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया हज़रत सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के इज़्न यानि इजाज़त से मादर ज़ाद अंधों और बरस के बीमारों को अच्छा करते हैं और मुुरदों को ज़िंदा करते हैं,
शैख़ ख़िज़्र अल हुसैनी अल मूसली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में तक़रीबन तेरह 13, साल तक रहा इस दौरान मेने आप के बहुत से खवारिक व करामात को देखा उन में से एक ये है के जिस मरीज़ को तबीब डाक्टर ला इलाज क़रार देते थे वो आप के पास आकर शिफ़ायाब हो जाता आप उस ला इलाज मरीज़ को दुआए सेहत अता फरमाते और उस के जिस्म पर अपना हाथ मुबारक फेरते तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसी वक़्त इस मरीज़ को सेहत अता फरमा देता,

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दरियाओं पर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की हुकूमत :- एक बार दरियाए दजला में ज़ोरदार सैलाब आ गया दरिया की तुगियानी की शिदत्त की वजह से लोग हीरांसा और परेशान हो गए और सरदारे औलिया शैख़ अबदुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और आप से मदद तलब करने लगे हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने अपना असा मुबारक को हाथ में लिया और दरिया की तरफ चल पड़े और दरिया के किनारे पहुंच कर आप ने असा मुबारक को दरिया की असली हद पर नसब कर दिया और आप ने दरिया से फ़रमाया बस यहीं तक आप का फरमाना ही था के उसी वक़्त पानी कम होना शुरू हो गया और आप के असा मुबारक तक आ गया,


निकाला है पहले तो डूबे हुओं को
और अब डूबतो को बचा गौसे आज़म

क़दीरियों को मरने से पहले तौबा की बशारत :- शैख़ अबू सऊद अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के “हमारे शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह अपने मुरीदों के लिए क़यामत तक इस बात के ज़ामिन हैं के उन में से कोई भी तौबा किए बगैर नहीं मरेगा,
हुज़ूर सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी क़सीदा गौसिया में अपने मुरीदों दिलासा देते हुए इरशाद फरमाते हैं: ए मेरे मुरीद तू मत दर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मेरा रब है उस ने मुझे रिफ़अत व बुलंदी अता फ़रमाई है और में अपनी उम्मीदों को पहुँचता हूँ, अल्लाह पाक के तमाम शहर और मुल्क मेरी निगाह में राई के दाने की तरह हैं और मेरे हुक्म इत्तिसाल में हैं,

मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

चार मशाइख ज़िन्दों की तरह तसर्रुफ़ करते हैं :- हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के मेने चार मशाइख को देखा है जो अपनी क़ुबूर में ऐसा तसर्रुफ़ करते हैं जिस तरह के ज़िंदा करता है (1) सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह (2) हज़रत सय्यदना शैख़ मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह (3) हज़रत शैख़ अक़ील बिन मुनजबी रहमतुल्लाह अलैह (4) हज़रत शैख़ हया बिन क़ैस हरानी रहमतुल्लाह अलैह,

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सरकार गौसे पाक को “मुहीयुद्दीन” क्यों कहा जाता है? :- आप के लक़ब “मूहियद्दीन” होने के मुतअल्लिक़ खुद आप का ही बयान है के जुमे के दिन में सफर से बग़दाद वापस आ रहा था के एक निहायत ही लागर और नहीफ कमज़ोर बीमार पर मेरा गुज़र हुआ उसने कहा अस्सलामु अलयकुम या अब्दुल क़ादिर मेने सलाम का जवाब दिया उस ने कहा मुझे उठाओ मेने उठा कर बिठा दिया तो अचानक उस का चेहरा बारौनक और मोटा ताज़ा हो गया, में हैरान हुआ तो कहने लगा तअज्जुब की बात नहीं में आप के नाना जान सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीन हूँ जो मुर्दा हो रहा था, अल्लाह तआला ने आप के ज़रिए मुझे नई ज़िन्दगी अता फ़रमाई है आप “मुहीयुद्दीन” हैं चुनाचे जब में बग़दाद की जामा मस्जिद में गया तो एक शख्स ने या सय्यदी मुहीयुद्दीन के अल्फ़ाज़ से पुकारा नमाज़े जुमा ख़त्म हो गई तो लोग दौड़ते हुए मेरी तरफ आए या मुहीयुद्दीन या मुहीयुद्दीन पुकारते हुए मेरे हाथ चूमने लगे, हालांके उससे पहले कभी किसी किसी ने मुझे इस लक़ब से नहीं पुकारा,

सफर में वापसी में दीने अक़दस को किया ज़िंदा
मुहीयुद्दीन हुआ यूं नामे वाला गौसे आज़म का

सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह और जिन्नातों की वफादारी :- शैख़ अबू सईद अहमद बगदादी बयान फरमाते हैं के मेरी एक फातिमा नामी बेटी एक बार मकान की छत पर गई तो उस को कोई जिन्न उठाकर ले गया, मेने ये वाक़िआ हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अर्ज़ किया तो आप ने मुझ से फ़रमाया के तुम मोहल्ला करख के वीराने में जाओ और वहां अपने इर्द गिर्द गोल हिसार खींच लो और उस में बैठ कर ये पढ़ो बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम अला नियते अब्दुल क़ादिर जब आधी रात गुज़र जाएगी तो तुम्हारे पास से मुख्तलिफ सूरतों में जिन्नात का गुज़र होगा तुम उन से खौफ नहीं खाना डरना मत, फिर सुबह को एक बहुत बड़े लश्कर के साथ तुम्हारे पास से जिन्नात के बादशाह का गुज़र होगा वो तुम से तुम्हारी ज़रुरत मालूम करेगा तुम उससे सिर्फ ये कहना के मुझे शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी ने भेजा है इस के बाद तुम अपनी बेटी का वाक़िआ बयान कर देना शैख़ अबू सईद बगदादी कहते हैं के में आप के इरशाद के मुताबिक़ करख के वीराने में हिसार खींच कर बैठ गया वहां से जिन्नात के बहुत से गिरोह हैबतनाक खौफनाक सूरतों में गुज़रते रहे यहाँ तक के सुबह के वक़्त जिन्नात के बादशाह का गुज़र हुआ और मुझ से मेरी ज़रुरत मालूम करने लगा मेने कहा के मुझ को हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने भेजा है जब उसने आप का नाम सुना तो घोड़े पर से उतर कर नीचे बैठ गया और इसी तरह उसका लश्कर भी बैठ गया मेने उससे अपनी बेटी का वाक़िआ बयान किया,
उसने तमाम लश्कर से पूछा के इनकी बेटी को कौन उठाकर लेगया है उस के बाद एक जिन्न को हाज़िर किया गया और बताया गया के ये चीन के जिन्नात में से है शैख़ अबू सईद बगदादी की बेटी इस के साथ थी बादशाह ने उससे पूछा तूने ये जुरअत कैसे की? उसने कहा मुझे ये अच्छी मालूम हुई इस लिए में इस को उठाकर लेगया, बादशाह ने उसका कलाम सुनते ही उसकी गर्दन उड़ादी और मेरी बेटी को मेरे हवाले कर दिया, उस के बाद मेने जिन्नात के बाद शाह से कहा के आज के सिवा मुझे आप लोगों का हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की फरमा बरदारी करना मालूम नहीं था वो कहने लगा बेशक शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी हम में से तमाम सरकश जिन्नात पर नज़र रखते हैं, इस लिए वो आप के खौफ से भाग कर दूर दराज़ मक़ामात में जा बसे हैं, क्युंके जब अल्लाह तआला किसी को क़ुतब बनाता है तो जिन्न और इंसान दोनों पर उसे हाकिम बना देता है,


फ़ा हुकमी नाफिज़ुन फि कुल्ली हाली से हुआ ज़ाहिर
तसर्रुफ़ इनसो जिनन सब पर है आक़ा गौसे आज़म का
हुई इक देओ से लड़की रिहा उस नाम लेवा की
पढ़ा जंगल में जब उसने वज़ीफ़ा गौसे आज़म का

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हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की औलाद व अज़वाज :- हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की चार 4, बीवियां थीं, और और आप की औलादे पाक की तादाद कुल 49, उनन्चास थी जिन में 29, लड़के और बीस लड़कियां थीं,

आप का विसाले पुरमालाल :- हुज़ूर गौसेअज़ाम रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 11, रबीउल आखिर बरोज़ पीर 561, को हिजरी को हुआ और आप का मज़ार शरीफ इराक की राजधानी बगदादाद शरीफ में है, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |

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मआख़िज़ व मराजे :- बहजातुल असरार, क़लाइदुल जवाहिर, हयाते ग़ौसुल वरा, मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, तज़किराये मशाइखे क़दीरिया बरकातिया, गौसे जीलानी, अख़बारूल अखियार, गौसे पाक के हालात, सीरते गौसुस सक़लैन, अवारिफुल मआरिफ़, सीरते गौसे आज़म, बुज़ुर्गों के अक़ीदे,

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