आप का तआरुफ़ :- सेंटरल एशिया के अंदर मावरा उन्नहर में उज़्बेकिस्तान रशिया के स्टेट सूबों के अंदर नक्शबंदी सिलसिले को जो उरूजो तरक़्क़ी व शोहरत मिली है वो “”हज़रत ख़्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह”” ने दी है, और हिंदुस्तान के अंदर जो बानी हैं यानि फाउंडर हैं जब के नक्शबंदी सिलसिले का इतना शोहरा नहीं था, मुल्के हिन्दुस्तन में जिन्होंने इतना उरूज दिया नक्शबंदी सिलसिले को व चमकाया और मक़ामे बुलंदी तक पहुंचाया “नक्शबंदी सिलसिले” को वो “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह” की ज़ाते मुबारक है, इस का सेहरा आप ही के सर बंधता है, वैसे भी हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह का सिलसिला रूहानी तौर पर “हज़रत ख़्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी” रहमतुल्लाह अलैह” से है, और आप से फैज़ पाया है,

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की विलादत बसआदत :- आप का अस्ल नाम “रज़ीउद्दीन” था और “”मुहम्मद ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह”” के नाम से मशहूर हुए,
हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह के वालिदे मुहतरम जिनका इसमें गिरामी “क़ाज़ी अब्दुस्सलाम खिलजी समरक़ंदी कुरैशी” है, जो अपने वक़्त के आलिमे बा अमल और साहिबे वजदो हाल थे, और काबुल में आ कर शादी की थी, और यहीं “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” की पैदाइश 971, या 972, हिजरी मुताबिक़ 15, जुलाई 1564, ईस्वी को अफगानिस्ता की राजधानी काबुल में हुई, और आप के वालिद मुहतरम क़ाज़ी अब्दुस्सलाम काबुल के क़ाज़ी यानि चीफ जस्टिस थे और सूफ़िया में से थे, और साहिबे अरबाबे फ़ज़्लो सखावत और साहिबाने कशफो करामात में से थे, आप का क़ल्ब (दिल) मुबारक इस क़द्र नर्म मुलाइम था के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के खौफ से गिरियाओ बुका (रोना पीटना) में रहते थे, चूंकि उस ज़माने में बड़े बड़े उलमा को शैख़, शीयूख, के लक़ब (टाइटल) से सरफ़राज़ किया जाता था, इसी वजह से काज़ी साहब को भी “शैख़” के लक़ब से पुकारा जाता था, आप खिलजी खानदान से तअल्लुक़ रखते थे,
हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह अपनी वालिदा माजिदा की तरफ से हज़रत शैख़ उमर या गस्तानी तक पहुंचते हैं, वो हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह एहरार रहमतुल्लाह अलैह के नाना थे, और हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की नानी साहिबा खानदाने सादात से थी, बचपन से ही आप तजरीदो तफ़रीद और शोके ख़ल्वत तन्हाई और गोशा नाशी के आसार ग़ालिब थे, चुनाचे अक्सर आप तन्हाई में लोगों से अलग हो कर मुराक़बे में रहते थे पूरा दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ मुतावज्जेह रहते थे, और पूरा पूरा दिन इसी आलम में मदहोश रहते थे और होश में नहीं आते थे यादे खुदा में डूबे रहते थे,

Read this also शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा बाराबंकवी की हालाते ज़िन्दगी (Part-2)

आप की तालीम :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह जब आलमे शबाब (जवानी) को पहुंचे तो इल्मे दीन हासिल करने के लिए मुतावज्जेह हुए, और मौलाना सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ना शुरू किया जो अकाबिर उल्माए किराम से थे, और उनके साथ काबुल से मावरा उन्नहर तशरीफ़ ले गए थोड़ी मुद्दत में ही आप ने अपने हम अस्र लोगों में इम्तियाज़ी शानदार मक़ाम हासिल कर लिया और इल्मी फ़ज़ाइल के पूरे मरातिब की तकमील हो गई,

मौलाना सादिक़ हलवाई रहमतुल्लाह अलैह :- मौलाना सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह का वतन समरक़ंद (समरक़ंद उज़्बेकिस्तान का शहर है) था, जब वो 978, हिजरी में हज से वापस तशरीफ़ लाए तो शहंशाह अकबर के छोटे भाई मिर्ज़ा हकीम ने जो काबुल का हाकिम था, मौलाना सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह से दरख्वास्त की के वो कुछ अरसे के लिए काबुल तशरीफ़ लाकर उन्हें और वहां के लोगों को अपने इल्मी फैज़ान से मालामाल और फ़ैज़याब करें, लिहाज़ा वो उसकी फरमाइश पर कुछ अरसा काबुल में दरस देते रहे, उसी ज़माने में हज़रत ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने भी उनसे तालीम हासिल की, वो बहुत बड़े आलिमो फ़ाज़िल और अच्छे शायर भी थे,
उनके भाई मुल्ला अली मुहद्दिस समरकन्दी रहमतुल्लाह अलैह भी बहुत बड़े आलिम और मुहद्दिस इल्मे हदीस के अच्छे माहिर थे, मौलाना सादिक हलवाई रहमतुल्लाह अलैह हिंदुस्तान भी आए थे, कुछ अरसा इल्मों फ़ज़ल के ख़ज़ाने लुटाने के बाद वापस वतन तशरीफ़ ले गए और 981, हिजरी में वफ़ात पाई,

आप का इल्मी मक़ाम :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह के इल्म की ये हालत थी के आप के दोस्त अहबाब मुश्किल से मुश्किल किताब और फन के दक़ीक़ से दक़ीक़ मुश्किल से मुश्किल बारीक सबक़ को आप के पास लाते और आप उनके अश्काल पेचीदगी का हल मालूम करते आप फ़ौरन वज़ाहत के साथ उस को समझा देते उलूमे मुरव्वजा हासिल करने के बाद आप ने राहे सुलूक की इब्तिदा फ़रमाई,

हक़ की तलाश में निकलते हैं हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ज़मानाए तालिबे इल्मी में भी औलिया अल्लाह सूफ़िया की मजलिसों में हाज़िर होकर उनके कमालाते बातनि का फैज़ हासिल करते, राहे हक़ की तलब में सालिकों मजज़ूबों अल्लाह वालों की इस क़द्र तलाश करते थे, के उससे बढ़ कर तकाते बशरी का तसव्वुर नहीं किया जा सकता,
लाहौर में बरसात के मौसम में दलदल सख्त कीचड़ जिस में चलना बहुत मुश्किल था, मगर आप बावजूद इतनी गुज़र गाहें, पहाड़ों, वीरानो, जंगलों, क़ब्रिस्तान, बयाबानो सहराओं, और बागों, को अरबाबे बातिन यानि औलिया अल्लाह सूफ़िया के शोक में रोंदते फिरते थे, आप ने बहुत से पाक दिल लोगों से मुलाकात की और उनसे फैज़ पाया और मुस्तफ़ीज़ हुए,
मावरा उन्नहर, बल्ख, बदख्शां, के सफर में सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया के बुज़ुर्गों और दूसरे सिलसिलों के औलिया अल्लाह से आप ने मुलाकात की और उनसे फैज़ पाया,

Read this also  सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की हालाते ज़िंदगी और आपकी करामात 

आप की वालिदा माजिदा की दुआ :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं अगरचे हमने इतनी रियाज़तें नहीं कीं जिस क़द्र बाज़ औलिया अल्लाह ने की हैं लेकिन वो इन्तिज़ार और बेक़रारी व बेताबी बर्दाश्त की है जो बहुत सी रियाज़ातों और सख्तियों को शामिल थी,
उस ज़माने में मेरी वालिदा मुहतरमा मेरी बेक़रारी बेदारी की कसरत और नातवानी व कमज़ोरी को देखकर बहुत शाकिस्ता दिल और रंजीदा होती थीं, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में अर्ज़ करतीं, ए अल्लाह मेरे इस बेटे की मुराद को पूरा करदे जिसने तेरी तलब में सब से अपना तअल्लुक़ ख़त्म कर लिया है, और जवानी की लज़्ज़त से हाथ धो लिए हैं, वरना मुझे ज़िंदह मत रख क्यूंकि में इस की नाकामी और बे अरामी को देखना बर्दाश्त नहीं कर सकती हूँ,
अक्सर रात के वक़्त और सहर के दरमियान आप ऐसी दुआयें अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से करतीं थीं, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, मेरी वालिदा मुहतरमा की इस दुआ और मुनाजात से ये मरातिब मुझे नसीब हुए,

आप का मज़ार मुबारक, क़ुतब रोड नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सदर बाज़ार की तरफ जाते वक़्त बाएं यानि उलटे हाथ पर एक सड़क जाती है जिस का नाम ईद गाह रोड है इसी रोड पर मौजूद है, दिल्ली इंडिया में,

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की तलबे खुदा में सियाहत :- आप फरमाते हैं के सब से पहले में हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह एहरार रहमतुल्लाह अलैह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और उन से पहली बैअत तौबा की लेकिन रुजू का ख़्याल और तरके अज़्म बातिन में बाक़ी था, और फातिहा की इल्तिमास ज़ाहिर में,
हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह एहरार रहमतुल्लाह अलैह मौलाना लुत्फुल्लाह के खुलफ़ा में से थे,
और मौलाना लुत्फुल्लाह ख़्वाजगी वाहिदी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा थे, मगर जब इस्तिक़ामत सही तरीके से मज़बूती की तौफ़ीक़ हासिल नहीं हुई तो दूसरी बार हज़रत बन्दगाने इफ्तिखार शैख़ की खिदमत में तौबा की जो समरक़ंद में तशरीफ़ रखते थे, और हज़रत ख्वाजा अहमद बस्वी रहमतुल्लाह अलैह के सिलसिले के अकाबिर में से थे, अगरचे शैख़ समरक़ंदी राज़ी नहीं थे और फरमाते थे के तुम अभी बच्चे हो, लेकिन फ़क़ीर का इरादा यक़ीनी था, आप ने फातिहा पढ़ी और फ़रमाया खुदा इस्तिक़ामत बख्शे, इन बुज़ुर्गों की फिरासत दानाई के मुताबिक अज़ीमत दरहम बरहम हो गई और अजीब खराबी पैदा हुई,
तीसरी बार हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरे मक़सद व इख़्तियार के बगैर हज़रत अमीर अब्दुल्लाह खिलजी की खदमत में फिर से तौबा ज़हूर में आयी, अल क़िस्सा कुछ मुद्दत और निगेहदाश्त हुदूद के मक़ाम में रहा, फिर इसमें मुदिल की तासीर ने इस दिवार को तोड़ दिया,
और आखिर कार अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की हिदायत से ख़्वाब में हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत का शरफ़ हासिल हुआ और उनकी खिदमत में तौबा की सूरत पुख्ता और मुनअकिद हुई और अहलुल्लाह यानि अल्लाह वालों की तरफ मैलान लगाओ अकीदत मुहब्बत पैदा हुई,
सूफ़िया औलिया अल्लाह मख़्दूमो में से एक का फरमान है के ज़िक्र वही नतीजा ख़ेज़ है जो जनाबे रिसालते मआब रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुंचे,
मेरी तिशनगी व बेकारी ने मुझे इस पर आमादा किया के उसी बुज़रुग से ज़िक्र व मुराकिबा का तरीका हासिल किया जाए, चुनाचे दो साल उसी मखदूम के बताए हुए ज़िक्र व मुराकिबा विरद औराद की पाबन्दी की गई, मेने सुना था के सालिक (राहे तरीकत पे चलने वाला, बुज़रुग दुर्वेश) जब तक चालीस साल तक “लाइलाहा इलल्लाह” के मैदान को तय नहीं करता, “इलल्लाह” की मंज़िल पर नहीं पहुँचता, इस लिए आम तौर पर मुझे ये ख्यालात आते रहे के उमर को ज़िक्र में गुज़ारने को गनीमत समझ और इसी तरह की इबादत पर क़नाअत कर,
मगर इस बीच में दूसरे मशरब व तरीके के सुलूक के लिए गैबी इशारे ज़हूर में आते थे, मगर में अपने आप को मज़बूती के साथ क़दम को अपनी जगह से नहीं हटाता था, और इसी तरीक़ए नक्शबंदिया के बुज़ुर्गों की ज़मीने करम का (और तुम्हारे लिए है जो इस में तुम्हारा जी चाहे, सूरह हामीम अल सजदा) बीज बोता था,
इस उम्मीद में के इंशा अल्लाह तआला आखिर कार किसी बुज़रुग का दस्ते करम इस बीज को यानि मुझको मिलेगा और किसी नहर से सैराब करेगा,
आखिर कार हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में कश्मीर पहुंचा और हज़रत शैख़ मलाली रहमतुल्लाह अलैह की की खिदमत में हाज़िर हुआ और उनकी नज़रे करम की बरकतों से फ़ैज़याब हुआ, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुकरो एहसान है के कामयाबी का दरवाज़ा मिला, चूँकि हज़रत शैख़ को सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया की भी इजाज़त थी और मेरी तलब भी इस बुज़रुगवार के आस्ताने की तरफ मुतावज्जेह थी,
इस लिए इस ख़ानक़ाह की खिड़की से फ़ैज़ाने इलाही पहुंचना शुरू हुआ, जब हज़रत शैख़ 15, सफर 1001, हिजरी को इन्तिकाल कर गए,
तो हज़रत ख्वाजगानें नक्शबंदिया की ग़ैबत महुदा जलवगर होने लगी और उनकी पाक रूहें ख़्वाबों में खुश खबरी और बशारत देने लगीं, उनकी तवज्जुह की बरकत से इस निस्बत में क़ुव्वत पैदा हो गई और गैर हाज़री का रास्ता रोशन हो गया और एक किस्म की जामिईयत हासिल हुई,
यहाँ तक के उनकी इनायत व फ़ैज़ा बरकात से मख़्दूमी हक़ाइक़ पनाही इरशादे दस्तगाही यानि मुर्शिदे बरहक़ “”हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह”” की खिदमत में पंहुचा और ख़ुशी व रगबत से उन से बैअत व मुसाफा कर के ख्वाजगांन का तरीका हासिल किया, हज़रत की मुलाज़िमत हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह और उनके खुलफ़ा की पाक रूहों के तुफैल से इस रास्ते के चलने वालों और उस दरगाह के नियाज़ मंदों के सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया में दाखिल हो गया,

Read this also हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नक़ी अली खां रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी

हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह को खिलाफ़तो इजाज़त किस बुज़ुरग से है? :- हज़रत शाह वियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अपनी किताब “अनफासुल आरफीन” में फरमाते हैं के हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह मुर्शिद की तलाश में दिल्ली भी तशरीफ़ लाए, और हज़रत शैख़ अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह की ख़ानक़ाह में उनके साहबज़ादे शैख़ क़ुत्बे आलम के पास रहे, उसी ज़माने में शैख़ क़ुत्बे आलम को इल्मे कश्फ़ से मालूम हुआ के हज़रत ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह को फैज़े रूहानी मशाइखे बुखारा से हासिल होगा लिहाज़ा उन्होंने इस का ज़िक्र किया और हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह को बुखारा रवाना किया,
एक दूसरी रिवायत :-
में है के आप बैअत होने से पहले जब हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए तो यहाँ आप के हमसरों (शरीके हयात साथी) में से कुछ लोगों ने जो शाही मनासिब पर मामूर थे, आप की माद्दी तरक़्क़ी को देख कर कहा के आप भी अरबाबे लश्कर में दाखिल होकर दुनियावी दौलत व मता से तवांगरी मालदारी हासिल करें, लेकिन चूंकि आप की किस्मत में दौलते दिनों मता की मालदारी मुक़द्दर थी इस लिए उनकी कोशिश रायगां बेकार गई,
एक दुर्वेश जो आप के साथ में था उनका बयान है के आप ने सालिकों, और मजज़ूबो की तलाश में इस क़द्र कोशिश की के उस का तसव्वुर नहीं हो सकता,
शहर लाहौर में बरसात के मौसम में गलियों कूचो में इस क़द्र कीचड़ थी के चलना बहुत मुश्किल था, इतने नाज़ुक गुज़रगाहें रास्ते होने के बावजूद, पहाड़ों, वीरानो, क़ब्रिस्तानों, बयबानो और बागों को अरबाबे बातिन सूफ़िया औलिया अल्लाह के शोक में घूमते फिरते थे,
एक रोज़ मेरे दिल में वलवला (जोश) पैदा हुआ के में भी आप के साथ चलूँ,
आप ने हर चंद मना किया मगर में बाज़ नहीं आया, जब चंद कूचे आप के साथ चलता रहा तो कीचड़ की कसरत की वजह से में थक गया और मेरे पाऊँ में दर्द होने लगा, मेने अदब व हया की वजह से अपना हाल ज़ाहिर नहीं किया यहाँ तक के आप को खुद बखुद मेरे हाल से वाक़िफ़ हो गए और मुझे वापस कर दिया, उस वक़्त मेने जान लिया के “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” ज़ाहिरी क़दमों से नहीं बल्कि दूसरे क़दमों से ये राहें रास्ते तय कर रहे हैं,
इसी तरह का ज़िक्र है के हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का एक साथी बयान करता है के उन दिनों शहर लाहौर के एक बाग़ व क़ब्रिस्तान के क़रीब एक अजीब मजज़ूब साहिबे हाल रहता था, आप को उस के बारे में मालूम हुआ तो आप उस के पीछे पीछे फिरा करते, वो जिस वक़्त आप को देखता तो सिवाए गाली देने के कुछ नहीं कहता, कभी आप पर पथ्थर फेंकता और कभी आप से मुतनफ्फिर होकर किसी और जगह भाग जाता हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह तलाबे सिद्क़ की वजह से उसका पीछा नहीं छोड़ते थे, यहाँ तक के एक रोज़ उस दीवाना सूरत फरज़ाना सीरत की रगे महरबानी हरकत में आयी और आप को अपने पास बुलाकर हुसूले मुराद के लिए तवज्जुहे फ़रमाई और आप को दुआएं दीं,
जिन की बरकत से आप को फवाइद और फैज़ हासिल हुआ,
हैबतनाक आवाज़ :-
मौलाना हाशिम कश्मी रहमतुल्लाह अलैह “ज़ुब्दतुल मक़ामात” में लिखते हैं के एक सादिकुल क़ौल साहिबे दिल ने जो उस्वक़्त हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर था, मुझ से बयान किया के हज़रत अभी हिंदुस्तान से मावरा उन्नहर तशरीफ़ नहीं ले गए थे के एक रोज़ लाहौर की एक मस्जिद में नमाज़े फ़र्ज़ अदा करने के लिए तशरीफ़ लाए, दौरान नमाज़ आप के सीने से एक हैबतनाक आवाज़ ज़ाहिर हुई जिससे तमाम नमाज़ी हैरान व पेरशान हुए, इमाम के सलाम फेरते ही आप निहायत जल्दी से मस्जिद से निकल गए और उस दिन के बाद दो तीन साथियों को जमा करके अपने मकान पर जमात के साथ नमाज़ पढ़ लिया करते थे,
नमाज़ में दोनों तरफ चेहरा: एक और बुज़रुग का बयान है के जो लोग आप के पीछे नमाज़ पढ़ा करते थे उन में से एक में भी था,
एक रोज़ मेने नमाज़ के दरमियान देखा के हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का रूखे मुबारक क़िब्ले की तरफ है और हमारी तरफ भी और हमें देख रहे हैं, ये सूरते हाल देख कर मुझे रआशा यानि कपकपी तरी हो गई, थरथराते हुए बड़ी दुशावरी से मेने नमाज़ पूरी की और जो कुछ देखा था वो सब आप की खिदमत में अर्ज़ किया आप ने मुस्कुराकर फ़रमाया के इस वाक़िए को किसी से मत बताना,
अगरचे आप को ये हालात व कामलात हासिल थे और तालिबान हक़ का रुजू भी आप के आस्ताने की तरफ कसरत से थे आप की आला हिम्मत मशिखीयत तालीम तरीक़त पर माइल न हुई,
बल्कि हिंदुस्तान से मावरा उन्नहर और बल्ख बदख्शां तशरीफ़ ले गए ताके सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया और दीगर दूसरे सलासिल के बुज़ुर्गों की सुहबत में पहुंच कर फवाइद फ़ैज़ा बरकात हासिल करें और अहवाल व रूहानियत हासिला की इस्लाह फरमाए,
इस सफर में मौलाना शेर गानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए फिर वहां से समरक़न्द रवाना हुए,
हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह के बाज़ असहाब से सुना गया है के जिस ज़माने में आप मुरीद होने के लिए पिरो मुर्शिद की बारगाह में जा रहे थे, और अम्किना (अम्किना बुखारा के नज़दीक एक गाऊं है, और बुखारा उज़्बेकिस्तान में है) एक मंज़िल पर रह गया तो आप के पिरो मुर्शिद को मालूम हो गया के “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” हमारे पास आ रहे हैं, तो आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” के इस्तक़बाल के लिए निकले,
रास्ते में ही आप से मुलाकात हुई और आप के पिरो मुर्शिद जिनका इस्मेगिरामि “”हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह”” है, आप के पिरो मुर्शिद ने बहुत शफ़क़त महरबानी फ़रमाई, और आप को अपनी क़याम गाह पर ले गए और अपने मुरीदों से कहा “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” के लिए सर्दी का इंतिज़ाम करो, आप के अर्ज़ किया में सर्दी का इंतिज़ाम अपने साथ रखता हूँ, आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह” ने फ़रमाया हम पहले ही से जानते हैं के तुम हर चीज़ रखते हो, चिराग का इंतिज़ाम किया तेल और बत्ती तय्यार करके लाए और रोशन किया, आप के पिरो मुर्शिद ने तीन दिन तक आप को अपने पास रखा और इस बीच में आप बिलकुल तन्हाई में मशगूल रहे, जो रूहानियत और मक़ामात “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” को हासिल थे, उनको आप ने सुना और बहुत पसंद किया और दूसरे फवाइद फीयूज़ो बरकात से आप को नवाज़ा, और उसके बाद आप को खिलाफत से मुशर्रफ फ़रमाया,
और हिंदुस्तान (हिन्दो पाक) जाने की इजाज़त दी, “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” ने इंकिसारी व तवाज़ो से उज़्र पेश किया आप के पिरो मुर्शिद ने फ़रमाया के इस्तिखारा करो, जब आप ने इस्तिखारा किया तो इसी मुल्के हिंदुस्तान की हिदायत और इरशाद की आप को बशारत मिली,
कहते हैं के जब आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह” के बाज़ पुराने मुरीदों को जब इस की खबर मिली के हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह को सिर्फ दो तीन दिन में ही खिलाफत देकर हिंदुस्तान की इजाज़त अता फ़रमादी, गैरत से जलने लगे, जब “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह” को इस की खबर मिली तो फ़रमाया ए दोस्तों तुम नहीं जाते हो के ये जवान पूरा काम कर के हमारे पास भेजा गया है,
इसने हमारे पास सिर्फ अपने हालात की इस्लाह की है, पस जो शख्स ऐसा तय्यार हो कर आएगा वो इसी तरह जल्दी से रुखसत किया जाएगा, इससे मुल्के हिंदुस्तान (हिन्दो पाक) में पूरी रौनक ज़ाहिर होगी और बुलंद हिम्मत वाले हक़ के तालिब इस की मुबारक तरबियत से मरतबाए कमाल को और तकमील को पहुचनेगें,

आप का मज़ार मुबारक, क़ुतब रोड नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सदर बाज़ार की तरफ जाते वक़्त बाएं यानि उलटे हाथ पर एक सड़क जाती है जिस का नाम ईद गाह रोड है इसी रोड पर मौजूद है, दिल्ली इंडिया में,

Read this also हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी

क़यामत में तुम मेरी शफ़ाअत करना :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह अपने पिरो मुर्शिद “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह” से रुखसत होकर पहली मंज़िल पर उतरे तो आप के पिरो मुर्शिद आप की तलाश में इस मंज़िल पर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया के मुझ से वादा करो के अगर क़यामत के दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम्हे दर्जाए क़ुर्ब अता फरमाए तो मेरी शफ़ाअत करना, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने तवाज़ो से फ़रमाया ये खवाइश तो इस फ़क़ीर की है, आप के पिरो मुर्शिद ने फ़रमाया अच्छा दोनों तरफ से ही मुआहिदा (अहदो पैमान, क़ौल व इकरार करना) हो जाना चाहिए चुनाचे दोनों तरफ से ये मुआहिदा हो गया, फिर आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत ख्वाजा मुहम्मद अमकंगी रहमतुल्लाह अलैह” ने आप को रुखसत किया और खुद अम्किना वापस तशरीफ़ ले गए,

लाहौर और दिल्ली में क़याम :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह जब हिंदुस्तान में तशरीफ़ लाए तो सब से पहले एक साल तक लाहौर में मुक़ीम रहे, अक्सर उलमा और फुज़्ला आप के मोतक़िद और ख़्वाइश मंद हो गए और आप के फ़ैज़ा व बरकात से मुस्तफ़ीज़ हुए,
इस के बाद इस तरीक़ए सिलसिलाए आलिया नक्शबंदिया के बुज़ुर्गों की बशारत के मुताबिक़ दिल्ली में तशरीफ़ लाए, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस शहर दिल्ली को आफतों से मेहफ़ूज़ रखे क्यों के ये मक़ामाते मुक़द्दस मज़ारात बरकात औलिया अल्लाह का मरकज़ है, आप यहाँ क़िला फिरोज़ी में मुक़ीम हुए जो दरियाए जमना के किनारे मौजूद है, पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ने के लिए आप मस्जिद फ़िरोज़ शाही में तशरीफ़ लाते थे, उस ज़माने में अक्सर वक़्त नमाज़े ईशा के बाद आप मुराक़िब होते और एक ही मुराक़बे में सुहब हो जाती थी, पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ने के बाद जब आप घर तशरीफ़ लाते थे, तो अपने माकन के दरवाज़े पर थोड़ी देर ठहर जाते थे और आप के तमाम असहाब व खुद्दाम दस्त बस्ता हाथ बांधे सर झुकाए निहायत अदब व तवाज़ो के साथ आप की खिदमत में खड़े रहते और किसी को ये जुरअत नहीं होती के आप की तरफ नज़र उठाकर देखे और आप भी किसी की तरफ नज़र नहीं करते थे और सर मुराकिबे में या नज़र क़दम पर कर के खड़े रहते थे,
अगर इत्तिफ़ाक़न आप की नज़र किसी पर पढ़ जाती या किसी की नज़र आप पर पढ़ जाती तो वो फ़ौरन बेहोश और बेखबर हो जाते और बे इख़्तियार नारा मारते थे, और मुर्ग बिस्मिल की तरह ज़मीन पर तड़पने लगते थे, और शहर में एक शोर बरपा हो जाता था,
चुनाचे दिल्ली के बाज़ारी इस शोर को सुन कर तमाशा देखने के लिए आ जाते थे,
और तमाशाई भी सूफियों की तरह बे इख़्तियार हो कर ज़मीन पर तड़पने लगते थे, आप की शुहरत तमाम शहरों में फ़ैल गई और जहाँ जहाँ हक़ के तलबगार थे वो इस आफ़ताबे आलम की तरफ मुतावज्जेह होने लगे, दिल्ली और अतराफ़ व अकनाफ आसपास के जो उस वक़्त में मशाइखे वक़्त थे बावजूद इस के खिलाफ़तो व मशिखियत, और सज्जादगी व जाहो हशमत को छोड़ के नियाज़मन्दी के साथ आप की खिदमत में हाज़िर होने लगे और इस आसमाने अरशे निशान यानि आप की ख़ानक़ाह को अपनी आँखों का सुरमा बनाते रहे,

Read this also हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी की हालाते ज़िन्दगी (Part-2)

आप का तरीक़ए तब्लीग :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह तरीक़ए तब्लीग गुमनामी, गोशानशिनी हालात को छुपाना, और दीद क़ुसूर का था, आप ज़रूरत के सिवा गुफ्तुगू नहीं करते थे और बावजूद इस के आने जाने वालों के साथ निहायत अख़लाक़ के साथ मुलाकात फरमाते थे, मुसलमानो की हाजतें पूरी करने में पूरी कोशिश करते,
और “सादात व उल्माए किराम की बड़ी ताज़िमों तक़रीम करते थे” अगर कोई हक़ की तलब में आप की खिदमत में हाज़िर होता तो उज़्र फरमाते और इंकिसारी से अपने आप को इस काम के लाइक न होना ज़ाहिर करते थे, हक़ का तालिब आप के इस इंकार को कसरे नफ़्स जान कर आला मंज़िल व बुलन्दिये मर्तबे की दलील समझते थे, जब आप तालिबों की तलब की मज़बूती को देखते तो उनको अपनी आग़ोशे इनायत और सायाए तरबियत में लेते थे,
और जिस शख्स को आप कबूल फरमाते पहले उसे तौबा के लिए हुक्म देते,
अगर उसके इश्को मुहब्बत में तरक़्क़ी देखते तो उसको अपनी सूरत को दिल में बतौरे राब्ता और निगेहदाश्त रखने के लिए इरशाद फरमाते और इस रास्ते की बहुत सी फराखि इनायत अता फरमा देते, अक्सर आप तालिबों को ज़िक्रे क़ल्बी बताते थे, कुछ लोगों को “लाइलाहा इलल्लाह” और कुछ को “इसमें अल्लाह” का ज़िक्र जारी कराते थे, बहुत से तालिब सिर्फ आप के दीदार से आप की निस्बत हासिल कर लेते थे, जिस शख्स को आप ज़िक्र तालीम फरमाते थे और उस पर हिम्मत तवज्जुह फरमाते थे, तो उसी वक़्त उस का दिल ज़िक्रे इलाही के जोहर से आबाद हो जाता था,
बाज़ को उसी वक़्त आलमे मिसाल, या आलमे अरवाह, या आलमे मुआनी,उस पर खुल जाता था, और ये हाल मुद्दतों तक क़ाइम रहता था, बाज़ लोग आप की तवज्जुह के वक़्त मुर्गे बिस्मिल की तरह
तड़पने लगते थे, और बाज़ बेखुद हो जाते थे, और फिर आप की तवज्जुह से होश में आते थे, मशहूर मुहावरा है, के शैख़ ज़िंदा करता है और मारता है, गोया आप की शाने पाक में वाक़े हुआ है आप की या इनायतें आम थीं,

आप का मख़लूक़े खुदा पर रहम :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह आप की महरबानी आम मख्लूक़ पर इस तरह होता था के एक बार लाहौर में कहित पड़ गया आप उस ज़माने में दिल्ली में मुक़ीम थे, चंद रोज़ तक आप ने कुछ नहीं खाया जब आप के पास खाना लाते तो आप फरमाते ये इन्साफ से दूर है के लोग कूचों मोहल्ले में भूक से जान दें और हम खाना खाएं, आप के पास जो खाना होता था वो सब आप भूकों को भेज देते और खुद रूहानी ग़िज़ा से सैराब होते,
जब आप लाहौर से दिल्ली रवाना हुए तो रास्ते में एक आजिज़ थका मानदा शख्स पर आप की नज़र पड़ी, आप घोड़े से उतर पड़े और घोड़ा उस को सवार होने के लिए दे दिया और खुद पैदल चलने लगे, जब आप मंज़िल के क़रीब पहुंच गए तो फिर घोड़े पर सवार हो गए ताके ये सवाब का काम परदे में ही रहे,
बिल्ली आप के बिस्तर में सोती रही:
इसी तरह आप जानवरों पर भी शफ़्क़तों महरबानी करते थे,
एक बार आप सरदी के मौसम में नमाज़े तहज्जुद पढ़ने के लिए उठे आप नमाज़ पढ़ने लगे, एक बिल्ली आकर आप के बिस्तर में सो गई, जब आप आए तो देखा बिस्तर में बिल्ली सो रही है जाड़े की सख्त तकलीफ बर्दाश्त करते रहे और आप ने उस बिल्ली को बेदार नहीं किया सरदी की वजह से,
तरीक़ए तब्लीग:
अगर आप किसी को शरीअत के खिलाफ काम करते देखते तो अम्र बिल मारूफ और नहीं अनिल मुनकर की सराहत और सख्ती से नहीं फरमाते थे, बल्कि निस्बत या इशारा या मिसाल के साथ इरशाद फरमाते थे, आप अक्सर औक़ात फरमाते थे के जो शख्स इस सुहबत में आता है खुद बखुद नाजाइज़ कामो को छोड़ कर नेक कामो की तरफ आजाएगा आप की मजलिस बहिश्त का नमूना थी किसी को अमरो नहीं और ग़ीबत व एतिराज़ की ज़रूरत पेश नहीं आती थी, अगर कोई शख्स किसी मुस्लमान की ग़ीबत करना चाहता तो आप उसको रोकने के लिए फ़ौरन उस की तारीफ शुरू कर देते थे,

आप ने एक लाख रूपया वापस कर दिया :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह के तक़वे का ये हाल था एक बार आप ने मदीना शरीफ के सफर का पुख्ता पक्का इरादा फ़रमाया, खानान मुअज़्ज़म ने इस खबर को सुन कर एक लाख रूपया आप के लिए और आप के दुवेशों के खर्च के लिए भेजा और अर्ज़ किया के इस क़लील मिक़्दार को क़ुबूल कर के मुझ पर एहसान फरमाएं, आप ने
क़ुबूल नहीं फ़रमाया और वापस कर दिया और फ़रमाया के हज करना हमारे लिए इतना ज़रूरी काम नहीं है के मुसलमानो की इतनी रक़म हम अपने ऊपर खर्च करके ज़ाए कर दें,

Read this also हज़रत सुलतान ख्वाजा इबराहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी (Part-2)

आपका लिबास व खाना :- आप के लिबास व खाने में इतनी सादगी थी, अगर गैर मरगूब नापसंदीदा तबियत के न मवाफ़िक़ खाने कितने दिनों तक मुसलसल बराबर आप के पास लाए जाते आप हरगिज़ कभी ये नहीं कहते के इस के सिवा कुछ और लाओ, इसी तरह अगर बहुत दिनों तक कड़पे आप के बदन मुबारक पर रहते और मेले हो जाते, हरगिज़ दूसरे कपड़े नहीं मांगते, ऐसे ही क़याम गाह कितनी ही तंग व तारीक और शिकिस्ता हो जाती उसकी तामीर व सफाई का हुक्म नहीं देते, क्यों के आप दरियाए तस्लीमो रज़ा में मुस्तगरक़ डूबे रहते थे,
इस क़द्र बदन की कमज़ोरी होने के बावजूद हमेशा आप बा वुज़ू और कसरते इबादत में पूरी तरह मशगूल (बिज़ी) रहते थे,
उमर के आखरी हिस्से में ईशा की नमाज़ के बाद आप अपने हुजरे में तशरीफ़ ले जा कर थोड़ी देर मुराक़िब रहते, जब बदन की कमज़ोरी आप को ज़्यादा ग़ालिब होती तो मुराकिबा से उठ कर नया वुज़ू कर के दो रकअत नमाज़ अदा फरमाते और फिर मुराक़बे में मशगूल हो जाते और पूरी रात इसी तरह ख़त्म कर के सुबह कर देते थे,
खाने में एहतियात:
हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह खाने में बहुत ज़्यादा एहतियात फरमाते थे के पाक जगह से क़र्ज़े हसना लेते और उसमे से आप और आप के दुरवेशों के लिए खाना पकता था, नज़राना और हदिया को अक्सर रद्द नहीं करते थे उस में से क़र्ज़ को अदा करते थे, और ताकीद फरमाते थे के खाना बनाने वाला बा वुज़ू हो खाना बनाते वक़्त पूरी एहतियात करे उस वक़्त दुनिया के कलाम में मसरूफ न हो और फरमाते थे जो जो लुक्मा बे एहतियाती से पकाया जाए उस के खाने से धुँआ उठता है जो फैज़ के रास्तों को रोकता है, और अरवाहे तय्यबा फैज़ के वसीले से हैं ऐसे दिल वालों के सामने नहीं होतीं और मुरीदों को इस की एहतियात की बहुत तरग़ीब देते थे,
आप की वालिदा मुहतरमा खाना खुद पकातीं: आप की वालिदा माजिदा निहायत आरिफा और पाक दामन औरतों में से थीं, चूँकि हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की इस एहतियात से वाक़िफ़ थीं, इस लिए बहुत सी खादिमा औरतों की मौजूदगी में आप खुद तन्नूर में रोटियां लगाती थीं, और खुद ही निकालती और सालन भी खुद ही पकाती थीं,

आप का मज़ार मुबारक, क़ुतब रोड नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सदर बाज़ार की तरफ जाते वक़्त बाएं यानि उलटे हाथ पर एक सड़क जाती है जिस का नाम ईद गाह रोड है इसी रोड पर मौजूद है, दिल्ली इंडिया में,

Read this also हुज्जतुल इस्लाम हज़रत मौलाना अश्शाह मुहम्मद हामिद रज़ा खान की हालाते ज़िन्दगी (Part-1)

आप का अज़ीमत पर अमल :- हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का तमाम उमूर में अज़ीमत पर अमल था, समा व रक्सो वज्द को आप के यहाँ दख़्ल नहीं था,
यहाँ तक के एक दुर्वेश ने आप की बारगाह में बा आवाज़े बुलंद पुकार कर कहा “अल्लाह” आप ने फ़रमाया के इससे कहदो के मजलिस के अदब को मलहूज़ रख कर हमारे पास आया करे, आप हनफ़ी मसलक पे अमल पैरा थे,
एक बार आप ने इमाम के पीछे सूरह फातिहा पढ़ना शुरू करदी, अभी चंद रोज़ ही गुज़रे थे के ख़्वाब में इमामुल अइम्मा सिराजुल उम्मा हज़रत सय्यदना इममे अज़ाम अबू हनीफा नोमान बिन साबित कूफ़ी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए जो एक तरफ खड़े हुए अपनी मदह में एक क़सीदा पड़ रहे थे जिससे आप ये समझा रहे थे के मेरे मज़हब में बकसरत के साथ औलियाए किराम हुए हैं, जो इमाम के पीछे सूरह फातिहा नहीं पढ़ते थे, इस वाक़िए के बाद आप ने इमाम के पीछे सूरह फातिहा पढ़ना छोड़ दी और कभी भी हनफ़ी मसलक से एक इंच भी पीछे नहीं हटे,
करामत:
कहते हैं के एक आदमी था खुरासानी जो मुद्दतों से हज़रत ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह की मज़ार मुबारक का मुजावर था रोज़ाना आप के मज़ार पर हाज़िर होता और अर्ज़ करता हुज़ूर मुझे कोई मुर्शिद मिल जाए मुर्शिद मिल जाए जिस रोज़ हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली में तशरीफ़ लाए उसी दिन हज़रत ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह उस के ख्वाब में तशरीफ़ लाए और आप ने फ़रमाया जाओ दिल्ली में सिलसिलाए आलिया नक्शबंदिया का एक पीर आ गया है वो तुम्हारी रहनुमाई करेगा, ये उनकी निशानी पहचान है अब ये खुरासानी मुजावर हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया हुज़ूर मुझे हज़रत ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्रे मुबारक से ये बशारत हुई इशारा मिला है के में आप का मुरीद हो जाऊं उन्होंने मुझे आप के बारे में बताया है, आप ने फ़रमाया नहीं तुम्हे समझने में गलती हो गई देखो मेरे बारे में नहीं कहा जाओ तुम वो कोई और हैं अब ये खुरासानी मुजावर समझा के ये जो कह रहे हैं कोई और ही होगा और वापस चले गए, फिर जा कर अर्ज़ किया तो फिर ख़्वाब में इशारा हुआ आप फरमाने लगे जिन के पास तू गया था वो वही हैं अब ये खुरासानी मुजावर दूसरी बार आए तो “हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह” रहमतुल्लाह अलैह ने टालना चाहा तो ये यही रुक गए और कहने लगे बाबा अब तो तेरे दर से नहीं जाऊँगा चाहे धुत्कार दे जो मरज़ी कर जब आप ने उस की इस्तिक़ामत को देखा और आप को रहम आ गया तो आप ने उस को फैज़ अता फ़रमा दिया और थोड़ी ही मुद्दत में आप की खिदमत में मरतबाए कमाल को पंहुचा,

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए नक्शबंदिया खैरिया, हज़रातुल क़ुद्स, ज़ुुब्दतुल मक़ामात, तज़किराए ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह, दिल्ली के 32, ख़्वाजा, रहनुमाए माज़राते दिल्ली, इरफानियाते बाक़ी, हयाते बाक़ी, ख़ज़ीनातुल असफिया जिल्द, 4, जवाहिरे नक्शबंदिया मज़ाहिरे चौराहिया,

Share Zarur Karein – JazakAllah

Read this also  ग्यारवी सदी के मुजद्दिद हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर की हालाते ज़िन्दगी

Share This