Allah Tala ki Zaat – लकल हमदु या अल्लाहो वस्सलातो वस्सलामो अलैका या रसूल अल्लाह

सवाल : अल्लाह तआला के बारे में कैसा अक़ीदा रखना चाहिए ?

जवाब : Allah Tala ki Zaat – अल्लाह तआला एक है उसका कोई शरीक नहीं – आसमान व ज़मीन और सारी मख़लूक़ात को पैदा करने वाला वही है – वही इबादत का मुस्तहिक़ है दूसरा कोई मुस्तहिके इबादत नहीं – वही सबको रोज़ी देता है – अमीरी गरीबी और इज़्ज़त व ज़िल्लत सब उसके इख़्तिया में है जिसे चाहता है इज़्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत देता है –

उसका हर काम हिकमत है बन्दों की समझ में आये या न आये वो कमाल व खूबी वाला है – झूट ‘दग़ा’ खयानत ‘ ज़ुल्म व जिहल वगैरा हर ऐब से पाक है उसके लिये  किसी ऐब का मन्ना कुफ्र है – लिहाज़ा जो ये अक़ीदा रखे के खुदा झूट बोल सकता है वो गुमराह और बदमज़हब है |

allah tala ki zaat
Bismillahirrahmanirrahim

सवाल : क्या खुदाये पाक को बुढऊ (Old Man) कहना जाइज़ है ?

जवाब : अल्लाह तआला की शान में ऐसा लफ्ज़ बोलना कुफ्र है |

सवाल : बाज़ लोग कहते हैं के ऊपर वाला जैसा चाहेगा वैसा  होगा और कहते हैं ऊपर अल्लाह है नीचे तुम्हो या इस तरह कहते हैं के ऊपर अल्लाह है नीचे पंच हैं |

जवाब : ये सब जुमले गुमराही के हैं मुसलमानो को  इन से बचना निहायत ज़रूरी है !

सवाल : अल्लाह तआला को अल्लाह मियां कहना चाहिए या नहीं ?

जवाब : अल्लाह मियां नहीं कहना चाहिए के मना है – बा हवाला अनवारे शरीअत   

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अक़ीदा – जिस तरह अल्लाह तआला की ज़ात क़दीम, अज़ली और अब्दी है उसी तरह उसकी सिफ़तें भी क़दीम, अज़ली और अब्दी है |

अक़ीदा : अल्लाह की कोई सिफत मख्लूक़ नहीं न ज़ेरे क़ुदरत दाखिल |

अक़ीदा : अल्लाह की ज़ात और सिफ़ात के अलावा सब चीजें हादिस यानी पहले न थी अब मौजूद है |

अक़ीदा : जो अल्लाह की सिफ़तों को मख्लूक़ कहे या हादिस बताये वो गुमराह और बद्दीन है |

अक़ीदा : जो आलम में से किसी चीज़ को खुद को मौजूद माने या उसके हादिस होने में शक करे वो काफिर है |

अक़ीदा : अल्लाह तआला न किसी का बाप है न किसी का बेटा है और न उसके लिए कोई बीवी या कोई अल्लाह के लिए बाप, बेटा या जोरू (बीवी) बताये वो भी काफिर है बल्कि जो मुमकिन भी बताये वो गुमराह बद्दीन है |

अक़ीदा : अल्लाह तआला हय्य है यानी ज़िंदह है जिसे कभी मोत नहीं आएगी सबकी ज़िन्दगी उसी के हाथ (दस्ते क़ुदरत) में है वो जिसे जब चाहे ज़िन्दगी दे और जब चाहे मोत दे दे |

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अक़ीदा : वो हर मुमकिन पर क़ादिर है और कोई मुमकिन उसकी क़ुदरत से बहार नहीं जो चीज मुहाल हो, अल्लाह तआला उससे पाक है की उसकी क़ुदरत उससे शामिल हो क्यूंकि मुहाल उसे कहते हैं जो मौजूद न हो सके और जब उस पर क़ुदरत होगी तो मौजूद हो सकेगा और जब मौजूद हो सकेगा तो फिर मोहाल कैसे हो सकेगा इसे इस तरह समझिए जैसे की दूसरा खुदा मुहाल है

यानी दूसरा खुदा हो ही नहीं सकता अगर दूसरा खुदा होना क़ुदरत के मातहत हो तो मौजूद हो सकेगा और जब मौजूद हो सकेगा तो मुहाल नहीं रहा और दुसरे खुदा को मुहाल न मानना अल्लाह के एक होने का इंकार है | यूँही अल्लाह तआला का फ़ना हो जाना मुहाल है अगर अल्लाह के फ़ना होने को क़ुदरत में दाखिल मना जाये तो अल्लाह के अल्लाह होने से ही इंकार करना है |

एक बात ये भी समझने की है की हर वो चीज़ जो अल्लाह की क़ुदरत को मातहत हो ही वो मौजूद हो जाये ये कोई ज़रूरी नहीं | जैसे की यह मुमकिन है की सोने चांदीकी ज़मीन हो जाये लेकिन ऐसा हो जाना हर हाल में मुमकिन रहेगा चाहे ऐसा कभी नाहो |

अक़ीदा : अल्लाह हर कमाल और खूबी का जामे है यानी उसमे सारी खूबियां हैं और अल्लाह हर उस चीज से पाक है जिसमे कोई भी ऐब, बुराई या कमी हो यानी उसमे ऐब और नुकसान का होना मुहाल है |बल्कि जिसमे न कोई कमाल हो और न कोई नुकसान वो भी उसके लिए मुहाल है मिसाल के तोर पर झूट बोलना, दग़ा देना, खियानत करना, ज़ुल्म करना और जिहालत और बेहयाई वगैरह ऐब अल्लाह के लिए मुहाल है | और ये कहना की झूट पर क़ुदरत इस माना कर की वो खुद झूट बोल सकता है

मुहाल को मुमकिन ठहराना और खुदा को ऐबी बताना है बल्कि खुदा का इंकार करना है और ये समझना की वो मुहाल पर क़ादिर न होगा तो उसकी क़ुदरत नाक़िस रह जाएगी बिलकुल बातिल है यानी बेअस्ल और बेकार की बात है की उसमे क़ुदरत का क्या नुकसान है | कमी तो उस मुहाल में है कि क़ुदरत से तअल्लुक़ की उसमे सलाहियत नहीं |

अक़ीदा :  हयात, क़ुदरत, सुन्ना, कलाम, देखना, इल्म और  इरादा उसकी जाती और सिफ़तें हैं मगर आँख कान और ज़ुबान से उसका सुन्ना, देखना और कलाम करना नहीं  कियुँकि ये सब जिस्म हैं वो जिस्म से पाक है अल्लाह हर धीमी से धीमी आवाज़ को सुनता है | वो ऐसी बारीक़ चीज़ों को भी देखता है  जो किसी भी खुर्दबीन या दूरबीन से न देखी जा सके | बल्कि उसका देखना और सुन्ना इन्ही चीजों पर मुन्हसिर नहीं बल्कि वो हर मौजूद को देखता है और सुनता है|

“हवाला बहारे शरीयत जिल्द अव्वल”

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