आपकी विलादत ब सआदत :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह आपकी पैदाइश 1294 हिजरी 1877 ईस्वी में पकिस्तान के “ज़िला ज़िया” कोट में बा मक़ाम “किलास वाला” में हुई (सियाल कोट को “ज़ियाउद्दीन” की निस्बत से “ज़िया कोट” कहते हैं आप रहमतुल्लाह अलैह हज़रते सय्यदना अबू बक़र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु की औलाद में से हैं आपने शुरू की तालीम ज़िया कोट (सियाल कोट) में हासिल की | फिर मरकज़ुल औलिया लाहौर शरीफ और 22 ख्वाजा की चौखट दिल्ली शरीफ में कुछ असरे तालीम हासिल करते रहे | फिर इसके बाद पीलीभीत शरीफ (हिन्दुस्तान) में हज़रते अल्लामा मौलाना वसी अहमद मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में तक़रीबन 4 साल रहकर उलूमे दीनिया हासिल किए और “दौरए हदीस” के बाद सनदे फरागत हासिल की अल्हम्दुलिल्लाह इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते करामत से सय्यदी क़ुत्बे मदीना की दस्तार बंदी फ़रमाई आप रहमतुल्लाह अलैह ने इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह से बैअत भी की और सिर्फ 18 साल की उम्र में इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह ने आपको खिलाफत की सनद भी अता फ़रमाई |
Read this also ग्यारवी सदी के मुजद्दिद हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर की हालाते ज़िन्दगी
कराच से बग़दाद शरीफ :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह तक़रीबन 24 साल की उम्र में अपने पिरो मुर्शिद इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से रुखसत होकर 1318 हिजरी मुताबिक़ 1900 ईस्वी को कराची तशरीफ़ ले गए कुछ अरसा यही गुज़ार कर सय्यदना हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से खुसूसी फ्यूज़ व बरकात हासिल करने के लिए बगदादे मुअल्ला तशरीफ़ ले गए | और आप बग़दाद शरीफ में तक़रीबन 4 साल इस्तगराक़ (डूब जाना गहरी दिलचस्पी) की कैफियत रही और मजज़ूब रहे और आप बग़दाद शरीफ में 9 साल कुछ महीने क़याम फ़रमाया |
मदीना शरीफ में आपकी हाज़री :- 1327 हिजरी मुताबिक़ 1910 ईस्वी में सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह बग़दाद शरीफ से बरास्ता दमिश्क़ मुल्के शाम बा ज़रिया रेलगाड़ी मदीना तय्यबा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा हाज़िर हुए उन दिनों वहां तुर्कों की खिदमत (हुकूमत) थी |
7 दिन का फ़ाक़ा :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं जब में मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा हाज़िर हुआ तो शुरू के दिनों में ऐसा वक़्त भी आया के मुझ पर 7 दिन का फ़ाक़ा गुज़रा | सातवे दिन जब में भूक से निढाल हो गया तो मेरे पास एक पुर हैबत बुज़रुग तशरीफ़ लाए और उन्होंने मुझे तीन मशकीज़े दिए | एक में शहिद, दुसरे में आटा और तीसरे में घी था | मशकीज़े देते हुए ये कहते हुए तशरीफ़ ले गए के में अभी बाजार से मज़ीद अशिया (चीज़ें) लाता हूँ | थोड़ी देर बाद चाय का डिब्बा और चीनी वगैरह लाकर मुझे दिए और फ़ौरन वापस चले गए | में पीछे लपका की उनसे तफ्सीलात मालूम करूँ मगर वो गायब हो चुके थे सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अर्ज़ किया गया आपके ख्याल में वो कौन थे? उन होंने फ़रमाया: मेरे गुमान में वो मदीने के सुलतान रहमते आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा जान सय्यदुश शुहदा सय्यदना अमीर हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु थे क्यूँकि मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की विलायत उन्ही के सुपुर्द है |
Read this also हज करने की क्या क्या फ़ज़ीलतें हैं? तफ्सील से पढ़ें(Part-1)
प्यारे इस्लामी भाइयो :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रते सय्यदुश शुहदा सय्यदना अमीर हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु से वालिहाना (प्यार मुहब्बत) अक़ीदत रखते थे और हर साल 17 रमज़ानुल मुबारक को हज़रते सय्यदुश शुहदा सय्यदना अमीर हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु का उर्स मनाते और एक रोज़ा हज़रते सय्यदुश शुहदा सय्यदना अमीर हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु के मज़ारे पुर अनवार पर अफ्तार फरमाते थे |
मरहबा मरहबा की सदा बुलंद फरमाते :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह पैकरो इल्मो अमल थे | अपने घर से निकले और बगदादी मुअल्ला के क़याम और मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में इक़ामत के दौरान जिस क़द्र आप पर इम्तिहानात पेश आये उनपर सबरो तहम्मुल आप रहमतुल्लाह अलैहि का हिस्सा था | आप निहायत ही ख़लीक़ यानि बा अख़लाक़ और मिलनसार थे | अक्सर जब आपकी खिदमत में कोई हाज़िर होता तो “मरहबा मरहबा की सदा बुलंद फरमाते” अल्हम्दुलिल्लाह सगे मदीना (राकीमुल हुरूफ़) भी जब हाज़िरे खिदमत होता तो कई बार आप “मरहबा भाई इल्यास मरहबा भाई इल्यास” फरमाकर दिल को बाग़ बाग़ बल्कि बागे मदीना बनाया है | आप रहमतुल्लाह अलैह निहायत ही मुतावाज़े और मुन्कसीरुल मिजाज़ (जिसके मिजाज़ में इंकिसार हो आजिज़ी करने वाला) थे सगे मदीना ने कई बार देखा है के आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में दुआ की दरख्वास्त पेश की जाती तो इरशाद फरमाते “मेतो दुआ गो भी हूँ और दुआ जो भी यानि दुआ करता भी हूँ और आपसे दुआ का तलबगार भी हूँ |
रोज़ाना महफिले मिलाद :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह को ताजदारे मदीना सलल्लाहु आलिहि वसल्लम से जुनून की हद तक इश्क़ था बल्कि ये कहना बेजा न होगा के आप फना फिर रसूल सलल्लाहु आलिहि वसल्लम के आला मनसब पर फ़ाइज़ थे | ज़िक्रे रसूल सलल्लाहु आलिहि वसल्लम ही आपका रोज़ो शबाना मशगला (काम) था | अक्सर ज़्यारत के लिए आने वाले से इस्तिफ़सार फरमाते: आप नअत शरीफ पढ़ते हैं? अगर वो हाँ कहता तो उससे नअत शरीफ समाअत फरमाते और खूब महज़ूज़ होते | कई बार जज़्बाती तास्सुर से आँखों में अश्क़ जारी हो जाते | सारा ही साल रोज़ाना रात को आस्तानए आलिया पर “महफिले मिलाद का इनकाद होता “जिसमे मदनी, तुरकी, पाकिस्तानी, हिंदुस्तानी, शामी, मिसरी, अफ्रीकी, सूडानी, और दुनिया भर से आए हुए ज़ायरीन शिरकत करते | अल्हम्दुलिल्लाह सगे मदीना ने एक ख़ास बात सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह की महफ़िल में ये देखि के आप इख़्तिताम पर बतौर तवाज़ो दुआ नहीं फरमाते थे बल्कि किसी न किसी शरीके महफ़िल को दुआ का हुक्म फरमा देते एक दो बार मुझे सगे मदीना को क़ुत्बे मदीना ने इख़्तितामे महफिले मिलाद पर दुआ करवाने की सआदत हासिल हुई दुआ के बाद लाज़मी लंगर शरीफ भी होता था |
Read this also ज़िल क़ादा के महीने में किस बुज़ुर्ग का उर्स किस तारीख को होता है?
तमअ (लालच) नहीं मना नहीं और जमा नहीं :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह एक करिमुन नफ़्स और शरीफुल फितरत बुज़रुग थे उनकी क़ुरबत से में उन्स व मुहब्बत के दरिया बहते थे और सल्फ सालिहीन रहमतुल्लाह तआला अलैहिम की याद ताज़ा हो जाती | आप रहमतुल्लाह अलैह सखी और बहुत अता फरमाने वाले थे | आप रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाया करते थे “तमअ नहीं, मना नहीं और जमा नहीं” यानि लालच मत करो के कोई दे और अगर कोई बगैर मांगे दे तो मना मत करो और जब लेलो तो जमा मत करो | जब आप रहमतुल्लाह अलैह को कोई इत्र पेश करता तो खुश होकर इस तरह दुआ देते | “अल्लाह पाक तुम्हारे दिनों को मुअत्तर यानि खुशबूदार करे” | आपको शहंशाहे उमम सरकारे दो आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम और सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से बेहद उल्फत थी |
गौसे आज़म ने मदद फ़रमाई :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं एक बार मुझ पर फालिज का शदीद हमला हुआ और मेरा आधा जिस्म मफ़लूज हो गया अलालत यानि बिमारी इस क़द्र बढ़ी के सब लोग यही समझे के अब ये ज़िंदाह नहीं बचेंगे | एक रात मेने रोरोकर बारगाहे सरवरे कायनात सलल्लाहु अलैहि वसल्लम में फर्याद की | या रसूलल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे मेरे पिरो मुर्शिद, इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने खादिम बनाकर हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के आस्ताने पर भेजा है अगर य बीमारी किसी की खता की सज़ा है तो मुर्शिदी का वास्ता मुझे माफ़ फरमा दीजिए | इसी तरह हुज़ूर गौसे पाक और ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैहिमा की सरकारों में भी इस्तिगासा पेश किया यानि फर्याद की | जब मुझे नींद आगयी तो क्या देखता हूँ के मेरे पिरो मुर्शिद सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह दो नूरानी बुज़ुर्गों के साथ तशरीफ़ लाए हैं | आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने एक बुजरुग की तरफ इशारा करते हुए फ़रमाया “ज़ियाउद्दीन” देखो ये हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह हैं और दुसरे बुजरुग की तरफ इशारा करते हुए फ़रमाया ये हुज़ूर ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह हैं हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने मेरे जिस्म के मफ़लूज यानि बदन का वो हिस्सा जिस जगह फालिज था उससे हिस्से पर अपना दस्ते शिफा फिरा और फ़रमाया उठो में खवाब में ही खड़ा हो गया अब ये तीनो बुजरुग नमाज़ पढ़ने लगे फिर मेरी आँख खुल गई अल्हम्दुलिल्लाह में तंदुरुस्त हो गया | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उनपर रहमत हो और उन के सदक़े हमारी मगफिरत हो |
Read this also सहाबिये रसूल हज़रत अमीर मुआविया के बारे में कैसा अक़ीदा रखना चाहिए?
इम्दादे मुस्तफा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह फरमाते हैं मुझे महफिले मिलाद करने के जुर्म में मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से निकालने की कई बार कोशिश की गई लेकिन बारगाहे रिसालत सलल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाज़िर होकर फर्याद करता तो कोई न कोई सबब मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में हाज़िर रहने का बन जाता | एक बार तो पुलिस ने मेरा सामान घर से उठाकर बाहर फेंक दिया में परेशान होकर गली में खड़ा था | सिपाहियों की नज़रें जैसे ही गाफिल हुईं में तड़पता हुआ रोज़ए अनवर पे हाज़िर हो गया और रोरोकर फर्याद की जब दिल का बोझ हल्का हुआ में वापस अपनी गली में पंहुचा तो पुलिस ने खुद ही सामान अंदर रख दिया था और मुझे बताया गया के आपकी शहर बदरी का ऑडर मंसूख यानि केन्सिल कर दिया गया है |
Read this also हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम और ज़ुलैख़ा का वाक़्या और आपकी हालात ऐ ज़िन्दगी
गाए बाना हस्तियों की आमद :- सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह पर विसाल से दो माह पहले कुछ अजीब सी कैफियत तारी थी | कुछ इरशाद फरमाते तो समझ में नहीं आता | बाज़ औक़ात बार बार फरमाते आइए किब्लए मन तशरीफ़ लिए एक बार हाज़रीन ने देखा के आप हाथ जोड़कर किसी से इल्तिजा कर रहे हैं मुझे मुआफ फरमा दीजिए कमज़ोरी की वजह से में तअज़ीम के लिए उठ नहीं पा रहा कुछ देर के बाद हाज़रीन के इस्तिफ़सार यानि पूछने पर इरशाद फ़रमाया: अभी अभी हज़रते सय्यदना ख़िज़र अलैहिस्सलाम हुज़ूर सरकारे बग़दाद सय्यदना गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह और मेरे पिरो मुर्शिद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए थे |
Read this also हज़रत सय्यदना गंज बख्श खट्टू रदियल्लाहु अन्हु की हालाते ज़िन्दगी
विसाल शरीफ और जनाज़ाए मुबारका :- 3 ज़िल हिज्जा 1401 हिजरी मुताबिक़ 1981 बरोज़ जुमा मस्जिदे नबवी के मुअज़्ज़िन ने “अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर” सय्यदी क़ुत्बे मदीना अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह ने कलमा शरीफ पढ़ा और आपकी रूह क़फसे उन्सुरी से परवाज़ कर गई बादे ग़ुस्ल कफ़न बिछाकर सरे अक़दस के नीचे सरकारे मदीना सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुजरे शरीफ की ख़ाक मुबारक राखी गई आमिना रदियल्लाहु अन्हु के दिलबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्र अनवर का गुसाला शरीफ और मुख्तलिफ तबर्रुकात डाले गए फिर कफ़न शरीफ बंधा गया असर की नमाज़ के बाद दुरूद व सलाम और क़सीदऐ बुरदा शरीफ की गूँज में जनाज़ाए मुबारका उठाया गया बिला आखिर बेशुमार सोगवारों की मौजूदगी में अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह को उनकी आरज़ू की मुताबिक़ “जन्नतुल बक़ी” उस हिस्से में जहां अहले बैत आराम फरमा हैं वहां सय्यदा फातिमा के मज़ारे पुर अनवार से सिर्फ दो गज़ के फासले पर सुपुर्दे ख़ाक किया गया | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उन के सदक़े हमारी मगफिरत हो |
(सिरते सय्यदी क़ुत्बे मदीना)
Share Zarur Karein – JazakAllah
Read this also – सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की हालाते ज़िंदगी और आपकी करामात