सवाल :- अस्हाबे कहफ़ की तादाद कितनी है और उनके नाम क्या हैं?
जवाब :- ये सात हज़रात थे उनके नाम नीचे लिखे है
- मक्सलमीना
- यमलीखा
- मरतुनुस
- बेनूनूस
- सारेनूनूस
- जुनवानुस
- कश्फीत तनूनूस ( ख़ज़ाईनुल इरफ़ान)
और हाशिया जलालैन सफा नंबर 243 पर उनके नाम इस तरह हैं :
- यमलीखा
- मकसलमीना
- मश्लीना
- मरनुष
- वबरनूश
- शादनुष
- कफतीशी तुलूस
एक दुसरी रिवायत में है उनकी तादात नौ है और नाम यूं हैं :
- फहशलमीन
- तमलीख
- मरतुनस
- कश्तूनस
- बेरूनस
- दलीमूस
- बतूनस
- काबूस
- मिक्सलमीन
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ किस शहर के रहने वाले थे ?
जवाब :- ये हज़रात शहर अफ़सोस के शुरफ़ा मुअज़्ज़िज़ीन में से ईमानदार लोग थे | इस्लाम में इस शहर का नाम तरतूस रखा गया बाज़ का कहना है की रूम के शहर में है बाज़ का ये कहना है की ये “ऐला” के क़रीब है और बाज़ बिलका और नैनवा के पास बी बताते है
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ में सबसे बड़े साहब का नाम क्या है?
जवाब :- इसका नाम मिक्सलमीना है
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ किस नबी की शरीयत परअमल पैरा थे ?
जवाब :- ये लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की शरीयत पर अमल पैरा थे बाज़ कहते है की यहूद की किताब में अस्हाबे कहफ़ का ज़िक़्र मौजूद है और यहूद की किताब नस्रानीयत से पहले की है बस मालूम हुआ की आप लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से पहले के है
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ जिस बादशाह के ज़ुल्म व जबर से तंग आकर गार में जा छिपे थे उसका नाम किया था ?
जवाब :- उसका नाम दकियानूस था
सवाल :- इस गार का क्या नाम है जिस में अस्हाबे कहफ़ पन्हा गुज़ी हुए थे ?
जवाब :- उस गार का नाम हैजून कहा गया है बाज़ ने बेजलूस कहा और बाज़ ने नेजलूस बताया है
सवाल :- उस पहाड़ का क्या नाम है जिसमे अस्हाबे कहफ़ का गार है ?
जवाब :- उस पहाड़ का नाम या तो रक़ीम है या बखलूस है
सवाल :- उस वादी का क्या नाम है जिसमे अस्हाबे कहफ़ का गार और पहाड़ है?
जवाब :- हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा ने फ़रमाया की इस वादी का नाम रक़ीम है
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ के कुत्ते का नाम क्या है ?
जवाब :- उस का नाम कतमीर है शोएब जबाई कहते है की उस का नाम हमरान है
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ के कुत्ते का रंग कैसा है?
जवाब :- उस का रंग पीला है बाज़ ने गंदुमी रंग बताया है
सवाब :- असहाबे कहफ़ का कुत्ता किसका था और ये कुत्ता उन लोगो के हमराह क्यों हुआ ?
जवाब :- बाज़ कहते है की ये उन्ही असहाब में से किसी का शिकारी कुत्ता पला हुआ था एक कॉल ये भी है की बादशाह के बावर्ची का ये कुत्ता था क्योकि वो भी उनके हम मसलक था और उनके साथ हिजरत में था हिजरत के वक़्त ही उनका ये कुत्ता उनके पीछे हो लिया था
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ गार में किस वक़्त दाखिल हुए थे और जब बेदार हुए तो वो कौनसा वक़्त था ?
जवाब :- ये लोग गार के तुलू आफताब के वक़्त दाखिल हुए थे और जब उठे तो आफताब करीब ग़ुरूब था
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ कितने दिनों तक सोते रहे ?
जवाब :- शम्सी तारीख के एतिबार से ये लोग तीन सौ साल तक सोये और बाएतिबार क़मरी तीन सौ नौ साल
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ किस सन में सोये थे और किस सोन में बेदार हुए?
जवाब :- ये लोग 249 इसवी में सोए और सन 549 ईस्वी में बेदार हुए उनके बेदार होने का वाक़िया हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वस्सलाम की विलादत से तक़रीबन इक्कीस बरस पहले पेश आया था आप सल्लल्लाहु अलैहि वस्सलाम की विलादत सन 570 ईस्वी में हुई
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ की बेदारी के वक़्त जो बादशाह हुक्मरा था उसका नाम क्या था?
जवाब :- उस बादशाह का नाम बेदरूस था बक़ौल दीगर उसका नाम तंद व सीस था
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ के सोने और जागने के वाक़िये की तफ्सील क्या है?
जवाब :- उलमा तफ़्सीर व मुअर्रिख़ीन वाक़िआ यूं बयान करते हैं : हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद अहले इंजील की हालत अब्तर हो गयी | वो बुतपरस्ती में मुब्तला हुए और दूसरों को बुतपरस्ती पर मजबूर करने लगे | उनमे बादशाह बड़ा जाबिर था | जो बुतपरस्ती पर राज़ी न होता उसको क़त्ल कर डालता | अस्हाबे कहफ़ शहर अफ़सोस के शरीफ और मुअज़्ज़िज़ ईमानदार लोगों में से थे | रूमी बादशाह की औलाद और रूम के सरदार थे | एक मर्तबा कौम के साथ ईद मानाने गए | उनहोंने जब वहाँ शिर्क व बुतपरस्ती का तमाशा देखा तो उनके दिल में ख़याल आया की बुतपरस्ती महज़ लगव और बातिल चीज़ है | इबादतें सिर्फ नाम खुदा पर होनी चाहिए जो आसमान व ज़मीन का खालिक व मालिक है | बस ये लोग एक एक करके यहां से सरक ने लगे उनमे से एक साहब पेड़ के निचे जाकर बैठ गए दुसरे भी यहीं आगये | तीसरे भी आये फिर चौथे भी | गरज़ एक एक करके सब यहीं जमा हो गये | हांलाकि एक दुसरे में जान पहचान ना थी लेकिन ईमान की रौशनी ने एक दुसरे को मिला दिया सब खामोश थे | एक को एक से दर था की अगर में अपने अंदर की बात को बता दूँ तो ये दुश्मन हो जाएंगें | कि किसी को भी दुसरे के बारे में मालूम न था कि वो भी इसी तरह कौम की इस अहमकाना और मुश्रिकाना रस्म से बेज़ार हैं |
आखिर एक दाना और जरी नौजवान ने कहा दोस्तों कोई न कोई बात ज़रूरी है की हम लोगों के इस आम शुगल को छोड़ कर तुम उनसे यक्सू होकर यहां आ बैठे हो | मेरा तो दिल चाहता है की हर शख्स इस बात को ज़ाहिर करदे जिसकी वजह से उसने कौम को छौड़ा है इस पर एक ने कहा भाई बात यह है की मुझे अपनी कौम की यह रस्म एक आँख नहीं भाति जबकि आसमान व ज़मीन का और हमारा तुम्हारा ख़ालिक़ सिर्फ अल्लाह वह्दहू ला शरीक ही है तो फिर हम उसके सिवा दुसरे की इबादत कियूं करें | यह सुनकर दुसरे ने कहा खुदा की क़सम यही नफरत मुझे यहां लाइ है तीसरे ने भी यही कहा जब हर एक ने यही वजह बयान की तो सबके दिल में मुहब्बत की एक लहिर दौड़ गयी | और ये सब रोशन ख़याल मवाहिद आपस में सच्चे दोस्त और माँ जाए भाइयों से भी से ज़्यादा एक दुसरे के खैर खाव्ह बन गए आपस में इत्तिफ़ाक़ हो गया अब उन्हों ने एक जगह मुकर्रर कर ली |
वहीँ खुदाए वाहिद की इबादत करने लगे धीरे धीरे कौम को भी पता चल गया वो इन सब को पकड़ कर उस ज़ालिम और मुशरिक बादशाह के पास ले गए और शिकायत पेश की |बादशाह ने उनसे पूछा तो उनहोंने निहायत दिलेरिसे अपनी तौहीद और अपना मसलक बयान किया बल्कि बादशाह और अहले दरबान को भी इसकी दावत दी |बादशाह बहुत बिगड़ा और उन्हें डराया धमकाया और हुक्म दिया की इनके लिबास उतारलो और अगर ये बाज़ न आएं तो में सख्त सजा दूंगा
अब इन लोगों के दिल और मज़बूत हो गये साथ में उन्हें ये भी मालूम हो गया की यहां रहकर हम दीनदारी पर क़ाइम नहीं रह सकते इसलिए उन्होंने क़ौम देस और रिश्ते, कुनबे को छोड़ने का इरादा पक्का कर लिया और एक दिन मौका पा कर यहां से भाग निकले | और क़रीब के एक पहाड़ में एक गार में पनाह गुज़ीं हुए वहाँ वो सो गये और तीन सौ साल से ज़्यादाअरसे तक इसी हाल में रहे बादशाह को जुस्तुजू से मालूम हुआ की वो लोग गार के अंदर हैं तो उसने हुक्म दिया की गार को एक संगीन दिवार खींचकर बंद करदिया जाये ताकि वो इसमें मरकर रह जाएँ | और वो उनकी क़ब्र हो जाये यही उनकी सजा है
उम्माले हुकूमत में से यह काम जिसके सुपुर्द किया गया वो नेक आदमी था | उसने उन असहाब के नाम, तादाद और पूरा वाकिया रंग की तरह तख्ती पर कुंदा कराकर तांबे के संदूक में दिवार की बुनियाद के अंदर महफूज़ कर दिया | यह भी बयान किया गया है की इस तरह की एक तख्ती शाही ख़ज़ाने में भी महफूज़ करा दी गयी कुछ अरसे के बाद ये ज़ालिम बादशाह हलाक हुआ | ज़माने गुज़रे सल्तनते बदलीं यहां तक की एक बादशाह फार्मबरदार हुआ | फिर मुल्क में फिरका बंदी पैदा हुई और बाज़ मरने के बाद उठने और क़यामत आने के मुनकिर हो गए | बादशाह एक तनहा मकान में बंद हो गया | और उसने गिरया व ज़ारी से बारगाहे इलाही में दुआ की या रब कोई ऐसी निशानी ज़ाहिर फरमा जिससे लोगों को मुर्दे के उठने और क़यामत का यक़ीन हासिल हो |
इसी ज़माने में एक शख्स ने अपनी बकरीयों के लिए आराम की जगह हासिल करने के वास्ते इसी गार को तैय किआ |और दिवार गिरा दी दिवार गिरने के बाद कुछ ऐसी हैबत तारी हुयी की गिराने वाला भाग गया |
अस्हाबे कहफ़ अल्लाह के हुक्म से खुशहाल उठे, चेहरे शगुफ्ता, तबीयतें खुश और ज़िन्दगी में तरोताज़गी मौजूद एक ने दुसरे को सलाम किया नमाज़ के लिए खड़े हो गए फारिग होकर एक से कहा आप जाईये और बाजार से कुछ खाने को भी लाईये और ये भी खबर लाईये की दक्यानूस
बादशाह का हमारे बारे में क्या इरादा है | वो बाजार गए और शहर पनाह के दरवाज़े पर इस्लामी अलामत देखी नए नए लोग पाए | उन्हें ईसा अलैहिस्सलाम के नाम की क़सम खाते सुना | तअज्जुब हुआ की यह किया मुआमला है कल तो कोई ईमान ज़ाहिर नहीं कर सकता था और आज इस्लामी अलामतें शहर पनाह पर ज़ाहिर हैं लोग बेखौफ व खतर हज़रत के नाम की कस्मे खाते हैं उन्हें इन बातों से हैरत इसलिए हो रही थी की वे अपने नज़दीक यही समझे हुए थे की हमें यहाँ पहुंचे एक आध दिन गुज़रा है
हालांकि इस दौरान ज़माने गुज़र चुके थे, सदिया बीत गयी थी | फिर रोटी वाले की दूकान पर गए | खाना खरीदने के लिए उसको दक़ियानूसी सिक्के का एक रुपया दिया जिसका चलन सदियों से मौक़ूफ़ हो गया था और उसका देखने वाला भी बाकी न रहा है | दुकानदार ने उस सिक्के को देखकर सख्त ताज्जुब किया | और उसे अपने पडोसी को दिया और कहा, मियां देखना, ये सिक्का कब का है और किस ज़माने का है ? उसने दुसरे को दिया, दुसरे से किसी और ने देखने को मांग लिया |अल्गर्ज़ वह एक तमाशा बन गया |बाजार वालों ने ख़याल किया की कोई पुराना खज़ाना उनके हाथ लग गया | उन्हें पकड़ कर हाकिम के पास ले गए | वह नेक आदमी था |उसने भी उनसे पुछा की खज़ाना कहाँ है ?
उन्होंने कहा, खज़ाना कही नहीं है ये रुपया हमारा अपना है हाकिम ने कहा ये बात किसी तरह यक़ीन के क़ाबिल नहीं इसमें जो सन मौजूद है वह तीन सो बरस पहले का है और आप नौजवान है और हम लोग बूढ़े है हमने तो कभी ये सिक्का देखा नहीं आपने फ़रमाया की जो में पूछू ठीक ठीक बताओ तो मसअला हल हो जायेगा ये बताओ की दकिये नूस बादशाह किस हाल ख्याल में है हाकिम ने कहा आज रूहे ज़मीन पर इस नाम का कोई बादशाह नहीं, सैकड़ो बरस हुए जब एक बेईमान बादशाह इस नाम का गुज़रा है आप ने फ़रमाया कल ही तो हम उसके खौफ से जान बचाकर भागे है मेरे साथी करीब के पहाड़ में एक गार में पनाह लिए है चलो में उन्हें तुम से मिला दू |
हाकिम शहर के अमाइड और भीड़ उनके साथ सरे गार पहुंचे | उधर अस्हाबे कहफ़ अपने साथी के इंतज़ार में थे बहुत से लोगो की आवाज़ और खटके सुनकर समझा की साथी पकड़ा गया और दक़ियानूसी फ़ौज हमारी तलाश में आ रही है | अल्लाह की हम्द और शुक्र बजा लाने लगे | इतने में ये लोग पहुंचे और साथी ने सारा किस्सा सुनाया | इन हज़रात ने समझ लिया की हम अल्लाह के हुक्म से इतना तवील ज़माना सोये और अब इसलिए उठाये गए है की लोगो के लिए बाद मौत जिन्दा किये जाने की दलील और निशानी हो | हाकिम सरे गार पहुंचा तो उसने ताम्बे का संदूक देखा | उसको खोला तो तख्ती बरामद हुई | उसमे इन असहाब के नाम और उस कुत्ते का नाम लिखा हुआ था ये भी लिखा था की ये जमात अपने दीन की हिफाज़त के लिए दक़िया नूस के डर से इस गार में पनाह गुज़ी हुए | ये तख्ती पढ़कर सबको ताज्जुब हुआ और लोग अल्लाह की हम्द व सना बजा लाये की उसने ऐसी निशानी ज़ाहिर फरमा दी जिससे मौत के बाद उठने का यक़ीन हासिल होता है |
हाकिम ने अपने बादशाह को इत्तला दी वह उमरा और वज़ीरो को लेकर हाज़िर हुआ और सजदा शुक्र इलाही बजा लाया की अल्लाह तआला ने उसकी दुआ कबूल की | अस्हाबे कहफ़ ने बादशाह से मुआनका किया और फ़रमाया की हम तुम्हे अल्लाह के सुपुर्द करते है और अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाही वबरकातु अल्लाह तेरी और तेरे मुल्क की हिफाज़त फरमाए और जिन व इंसान के शर से बचाये | बादशाह खड़ा ही था की वो हज़रात अपनी खुआबगअहो में वापस होकर मसरूफ़े खुवाब हुए अल्लाह तआला ने उन्हें वफ़ात दी बादशाह ने साल के संदूक में उनके बदनो को मेहफ़ूज़ किया और अल्लाह तआला ने रॉब से उनकी हिफाज़त फ़रमाई की किसी की मजाल नहीं की वहां पहुंच सके | बादशाह ने सारे गार मस्जिद बनाने का हुक्म दिया और ख़ुशी का दिन तये किया की हर साल लोग ईद की तरह वहां आया करें
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ में से बाजार सौदा लेने कौन गया था?
जवाब :- यमलीखा गया था (इस्लामी हैरत अंगेज़ मालूमात)
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ साल में कितनी बार करबट लेते है और किस तारीख को?
जवाब :- साल में एक मर्तबा दसवीं मुहर्रम को करवट लेते है एक कॉल के मुताबिक साल में दो मर्तबा करवट लेते है और बाज़ कहते है की हर नो साल के बाद
सवाल :- अस्हाबे कहफ अब किस ज़माने में बेदार होंगें ?
जवाब :- इमामे रब्बानी महबूबे रहमानी मुजद्दिदे अल्फसानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं की अस्हाबे कहफ इमाम मेहँदी के ज़माने में बेदार होंगे और आप के हमराह जिहाद करेंगे |
सवाल :- अस्हाबे कहफ़ के नामों के फवाइद क्या हैं ?
जवाब :- हज़रते इब्बने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से उनके नामों के बहुत से फवाइद मन्क़ूल हैं :
- ये नाम लिखकर दरवाज़े पे लगा दिए जाएँ तो मकान जलने से महफूज़ रहता है |
- सरमाये पर रख दिए जाएँ तो चोरी नहीं होता
- किश्ती या ज़हाज़ इनकी बरकत से ग़र्क़ नहीं होती |
- भागा हुआ शख्स इनकी बरकत से वापस आजाता है |
- कहीं आग लगी हो तो इन नामों को कपडे में लिख कर आग में दाल दिया जाए तो वो आग बुझ जाती है |
- अगर कोई बच्चा ज़्यादा रोता है तो इन नामो को लिख कर सरके नीचे रख दिया जाए तो रोना बंद हो जाएगा |
- अगर बारी का बुखार आता है तो इन नामो को लिख कर तावीज़ के तरीके पर बाज़ुओं पर बांधें तो बुखार बंद हो जायेगा |
- दर्द सर |
- उम्मे सुबयान |
- खुश्की व तरी के सफर में जान व माल की हिफाज़त के लिए |
- अक़्ल की तेज़ी |
- कैदियों की आज़ादी के लिए इन नामो को अपने पास रखना मुफीद है |
- खेती की हिफाज़त के लिए इन नामो का तावीज़ लकड़ी में बाँध कर खेत के बीच में इसे गाड़ दिया जाए |
- अगर किसी हाकिम व अफसर के पास जाना हो तो इन नामो का तावीज़ राण पर बाँध कर जाएँ हाकिम नरम दिल होगा |
- अगर किसी बच्चे की विलादत में परेशानी होर ही हो ये नाम लिख कर औरत की बांये रान पर बाँध दिए जाएँ तो विलादत में आसानी होगी
(ख़ज़ाईनल इरफ़ान | हाशिया जलालेन) – (इस्लामी हैरत अंगेज़ मालूमात)
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Share Zarur Karein – JazakAllah
Mashallah mashallah aap ki is behtreen mallomat ko ham tk pahuchane ke liye bht bht shuqriya… Allah apko khu. Tarakki de inke sadke me.. Ameen
Muze 1 sawal puchna tha… Muze aqal ki tezi ki kese in naamo se fayeda lena h zara bta dijiye