पेशे हक़ मुज़्दा शफ़ाअत का सुनाते जायेंगे
आप रोते जायेंगे हमको हंसाते जायेंगे
वुसअतें दी हैं खुदा ने दामने मेहबूब को
जुर्म खुलते जायेंगे और वो छुपाते जायेंगे
By - Aala Hazrat Imam Ahmed Raza
अक़ीदा :- हज़रत मुहम्मद सल्लाल्ल्हु अलैहि वस्सलम के अलावा दुसरे नबियो को किसी एक खास कौम के लिए भेजा गया और हुजूर सल्लाल्ल्हु अलैहि वस्सलम तमाम मखलूक, इंसानो, जिन्नो, फ़रिश्तो, हैवानात और जमादात सब के लिए भेजे गए | जिस तरह इंसान के ज़िम्मे हुज़ूर की इताअत फर्ज और ज़रूरी है इसी तरह हर मखलूक पर हुज़ूर की फरमाबरदारी फ़र्ज़ और ज़रूरी है |
अक़ीदा:- हुज़ूर अक़दस सल्लाहुताला अलैहि वस्सलम फरिश्ते, इंसान, जिन, हूर, गिलमान, हैवानात और ज़्मादात, गरज़ तमाम आलम के लिए रहमत है और मुसलमानो पर तो बहुत ही महेरबान है |
अक़ीदा:- हुज़ूर खातुमुन्नबीय्यीन है अल्ल्हा तआला ने नुबुव्वत का सिलसिला हुज़ूर पर ख़तम कर दिया | हुज़ूर के ज़माने में या उन के बाद कोई नबी नहीं हो सकता जो कोई हुज़ूर के ज़माने मै या उनके बाद किसी को नुबुव्वत मिलना माने या जाइज़ समझे वो क़ाफीर है |
अक़ीदा :- अल्लाह तआला क तमाम मख़लूक़ात से हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वस्सलम अफ़ज़ल है की औरो को अलग अलग जो कमालात दिए गए हुजूर मैं वो सब इखट्टा कर दिए गए और उनके अलावा हुज़ूर को वो कमालात मिले जिन मै किसी का हिस्सा नहीं बल्क़ि औरो को जो कुछ मिला हुज़ूर के तुफैल मै बल्क़ि हुज़ूर के मुबारक हाथो से मिला और ”कमाल ”इसलिए कमाल हुआ की कमाल हुज़ूर की सिफत है और हुज़ूर अपने रब के करम से अपने नफ़्से ज़ात मै क़ामिल और अकमल है | हुज़ूर का कमाल किसी वस्फ़ से नहीं बल्क़ि उस वस्फ़ का कमाल है की क़ामिल हुज़ूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम की सिफत बनकर खुद कमाल, क़ामिल और मुक़म्मल हो गया की जिस मै पाया जाये उसको क़ामिल बना दे |
अक़ीदा:- हुज़ूर जैसा होना किसी का मुहाल है | हुज़ूर की ख़ास सिफ़्तो मै अगर कोई किसी को हुज़ूर का मिस्ल बताए वे गुमराह या काफिर है |
अक़ीदा:- हुज़ूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को अल्लाह तआला ने ”महबूबियते कुबरा” का मर्तबा दिया है | यहां तक की तमाम मखलूक मौला की रज़ा चाहती है और अल्लाह तआला हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम की रज़ा चाहता है |
अक़ीदा :- हुज़ूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के खसाइस मै से एक ये भी है | की उन्हें मेराज हुई | हुज़ूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम अपने ज़ाहिरी जिस्म के साथ मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा और वहां से सातों आसमानो कुर्सी और अर्श तक बल्कि अर्श से भी ऊपर रात के एक थोड़े से हिस्से में तशरीफ़ ले गए और उन्हें वो खास कुर्बत हासिल हुई जो कभी भी न किसी बशर को हुई और न किसी फ़रिश्ते को मिली और न ऐसी कुर्बत किसी को मिल सकती है |
हुज़ूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने अल्लाह का जमाल अपने सर की आखों से देखा और अल्लाह का कलाम बिना किसी ज़रिए के सुना और ज़मीन व आसमान के हर ज़र्रे को तफ्सील से देखा | पहले और बाद की सारी मखलूक हुज़ूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम की मौहताज और नियाज़ मंद है यहा तक की हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह अलैहिसलाम भी |
अक़ीदा :- कयामत के दिन शफाअते कुबरा का मर्तबा हुज़ूर अलैहिसलाम के ख़साइस में से एक खुसूसियत है की जब तक हुज़ूर शफ़ाअत का दरवाज़ा नहीं खोलेंगे किसी को शफ़ाअत की मजाल न होगी बल्क़ि जितने भी शफ़ाअत करने वाले होंगे हुज़ूर के दरवार मैं शफ़ाअत लाएंगे और अल्लाह के दरबार में हुज़ूर की ये ”शफ़ाते कुबरा ”मोमीन काफिर फरमाबरदारी करने वाले और गुनाहगार सबके लिए है क्योंकि वह हिसाब किताब का इंतज़ार जो बहुत सख्त जानलेवा होगा जिसके लिए लोग तमन्नाए करेंगे की काश जहन्नम में फैक दिए जाते और इस इंतज़ार से निजात मिल जाती, इस बला से छुटकारा काफिरो को भी हुज़ूर की वजह से मिलेगा जिस पर पहले के बाद के मुआफ़िक, मुखालिफ, मोमीन और काफिर सब लोग हुज़ूर की हम्द (तारीफ) करेंगे | इसी का नाम मक़ामे मेहमूद है |
शफ़ाअत की और भी क़िस्मे हैं जैसे ये की हुज़ूर सलल्लाहो अलैहिवसल्लम बहुतो को बिना हिसाब जन्नत में दाखिल करायेंगें जिनमे चार अरब नव्वे करोड़ की गिनती का पता है बल्कि और और भी ज़्यादा हैं जिन्हें अल्लाह तआला जानता है और अल्लाह तआला के प्यारे रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहिवसल्लम जानतें हैं | बहुत से वो लोग होंगे जिनका हिसाब हो चूका है और जहन्नम के लाइक हो चुके ,उनको हुज़ूर दोज़ख से बचाएंगे | और ऐसे लोग भी होंगे जिनकी शफात करके जहन्नम से निकालेंगे | हुज़ूर की शफ़ाअत से कुछ लोगों के दर्ज़े बलन्द किये जायेंगे और ऐसे भी होंगे जिनका अज़ाब हल्का किया जाएगा | शफ़ाअत चाहें हुज़ूर खुद फरमाएं या किसी दूसरे को शफ़ाअत की इजाज़त दें हर तरह की शफ़ाअत हुज़ूर सलल्लाहो अलैहिवसल्लम के लिए साबित है | हुज़ूर की किसी क़िस्म की शफ़ाअत का इंकार करना गुमराही है |
अक़ीदा:- शफ़ाअत का मनसब हुज़ूर सलल्लाहो अलैहिवसल्लम को दिया जा चुका |सरकार खुद इरशाद फरमाते हैं कि
Ootitush Shafa'a
Sahi Bukhari
तर्जुमा :- ‘मुझे शफ़ाअत का मनसब दिया जा चुका है | और अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है कि
وَاسْتَغْفِرْ لِذَنْبِكَ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ
Para No.26 Soorah Muhammad
तर्जुमा (कंज़ुल ईमान) :- ‘मगफिरत चाहो (ऐ रसूल ) अपने खासो के गुनाहो और आम मोमीन और मोमीनात के गुनाहो की ‘ – ”ऐ अल्लाह हम भी तेरे मेहबूब की शफ़ाअत के मुहताज हैं |तू हमारी फर्याद सुनले ”हमारी दुआ है कि
يَوْمَ لا يَنْفَعُ مَالٌ وَلا بَنُونَ إِلاَّ مَنْ أَتَى اللَّهَ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ
Para No.19 Soorah Shurah
तर्जुमा (कंज़ुल ईमान) :- ”ऐ अल्लाह हमको अपने हबीबे मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की सफात अता फरमा जिस दिन ना माल काम आएगा ना बेटे मगर वो जो अल्लाह के पास हाज़िर हुआ सलामत दिल लेकर|
हवाला – बहारे शरीयत जिल्दे अव्वल पहला हिस्सा और कानून ऐ शरीयत
MashaALLAH SubhanALLAH..
JazakALLAHU Khair
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