सूफ़ियाए किराम का फैज़ान :- सूबाए पंजाब (पाकिस्तान) जिन में सूफ़ियाए किराम ने अपने इल्मों अमल और हुसने अख़लाक़ से हज़ारों लोगों को मज़हबे इस्लाम में दाखिल किया, उन्होंने कुफ्र के अंधेरों से निकाल कर उनके दिलों को नूरे ईमान से मुनव्वर किया, इस्लामी तालीमात को आम किया और मख़लूक़े खुदा को फायदा पहुंचाया उन्हीं में से एक अज़ीमुल मरतबत सूफी बुज़रुग बुरहानुल वासीलीन, शमसुस सालीक़ीन, “”सुतनुल आरफीन हज़रत ख़्वाजा सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह”” भी हैं,
यही वजह है के उनके विसाले पुरमलाल को सैंकड़ों साल गुजरने के बावजूद आज भी उनका नाम ज़िंदा व ताबिन्दा है,
आप का नामो नसब :- आप का नाम “सुलतान बाहू” सूफ़ियाए किराम में आप सुल्तानुल आरफीन के लक़ब से जाने जाते हैं, आप का तअल्लुक़ क़बीला “आवान” से है, और आप का शजरए नसब सुलतान बाहू बिन बा ज़ैद मुहम्मद बिन फ़तेह मुहम्मद बिन अल्लाह दित्ताह है जो आगे चल कर अमीरुल मोमिनी हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वज हहुल करीम तक पहुँचता है,
आवान कहलाने की वजह :- वाक़िआए कर्बला के बाद जब खानदाने नबुव्वत पर ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े गए और मुख्तलिफ तरह तरह के वाक़िआत पेश आए तो उन्होंने ईरान व तुर्किस्तान के मुख्तलिफ हिस्सों में रिहाइश इख़्तियार करना शुरू कर दी क़बीले आवान चूँकि अल्वी (अल्वी उन लोगों को कहा जाता है जो हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वज हहुल करीम की औलाद से हो लेकिन हज़रते फातिमा ज़ेहरा रदियल्लाहु अन्हा से न हों यानि जो आप की दूसरी बीवियों से होती हैं उन को अल्वी कहा जाता है) की वजह से सादाते किराम के क़रीबी थे लिहाज़ा उन्होंने गुरबत गरीबी, तंग दस्ती में सादाते किराम की मदद की और उनके रफ़ीक़ और मुआविन मदद गार बने इसी वजह से उन्हें आवान यानि सादाते बानी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की मदद करने वाले कहा जाने लगा,
क़बीलाए आवान की हिंदुस्तान में आमद :- खिलाफते अब्बासिया के आखिरी दौर में क़बीलाए आवान ने हिंदुस्तान की तरफ हिजरत की और सून सकीसर (ज़िला खूशाब, पाकिस्तान) और इस के अतराफ़ गिरदो नवाह में आबाद हो गए उनकी कसीर तादाद आज भी वादिए सून सकीसर में आबाद है,
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हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह के वालिदैन (पैरेन्ट्स) :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद का नाम “हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह” और वालिदा माजिदा का नाम “हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा” हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह नेक, परहेज़गार, शरीअत के पाबंद और हाफ़िज़ क़ुरआन होने के साथ साथ दिल्ली में मुगलिया सल्तनत के एक बड़े उहदे पर फ़ाइज़ थे आप रहमतुल्लाह अलैह ने बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा से निकाह किया जो विलायत के आला मरातिब पर फ़ाइज़ थीं, सून सकीसर के गाँव अंगा की एक पहाड़ी के दमन में चश्मे के किनारे इबादतों रियाज़त में मसरूफ रहा करती थीं, एक वलिय्या की निशानी के तौर पर वो जगह आज भी मश्हूरो मारूफ व मेहफ़ूज़ है,
आप के तकवाओ परहेज़गारी का हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह पर ऐसा असर हुआ के दिल पर मुहब्बते इलाही ग़ालिब आ गई और आप रहमतुल्लाह अलैह ने दुनिया से क़ता तअल्लुक़ इख़्तियार कर लिया और इबादतों रियाज़त में ज़िन्दगी बसर करने लगे, चूँकि अब ज़ाहिरी ज़रियाए मआश कोई नहीं रहा था लिहाज़ा कसबे मआश की खातिर मजबूरन मदीनतुल औलिया यानि मुल्तान का रुख किया और वहां के नाज़िम के पास मुलाज़िमत इख़्तियार करली,
जब हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह के मदीनतुल औलिया यानि मुल्तान में क़याम की खबरें दिल्ली पहुंचीं तो वहां से नाज़िमे मुल्तान को हुक्म नामा जारी हुआ के उन्हें दिल्ली वापस भेजा जाए ताके अपना मनसब सभांलें मगर हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया में दुनियावी मशागिल (काम) तर्क (छोड़ना) कर के बाक़ी उमर यादे इलाही में गुज़ारना चाहता हूँ, बादशाह ने आप की ये दरख्वास्त कबूल करली,
मशहूर मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह को बेहतीरीन अस्करी खिदमात अंजाम देने पर बतौर इनआम शोर कोट (ज़िला झंग पंजाब पाकिस्तान) के गिरदो नवाह वसी और अरीज़ ज़मीन दे रखी थी चुनाचे हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह के वालिदैन (पैरेन्ट्स) इसी जगह में रिहाइश पज़ीर हो गए,
आप की विलादत बसआदत :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश बरोज़ पीर के दिन माहे रमज़ानुल मुबारक 1039, हिजरी मुताबिक अप्रैल 1630, ईस्वी में मोज़ा (शोर कोट ज़िला झंग पंजब) पाकिस्तान में हुई,
आप की पैदाइश से पहले आप की विलायत की बशारत :- वालिदा माजिदा हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाह तआला अलैहा को हज़रत सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश से पहले ही इल्हाम हो चुका था के उनके शिकम (पेट) में एक वलीए कामिल परवरिश पा रहा है चुनाचे खुद फरमाती हैं मुझे ग़ैब से ये बताया गया है के मेरे पेट में जो लड़का है वो पैदाइशी वलियुल्लाह और तारिके दुनिया (दुनिया को छोड़ने वाला) होगा,
आप की तालीमों तरबियत :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह अभी कम सिन छोटे बच्चे ही थे के आप के वालिद माजिद का विसाल हो गया, आप की इब्तिदाई तालीम व तरबियत आप की वालिदा माजिदा हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाह तआला अलैहा ने बा हुसने खूबी फ़रमाई,
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आप के बचपन के मामूलात :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह शीर ख्वार दूध पीने के दिनों में जब रमज़ानुल मुबारक आता तो दिन भर वालिदा माजिदा का दूध नहीं पीते और अफ्तार के वक़्त पीलिया करते, बचपन में आप रहमतुल्लाह अलैह के सांस के साथ “हू हू” की आवाज़ इस तरह निकलती थी जैसे आप रहमतुल्लाह अलैह ज़िक्रे इलाही में मशगूल (बीजी) हों, आप न तो खिलोनो से खेला करते और न ही बच्चों के दूसरे कामो खेलों को इख़्तियार फरमाते, आप नज़रें झुका कर चला करते, अगर राह चलते अचानक किसी मुस्लमान पर नज़र पड़ जाती तो उसके जिस्म से लरज़ा तारी हो जाता, और वो बे इख़्तियार पुकार उठता “वल्लाह ये कोई आम बच्चा नहीं, इसकी आँखों में अजीब रौशनी है जो बराहे रास्त मुतअस्सिर करती है” अगर नज़र किसी गैर मुस्लिम पर पड़ती उसकी बिगड़ी सवंर जाती और वो अपने आबाई बातिल मज़हब को तर्क कर देता और कलमए तय्यबा पढ़ कर मज़हबे इस्लाम में दाखिल हो जाता,
सबक दरसे इबरत:
प्यारे इस्लामी भाइयों हमें भी चाहिए के बुज़ुर्गाने दीन की सीरत पर अमल करते हुए नज़रें झुका कर चनले वाले बन जाएं,
हज़रत सय्यदना मुहम्मद बिन ईसा तिर्मिज़ी रहमतुल्लाह अलैह नकल फरमाते हैं, जब रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी तरफ तवज्जुह फरमाते तो पूरे मुतावज्जेह होते, मुबारक नज़रें नीची रहती थीं, नज़र शरीफ आसमान के बजाए ज़्यादा तर ज़मीन की तरफ होती थी, अक्सर आँख मुबारक के किनारे से देखा करते थे,
मज़कूरा हदीस पाक: में ये अलफ़ाज़ “पूरे मुतावज्जेह होते” इस का मतलब ये है के नज़र चुराते नहीं थे, और ये बात के “मुबारक नज़रें नीची रहती थी” यानि जब किसी की तरफ देखते तो अपनी निगाह नीची फरमा लिया करते थे, बिला ज़रूरत इधर उधर न देखा करते थे,
बस हमेशा आलिमुल ग़ैब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ मुतावज्जेह रहते, उसकी याद में मशगूल और आख़िरत के मुआमलात में गोरो फ़िक्र फरमाते रहते, और ये अल्फ़ाज़ आप की नज़रें आसमान की निस्बत ज़मीन की तरफ ज़्यादा रहती थी यानि ये हद दर्जा शर्मों हया की दलील है, हदीस में जो ये आया है के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम जब गुफ्तुगू करने बैठते तो अपनी निगाह शरीफ आसमान की तरफ ज़्यादा उठाते थे यानि ये नज़र का उठाना इन्तिज़ारे वही में होता था वरना नज़र मुबारक का ज़मीन की तरफ रखना रोज़ मर्रा के मामूलात में था,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे विलायत :- जब हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे विलायत से गैर मुस्लिमो के क़बूले इस्लाम के वाक़िआत कई मर्तबा पेश आए तो मक़ामी गैर मुस्लिमो में खलबली मच गई,
चुनाचे वो सब हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो कर आप के साहबज़ादे हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की शिकायत करने लगे, वालिद माजिद ने पूछा: आखिर मेरे बच्चे का क़ुसूर किया है? ये तो बहुत छोटा है, किसी को हाथ उठाने के क़ाबिल भी नहीं है, एक शख्स ने कहा: अगर हाथ उठा लेता तो ज़्यादा अच्छा था, वालिद माजिद ने हैरान हो कर पूछा: फिर किया ग़िला है? उनके सरबराह ने कहा आप का बच्चा हम्मे से जिसे भी नज़र भर कर देख लेता है वो मुस्लमान हो जाता है इस की वजह से शोर कोट के लोगों का आबाई मज़हब खतरे में पड़ गया है,
बड़ी अजीब शिकायत थी वालिद माजिद कुछ देर तक सोचते रहे फिर फ़रमाया: अब तुम ही बताओ के में इस सिलसिले में क्या कर सकता हूँ? किसी के मज़हब तब्दील कर लेने में मेरे बेटे का क्या क़ुसूर? किस तरह उसे नज़र उठा कर देखने से बाज़ रख सकता हूँ? सरबराह ने कहा: क़ुसूर तो बच्चे की दाया का है जो उसे वक़्त बे वक़्त बाज़ार ले जाती है, आप से ये गुज़ारिश है के आप बच्चे की सैर के लिए एक वक़्त मुक़र्रर कर दें,
बिला आखिर हज़रत बा ज़ैद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह ने सख्ती के साथ दाया को हिदायत करदी के वो एक मुक़र्ररा वक़्त पर सुल्तान बाहू को बाहर ले जाया करे, उस के बाद शहर के गैर मुस्लिमो ने इस काम पर चंद नौकर रख लिए के जब हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह अपने घर से निकलें तो बाज़ारों और गली कूचों में उनकी आमद की खबर पहुंचा दी जाए, लिहाज़ा जब नौकर खबर देते तो गैर मुस्लिम अपनी अपनी दुकानों और मकानों में छुप जाते,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह को बारगाहे रिसालत से फीयूज़ो बरकात :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में बचपन में एक दिन सड़क के किनारे खड़ा था के एक बा रोअब, साहिबे हशमत, नूरानी सूरत वाले बुज़रुग घोड़े पर तशरीफ़ लाए और मेरा हाथ पड़ कर अपने पीछे बिठा लिया, मेने दौड़ते और कांपते हुए पूछा: आप कौन हैं? इरशाद फ़रमाया अली बिन अबी तालिब हूँ, मेने फिर अर्ज़ की मुझे कहाँ ले जा रहे हैं? फ़रमाया: प्यारे आक़ा रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से तुम्हे उनकी बारगाह में ले जा रहा हूँ, बारगाहे रिसालत रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाज़री हुई तो वहां हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़, हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक़े आज़म, हज़रत सय्यदना उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हुम भी जलवा फरमा थे मुझे देखते ही नबियों के सुल्तान रहमते आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दोनों दस्ते मुबारक मेरी तरफ बढ़ाए और इरशाद फ़रमाया:
मेरे हाथ पकड़ लो, फिर दस्ते मुबारक पर बैअत ली और कलमे की तलकीन फ़रमाई, हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: जब मेने कलमा तय्यबा “लाइलाहा इलल्लाहू मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” पढ़ा तो दरजात व मक़ामात का कोई हिजाब बाक़ी न रहा, उस के बाद हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ पर तवज्जुह फ़रमाई जिससे मेरे वजूद में सिद्क़ो सफा यानि सच्चाई व पाकीज़गी पैदा हो गई, तवज्जुह फरमान के बाद हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु इस मजिलस से रुखसत हो गए, फिर हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने मेरी तरफ तवज्जुह फ़रमाई जिससे मेरे वुजूद में अदलो मुहासबाए नफ्सि यानि फिकरे मदीना पैदा हो गया, फिर आप भी रुखसत हो गए, उनके बाद हज़रत सय्यदना उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु ने मेरी जानिब तवज्जुह फ़रमाई जिससे मेरे अंदर हया और सखावत का नूर पैदा हो गया फिर वो भी इस नूरानी मजलिस से रुसत हो गए,
उस के बाद हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने मुझ पर तवज्जुह फ़रमाई तो मेरा जिस्म इल्म शुजाअत और हिल्म से भर दिया,
फिर प्यारे आक़ा रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरा हाथ पकड़ कर हज़रते सय्यदा फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा के पास ले गए तो आप ने मुझ से फ़रमाया तुम मेरे फ़रज़न्द हो, फिर मेने हसनैन करीमैन रदियल्लाहु अन्हुमा के क़दमेंन शरीफ़ैन का बूसा लिया और उनकी गुलामी का पट्टा अपने गले में पहिन लिया, फिर हुज़ूर रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पीर दस्तगीर औलिया के सरदार हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी हसनी हुसैनी रदियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द फ़रमा दिया,
हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने मुझे मख़लूक़े खुदा की रहनुमाई का हुक्म इरशाद फ़रमाया, हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेने जो कुछ भी देखा अपनी ज़ाहिरी आँखों से देखा, इमामे इश्को मुहब्बत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,
साइलो दामन सखी का थामलो, कुछ न कुछ इनआम हो ही जाएगा
मुफ़लिसों उनकी गली में जा पड़ो, बागे खुल्द इकराम हो ही जाएगा
खुदा तक पहुंचने का रास्ता :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक बार मेरी वालिदा माजिदा ने मुझ से कहा: जब तक मुर्शिदे कामिल का दामन नहीं पकड़ो गे मारफअत हासिल नहीं होगी आप रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मुझे ज़ाहिरी मुर्शिद की क्या ज़रूरत है? मेरे मुर्शिदे कामिल तो हुज़ूर पुरनूर रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं, वालिदा माजिदा ने कहा: बेटा ज़ाहिरी मुर्शिद भी ज़रूरी है इसके बगैर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मारफअत मुश्किल है,
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पिरो मुर्शिद की तलाश :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह वालिदा माजिदा के हुक्म की तामील में मुर्शिदे कामिल की तलाश में निकल पड़े और दरियाए रावी के किनारे (गढ़ बगदाद शरीफ) पहुंचे आप ने यहाँ हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह का शोहरा सुना तो उनके खिदमत में हाज़िर हो गए, हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की ये करामत मशहूर थी की पानी की देग हलकी आंच पर हर वक़्त गर्म रखा करते जो मारफअत इलाही का तलबगार आता उसे देग में हाथ डालने का हुक्म फरमाते हाथ डालते ही वो साहिबे कश्फ़ हो जाता,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह इस करामत को देख कर अपनी जगह खामोश बैठे रहे,
पूछने पर आपने आने का मक़सद बयान किया तो हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया फिर अपना हाथ देग में दाखिल क्यों नहीं क्या? अगर देग में हाथ डाल देते तो मुराद को पहुंच जाते आप ने कहा:
मुझे देग में हाथ डालने वालों का हाल मालूम है इससे मेरी मुराद पूरी नहीं होगी, हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ठीक है यहाँ ठहर कर चंद रोज़ मुजाहिदा करें, मस्जिद का होज़ भरने और सेहन धोने का काम करें, अगले दिन हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने पानी भरने के लिए मशकीज़ह माँगा जिसे वहां के खिदमत गारों ने आप की खिदमत में पेश कर दिया,
आप ने एक ही मश्किज़ा भर कर डाला तो होज़ भर गया और फिर मस्जिद का पूरा सेहन धो डाला, खिदमत गारों ने तमाम माजिरा हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अर्ज़ किया तो उन्होंने हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह से पूछा:
क्या तुम्हारे पास दुनियावी माल है? आप रहमतुल्लाह अलैह ने कहा जी हाँ हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: यकसोई ऐसे हासिल नहीं हो सकती पहले मालो मता से फारिग हो जाओ, ये सुन कर आप रहमतुल्लाह अलैह फ़ौरन घर की तरफ रवाना हुए, घर में वलीय्या कामिला वालिदा माजिदा हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाह तआला अलैहा ने कश्फ़ से ये बात जान ली लिहाज़ा आप की अज़वाज (बीवियां) से फ़रमाया: मेरा बेटा दुनियावी माल व मता से जान छुड़ाने आ रहा है,
तुम अपना अपना ज़ेवर और नकदी बचा लो और कहीं दबा दो ताके वक़्ते ज़रूरत काम आए उन्होंने ऐसा ही क्या,
जब हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए और वालिदा मुहतरमा ने आने की वजह पूछी तो अर्ज़ की: शैख़ ने दुनियावी माल को छोड़ने और दूर करने का हुक्म दिया है, वालिदा मुहतरमा ने कहा: अगर कोई माल है ले कर दूर कर दो, आप रहमतुल्लाह अलैह ने कहा: मुझे घर से माल की बू आ रही है वालिदा माजिदा ने कहा: अगर ये बात है तो निकाल लो, लिहाज़ा जिस जगह ज़ेवर वगैरह दबाया गया था आप रहमतुल्लाह अलैह ने निकाल कर फेंक दिया और फारिग हो कर हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंचे हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया तुम दुनियावी माल से तो फारिग हो गए अब अपनी अज़वाज का क्या करोगे अल्लाह पाक का हक़ अदा करोगे या उनका? जा कर उनको आज़ाद कर दो ताके तुम पूरे तौर पर राहे हक़ के लिए तय्यार हो जाओ,
चुनाचे आप रहमतुल्लाह अलैह शोक व वारफतगि में उसी वक़्त फिर घर की तरफ लोटे वालिदा माजिदा ने फिर जान लिया और आप की अज़वाज से फ़रमाया मेरा बेटा तुम से क़ता तअल्लुक़ करने के लिए आ रहा है होशियार हो जाओ मेरी पीठ के पीछे बैठ जाओ कहीं शोके इलाही के सबब तुम्हारे हक़ में कोई शरई कलमा (तलाक) ज़बान से न कहदे, इतने में आप रहमतुल्लाह अलैह घर में दाखिल हुए वालिदा ने पूछा कहो बेटा अब कैसे आना हुआ? आप ने आने का मकसद बयान किया तो वालिदा मुहतरमा ने आप की बीवी की इजाज़त से कहा सुनो बेटा उनके जो हुकूक मसलन नान व नफ़्क़ा वगैरा तुम पे लाज़िम हैं वो सब अल्लाह पाक की रज़ा की खातिर ये तुम्हे मुआफ करती हैं तुम उनके हुकूक अदा करने से फारिग हो, तुम अल्लाह पाक के हुकूक अदा करो और तुम्हारे जो हुकूक उनके ज़िम्मे हैं वो बदस्तूर क़ाइम रहेंगें, अगर तुमने सुलूक मारफअत तय करली तो बेहतर वरना तुम्हे उनके हुकूक की अदाएगी के लिए आने की ज़रूरत नहीं, चुनाचे उस के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंच गए,
सुबहानल्लाह:
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा माजिदा का कैसा जज़्बए इमानि था के इंफिरादि कोशिश करते हुए अपने लख्ते जिगर को खुद से जुदा कर के कामिल पिरो मुर्शिद तलाश करने और राहे खुदा में सफर करने का ज़हन दिया, ऐ काश हमारी इस्लामी माँ बहने भी इससे दरस हासिल करें ताके वो भी तक़वा परेज़गारी सुन्नतों पर अमल करने की कोशिश करें,
पिरो मुर्शिद की ज़रुरत क्यों है? :- प्यारे इस्लामी भाइयों अपने ज़ाहिर व बातिन की इस्लाह के लिए किसी तरबियत करने वाले का होना बहुत ज़रूरी है, चुनाचे हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद्द ग़ज़ाली शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं: तरबियत की मिसाल बिलकुल इसी तरह है जिस तरह एक किसान खेतीबाड़ी के दौरान अपनी फसल से गैर ज़रूरो घास और जड़ी बोटियाँ निकाल देता है ताके फसल की हरयाली और नशो नुमा (पैदावार) में कमी न आए इसी तरह राहे सालिक (मुरीद) के लिए शैख़ यानि मुर्शिदे कामिल का होना निहायत ज़रूरी है,
जो उसकी अहसन यानि अच्छे तरीके से तरबियत करे और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तक पहुंचे, मारफते इलाही के लिए उसकी रहनुमाई करे, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अम्बिया व रसूलों अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम को लोगों की तरफ भेजा ताके वो लोगों को उस तक पहुंचने का रास्ता बताएं, मगर जब आखरी रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस जहां से पर्दा फ़रमाया और नुबूव्वतों रिसालत का सिलसिला आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ख़त्म हुआ तो, तो इस मंसबे जलील को खुलफ़ाए राशिदीन रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ने बतौरे नाइब सभांल लिया और लोगों को राहे हक़ पर लाने की सई व कोशिस फरमाते रहे सहाबए किराम रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन के बाद उनके नाइबींन तबई सल्फ सालिहीन सूफ़ियाए किराम औलिया अल्लाह ये फ़रीज़ा सर अंजाम दे रहे हैं और ता क़यामत देते रहेंगें,
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हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह को पिरो मुर्शिद किस तरह मिले :- मालो दौलत से फरागत और हुकूक की मुआफी के बाद हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह पर कामिल तवज्जुह फ़रमाई आप रहमतुल्लाह अलैह काफी देर तक इसी हालत में बैठे रहे, हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने पूछा: क्या तुम अपनी मुराद को पहुंच गए हो? हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया: आज जो कुछ मुझ पर ज़ाहिर हुआ वो बचपन में ही हासिल हो चुका था, ये सुन कर हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह बतौरे आज़माइश फ़ौरन गाइब हुए और और फ़िज़ा में कहीं उड़ कर चले गए,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह भी पीछे पीछे उड़े और हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह को एक खेत के किनारे बूढ़े आदमी की सूरत में पाया जो बैलों की जोड़ी लिए हुए हल चला रहे थे,
आप रहमतुल्लाह अलैह भी गुदड़ी पहिन कर अजनबी की सूरत में हाज़िर हो कर कहने लगे: बाबा आप क्यों तकलीफ उठाते हैं? आप आराम करें में आप की जगह हल चला देता हूँ ये सुनते ही हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह अपनी असली सूरत में लोट आए,
एक बार इस तरह आज़माइश की के लिए उड़कर किसी शहर में पहुंचे और वहां की गैर मारूफ मस्जिद में छोटे बच्चे को क़ुरआन मजीद की तालीम देने में मसरूफ हो गए,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह भी पीछे पीछे पहुंचे और क़ाइदा हाथ में ले लिया और फिर खिदमत में हाज़िर हो गए, जब कई बार आज़माइश हो चुकी तो हज़रत शाह हबीबुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह कहने लगे: जिस नेमत के आप मुस्तहिक़ हैं वो हमारे बस में नहीं लिहाज़ा आप मेरे शैख़ “सय्यदुस्सादात हज़रत पीर सय्यद अब्दुर रहमान की खिदमत में चले जाओ,
आप के पिरो मुर्शिद कौन हैं? :- चुनाचे हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली पहुंच कर सिलसिलए आलिया क़दीरिया में सय्यदुस्सादात हज़रत पीर “”सय्यद अब्दुर रहमान जिलानी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह”” के हाथ पर बैअत व मुरीद हुए और उन से फ़ैज़ो बरकात से मालामाल हुए,
आप का मज़ार शरीफ सदर बाज़ार रेलवे स्टेशन से पूरब की मस्जिद के बाहर दरवाज़े पे है लाहोरी गेट दिल्ली में,
आप के पिरो मुर्शिद को आप के आने की पेशगी खबर :- जब हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह मंज़िले मक़सूद की तलाश में दिल्ली के क़रीब पहुंचे तो सय्यदुस्सादात हज़रत पीर सय्यद अब्दुर रहमान जिलानी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने एक मुरीद को भेजा के फुलां रास्ते में इस शक्लो सूरत वाला रहे हक़ का एक मुतलाशी आ रहा है उसे फ़ौरन हमरे पास लाओ, 29, ज़िल क़ादा 1078, हिजरी बा मुताबिक 11, मई 1668, ईस्वी जुमे के दिन हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सय्यदुस्सादात हज़रत पीर सय्यद अब्दुर रहमान जिलानी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में पहुचें तो उन्होंने हज़रत सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह का हाथ पकड़ा और खल्वत में ले गए फिर अपने मुरीदे कामिल पर मरफते हक़ के अनवारो तजल्लियात की बारिश बरसाई और आप फ़ैज़ो बरकात से मालामाल हुए,
आप के पिरो मुर्शिद ने कौन कौन से कमालात अता फरमाए :- मुर्शिदे कामिल से फ़ैज़याब होने के बाद हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने रुखसत ली और दिल्ली के बाज़ारों में घूमना शुरू कर दिया जो खासो आम नज़र आता उस पर अपनी रूहानी नज़र फरमाते, जिससे देहली के गली बाज़ारों में आप का शोहरा चर्चा हो गया और आप के इर्द गिर्द हुजूम (भीड़) हो गई,
जब इस बात की खबर सय्यदुस्सादात हज़रत पीर सय्यद अब्दुर रहमान जिलानी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को हुई तो आप ने फ़रमाया: मालूम करो वो कौन है और किस खानदान और सिलसिले से तअल्लुक़ रखता है? मुरीदों ने जा कर देखा तो फ़ौरन पहचान गए और आ कर अर्ज़ की: आप ने आज जिन्हें रोहानी फैज़ से नवाज़ा है ये वही दुर्वेश हैं, ये सुन कर सय्यदुस्सादात हज़रत पीर सय्यद अब्दुर रहमान जिलानी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह रंजीदा हो गए और फ़रमाया: उन्हें फ़ौरन मेरे पास लाओ, जब हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर हुए तो उन्होंने सख्त लहजे में फ़रमाया: हमने तुम्हे ख़ास नेमत अता की मगर तुम उसे लोगों में आम करते फिर रहे हो,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ की: ऐ मेरे आक़ा जब कोई बूढ़ी औरत रोटी पकाने के लिए बाज़ार से तवा खरीदती हैं तो उसे अच्छी तरह बजा कर देखती हैं के कैसा काम देगा? इसी तरह जब कोई कमान खरीदता हैं तो उसे खींच कर देखता हैं के इस में कितनी लचक हैं? में भी आप की जानिब से मिलने वाली इस नेमते उज़्मा को देखना चाहता था के ये नेमत कैसी और कितनी ज़्यादा हैं? आप ही ने फ़रमाया था के इसे आज़ माओ और फैज़ आम करो, उसे के बाद अपने पिरो मुर्शिद से मज़ीद इनायात और फ़ैज़ो बरकात हासिल किए और उनकी शफ़्क़तों व महिरबानी के साए में रुखसत हो गए,
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तबलीग़े दीन की खातिर सफर :- हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की अक्सर ज़िंदगी सैरो सियाहत में गुज़री आप ज़्यादातर मदीनतुल औलिया मुल्तान, डेरा गाज़ी खान, डेरा इस्माईल खान, चोलिस्तान, वादी सून सकीसर खूशाब, और कोहिस्तान नमक के इलाके में सफर कर के मख़लूक़े खुदा में वाइज़ व नसीहत, हिकमतो मारफअत आम करते रहे, दिल्ली के सफर में आप की मुलाकात मुग़ल बादशाह औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह से हुई जिन्होंने आप से बैअत की दरख्वास्त की तो फ़रमाया:
तुम्हे फैज़ पहुँचता रहेगा उससे ज़्यादा मुझ से तअल्लुक़ मत रखो, आप रहमतुल्लाह अलैह ने औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के लिए “औरंग शाही” नामी एक रिसाल लिखा और दिल्ली से वापस तशरीफ़ ले आए,
सुल्तानुल आरफीन हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह बहुत ज़्यादा साहिबे करामात बुज़रुग थे आप की ज़ात से वक़्तन फवक़्तन ऐसे कमालातो करामात का ज़हूर होता रहा जिन्हें देख कर लोगों की अक़्लें दंग रह जातीं और आज भी सुनने वालों की ज़बानो से बे इख़्तियार सुब्हानल्लाह की सदाएं बुलंद होती हैं,
मिटटी सोना बन गई :- तहसील शोर कोट (ज़िला झंग, पंजाब, पाकिस्तान) से कई मील दूर किसी इलाके में एक खानदानी रईस मुफ़लिस तंग दस्त गरीब हो गया, उस ने एक मकामी बुज़रुग रहमतुल्लाह अलैह से अपनी मुफलिसी गरीबी व तंग दस्ती की शिकायत करते हुए अपनी हालते ज़ार इस तरह बयान की के हुज़ूर अब तो बहुत फ़ाक़ों ने घेर रखा है, दरवाज़े पर क़र्ज़ ख़्वाहों का हुजूम रहता है, मुफलिसी की वजह से बच्चों की शादियां और दीगर ज़रूरियात की अदाएगी मुश्किल हो गई है समझ में नहीं आता क्या करूँ? कहाँ जाऊं? बुज़रुग रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया दरियाए चनाब के किनारे शोर कोट जाओ वहां सुल्तानुल आरफीन हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह से अपनी मुश्किलात बयान करना,
जब इस शख्स को उम्मीद की किरन नज़र आई तो वो अपने चंद दोस्तों के साथ सफर कर के शोर कोट पंहुचा, आप रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त अपने खेत में हल चला रहे थे, ये देख कर वो शख्स सख्त मायूस हुआ और सोचने लगा के जो आदमी खुद मुफलिसी का शिकार है और हल चला कर अपनी गुज़र बसर करता हो वो भला मेरी क्या मदद करेगा ये सोच कर जैसे ही पलटा तो किसी ने उस का नाम लेकर पुकारा, वो हैरान रह गया के यहाँ तो में अजनबी हूँ फिर मुझे मेरे नाम से पुकारने वाला कौन है पलट कर देखा तो हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह उसे बुला रहे थे, जब उसने ये माजिरा देखा तो दिल में उम्मीद पैदा हुई और फ़ौरन आप की बारगाह में बा अदब हाज़िर हो गया,
हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: तुमने सफर की तकलीफ उठायीं इतना लम्बा सफर तय किया फिर भी हम से मिले बगैर जा रहे थे? उसने रोते हुए अपनी खस्ता हाली की दासतांन सुनाई, हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने उसी वक़्त मिटटी का एक ढेला उठाया और ज़मीन पर दे मारा, जब उस शख्स ने ज़मीन पर नज़र डाली तो ये देख कर हैरान रह गया के खेत में पड़े हुए तमाम ढेले और पथ्थर सोना बन चुके थे, वलीए कामिल हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह ने निहायत बेनियाज़ी से फ़रमाया: अपनी ज़रूरत के मुताबिक सोना उठा लो, चुनाचे रईस और उसके दोस्तों ने अपने घोड़ों पर वाफिर मिक़्दार में सोना लादा और हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की इस करम नवाज़ी पर शुक्रिया अदा करते हुए रुखसत हुए,
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आप ने दिल की बात जान ली :- मुग़ल बादशाह औरंज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने अपने एक वज़ीर के हाथ हज़रत शैख़ सुल्तान बाहू रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अशर्फियों की दो थैलियां भेजीं उस वक़्त आप रहमतुल्लाह अलैह कुँए के पास बैठे खेतों को पानी दे रहे थे आप ने दोनों थैलियां कुँए में फेंक दीं, वज़ीर को बड़ा तअज्जुब हुआ और उसके दिल में ये ख्वाइश हुई के “काश ये अशर्फियाँ मुझे मिल जातीं” आप ने उस के दिल की बात जान ली और जब कुँए की तरफ नज़र फ़रमाई तो उससे पानी के बजाए अशर्फियाँ निकलने लगीं, आप की करामत देख कर वज़ीर आप के क़दमों में गिर गया, आप ने एक बार इस पर नज़र फरमा कर इश्क़े हकीकी का जाम पिलाया और दोनों अशर्फियों से भरी थैलियां उसके हवाले कर दीं,
मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- मनाक़िबे सुल्तानी, बाहू ऐन या हू, अबियाते सुल्तान बाहू, फ़ैज़ाने सुल्तान बाहू, तज़किराए औलियाए पाकिस्तान जिल्द दो, गंजुल असरार, कशफ़ुल असरार, तज़किराए औलियाए हिन्दो पाक,
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