आपका तआरुफ़ :- आप तरीक़त व हक़ीक़त का सर चश्मए फ्यूज़ व मारफ़त खज़ाना और आपकी अज़मत व बुज़ुर्गी मुसल्लामा थी | हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह का दस्तूर था के साल में एक मर्तबा “मज़ाराते शुहदा” की ज़्यारत के लिए जाया करते थे और जब ख़रक़ान पहुँचते तो फ़िज़ा में मुँह ऊपर उठाकर इस तरह सांस खींचते जैसे कोई खुशबू सूंघने के लिए खींचता है | एक बार मुरीद ने आपसे पूछा के आप किस चीज़ की खुशबू सूंघते हैं हमें तो कुछ भी महसूस नहीं होता | आपने फ़रमाया के मुझे सर ज़मीने ख़रक़ान से एक मरदे हक़ की खुशबू आती है | “जिसकी कुन्नियत अबुल हसन और नाम अली है” और वो काश्तकारी के ज़रिए अपने अहलो अयाल की रिज़्क़ से परवरिश करेगा मुझसे मरतबे में तीन गुनाह होगा |
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आपकी विलादत :- हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश तीन सौ पचास हिजरी में हुई 350 आप हज़रते बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह के विसाल से उन्तालीस 39 साल बाद आपकी पैदाइश हुई और हज़रते बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 261 में हुआ | हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह का अस्ल नाम “अली” है और कुन्नियत अबुल हसन है | और आप अपनी कुन्नियत “अबुल हसन” की वजह से मशहूर हैं |
आपकी पैदाइश :- आपकी पैदाइश 350 हिजरी में मुल्क ईरान के सूबा सिमनान के जिला “ख़रक़ान” में हुई जिला ख़रक़ान में पैदाइश होने की वजह से ख़रक़ानी कहलाते हैं | आपकी उम्र शरीफ 75 साल हुई |
आपकी पैदाइश की खबर :- आपकी पैदाइश की खबर हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि ने दी जैसा के हमने ऊपर ज़िक्र किया आपकी पैदाइश की खबर हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि ने 39 उन्तालीस साल पहले बता दिया था | क्यूंकि हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह का दस्तूर था के साल में एक मर्तबा “मज़ाराते शुहदा” की ज़्यारत के लिए जाया करते थे और जब ख़रक़ान पहुँचते तो फ़िज़ा में मुँह ऊपर उठाकर इस तरह सांस खींचते जैसे कोई खुशबू सूंघने के लिए खींचता है | एक बार मुरीद ने आपसे पूछा के आप किस चीज़ की खुशबू सूंघते हैं हमें तो कुछ भी महसूस नहीं होता | आपने फ़रमाया के मुझे सर ज़मीने ख़रक़ान से एक मरदे हक़ की खुशबू आती है | “जिसकी कुन्नियत अबुल हसन और नाम अली है” और वो काश्तकारी के ज़रिए अपने अहलो अयाल की रिज़्क़ से परवरिश करेगा मुझसे मरतबे में तीन गुनाह होगा | आप मादर ज़ाद वली थे यानि पैदाइशी वली थे |
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बीस साल तक बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि के मज़ार की हाज़री :- बीस साल तक आपका ये मामूल रहा के ख़रक़ान से बाद नमाज़े ईशा यानि ईशा की नमाज़ पढ़ने के बाद आप हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि के मज़ार पर पहुंच कर “मुराकिबा” करते और ये दुआ करते “ए अल्लाह जो मर्तबा तूने बायज़ीद बस्तामी को अता किया है वही मुझको भी अता फ़रमादे” | इस दुआ के बाद आप ख़रक़ान वापस आकर नमाज़े फज्र अदा करते | और आपके अदब का ये आलम था बस्ताम से उलटे पैर वापस होते वो इसलिए के कहीं हज़रते बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि के मज़ार की बे अदबी न हो जाए | फिर बाराह साल तक अपने इसी मामूल पर क़ाइम रहे इसके बाद हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि की क़ब्र से आपने ये आवाज़ सुनी की “ऐ अबुल हसन” अब तेरा भी दौर आ गया | अपने जवाब दिया में तो बिलकुल उम्मी होने की वजह से उलूमे शरीया से नाफाक़िफ़ हूं इस लिए मेरी हिम्मत अफ़ज़ाई फरमाइए | निदा यानि आवाज़ आयी के मुझे जो कुछ मर्तबा हासिल हुआ है वो सिर्फ तुम्हारी ही बदौलत हासिल हुआ है | आपने जवाब दिया के आप तो मुझ से उन्तालीस साल पहले दुनिया से तशरीफ़ ले गए | आवाज़ आयी के ये क़ौल (बात) तुम्हारी ठीक है लेकिन हक़ीक़त ये है के जिस वक़्त भी में सरज़मीने ख़रक़ान से गुज़रता था तो इस सरज़मीं से आसमान तक एक नूर ही नूर नज़र आता था और में अपनी एक ज़रुरत के तहत तीस साल तक दुआ करता रहा लेकिन क़बूल नहीं हुई और मुझको ये हुक्म दिया गया के तू इस नूर को हमारी बारगाह में शफी बनाकर पेश करे तो तेरी दुआ क़बूल करली जाएगी चुनाचे इस हुक्म पर अमल होने से दुआ क़बूल हो गई | हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि ने फ़रमाया जो तुम दुआ माँगा करते थे वो क़बूल हो गई ऐ अबुल हसन अब वक़्त आगया है की तो एक जगह बैठकर अल्लाह की मख्लूक़ को अल्लाह की राह दिखा अब चले जाओ सूरह फातिहा यानि अल्हम्दु शरीफ से पढ़ना शुरू करो और जब आपने पढ़ना शुरू किया तो ख़रक़ान पहुंचने तक पूरा क़ुरआन ख़त्म कर लिया लेकिन बाज़ रिवायत में ये भी है की इस वाक़िए के बाद जब आप ख़रक़ान वापस आये तो आपने सिर्फ 24 चौबीस दिन में मुकम्मल पूरा क़ुरआन ख़त्म कर लिया | |
बैअत व खिलाफत :- आपके पिरो मुर्शिद “शैख़ अबुल मुज़फ्फर मौलाना तुर्क तूसी रहमतुल्लाह अलैह थे” उनकी शैख़ अबू यज़ीद अक्की से, उनकी शैख़ मुहम्मद मगरबी से, उनकी सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि से,और उनकी इमाम जाफर सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु से |
आपकी आजिज़ी :- आज के दौर में बहुत से ऐसे भी लोग हैं जिनको सूफी की हवा भी नहीं लगी है वो अपने को सूफी भी कहलाते हैं लेकिन आपकी आजिज़ी देखिए की एक बार आपके तमाम मुरीदीन और आपको सात दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला तो सातवे दिन एक आदमी एक आटे की बोरी और एक बकरी लेकर आया और आपके दरवाज़े पे आवाज़ दी के ये चीज़ें सूफ़ियाए किराम के लिए लाया हूँ आपने मुरीदीन से इरशाद फ़रमाया के में तो सूफी नहीं हूँ मुझे तो सूफी होने की सलाहियत नहीं लिहाज़ा तुममे जो सूफी हो वो जाकर लेले किसी ने भी अपने सूफी होने का दावा नहीं किया उस शख्स को वो दोनों चीज़ें वापस लेजाना पड़ी और सब लोग फ़ाक़े से रहे |
चालीस साल ईशा के वुज़ू से फज्र की नमाज़ :- चालीस साल तक कभी आपने एक लम्हा के लिए भी आराम नहीं किया और ईशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ अदा करते रहे चालीस साल के बाद एक दिन मुरीदीन से कहा के मुझे तकिया देदो में आराम करना चाहता हूँ | मुरीदीन को इससे बहुत हैरत हुई और पूछा के आज आप आराम कियूं करना चाहते हैं फ़रमाया आज मेने खुदा की बेनियाज़ी व इस्तगना का मुशाहिदा कर लिया है यानि तीस साल तक अल्लाह तआला के खौफ के सिवा मेरे दिल में कोई ख्याल पैदा नहीं हुआ |
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आप चालीस साल तक मुजाहिदा करते रहे :- चालीस साल के मुजाहिदे के बाद आपका इम्तिहान होता है आपने चालीस साल मुजाहिदा किया उसके बाद आपका इम्तिहान हुआ की एक बार आप अपने बाग़ के दरख्त यानि पेड़ पोदे लगा रहे थे तो वहां से चांदी निकली फिर आपने उस जगह को बंद कर दिया फिर आपने दूसरी जगह से ज़मीन खोदी तो वहां से सोना निकला फिर आपने तीसरी जगह ज़मीन खोदी तो वहां से हिरे जवाहिरात निकले लेकिन आपने किसी को भी हाथ नहीं लगाया और फ़रमाया ऐ अबुल हसन तू इन चीज़ों पे आशिक़ नहीं हो सकता ऐ अल्लाह मुझे ये सब नहीं चाहिए मुझे तेरा करम चाहिए मुझे तेरा फ़ज़ल चाहिए | जब आप खेत की जुताई करते उस वक़्त अगर नमाज़ का वक़्त हो जाता तो आप बेलों को छोड़कर फ़ौरन नमाज़ अदा करने चले जाते और जब नमाज़ पढ़कर खेत पर पहुंचते तो ज़मीन तैयार मिलती ये हैं औलियाए किराम इनको कहते हैं अल्लाह के वली जिको दुनिया से कुछ भी मतलब नहीं होता |
आपका मर्तबा :- किसी मुरीद ने आपसे कोहे लबनान पर जाकर क़ुत्बे आलम से मुलाक़ात करने की इजाज़त मांगी तो आपने उसको इजाज़त देदी और जब वो कोहे लबनान पर पंहुचा तो देखा के एक जनाज़ा रखा हुआ है | और सब लोग किसी का इन्तिज़ार कर रहे हैं | इस शख्स ने जब इन लोगो से मालूम किया की तुम लोग किस का इन्तिज़ार कर रहे हो तो उन लोगों ने कहा यहाँ पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ाने के लिए “क़ुत्बे आलम” तशरीफ़ लाते हैं | ये सुनकर इस शख्स को बहुत ख़ुशी हुई के अब तो बहुत जल्द क़ुत्बे आलम से मुलाक़ात हो जाएगी | चुनाचे कुछ देर के बाद लोगों ने सफ क़ाइम करली और नमाज़े जनाज़ा शुरू हो गई लेकिन जब इस शख्स ने गौर से देखा तो पता चला के नमाज़े जनाज़ा के इमाम खुद इस के पिरो मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह हैं | ये देखकर खौफ की वजह से बेहोश हो गया और होश आने के बाद देखा तो लोग जनाज़े को दफ़न कर चुके थे और आपका कहीं पता नहीं था फिर इस मुरीद ने इत्मीनान क़ल्बी के लिए लोगों से पूछा के इमाम साहब का नाम किया था लोगों ने कहा के यही तो “क़ुत्बे आलम हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह थे” और अब नमाज़ के वक़्त फिर यहाँ तशरीफ़ लाएंगें | चुनाचे वो मुरीद इन्तिज़ार करने लगा और जब आप नमाज़ पढ़ा चुके तो उसने फ़ौरन सलाम करके दमन थाम लिया लेकिन खौफ की वजह से इसकी ज़बान से एक जुमला भी नहीं निकला | फिर आपने इसको अपने साथ लिया और लेजाते वक़्त आपने फ़रमाया के तूने यहाँ जो कुछ देखा हैं उसको कभी ज़बान पर नहीं लाना कियुँकि मेने ख़ुदाए तआला से आहिद लिया हैं की मुझको मख्लूक़ की निगाहों से पोशीदाः छुपाकर रखना और मख्लूक़ को मेरे मर्तबे से आगाह मत करना सिवाए हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैहि के जो मरने के बाद भी हयात हैं |
क़ुत्बे आलम कौन होता हैं किसे कहते हैं :- इबने असाकर में हैं के तीन सौ औलिया तीस अब्दाल सात क़ुतब पांच अक़ताब और एक क़ुत्बे आलम क़ुत्बे आलम यूं समझ लीजिए जैसे किसी मुल्क का सबसे बड़ा हाकिम बादशाह वज़ीरे आज़म पिरसिडेंट या सदर जो पूरे मुल्क का निज़ाम चलता हैं उसको “क़ुत्बे आलम कहते हैं”
आपके कुछ फ़रामीन :- मशहूर हैं के आपने किसी दानिशवर अक़्लमंद से पूछा क्या तुम खुदा को दोस्त रखते हो या अल्लाह तआला तुम्हे दोस्त रखता हैं? उसने जवाब दिया के में खुदा को दोस्त रखता हूं अगर ऐसा हैं तो उसकी मईयत क्यों नहीं इख़्तियार करते हो इस लिए की दोस्त की सुहबत में रहना बहुत ज़रूरी हैं | इसी तरह का ज़िक्र हैं के एक मर्तबा आपने अपने शागिर्द से पूछा के सब से अच्छी कोनसी चीज़ हैं उसने जवाब दिया के मुझे इसका इल्म नहीं आपने फ़रमाया के तुम जैसे बे इल्म को तो बहुत ज़्यादा खौफ ज़दह रहना चाहिए तुम्हे मालूम नहीं के सबसे बेहतर वो चीज़ हैं जिसमे कोई बुराई न हो | मशहूर हैं के जब लोगों ने आपसे अर्ज़ किया की हज़रते जुनैद दुनिया में बा होश आये और होश के साथ चले गए और हज़रते शैख़ शिब्ली मद होश आये और मद होश लोट गए | आपने फ़रमाया अगर इन दोनों से पूछा जाए की तुम दुनिया में किस तरह आये और किस तरह वापस हुए तो ये कुछ भी नहीं बता सकेगें क्यूंकि इन दोनों मेसे कोई भी नहीं जानता के वो किस तरह आया और किस तरह वापस गया और आपने जिस वक़्त ये जुमला फ़रमाया तो गायब से आवाज़ आयी के ऐ अबुल हसन तूने बिलकुल दुरुस्त कहा क्यों के जो खुदा को पहचान लेता हैं उसको खुदा के सिवा कुछ नज़र नहीं आता | फिर लोगों ने आप से पूछा के फ़क़ीरी की अलामत क्या हैं तो आपने फ़रमाया क़ल्ब दिल पर ऐसा रंग चढ़ जाए जिस पर दूसरा कोई रंग न चढ़े के में खुदा के सिवा किसी को अपने क़ल्ब दिल में जगह नहीं देता और अगर कोई ख्याल अभी जाता हैं तो उसको फ़ौरन निकालकर फेंक देता हूं और आप फरमाते हैं के में इस मक़ाम पर हूं जहाँ ज़र्रे ज़र्रे की तहक़ीक़ का मुझे इल्म हैं के मेने 50 साल इस तरह गुज़ारे हैं के खुदा के साथ इस अख़लाक़ से रहा के मख्लूक़ की इसमें कोई गुंजाइश नहीं थी और नमाज़े ईशा से लेकर सुबह तक हालते क़याम में रहा और सुबह से शाम, तक इबादत में मशगूल रहता था और इसमें कभी पैर फैलाकर नहीं बैठा जब कहीं इसके बदले में ये मरातिब हासिल हुआ के ज़ाहिरी तौर में सोते हुए फिरदोस और जहन्नम की सैर करता हूँ और दोनों आलम मेरे लिए एक हो चुके हैं इस लिए के में हर वक़्त खुदा की मइय्यत यानी खुदा के साथ रहता हूँ और फरमाते है 40 साल से ने नफ़्स एक घूट ठन्डे पानी का ख्वाइश मंद है लेकिन मेने उसको महरूम कर रखा है इसलिए के मेने 70 साल खुदा की मइय्यत में यानी खुदा के साथ इस तरह गुज़ार दिए है के इस दौरान एक लम्हे के लिए भी मेने कभी अपने नफ़्स की पैरवी नहीं की |
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बादशाह मेहमूद ग़ज़नवी और आपकी बारगाह में हाज़री :- एक बार मेहमूद ग़ज़नवी ने अयाज़ से कहा के में तुझे अपना लिबास पहनाकर अपनी जगह पे बिठा दूंगा और तेरा लिबास पहिनकर खुद गुलाम की जगह पे बैठ जाऊँगा | चुनाचे जिस वक़्त बादशाह मेहमूद ग़ज़नवी हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाक़ात की नियत से ख़रक़ान पंहुचा तो क़ासिद से कहा तुम हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह से ये कहना के में सिर्फ आपसे मुलाक़ात करने आया हूँ | और अगर वो मुलाक़ात करने से इंकार करें तो इस आयात को पढ़ना “अतिउल्लाहा व अतिउर्रसूला व उलिल अमरि मिनकुम” यानि अल्लाह और उसके रसूल की इताअत के साथ अपनी क़ौम के हाकिम की भी इताअत करते रहो | चुनाचे जब क़ासिद ने आपको पैगाम पहुंचाया तो हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह ने माज़रत तबल की इसपर क़ासिद ने मज़कूरा ऊपर वाली आयत पढ़ी आपने जवाब दिया के मेहमूद से कह देना के “में अतिउल्लाहा” में ऐसा डूबा हुआ हूँ की “अतिउर्रसूल” में भी निदामत महसूस करता हूँ ऐसी हालत में “उलिल अमरि मिंकूम” का ज़िक्र ही क्या ये क़ौल जिस वक़्त क़ासिद ने मेहमूद ग़ज़नवी को सुनाया तो उसने कहा में तो एक मामूली सूफी तसव्वुर करता था लेकिन मालूम हुआ की वो तो बहुत ही कामिल बुजरुग हैं | लिहाज़ा हम खुद ही उनकी ज़ियारत के लिए हाज़िर होंगें | फिर मेहमूद ग़ज़नवी ने अयाज़ का लिबास पहना और 10 कनीज़ों को मरदों का लिबास पहनाकर और अयाज़ को अपना लिबास पहनाया और बतौर गुलाम इन दस कनीज़ों में शामिल होकर मुलाक़ात के लिए पहुंच गया तो आपने उसके सलाम का जवाब तो दे दिया लेकिन ताज़ीम के लिए खड़े नहीं हुए और मेहमूद ग़ज़नवी जो गुलाम का लिबास पहने हुए था उसकी तरफ आपने तवज्जोह फ़रमाई लेकिन अयाज़ जो बादशाह का लिबास पहने हुए था आपने उसकी तरफ कुछ भी तवज्जोह नहीं की और जब मेहमूद ग़ज़नवी ने पुछा की आपने बादशाह की ताज़ीम क्यों नहीं की तो आपने फ़रमाया ये सब कुछ एक फरेब है इस पर मेहमूद ग़ज़नवी ने जवाब दिया के ये फरेब ऐसा तो नहीं है के जिसमे आप जैसा शाहबाज़ फंस सके | फिर आपने मेहमूद ग़ज़नवी का हाथ थामकर फ़रमाया पहले इन नामेहरमो को बाहर निकाल दो फिर मुझसे गुफ्तुगू करना | चुनाचे मेहमूद ग़ज़नवी के इशारे पर तमाम कनीजें बाहर वापस चली गईं और मेहमूद ग़ज़नवी ने आपसे फरमाइश की के हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह का कोई वाक़िया बयान करें | आपने फ़रमाया के हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह का ये क़ौल था की जिसने मेरी ज़्यारत करली उसको बद बख्ती से निजात हासिल हो गई | इस पर मेहमूद ग़ज़नवी ने पुछा के क्या उनका मर्तबा हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी ज़्यादा था | के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को अबू जाहिल व अबू लहब जैसे मुन्किरीन ने देखा फिर भी उनकी बद बख्ती दूर न हो सकी इस पर आपने फ़रमाया ऐ मेहमूद ग़ज़नवी अदब को मलहूज़ रखते हुए अपनी विलायत में तसर्रुफ़ न करो फिर आपने नसीहत फ़रमाई के नमाज़ की पाबन्दी करो सख़ावत और शफ़क़त महिरबानी को अपना शिआर बनालो मेहमूद ग़ज़नवी ने दुआ के लिए अर्ज़ की हुज़ूर मेरे लिए दुआ करे सोमनात के क़िले पर कई बार हमला कर चुका हूँ ताके मुझे फ़तेह हासिल हो जाए | फिर आपने अपना जुब्बा मुबारक आता फ़रमाया और कहा इसे ले जाओ इसको सामने रखकर दुआ माँगना यहाँ पर हम आपको ये बात भी बता दें के जब के मंदिर और भी हैं इस्पे आप हमला करना क्यों चाहते थे उसकी वजह ये है के यहाँ इस मंदिर में 300 औरतों की आबरू उनकी इज़्ज़त हर रोज़ लूटी जा रही थी ये ज़मीन काँप रही थी है कोई हमे इससे निजात दिलाने वाला हमारी हिफाज़त करने वाला तब आपने हमला क्या और आज के दौर में स्कूल और कॉलिज में जाहिल क़िस्म के कुछ लोग यही पढ़ते सिखाते बकवास करते हैं की मेहमूद ग़ज़नवी ने भारत को लूट लिया इन को मालूम होना चाहिए जब ये 300 औरतों की आबरू उनकी इज़्ज़त हर रोज़ लूटी जारी थी ये ज़मीन काँप रही थी है कोई हमे इससे निजात दिलाने वाला हमारी हिफाज़त करने वाला तब आप गज़नी से चलकर हिंदुस्तान आये और मेहमूद ग़ज़नवी कोशिश करते हमला नहीं कर पाते फिर अपने पिरो मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह के जुब्बे मुबारक को सामने रखा और दुआ की ऐ अल्लाह मुझे हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी के जुब्बे के सदक़े फ़तह आता फरमा इसके बाद अपने हमला किया तो खुदाए पाक के करम से और हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी रहमतुल्लाह अलैह के वसीले से आपको फ़तेह हासिल हुई इस के बाद मेहमूद ग़ज़नवी ने रात को ख्वाब में अबुल हसन ख़रक़ानी को देखा तो आपने फ़रमाया ऐ मेहमूद इस मामूली चीज़ के लिए मेरे जुब्बे के सदक़े दुआ की अगर तुम ये दुआ करते के तमाम आलम के काफिर इस्लाम क़बूल करलें और दुनिया से कुफ्र ख़त्म हो जाए तो यक़ीनन तेरी दुआ क़बूल होती और उन कम अक़्ल को सोचना चाहिए के आपका एहसाने अज़ीम है के आपके भानजे “हज़रत सय्यद सालार मसऊद गाज़ी रहमतुल्लाह अलैह” जैसी दौलत हम हिन्दुस्तानियों को अता की के जहाँ आज भी अंधे कोढ़ी अपाहिज हर साल ठीक होते हैं हज़रत सय्यद सालार मसऊद गाज़ी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु अन्हु के बेटे हैं हनफ़िया आप उन्ही की औलाद में से हैं आपका माज़र शरीफ हिंदुस्तान के सूबा उत्तर प्रदेश में बहराइच शरीफ में है |
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हज़रत अबुल हसन ख़रक़ानी जंगल का शेर :- जब शैख़ बू अली सीना ने आपकी शोहरत सुनी तो आपसे मुलाक़ात के लिए घर पहुंचे और आपकी बीवी से पूछा के शैख़ अबुल हसन ख़रक़ानी कहाँ हैं तो आपकी बीवी ने जवाब दिया के कौन शैख़ कैसा शैख़ वो शैख़ कब से हो गए हो सकता है मेरे शोहर जंगल लकड़ियां लाने गए हों ये सुनकर शैख़ बू अली सीना को ख्याल हुआ के जब आपकी बीवी इस तरह की गुस्ताखी कर रही है न मालूम क्या बात है फिर इसके बाद आपकी तलाश में जंगल की तरफ रवाना हुए तो देखा की हज़रत शैख़ अबुल हसन ख़रक़ानी शेर की पीठ पर लकड़ियां लादकर तशरीफ़ ला रहे हैं ये वाक़िया देखकर बहुत हैरत हुई और आपके क़दम को चूमकर अर्ज़ क्या के अल्लाह पाक ने आपको ऐसा बुलन्द मक़ाम अता फ़रमाया है और आपकी बीवी आपके मुताअल्लिक़ बुरी बुरी बातें कहती है आखिर इस की क्या बात है आपने जवाब दिया अगर में ऐसी बकरी का बोझ बर्दाश्त न कर सकूं तो फिर ये शेर मेरा बोझ कैसे उठा सकता है |
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आपका विसाले मुबारक :- 10 मुहर्रम बरोज़ मंगल 425 हिजरी को आपका विसाल हुआ आपका मज़ारे पुर अनवार मुल्क ईरान के सूबा सिमनान के जिला “ख़रक़ान” में मरजए खलाइक़ है | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उनपर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
(मिरातुल असरार, तज़किरातुल औलिया)
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