हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की आज़माइश पर सबरो शुक्र का इनआम :- एक मशहूर इल्मी घराने के चश्मों चिराग, ज़ुहदो तक़वा के पैकर, सलाहीयत व काबिलीयत के एतिबार से मुमताज़ और कई उलूम पर दस्तरस रखने वाले नौजवान आलिमे दीन का मामूल था के जब भी कोई मुश्किल पेश आती मज़ाराते औलिया पर हाज़िर हो जाते, साहिबे मज़ार के वसीले से दुआ करते और अपनी दिली मुराद पाते, एक मर्तबा यही आलिम साहब एक इल्मी उलझन का शिकार हुए तो हज़रत सय्यदना बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार का रुख किया तीन महीने तक दरबारे हज़रत सय्यदना बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह पर इस तरह गुज़ारे के हर वक़्त बा वुज़ू रहते लेकिन मसअला हल नहीं हुआ |
शयद क़ुदरत को यही मंज़ूर था के इस बार मअनवी जवाब के बजाए तजुर्बे और मुशाहिदे के ज़रिए जवाब हासिल करें, आखिर कार इस मुश्किल के हल के लिए उन्होंने खुरदरा लिबास पहना असा और वुज़ू का बर्तन थामा, और खुरासान की तरफ सफर किया, रास्ते में एक गाँव आया तो आलिम साहब ने वहीँ रात गुज़ारने का फैसला कर लिया, गाऊं में वो एक ऐसी जगह पहुंचे जहां दीन दार नज़र आने वाले दुनियादार रिहाइश पज़ीर थे उन्हें वहां ऐसे कई चेहरे नज़र आये जो खुश हाली और बे फ़िकरि से दमक रहे थे जैसे ही इन लोगों की नज़र इस अजनबी नौजवान पर पड़ी तो उनमे से एक घमंड में बोला तुम कौन हो? आलिम साहब ने सख्त लबो लहजे को नज़र अंदाज़ करते हुए निहायत नरमी से जवाब दिया मुसाफिर हूँ रात गुज़ारने के लिए ठहरना चाहता हूँ वो सब ज़ोर से हंस पड़े और एक दुसरे से कहने लगे इस नौजवान आलिम ने एतिमाद के साथ जवाब दिया आपने बिकुल दुरुस्त कहा, बेशक में आप लोगों में से नहीं हूँ |
इन्होने आलिम साहब को नीचे की मंज़िल पर ठहराया और खुद ऊपर चले गए खाने के वक़्त उनके आगे फफूंदी लगी सूखी रोटी रख दी और खुद मुर्ग मुसल्लम खाते हुए उस नौजवान आलिम पर आवाज़ कसने लगे खाने से फरागत के बाद उन्होंने ख़रबूज़े खाए और छिलके उन आलिम साहब के सर पर फेंकने लगे इन नाज़ेबा हरकत पर सब्र का अज़ीमुश्शान मुज़ाहिरा करते हुए नौजवान आलिम ने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में अर्ज़ की या अल्लाह अगर में तेरे महबूबों का लिबास पहिनने वालों से न होता तो ज़रूर किनारा कश हो जाता, फिर अपने दिल की तरफ मुतावज्जे हुए जो तानो तशनी और न ज़ेबा हरकतों के बावजूद सुकून होने के साथ साथ खुश भी थे इस सुकून और ख़ुशी ने आलिम साहब पर ये बात ज़ाहिर कर दी के असल अल्लाह के नेक बन्दों को बुलंद मक़ामो मर्तबा तकलीफों पर सबरो शुक्र का मुज़ाहिरा करने से हासिल होता है, प्यारे इस्लामी भाइयों :- बुराई को भाई से टाल कर अपना जवाब पाने वाले ये नौजवान आलिम कोई और नहीं बल्के “हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह” थे, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप को वो मक़ाम अता फ़रमाया के सदियां गुरजर गईं और आज भी आप का फैज़ान जारी है |

आप की विलादत ब सआदत :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश कमो बेश चार सौ 400, हिजरी में अफगानिस्तान के सूबा ग़ज़नी में हुई, आप रहमतुल्लाह अलैह ने खानदाने “गज़नी” के दो मुहल्लों जुल्लाब व हजवेर में रिहाइश इख़्तियार फ़रमाई इसी लिए आप हजवेरी जुल्लाबी कहलाते हैं, ये क़ौल ये भी है के आप का ज़मानाए पैदाइश 381 हिजरी से 401 हिजरी के दरमियान मुतअय्यन किया जा सकता है |

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आप का सिलसिलए नसब :- आप रहमतुल्लाह अलैह की कुन्नियत “अबुल हसन” आप का नाम “अली” और लक़ब दाता गंज बख्श है | माहिरे अनसाब पीर गुलाम दस्तगीर नामी रहमतुल्लाह अलैह ने आप का शजराए नसब इस तरह ब्यान फ़रमाया है: हज़रत मखदूम अली बिन सय्यद उस्मान बिन सय्यद अब्दुर रहमान बिन सय्यद अब्दुल्लाह शोजा बिन सय्यद अबुल हसन अली बिन सय्यद हसन बिन सय्यद ज़ैद बिन हज़रत इमाम हसन रदियल्लाहु तआला अन्हु बिन अली कर्रामल्लाहु तआला वज हहुल करीम |

आप का मज़ारे अनवर मरकज़ुल औलिया लाहौर शरीफ पाकिस्तान में भाटी दरवाज़े के बाहर के हिस्से में है इसी मुनासिबत से मर्कज़ुल औलिया और दाता नगर भी कहा जाता है, आप के विसाल को तक़रीबन 900 साल का लम्बा अरसा हो गया है, लेकिन आज भी अपने मज़ारे अनवर में रह कर अपने अक़ीदत मंदों की हाजत रवाई फरमाते हैं |

आप का हुलिया मुबारक :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह का क़द दरमियाना, जिस्म सूडूल यानि मुतनासिब और ख़ूबसूरत और घटा हुआ यानि मज़बूत था, जिस्म की हड्डियां मज़बूत और बड़ी थीं फराख यानि कुशादा सीना और हाथ पाऊँ मुनासिब थे, चेहरा गोल था न लम्बा सुर्ख व सफ़ेद चमकदार रंगत कुशादा पेशानी और बाल सीयह घने थे, बड़ी और खूबसूरत आँखों पर घनी अबरू थीं पतली नाक दरमियाने होंठ और रुखसार भरे हुए थे, रेश यानि दाढ़ी मुबारक घनी थी आप बड़े जाज़िब नज़र पुर कशिश थे |

आप का लिबास :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह लिबास के मुआमले में किसी किस्म का तकल्लुफ नहीं करते, मियाना रवि इखतिर फरमाते और जो लिबास मिल जाता सबरो शुक्र करते हुए उसी को ज़ेबे तन फरमा लेते गोया आप रहमतुल्लाह अलैह का लिबास नमूदो नुमाइश के लिए नहीं बल्के सिर्फ जिस्म छुपाने के लिए होता |

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आप का घराना मुत्तक़ी घराना है :- प्यारे इस्लामी भाइयों इंसान को नेक और मुत्तक़ी बनाने में सब से ज़्यादा मुआस्सिर घर का माहौल होता है क्यूंकि घर ही वो कार खाना है जहाँ नेकी ज़ुहदो तक़वा और इल्मो अमल के औज़ार से एक मिआरी इंसान तैयार होता है और घरेलू तरबियत ही अख़लाक़ो किरदार को आला बनाने में सब से ज़्यादा कार आमद साबित होती हैं, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह के वालिद हज़रत सय्यदना उस्मान रहमतुल्लाह अलैह अपने वक़्त के जय्यद आलिम और आबिदो ज़ाहिद थे, शाहाने गज़नी के ज़माने में दुनिया के कोने कोने से उलमा, फुज़्ला, शोअरा, और सूफ़िया गज़नी में जमा हो गए थे |
जिस की वजह से गज़नी उलूम व फुनून का मरकज़ बन चुका था, हज़रत सय्यदना उस्मान रहमतुल्लाह अलैह ने भी यहाँ रिहाइश इख़्तियार फ़रमाई आप रहमतुल्लाह अलैह की वलिदाह माजिदाह हुसैनी सादात से थीं, आबिदा ज़ाहिदा खातून थीं, गोया हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह “नजीबुत तरफ़ैन सय्यद थे” इसी लिए आप हसनी जमाल और हुसैनी कमाल दोनों ही के जामे थे, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह के मामू ज़ुहदो तक़वा की बिना पर “ताजुल औलिया” के लक़ब से शुहरत हासिल थी, आप का खानदान शराफत व सदाक़त और इल्मो फ़ज़ल की वजह से मशहूर था, इल्म के मोतियों की चमक दमक ज़ुहदो तक़वा के नूर से मुनव्वर घराना दर असल आप की शख्सीयत साज़ी का कार खाना साबित हुआ और इसी कार खाने ने आप रहमतुल्लाह अलैह के अख़लाक़ व किरदार और इल्मो अमल को दाइमी खुसबू बख्शी जिसकी महक आज तक दिलो दिमाग को मुअत्तर कर रही है,

आप के शहर की इल्मी व अमली फ़िज़ा :- गज़नी तहज़ीब व तमद्दुन और इल्मो हिकमत की वजह से तरक़्क़ी याफ्ता और बहुत अहमियत का हामिल था और अहमियत की वजह ये थी के बड़े बड़े उलमा सूफ़िया और तारीख व जुग़राफ़िया दान इस शहर में रहते थे, आप के दौर में गज़नी हुसूले इल्म और ज़ाहिरी व बातनि तरबियत का बेमिसाल मरकज़ बन चुका था, इल्म की इस तरक़्क़ी का असर हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह पर भी हुआ यही वजह है के जब कम उमरी में एक गैर मुस्लिम फलसफी से मुकालिमा हुआ तो आप रहमतुल्लाह अलैह ज़बरदस्त दलाइल और उम्दह अंदाज़े बयान के सबब कामयाब व कामरान हुए,

आप का शौक़े इल्म :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह की तालीम व तरबियत के बारे में एक किताब में लिखा है के जिस पाकीज़ा फितरत माँ की आगोश में आप ने परवरिश पाई इस की ज़बान ज़िक्रे इलाही में मसरूफ और दिल जलवाए हक़ से सरशार रहता था, आप को बचपन से ही इबादत का शोक था, नेक वालिदैन की तरबियत ने आप के अख़लाक़ को शुरू ही से पाकीज़गी के सांचे में ढाल दिया था, होश सभालते ही आप को तालीम के लिए मकतब में बिठा दिया गया, हुरूफ़ शनाशी के बाद आप ने क़ुरआन शरीफ पढ़ लिया,
हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने बच पन से ही मेहनत व जाँफ़िशानी के साथ इल्मे दीन हासिल करना शुरू कर दिया, चुनाचे हज़रत ख्वाजा मस्तान शाह काबुली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है: जिन का दिल अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ मुतावज्जेह हो वो दुनिया की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखते, हज़रत सय्यदना अली बिन उस्मान हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह सुल्तान मेहमूद ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह के क़ाइम करदाह दीनी मदरसे में तक़रीबन बराह तेरह साल की उमर में ज़ेरे तालीम थे, हुसूले इल्म के जज़्बे से सरशार तालीम में इतना मशगूल होते के सुबह से शाम होती मगर पानी तक पीने की फुर्सत न मिलती, रिज़वान नामी सफ़ेद रेश बुज़रुग इस मदरसे के मुदर्रिस थे, वो अपने इस खामोश तबअ तालिबे इल्म को तकरीम की निगाह से देखते थे,

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मदरसे की ज़ीनत :- एक रोज़ सुल्तान मेहमूद ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह का गुज़र इस मदरसे के पास से हुआ तो वो इस अज़ीम दरसगाह में तशरीफ़ लाए, तमाम तलबा ज़ियारत के लिए, दौड़े लेकिन हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह मुताले में इस क़द्र मशगूल थे के आप को सुल्तान की आमद की खबर ही न हुई, उस्ताद साहब ने पुकारा देखो अली कौन आया है? अब क्या था एक तरफ सुल्तान मेहमूद ग़ज़नवी और दूसरी जानिब एक कम सिन तालिबे इल्म, अजीब मंज़र था, सुल्तान मेहमूद ग़ज़नवी ने इस नो उमर तालिबे इल्म पर एक नज़र डाली लेकिन तजल्लियात की ताब न लाते हुए फ़ौरन नज़रें झुका दीं और मुदर्रिस से कहा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की क़सम ये बच्चा खुदा की तरफ रागिब है ऐसे तालिबे इल्म मदरसे की ज़ीनत हैं |

हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने तीन सौ 300, मशाइख से फैज़ हासिल किया :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह के उस्तादों की तवील फिहरिस्त में तीन का तज़किराह मुलाहिज़ा कीजिए इस से अंदाज़ा होगा के आप ने जिन अल्लाह वालों से फैज़ हासिल किया उन पर अल्लाह के किस क़द्र इनआमात थे उन्होंने आप को किस तरह नवाज़ा आप ने जितने भी ममालिक का सफर फ़रमाया इस का मक़सद उलमा व मशाइख की बारगाह में हाज़िर हो कर इक्तिसाबे फैज़ करना और अपनी इल्मी प्यास बुझाना था, इस मक़सद के हुसूल के लिए “आप ने सिर्फ खुरासान के तीन सौ मशाइख की खिदमत में हाज़री दी” और उनके इल्मो हिकमत के पुर बहार गुलिस्तानो से गुल चीनी कर के अपना दामन भरते रहे, जिन बुज़ुर्गों की बारगाह में हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने हाज़री दी उन में से एक “हज़रत सय्यदना अबुल क़ासिम अब्दुल करीम बिन हवाज़िन कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह” भी हैं, साहिबे रिसालाए कुशैरिया ज़ैनुल इस्लाम हज़रत सय्यदना अबुल क़ासिम अब्दुल करीम बिन हवाज़िन कुशैरी शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह की विलादत 376 हिजरी इस्तवा निशापुर ज़िला खुरासान ईरान में हुई, आप इल्मे तफ़्सीर, हदीस कलाम, फलसफा फ़िक़ह और तसव्वुफ़ में माहिर थे :- आप की 16 तसानीफ़ में “रिसाला कुशैरिया” को आलमगीर शुहरत हासिल हुई, आप ने 17 रबीउल आखिर 465 हिजरी में वफ़ात पाई, मज़ारे मुबारक ज़िला खुरासान ईरान में है, आप रहमतुल्लाह अलैह के अला अख़लाक़ औसाफ़ को बेपनाह शुहरत हासिल है लेकिन आप का सब से खूबसूरत वस्फ़ लगवियात से परहेज़ है जिस का ज़िक्र ख़ुसूसीयत के साथ हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “कशफ़ुल महजूब” में फ़रमाया है, आप फरमाते है हज़रत अबुल क़ासिम अब्दुल करीम बिन हवाज़िन कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह अपने ज़माने में यकता और क़द्रो मन्ज़िलत में बुलंद व अशरफ थे, आप के हालात और फ़ज़ाइल अहले ज़माना में मशहूर हैं हर फन में आप के लताइफ मौजूद हैं आप की मुहक़्क़िक़ाना तसानीफ़ कसरत के साथ हैं अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप के हाल व ज़बान को लगवियात से मेहफ़ूज़ रखा,
प्यारे इस्लामी भाइयों मालूम हुआ जिसे अल्लाह पाक लगवियात से मेहफ़ूज़ रखे उसका शुमार पसंदीदा बन्दों में होता है उस पर रहमते इलाही झूम झूम कर बरसती है लिहाज़ा रहमते इलाही का हक़दार बनने के लिए खुद को फ़ुज़ूलियात और लगवियात से बचाइए,
हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत अबुल क़ासिम कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह से जो कुछ सुना और सीखा उन में से चाँद बातों को अपनी माया नाज़ किताब “कशफ़ुल महजूब में लिखा है इस सिलसिले में दो हिकायात मुलाहिज़ा कीजिए,

मुझे मोती नहीं चाहिए थे :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेने हज़रत सय्यदना अब्दुल करीम बिन हवाज़िन कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह को ये फरमाते हुए सुना मेने एक बार तायरानी रहमतुल्लाह अलैह से पूछा आप अपना इब्तिदाई हाल सुनाओ इरशाद फ़रमाया एक वक़्त मुझ पर वो था के एक पथ्थर की ज़रुरत पड़ी, सर खस की एक नाहिर से जो पथ्थर मेने उठाया वही जोहर क़ीमती पथ्थर बन गया मेने उसे फेंक दिया, हज़रत सय्यदना अबुल क़ासिम अब्दुल करीम बिन हवाज़िन रहमतुल्लाह अलैह आप के इस अमल की वज़ाहत करते हुए फरमाते हैं ये इस लिए नहीं के उन की नज़र में जोहर क़ीमती पथ्थर और पथ्थर बराबर थे बल्कि इस लिए के पथ्थर की ज़रुरत थी जोहर क़ीमती पथ्थर की ज़रुरत नहीं थी |

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रब की रज़ा में मेरी रज़ा है :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेने उस्ताद अबुल क़ासिम कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह से सुना के लोगों ने गरीबी व अमीरी में गुफ्तुगू कर के अपने लिए एक को पसंद कर लिया है मगर में ये पसंद करता हूँ के मेरे लिए मेरा जमील हक़ीक़ी अल्लाह पाक जो पसंद फरमाए उस में ही मुझे रखे अगर मेरे लिए दौलत मंद होना पसंद फरमाए तो मुझे अपनी याद से गाफिल न करे और अगर ग़ुरबत पसंद फरमाए तो इस में हिरसो लालच से मेहफ़ूज़ रखे |

आप का मज़ारे अनवर मरकज़ुल औलिया लाहौर शरीफ पाकिस्तान में भाटी दरवाज़े के बाहर के हिस्से में है इसी मुनासिबत से मर्कज़ुल औलिया और दाता नगर भी कहा जाता है, आप के विसाल को तक़रीबन 900 साल का लम्बा अरसा हो गया है, लेकिन आज भी अपने मज़ारे अनवर में रह कर अपने अक़ीदत मंदों की हाजत रवाई फरमाते हैं |

हज़रत अबुल अब्बास अहमद बिन मुहम्मद अश्कानी :- हज़रत अबुल अब्बास अहमद बिन मुहम्मद अश्कानी रहमतुल्लाह अलैह भी हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह असातिज़ा में से हैं, आप निशा पुर के करीब शाकान खुरासान ईरान में पैदा हुए, आप रहमतुल्लाह अलैह आलिम मुदर्रिस और शैखुल मशाइख थे, सारी ज़िन्दगी निशा पुर के एक मदरसे में तदरीस करते हुए गुज़ारी आप भी ज़ाहिरी व बातनि उलूम में यकसां महारत रखते थे, आप का तज़किराह करते हुए, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मुझे उन से बेहद मुहब्बत है, मुझ पर वो खुसूसी शौक़त फरमाते थे, बाज़ उलूम में वो मेरे उस्ताद हैं, जब तक में उन के पास रहा उन से पढ़ कर ताज़ीम शरीअत करने वाला किसी को नहीं पाया,

हज़रत अबुल क़ासिम अब्दुल्लाह क़ासिम बिन अली गुर्गानी :- हज़रत अबुल क़ासिम अब्दुल्लाह क़ासिम बिन अली गुर्गानी रहमतुल्लाह अलैह ज़बरदस्त वलीउल्लाह गुज़रे हैं, आप की पैदाइश 380 हिजरी में गुर्गान तूस सूबा खुरासान में हुई, आप आलिम, सूफी, और साहिबे तसनीफ़ बुज़रुग थे, आप रहमतुल्लाह अलैह ने 23 सफारुल मुज़फ्फर 450 हिजरी में विसाल फ़रमाया, मुज़ारे मुबारक तुरबते हैदरिया सूबा खुरासान रज़वी ईरान में है, आप को तमाम ज़ाहिरी उलूम पर दस्तरस हासिल थी, हुसने अख़लाक़ भी बेमिसाल था, तलबा की बात निहायत तवज्जु और इत्मीनान से सुनते और उनकी दिल की कैफियत जानकार इस्लाह फ़रमाया करते लोग आप पर बेपनाह भरोसा करते और हर एक का दिल आप की तरफ खिंचा चला जाता इन्ही ख़ुसुसियात की बिना पर आप “लिसानुल असर” के लक़ब से मशहूर थे, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह को भी आप से फैज़ मिला |

हज़रत सय्यदना खिज़र अलैहिस्सलाम से इक्तिसाबे फैज़ :- हज़रत सय्य्दना अली ख्व्वास रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, हज़रत सय्यदना खिज़र अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात की तीन शर्तें हैं, जिस में ये तीन शराइत न हों वो आप से मुलाक़ात नहीं कर सकता अगरचे जिन्नो इंसान से ज़्यदा इबादत गुज़ार है, (1) वो सुन्नत का आमिल हो बिदअती न हो (2) दुनिया पर हरीस लालच न हो अगर वो एक रोटी भी दुसरे दिन के लिए बचाकर रखे तब भी हज़रत सय्यदना खिज़र अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात नहीं कर सकेगा (3) मुसलमानो के लिए उसका सीना बिकुल साफ़ हो न तो उस के दिल में कीना हो न ही हसद और न ही वो किसी पर घमंड करता हो,
हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह आमिले सुन्नत हिरसे दुनिया से कोसो दूर और मुसलमानो के खैर ख़्वाह थे इसी लिए आप ने हज़रत सय्यदना खिज़र अलैहिस्सलाम से न सिर्फ मुलाक़ात फ़रमाई बल्कि आप की सुहबत में रह कर ज़ाहिरी व बातनि उलूम हासिल फरमाए, आप की हज़रत सय्यदना खिज़र अलैहिस्सलाम से बहुत ही गहरी दोस्ती थी |

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आप का सिलसिलए तरीक़त और आप के पीरो मुरशिद कौन हैं? :- बुज़ुर गाने दीन का मामूल रहा है के दुनिया व आख़िरत में कामयाबी के लिए किसी मुर्शिदे कामिल से शरफ़े बैअत ज़रूर हासिल फ़रमाया करते यूं ज़ाहिर की तामीर के साथ साथ बातिन की तरक़्क़ी का सिलसिला भी शुरू हो जाता, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह “हज़रत ख्वाजा अबुल फ़ज़ल मुहम्मद बिन हसन खुत्तली जुनैदी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे” |
आप का शजराए तरीक़त 9 वास्तों से हज़रत सय्यदना अली मुर्तज़ा शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु तक पहुँचता है, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह के शैख़े कामिल का नाम “हज़रत ख्वाजा अबुल फ़ज़ल मुहम्मद बिन हसन खुत्तली जुनैदी रहमतुल्लाह अलैह” है उन के शैख़ का नाम “हज़रत सय्यदना अबुल हसन अली बिन इब्राहीम हुसरी रहमतुल्लाह अलैह हैं” उनके शैख़ का नाम “हज़रत सय्यदना अबू बक्र शिब्ली रहमतुल्लाह अलैह है”, जो मुरीद थे “हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह” के और वो मुरीद थे हज़रत सय्यदना सिर्री सक़्ति रहमतुल्लाह अलैह” और उनकी बैअत “हज़रत सय्यदना मारूफ करखी रहमतुल्लाह अलैह” से थी और खलीफा भी थे, “हज़रत दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह की बैअत हज़रत सय्यदना हबीब अजमी रहमतुल्लाह अलैह से थी”, और वो मुरीद थे “हज़रत सय्यदना ख्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह” जिन्हें फैजाने तरीक़त “हज़रत सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से हासिल हुआ था” जिन की परवरिश आग़ोशे नुबुव्वत में हुई और जो फैजाने रिसालत से फ़ैज़याब हुए, |

आप के पीरो मुर्शिद का तआरुफ़ खुद आप की ज़बान से :- हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह अपने मुर्शिदे करीम का मक़्क़ाम व मर्तबा बयान करते हुए फरमाते हैं अइम्मए मुता अख्खिरीन (उस ज़माने के लोग) में से ज़ीने औताद यानि औताद की ज़ीनत शैख़े इबाद यानि इबादत गुज़ार बुज़रुग हैं, तरीक़त में मेरी इरादत इन्ही से है, आप इल्मे तफ़्सीर व रिवायात के आलिम और तसव्वुफ़ में हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह के हम मशरब थे, हज़रत सय्यदना अबुल हसन अली बिन इब्राहीम हुसरी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद, सररादी रहमतुल्लाह अलैह के मुसाहिब और हज़रत अबू हसन बिन सालबा रहमतुल्लाह अलैह के हम अस्र थे 60 साल कामिल गोशा नशिनी इख्तियार फ़रमाया, आप की निशानियाँ और बराहीन बकसरत हैं, लेकिन आप आम सुफयों के रस्म व लिबास के पाबंद न थे, अहले रूसूम से सख्त बेज़ार थे मेने आप से बढ़ कर किसी और का रुअब व दबदबा नहीं देखा |

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तवक्कुल की बरकत :- मुर्शिद की सुहबत में रह कर अक़्लमंद मुरीद सीखता और अपनी इस्लाह की कोशिश करता है पढ़ कर भी इल्म हासिल किया जा सकता है लेकिन मुर्शिद की अदाओं ज़ाहिन में मेहफ़ूज़ रख कर मौक़ा बा मौक़ा तसव्वुरे मुर्शिद करने से इस इल्म पर अमल करना आसान हो जाता है, हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं एक दिन मेरे मुर्शिदे बर हक़ ने बैतूल जिन्न से दमिश्क़ जाने का इरादा फ़रमाया बारिश की वजह से मुझे कीचड़ में चलने में दुशवारी हो रही थी मगर जब मेने अपने मुर्शिद की तरफ देखा तो आप के कपड़े और जूतियां खुश्क थीं, में ने आप से पूछा तो आप ने इरशाद फ़रमाया हाँ जब से मेने तवक्कुल की राह में अपने क़स्द व इरादे को ख़त्म करके बातिन को लालच की वहशत से मेहफ़ूज़ किया उस वक़्त से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे कीचड़ से बचा लिया |
हज़रत सय्यदना अबुल फ़ज़ल मुहम्मद बिन हसन खुत्तली दुनिया की हक़ीक़त बयान करते हुए फरमाते हैं, दुनिया एक दिन की है और हम इस में रोज़ादार हैं, |

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