सिद्क़ सादिक़ का तसद्दुक़ सादिकुल इस्लाम कर
बे गज़ब राज़ी हो काज़िम और रज़ा के वास्ते
आप की पैदाइश :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु की विलादत बसआदत 17, रबीउल अव्वल बरोज़ पीर के दिन 80, हिजरी या 83, हिजरी मदीना शरीफ में हुई, में
आप हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु के बेटे हैं और हज़रत इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के पोते और शहीदे कर्बला हज़रते सय्यदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पर पोते थे,
आप का इसमें मुबारक कुन्नियत व लक़ब :- आप का नाम “जाफर बिन मुहम्मद” कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह अबू इस्माईल, और लक़ब “सादिक़” “फ़ाज़िल” और “ताहिर” है,
आप की वालिदा मुहतरमा :- आप की वालिदा मुहतरमा अम्मी जान का नाम “उम्मे फरवाह” है जो मुहम्मद बिन अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की पोती थीं, जिन के वालिद क़ासिम बिन मुहम्मद बिन अबू बक्र हैं, और क़ासिम रदियल्लाहु अन्हु की वालीदह अस्मा हैं, जो बेटी हैं हज़रत अब्दुर रहमान बिन अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की,
इसी वजह से हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु फ़रमाया करते थे, के “में अबू बक्र सिद्दीक से दो मर्तबा पैदा हुआ हूँ” और आप के नाना जान का नाम हज़रत सय्यदना क़ासिम रदियल्लाहु अन्हु है,
आप का हुलिया शरीफ :- आप बड़े हसीनो जमील और निहायत शकील खूब सूरत थे, क़द मुबारक जच्चा तुला रंग गंदुम गेहूं जैसा, बाक़ी सूरतो सीरत में अपने आबाओ अजदाद के मिस्ल थे,
आप के फ़ज़ाइलो कमालात :- हज़रत इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु आप के दादा हैं, नीज़ आप को तबे तबईन में से होने का शरफ़ भी हासिल है,
आप की वालिदा मुहतरमा सय्यदा “उम्मे फरवाह” हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की पर पोती भी थीं, और पर नवासी भी इस लिए आप फ़रमाया करते थे, के “मुझे अबू बक्र सिद्दीक से दोहरी विलादत होने का शरफ़ हासिल है,
आप “छटे इमाम सिलसिलए आलिया मशाइखे क़दीरिया रज़विया के हैं” आप को अगर मिल्लते नबवी का सुल्तान और दीने मुस्तफ़वी का बुरहान कहें तो दुरस्त है, आप वक़्त के इमाम अहले ज़ौक़ के खिदमत गार इश्क़ो मुहब्बत के पेशवा थे, आबिदों के मुक़द्दम और ज़ाहिदों के मुकर्रम थे, आप ने तरीकत की बेशुमार बातें बयान फ़रमाई है और अक्सर रिवायत आप से मरवी हैं आप को हर इल्मो इशरत में बेहद दर्जे का कमाल था, और आप बुर्गज़ीदा जुमला मशाइख इज़ाम थे सब का आप की ऊपर एतिमाद था और आप को पेशवाए मुतलक़ जानते थे,
हाफ़िज़ अबू नोएम अस्फहानी “ख़लीफ़तुल अबरार” में उमर बिन मिक़्दाम से रिवायत करते हैं: वो फ़रमाया करते थे की जब में हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु को देखता था तो मुझे ख्याल होता था की ये अम्बियाए किराम की नस्ल से हैं,
“तब्कातुल अबरार” में है की आप ने अपने वालिद माजिद और ज़ेहरि और नाफ़े से और इब्नुल मुकंदिर वगैरह से हदीस ली है और आप से सुफियान सौरी, इबने उईना, शोबआ, याहया अल क़ितान, इमाम मालिक और आप के बेटे हज़रत सय्यदना इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु ने हदीस की रिवायत की है,
और “अस्सवाइके मुहर्रिका” में अल्लामा इबने हजर मक्की रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं की अकाबिर अइम्मा में से मिस्ल याहया बिन सईद व इबने जरीह व इमाम मालिक इबने अनस व इमाम सुफियान सौरी व सुफियान
उईना और इमाम आज़म अबू हनीफा व अबू अय्यूब सजिस्तानी ने आप से हदीस को अख़्ज़ किया है (लिया है),
और अबुल कासिम कहते हैं की हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु ऐसे सिका सच्चे हैं के आप जैसे की निस्बत हर गिज़ पूछा नहीं जाता,
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आप की आदात अख़लाक़ व सिफ़ात :- आप इंतिहाई बुलंद मक़ाम और नेक खसलत थे, औसाफ़ ज़ाहिरी से आरास्ता और रौशनी बातिन से पैरास्ता थे गुरबा व मसाकीन (गरीब फ़क़ीर) के साथ बड़ी दिल जोई व मुहब्बत के साथ पेश आते थे,
मन्क़ूल: है के एक दिन आप अपने गुलामों के साथ बैठे हुए थे और उन से कह रहे थे के आओ इस चीज़ का अहिद और एक दूसरे के हाथ में हाथ दे कर वादा करें के कयामत के दिन हम्मे से जो कोई निजात पाए वो बाक़ी सब की शफ़ाअत करे, उन लोगों ने कहा ए इबने रसूल आप को हमारी शफ़ाअत की किया ज़रूरत है इस लिए के आप के नाना जान तो खुद तमाम मख्लूक़ की शफ़ाअत करने वाले हैं, तो आप ने फ़रमाया के मुझे शर्म आती है के अपने आमाल के साथ क़यामत के दिन अपने नाना जान के सामने जाकर उन से आँखे चार कर सकूं,
हज़रत दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह एक मरता आप की खिदमत में आए और कहा ए फ़रज़न्दे रसूले खुदा मुझे कोई नसीहत फरमाएं क्यूंकि मेरा दिल सीयह हो गया है?
तो आप ने इरशाद फ़रमाया के ए सुलेमान तू खुद अपने ज़माने का बुर्गज़ीदा ज़ाहिद है तुझे मेरी नसीहत की क्या ज़रूरत है? हज़रत दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ए फ़रज़न्दे रसूले आप को तमाम मखलूक पर बरतरी हासिल है और हर किसी को नसीहत करना आप पर वाजिब है आप ने इरशाद फ़रमाया ए सुलेमान में इस बात से डरता हूँ के क़यामत के दिन मेरे जद्दे मुहतरम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरा गिरीबांन पकड़ कर पूछने लगें के तूने हक़ की मुताबिअत के अदा करने में कोताही क्यूंकि? तो में किया जवाब दूंगा इस लिए ये काम रिश्ताए सही ये आला खानदान पर मुन्हसिर नहीं बल्के इस का तअल्लुक़ अच्छे अमाल से है, जो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की राह में किये जाएं, हज़रत दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह को इस बात पर रोना आए गया और कहने लगे के या खुदा वो शख्स जिस की तीनत आबे नुव्वत से मुरक़्क़ब हो और जिस की तबियत का खमीर बुरहान व हुज्जत से उठाया गया है जिस के जद्दे अमजद पैग़म्बरे खुदा हैं, जिनकी वालिदा माजिदा हज़रत बुतूल जैसी खातून हैं, इस बात में इतने फ़िक्र मंद हैं तो दाऊद की किया मजाल जो अपने मुआमलात पर नाज़ करे,
आप की इबादतों रियाज़त :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु आप ज़ुहदो तक़वा शिआरी नीज़ रियाज़त व मुजाहिदात और इबादत गुज़ारी में मशहूर थे, इमाम मालिक का बयान हैं के एक ज़माने तक में आप की खिदमत में आता रहा, मगर मेने हमेशा आप को तीन इबादतों में से एक में मसरूफ पाया, या तो आप नमाज़ पढ़ते हुए मिलते या तिलावत में मशगूल होते या रोज़ा दार होते, आप बिला वुज़ू कभी हदीस शरीफ की रिवायत नहीं फरमाते थे,
आप मुस्तजाबुद दावात थे (जिस की दुआ क़बूल होती हो) :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु इस दर्जा मुस्तजाबुद दावात व कसीरुल करामात थे के जब आप को किसी चीज़ की ज़रुरत महसूस होती तो आप हाथ उठा कर दुआ करते के ए मेरे रब मुझे फुलां चीज़ की ज़रूत है आप की दुआ ख़त्म होने से पहले ही वो चीज़ आप के पहलू में मौजूद हो जाती,
चुनाचे अबुल कासिम तबरी इबने वहब से नकल करते हैं के मेने लैस बिन सअद रहमतुल्लाह अलैह को फरमाते सुना के में 113, हिजरी में हज के लिए पैदल चलता हुआ मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा पहुंचा,
असर की नमाज़ के वक़्त जबले अबू कबीस पर पहुंचा तो वहां एक बुजरुग को देखा के बैठे हुए दुआएं मांग रहें हैं, और या रब्बी या रब्बी, इतनी बार कहा के दम घुटने लगा, फिर इसी तरफ या हय्यू या हय्यू, कहा फिर इसी तरह लगा तार या रब्बा हू या रब्बा हू, कहा फिर इसी तरह एक सांस में या अल्लाह हू या अल्लाह हू, कहा फिर इसी तरह या रहमानू या रहमानू, फिर या रहीमू या रहीमू, फिर या अरहमर राहीमीन अरहमर राहीमीन, कहते रहे, उस के बाद कहा या अल्लाह मेरा दिल अंगूर खाने को चाहता है वो अता फरमा,
और मेरी चादरें पुरानी हो गयीं हैं मुझे नई चादरें अता फरमा लैस रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के खुदा की क़सम अभी आप की दुआ ख़त्म भी नहीं हुई थीं के मेने अंगूर की एक भरी टोकरी रखी देखि हालांके वो मौसम अंगूर का नहीं था और न ही कहीं उस का नामो निशान था, और साथ में चादरें भी रखी हुई थीं के आज तक मेने वैसी चादरें कहीं नहीं देखीं, उसके बाद आप अंगूर खाने के लिए बैठ गए मेने कहा के हुज़ूर में भी आप का शरीक हूँ फ़रमाया कैसे? मेने कहा जब आप दुआ में मशगूल (बीजी) थे तो में अमीन अमीन कह रहा था, तो आप ने इरशाद फ़रमाया अच्छा आगे बड़ कर खाओ में आगे बड़ कर अंगूर खाने लगा वो अंगूर ऐसे उम्दा लज़ीज़ थे वैसे अंगूर मेने कभी नहीं खाये थे यहाँ तक के मेरा पेट भर गया और टोकरी वैसी की वैसी भरी रही उस के बाद मुझ से फ़रमाया इससे ज़खीरा मत रखना और न ही इससे कुछ छुपाना फिर एक चादर भी मुझे अता फरमाने लगे, मेने कहा के मुझे इस की ज़रूरत नहीं है उस के बाद आप ने एक चादर का तहबन्द बांधा और दूसरी चादर को ओढ़ लिया और दोनों पुरानी चादर हाथ में लिए हुए नीचे उतरे में भी आप के पीछे चलने लगा जब आप सफा मरवा के क़रीब पहुंचे तो एक साइल ने कहा:
ए इबने रसूल ये कपड़ा मुझे पहना दो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त आप को जन्नत का हुल्लाह पहनाएगा तो उन्होंने दोनों चादरें उस को देदीं, मेने उस साइल के पास जाकर उससे पूछा ये कौन हैं? उस ने कहा ये “हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ बिन मुहम्मद रदियल्लाहु अन्हु हैं” मेने फिर उनको ढूंढा ताके उन से कुछ सुनूँ और नफ़ा हासिल करूँ मगर में उनको नहीं पा सका,
क़ीमती लिबास :- इसी तरह एक मर्तबा का एक वाकिया है के आप लोगों ने बहुत ही उम्दा और बेश क़ीमत लिबास ज़ेब्तन किए हुए देखा एक शख्स ने आप से दरयाफ्त किया के ए इबने रसूल इतना क़ीमती लिबास अहले बैते किराम को जेब नहीं देता? ये सवाल सुन कर आप ने उस का हाथ पकड़ कर आस्तीन के अंदर खींच कर दिखाया के देखो ये किया है? उस ने आप को अंदर टाट जैसा खुरदरा लिबास पहने हुए देखा तो आप ने इरशाद फ़रमाया के ये अंदर वाला ख़ालिक़ के लिए है और ऊपर वाला उम्दा लिबास मख्लूक़ के वास्ते,
हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु का ईसार (तोहफा देना) व क़ुर्बानी :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु खानदाने नुबुव्वत के चश्मों चिराग थे, आप के अख़लाक़े करीमाना व ईसार क़ुर्बानी के बेशुमार वाक़िआत सैरो तारिख में भरे पड़े हैं, सिर्फ एक वाकिए से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं के रब्बे काइनात ने आप को कैसा ईसार व क़ुर्बानी का पैकर बनाया था,
वाकिया ये है के एक शख्स दीनारों की थैली ग़ुम हो गई इस नादान ने आप को पकड़ कर कहा के मेरी थैली आप ने ली है? इस बे खबर ने आप को पहचाना नहीं और बिला वजह इलज़ाम लगा दिया, आप ने फ़रमाया के बताओ तुम्हारी थैली में कितनी रक़म थी? उसने कहा के थैली में एक हज़ार दीनार थे, आप उस को अपने दौलत कदे (घर) पर ले गए और एक हज़ार दीनार इस को दे दिए, दूसरे दिन इस की ग़ुम खोई हुई दीनार की थैली मिल गई तो दौड़ता हुआ आप के पास आया और माफ़ी माज़रत करते हुए वो हज़ार दीनार वापस करने लगा आप ने इरशाद फ़रमाया के ये माल तुम्हारा हो गया इस लिए हम लोग जिस चीज़ को देते हैं उसको फिर वापस नहीं लेते, उस के बाद उसने लोगों से मालूम किया के आप कौन हैं? लोगों ने बताया के ये हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु हैं आप की ज़ात से जब वो शख्स वाक़िफ़ हुआ तो बड़ा ही नादिम व शर्मिंदा हुआ,
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हिकायत :- अहमद बिन उमर बिन मिक़्दाम राज़ी कहते हैं के एक मख्खी मंसूर के चेहरे पर बैठी मंसूर ने मख्खी को उड़ाया मगर फिर वो दोबारा बैठ गई यहाँ तक के वो तंग आ गया इस वक़्त हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु मंसूर के पास मौजूद थे मंसूर ने आप से पूछा के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मख्खी को क्यों पैदा फ़रमाया? आप ने इरशाद फ़रमाया इस लिए के ज़ालिम व जाबिर को ज़लील करे इस जवाब को सुन कर मंसूर चुप हो गया,
आप का दहरियों से मुनाज़िरह :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु फ़लसफ़ए इलहाद व दहरियत के खिलाफ दीन के तहफ़्फ़ुज़ की खातिर जिहाद बिल्लिसान में मसरूफ रहते थे, और अपने जद्दे अकरम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन की तबलीगो इशाअत में अपने इल्मे कलाम से जो कार नामे अंजाम दिए है ज़ैल में कुछ मुकालमे पेश हैं,
चुनाचे आप की खिदमत में मिस्र का रहने वाला एक दहरिया हाज़िर हुआ, आप उन दिनों मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा में तशरीफ़ फरमा थे आप ने उससे नाम और कुन्नियत पूछी तो उस ने जवाब दिया, मेरा नाम अब्दुल मलिक और कुन्नियत अब्दुल्लाह है, ये सुन कर आप ने फ़रमाया ये “मलिक” जिसका तू अब्द और बंदा है मुलूके आसमान से है या मुलूके ज़मीन से और वो खुदा जिस का बंदा तेरा बेटा है खुदाए आसमान है या खुदाए ज़मीन दहरिये को कोई जवाब नहीं आया तो आप ने फ़रमाया किया तू कभी नीचे गया? उस ने जवाब नहीं दिया, जनता है इस के नीचे किया है? जवाब दिया नहीं मगर गुमान है के कुछ न होगा गुमान का काम नहीं यहाँ यक़ीन दरकार है, अच्छा क्या तू कभी आसमान पर भी चढ़ा? जवाब दिया नहीं जनता है वहां क्या है? जवाब दिया नहीं कभी मशरिको मगरिब की भी सैर की है और उन की मदद से आगे का कुछ हाल भी तुझे मालूम है? जवाब दिया नहीं हर बात का सिर्फ यही एक जवाब था,
तअज्जुब है! ज़ेरे ज़मीन व बालाए आसमान का हाल तो मालूम नहीं और बावजूद इस जिहालत के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वुजूद का इंकार करता है ए मरदे जाहिल नादान को दाना पर कोई हुज्जत नहीं तू देखता है के चाँद, सूरज, रात, दिन, एक तरीके जारी हैं, किसी ज़ात के ताबे फरमां बरदार हैं, इस लिए सर मू तजावुज़ नहीं कर सकते, अगर इनके बस में होता तो एक मर्तबा भी जाकर वापस नहीं आते और अगर वो पाबंद और मजबूर न होते तो क्यों न रात की जगह दिन और दिन की जगह रात हो जाती, तू इस बुलंद आसमान पर गौर नहीं करता और पस्त ज़मीन पर गौर नहीं करता के क्यों आसमान ज़मीन पर आ नहीं जाता और क्यों ज़मीन उस के नीचे दब नहीं जाती? आखिर किसने उसे थाम रखा है और जिस ने उसे थम रखा है वही क़ादिरे मुतलक़ है वही हमारा और उनका खुदा है,
आप के इस कलामे हक़ नुमा में न जाने कैसी गज़ब की तासीर थी के वो दहरिया क़ाइल हो कर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त पर ईमान ले आया,
जेअद इबने दिरहम:
जो उस वक़्त दहरियों का सरदार समझा जाता था उसने कुछ मिटटी और पानी को एक शीशी में रख कर छोड़ दिया, कुछ अरसे के बाद इस शीशी में कीड़े पैदा हो गए जिस को देख कर उस ने ये दवा किया के मेने इस को पैदा किया है और में इस का खालिक हूँ, जब इस दहरिये की इस जिहालत की खबर सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु को पहुंची तो अपने इस दहरिये को बुलाया और इरशाद फ़रमाया: अगर तू इनका खालिक (पैदा करने वाला) है तो बता तेरे पैदा किये हुए कीड़े इनकी कितनी तादाद है? और फिर इन में नर कितने और मादा कितने और जो इन में से एक सम्त को जा रहे हैं उन्हें हुक्म दे ताके वो दूसरी तरफ पलट जाएं आप का ये कलाम सुन कर वो दंग रह गया और कुछ जवाब नहीं दे सका और नादिम व शर्मिदा हो कर वापस चला गया,
दस हज़ार दिरहम :- एक शख्स आप को दस हज़ार दिरहम दे कर हज को गया और कहा के मेरे वास्ते एक हवेली खरीद कर रखना, आप ने वो तमाम दिरहम अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के रस्ते में खर्च कर दिए, जब वो हज से वापस आया तो हाल मालूम किया तो आप ने फ़रमाया के मकान मेने तेरे वास्ते खरीद रखा है और इस का ये किबाला (मकान का कागज़ या सनद) है और इस किबाला में लिखा हुआ था के एक दिवार इस की मुल्हिक (लगा हुआ, शामिल, जुड़ा हुआ) है रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के मकान से और दूसरी दिवार मिली हुई है हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम के मकान से और तीसरी दिवार इस
की हज़रत सय्यदना इमाम हसन रदियल्लाहु अन्हु के मकान से मिली है और चौथी दिवार हज़रत सय्यदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के मकान से मिली हुई है इस शख्स ने किबाला (मकान का कागज़, या सनद) को लिया और अपने वारीसीन से वसीयत की के ये किबाला (मकान का कागज़ या सनद) मेरी क़ब्र में रख देना, इस के इन्तिकाल के बाद लोगों ने देखा के हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु का ये किबाला क़ब्र पर रखा है और उसकी पुश्त (पीठ बैक साइड) पर लिखा है के वफ़ा की हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु ने,
हज़रत सय्यदना बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह :- हज़रत सय्यदना बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में सिकाई करते यानि पानी पिलाया करते थे, एक दिन हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु ने नज़रे शफ़क़त से तवज्जुह फ़रमाई और आप की फैज़े सुहबत बरकत से रोशन ज़मीर और बड़े बड़े औलियाए किराम व सूफ़ियाए इज़ाम से हो गए,
हज़रत सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु आप की खिदमत में :- हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु से इक्तिसाबे फ़ैज़ो बरकात हासिल किया, चुनाचे रिवायत में आता है के एक बार आप ने हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु से पूछा के अक़्लमंद कौन है? हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के जो खैरो शर में तमीज़ व फ़र्क़ कर सके,
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया ये तमीज़ तो जानवरों में भी है के जो उस को मारता है या प्यार करता है उस को खौफ पहुंचता है हज़रत इमाम जाफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के फिर हज़रत आप इरशाद फरमाएं आप के नज़दीक अक़लमंद कौन? है तो आप ने फ़रमाया जो दो खैरों और दो श्शरों में तमीज़ करे ताके दो खैर में से बेहतरीन खैर को इख़्तियार करे और दो श्शरों में से बद तरीन शर को दूर करे,
एक और दूसरा वाकिया है के हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया के मुझ को ये बात मालूम हुई है के तुम दीन में क़यास किया वो इब्लीस था, हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया में उस में क़यास करता हूँ जिस में कोई नस नहीं पाता,
तसानीफ़ :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु साहिबे तसानीफ़ बुज़रुग हैं आप हदीस व तफ़्सीर तंज़ील में फ़ाइक़ और बे नज़ीर थे जैसा के “अल्लामा कमालुद्दीन दमीरी रहमतुल्लाह अलैह” “हयातुल हैवान” में लिखते हैं के इबने क़तीबा ने किताब अदबुल कातिब में लिखा है के इमाम जाफर ने एक किताब बनाम “जफर” अहले बैत के लिए तेहरीर फ़रमाई उसकी ख़ुसूसीयत ये है के क़यामे क़यामत तक के जुमला हाजात जो पेश होंगें सब आप ने लिख दिए थे,
आप की कशफो करामात
करामाते अजीबा :- इस की रिवायत इस तौर पर है के एक मर्तबा आप ज़्यारत हरमैन शरीफ़ैन को तशरीफ़ ले जा रहे थे रस्ते में एक खजूर के दरख्त के पास क़याम फ़रमाया, और चाशत के वक़्त इस दरख्त से आप ने खजूर तलब फ़रमाई फ़ौरन सर सब्ज़ शादाब हो गया और साथ ही ताज़ा खजूर भी पैदा हो गईं, एक आराबी ने जब इस अज़ीम करामत को देखा तो वो दंग हो गया और कहने लगा के ये जादू है आप ने फ़रमाया के ये जादू नहीं इस लिए के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे वो क़ुव्वत अता फ़रमाई है के अगर में दुआ कर दूँ तो ठीक अभी तेरी शक्ल कुत्ते की शक्ल हो जाएगी सिर्फ इतना कहते ही वो कुत्ते की शक्ल में तब्दील हो गया आराबी ने ये कैफियत देखि तो बहुत परेशान हुआ और शर्मिदा हुआ और माफ़ी मांगने लगा तो आप ने आराबी पर रहम फ़रमाया और फिर दुआ फ़रमा दी तो वो अपनी असली हालत पर हो गया,
परिंदों को ज़िंदा करना :- इसी तरह एक शख्स ने आप की बारगाह में ये मशहूर वाकिया हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का बयान किया, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने चार परिंदो को ज़िबाह किया, और इस का गोश्त रेज़ा रेज़ा कर के आपस में मिला दिया और फिर ज़िंदा फरमा दिया तो वो तमाम ज़िंदा हो कर अपने अपने सरों से लग गए, इस सवाल परा आप ने इरशाद फ़रमाया के क्या तुम देखना चाहते हो? उसने जवाब दिया हाँ इबने रसूल आप ने फ़रमाया एक तोता, क़व्वा, बाज़ और एक कबूतर को हाज़िर करो चारो परिंदों को आप ने ज़िबाह फ़रमाया और रेज़ा रेज़ा कर के सब गोश्त को आपस में मिला दिया, फिर आप ने एक के बाद एक को आवाज़ दी सब के सब ज़िंदा हो गए,
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हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु का इल्मे ग़ैब के बारे में क्या अक़ीदा है?
कोन सी हालत में है आप ने पहचान लिया :- हज़रत आरिफ़े बिल्लाह सय्यदना नूरुद्दीन अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब “शवाहिदुन नुबूवत” में लिखते हैं के जनाब अबू बसीर का बयान है के में मदीना शरीफ गया मेरे साथ एक लोंडी भी थी, मेने उससे हमबिस्तरी की, उस के बाद गुसल खाने में जाने के लिए बाहर आया मेने देखा के बहुत से लोग सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु की ज़्यारत के लिए उनके मकान पर जा रहे थे, में भी उनके साथ चला गया, जब हम इमाम जाफ़र के घर पर हाज़िर हुए तो आप की नज़र मुझ पर पड़ी, आप ने फ़रमाया ए अबू बसीर तुम्हे शायद मालूम नहीं के पैगम्बर और उनकी आल व औलाद की क़याम गाहों पर जिनाबत (नापाकी) की हालत में नहीं आना चाहिए, मेने कहा ए इबने रसूल मेने लोगों को आप की तरफ आते देखा तो मुझे अंदेशा हुआ के शायद आप की ज़्यारत की दौलत फिर नसीब न हो इस लिए में आ गया, फिर मेने तौबा की और कहा आइंदा ऐसा न करूंगा, इस के बाद बाहर आगया,
क़ैद से रिहाई:
एक और साहब का बयान है के मेरा एक दोस्त था जिस को खलीफा मंसूर ने क़ैद कर दिया था, मेरी मुलाकात हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु से हज के मौसम में मैदाने अरफ़ात में हुई, आप ने मेरे इसी दोस्त के मुतअल्लिक़ मुझ से पूछा, मेने कहा हुज़ूर वो वैसे ही क़ैद में है, आप ने दुआ की, फिर एक घंटे बाद फ़रमाया खुदा की क़सम तुम्हारे दोस्त को छोड़ दिया गया है, रावी का बयान है के जब में हज से फारिग हो कर वापस आया तो अपने इस दोस्त से पूछा के तुम्हारी रिहाई किस दिन हुई? उस ने बताया के अरफ़ा के दिन असर की नमाज़ के बाद मुझे छोड़ दिया गया था,
और एक शख्स का बयान है के मेने मक्का शरीफ में एक चादर खरीदी और पक्का इरादा किया के वो किसी को न दूंगा ताके मौत के बाद मेरे कफ़न का काम दे, में अरफ़ात से मुज़दलफा वापस आया तो चादर खो गई, मुझे बहुत दुख हुआ जब में सुबह को मुज़दलफा से मिना वापस आया तो मस्जिदे खेफ में बैठ गया, अचानक एक शख्स सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु के पास से आ कर कहने लगा के तुझे हज़रत बुला रहे हैं, में फ़ौरन आप के पास गया और सलाम कर के आप के पास बैठ गया, आप ने मेरी तरफ तवज्जुह फरमा कर फ़रमाया क्या तुम चाहते हो के तुम्हारी चादर तुम्हे मिल जाए? मेने अर्ज़ किया हाँ हुज़ूर, आप ने अपने गुलाम को आवाज़ दी जो एक चादर ले कर आ गया मेने पहचान लिया वही चादर थी, आप ने फ़रमाया इसे लेलो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुक्र अदा करो,
अबू बसीर की हालते जिनबात (नापाकी) को जान लेना, अरफ़ा के दिन क़ैदी के छोड़ दिए जाने को इसी रोज़ मैदाने अरफ़ात में आगाह हो जाना, चादर किस की है? किस काम के लिए है? और चादर वाला कहाँ बैठा है? ये सब ग़ैब की बातें जिन से हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु ने लोगों को आगाह बाख़बर फरमा कर अपना ये अक़ीदा बिलकुल साफ़ वाज़ेह कर दिया के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे ग़ैब का इल्म अता फ़रमाया है, (शवाहिदुन नुबूवत, बुज़ुरगों के अक़ीदे)
खलीफा मंसूर पर आप की हैबत :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु पर भी इम्तिहान व आज़माइश की बेशुमार घड़िया आयीं, उन्हीं में से खलीफा मंसूर भी था जिस की ख़बासत का वाकिया इस तरह है:
खलीफा मंसूर ने एक रोज़ अपने वज़ीर से कहा के हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु को मेरे दरबार में हाज़िर करो ताके में उन्हें क़त्ल करूँ? इस पर वज़ीर ने कहा के एक सय्यद गोशा नशीन को क़त्ल करना अच्छा नहीं है, खलीफा मंसूर वज़ीर की बात सुन कर बहुत गुस्सा हुआ और कहा के जो में हुक्म देता हूँ इस पर अमल करो, हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु आएं तो में उस वक़्त अपने सर से ताज उतारूंगा और ये अमल देखते ही उसी दम उनको फ़ौरन क़त्ल कर देना,
चुनाचे हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए और दरबार में दाखिल हुए, खलीफा मंसूर की नज़र जब आप पर पड़ी तो फ़ौरन ही अपनी जगह से उठा और आप का इस्तकबाल किया और सदर मकाम पर आप को लेकर बिठाया और खुद अदब के साथ आप के सामने बैठ गया, ये कैफियत देख कर उस के मुक़र्रर किए हुए गुलामो को बड़ा तअज्जुब हुआ के पिरोगारम तो कुछ और ही था और अमल कुछ और है? खलीफा मंसूर ने हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया के आप को अगर कोई हाजत हो तो बयान करो गुलाम आप की हर हाजत पूरी करेगा आप ने फ़रमाया मेरी हाजत तुम से यही है के आइंदा फिर कभी मुझे अपने हुज़ूर में तलब न करना ताके में खुदा की याद में मशगूल रहूँ,
खलीफा मंसूर ने जब हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु का ये जुमला सुना तो फ़ौरन आप को बड़ी इज़्ज़तो एहतिराम से रुखसत किया और आप के रोअब से उस के पूरे बदन में कपकपी तारी थी और इख़्तिलाजी (घबराहट) कैफियत पाई जा रही थी, हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु वापस होने के बाद वज़ीर ने इस तबदीली हाल की वजह पूछी तो खलीफा मंसूर ने कहा के जब सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु दरवाज़े से दरबार में दाखिल हुए तो मेने आप के साथ एक बहुत बड़ा अज़्दहा (सांप) देखा जिस का एक लब मेरे तख़्त के ऊपर और एक नीचे था और ज़बाने हाल से मुझ से कह रह था अगर तुमने इमाम को सताया तो तुम्हे तख़्त समीत तख़्त के साथ निगल जाऊँगा चुनाचे मेने उस अज़्दहा (सांप) के खौफ से जो कुछ किया वो तुमने देखा,
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आप की औलादे किराम :- आप की औलादे में कुल 6, छेह बेटे और 6, छेह बेटी थीं जिन के नाम ये हैं, (1) हज़रत इस्माईल, (2) मुहम्मद्द, (3) अली, (4) अब्दुल्लाह, (5) इस्हाक़, (6) मूसा काज़िम रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, साहबज़ादी उम्मे फरवाह जिनको इब्नुल अख़ज़र ने फात्मा लिखा है और शेहरिस्तानी ने “मिलल वन निहल” में सिर्फ पांच ही औलाद बताई हैं,
आप के खुलफ़ाए किराम :- आप के खुलफाए किराम की दीनी खिदमात की तारीखें पढेंगें तो आप को बखूबी अंदाज़ा हो जाएगा, के आप के फ़ैज़ाो बरकात से मुनव्वर होने वाले कैसे कैसे अफ़राद हैं, और हर फ़र्द अपनी जगह आलमगीर जमाअत की हैसियत रखता है जिनके अस्मए गिराम ये हैं,
हज़रत सय्यदना इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु,
हज़रत सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित ज़ूता कूफ़ी रदियल्लाहु अन्हु,
ताऊसुल उलमा हज़रत सय्यदना सुल्तान बायज़ीद बस्तामी रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,
आप का विसाल :- सल्तनते अब्बासिया के दूसरे खलीफा अबू जआफर मंसूर बिन अबुल अब्बास सफाह के अहिद में बरोज़ जुमा 15, रजाबुल मुरज्जब या 24, शव्वालुल मुकर्रम 148, हिजरी बा मुताबिक 765, ईस्वी 68, साल की उमर में ज़हर से मदीना शरीफ में विसाल फ़रमाया,
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो”
आप का मज़ार :- आप का मज़ारे मुबारक मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा के क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ी में वालिद माजिद हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु के पहलू में है,
कूंडे की नियाज़ किस तारीख़ को दिलायी जाए?
कूंडे की नियाज़ किस तारीख़ को दिलायी जाए? :- माहे रजाबुल मुरज्जब की 15, तारीख़ को जो कूंडे पकाए जाते और पूरियां बनाई जाती हैं उनकी बाज़ बातें तो ठीक हैं और बाज़ गलत शरई मसला ये है के कोई नेक काम कर के आप इस का सवाब किसी ज़िंदा या मुर्दा मरहूम मुस्लमान को पहुंचा सकते हैं,
इस मसले की असल ये है की इंसान अपने नेक अमल का सवाब नमाज़, हो रोज़ा, हो सदक़ा खैरात, हो या कुछ और अहले सुन्नत व जमाअत के नज़दीक दूसरों को पहुंचा सकते हैं,
रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत है के आप ने दो चितकबरे मेंढ़ों की क़ुरबानी की, एक अपनी तरफ से और दूसरा अपनी मुस्लमान उम्मत की तरफ से, कूंडे भी एक सदक़ा है जिसका सवाब हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु को पहुंचाया जाता है लिहाज़ा सवाब का काम है,
लेकिन बाज़ जाहिल अवाम औरतें बेहूदा बातें करतीं हैं, और क़ैद लगाती हैं, जैसे सिर्फ कूंडे ही पर फातिहा होगी, जिस जगह फातिहा हुई है वही पर खा सकते हो, दूसरी जगह नहीं, हाथ एक बर्तन में धुलते हैं पानी फेंक नहीं सकते कूंडे घर से बाहर नहीं जा सकते सिर्फ हलवा पूरी पर ही फातिहा होगी, एक छोटी किताब बीबी फातिमा का मोजिज़ा या कूंडे के मुतअल्लिक़ अजीबो गरीब कहानिया दस बीबी की कहानी ये सब गलत और झूट का पुलंदा हैं इससे बचना ज़रूरी है,
नियाज़ फातिहा मुस्तहब काम है यानि सिर्फ सवाब का काम है, सूफ़ियाए किराम बुज़ुर्गाने दीन का तरीका है, कोई फ़र्ज़ों वाजिब नहीं है पूरे साल हर महीने में जब ही चाहें नियाज़ फातिहा कर सकते हैं कोई हर्ज नहीं है, लेकिन अफ़ज़ल बेहतर यही है के जिस तारीख़ को जिस सहाबी वाली बुज़रुग का विसाल हुआ है उसी दिन नियाज़ फातिहा करना चाहिए अगर किसी वजह से उस दिन नहीं कर सकें तो जब भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तौफ़ीक़ दे कर दें, क्यूंकि नियाज़ फातिहा की असल है इसाले सवाब इसाले सवाब कभी भी कर सकते हैं,
सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु, की नियाज़ फातिहा माहे रजाबुल मुरज्जब की 15, तारीख़ को करना चाहिए अगर 15, तारीख़ को नहीं कर सकें किसी वजह से तो पूरे महीने कभी भी कर सकते हैं, और हर हलाल जाइज़ चीज़ पर कर सकते हैं इस के लिए कूंडे ही ज़रूरी नहीं, आप को याद रहे इसी माहे रजाबुल मुरज्जब की 22, तारीख़ को सहाबिए रसूल पूरी उम्मत में मामू हज़रत सय्यदना अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु की भी नियाज़ फातिहा करें, माहे रजाबुल मुरज्जब की 22, तारीख़ को आप का विसाल हुआ है, इस तअल्लुक़ से उल्माए अहले सुन्नत व फुक़हाए इस्लाम के चंद फतावा पेश करते हैं इस को बागौर पढ़ें और अमल भी करें:
कूंडे की फातिहा के लिए मिट्टी का बर्तन होना ज़रूरी नहीं:
जैसा के हुज़ूर सद रुश्शारिया मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह फतावा अंजदिया में तहरीर फरमाते हैं के “इसाले सवाब जाइज़ है मिट्टी के बर्तन में हो या तांबे के बर्तन में हो,
नीज़ फरमाते हैं के सोने चाँदी के अलावा हर क़िस्म के बर्तन का इस्तेमाल जाइज़ है, (फतावा अम जदिया, जिल्द 4, साफा नंबर 177, बहारे शरीअत हिस्सा 16, सफा नंबर 35, क़ादरी किताब घर)
हकीमुल उम्मत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के फातिहा हर कूंडे पर और हर बर्तन में हो जाएगी अगर सिर्फ ज़्यादा सफाई के लिए नए कूंडे मगालें तो हर्ज नहीं, (इस्लामी ज़िन्दगी)
कूंडे की फातिहा की चीज़ बाहर ले जा सकते हैं:
सूरते मसऊला में मज़कूरा पाबन्दी लगाना निरि जिहालत है,
जैसा के शैखुल हदीस हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुल मुस्तफा आज़मी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के कूंडे की फातिहा में जाहिलों का ये फेल (काम) मज़मूम (बुरा) और निरि जिहालत है के जहाँ कूंडे की फातिहा होती है वहीँ खिलाते हैं वहां से हटने नहीं देते ये पाबन्दी गलत और बेजा है, (जन्नती ज़ेवर)
मज़कूरा पाबन्दी के तहत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती वाक़रुद्दीन क़ादरी रज़वी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के लोगों ने ये शर्त लगाली के वहीँ बैठ कर खालें बाहर न लेजाएं, इस शर्त का शरीअत से कोई तअल्लुक़ नहीं, वहां भी खा सकते हैं और बाहर भी ले जा सकते हैं, (वक़ारुल फतावा जिल्द अव्वल सफा 202,)
हकीमुल उम्मत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के दूसरी फातिहा की तरह इस को भी बाहर भेजा जा सकता है, (इस्लामी ज़िन्दगी) फकीहे आज़म हिन्द मुसन्निफे बहारे शरीअत हुज़ूर सद रुश्शारिया मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह फतावा अम जदिया में तहरीर फरमाते हैं के लोगों का ये ख़याल के अपनी जगह से कुंडा हटाया न जाए जिहालत है इन्हें समझाया जाए बल्के क़ौलो अमल से अवाम को बताया जाए और उनपर ज़ाहिर किया जाए के इस जगह से हटाने में कोई हर्ज नहीं है, (फतावा अम जदिया, जिल्द 4,)
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मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया, तज़किरातुल औलिया, मसालिकुस सालिकीन, अनवारे सूफ़िया, मिरातुल असरार, शवाहिदुन नुबूवत, बुज़ुरगों के अक़ीदे, ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, 12, बारह इमाम, हिलयतुल औलिया व तबक़ातुल असफिया बनाम, अल्लाह वालों की बातें,
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