हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की चंद करामात
आप की नज़रे करम से गुमशुदा लड़का घर वापस आ गया :- साहिबे मिर अतुल मनाक़िब: बयान करते हैं के मुल्तान में एक हिन्दू औरत रहती थी जिस का सिर्फ एक ही बेटा था जो के तिजारत के सिलसिले में खुरासान गया हुआ था, वो बुढ़िया एक अरसा गुज़र जाने की वजह से अपने बेटे की खैरियत न मिलने से परेशान थी और हर वक़्त उस के गम में रोती रही रहती थी, एक रात जब मोहल्ले वालों ने उसे इस तरह रोते देखा तो उन्होंने कहा के तुम हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो कर उन से सारा माजिरा बयान करो उस औरत ने अपने बेटे का ग़ुम हो जाने का एक परचा लिखवाया, और उसे लेकर हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो गई,
आप उस वक़्त सवारी पर सवार कहीं जाने की तय्यारी कर रहे थे, और लोगों की काफी भीड़ आप के पास थी, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की नज़र जब उस बुढ़िया पर पड़ी तो सवारी से उतर आए, बुढ़िया की दरख्वास्त को पढ़ा और फ़ौरन मुराकिबा में बैठ गए, कुछ देर बाद मुराकिबा से सर उठाया और बुढ़िया से कहा के घर जा तेरा बेटा आ रहा है,
वो बुढ़िया हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ये बात सुन कर घर रवाना हो गई जब वो बुढ़िया अपने घर की गली में पहुंची तो उसने एक तरफ से अपने बेटे को भाग कर आते हुए देखा और उस के हाथ में हांडी का चम्मच था, बुढ़िया ने उसे गले से लगा लिया और उससे खैरियत पूछने लगी बेटे ने कहा में तो खुरासान में हांडी पका रहा था के एक बिल्ली आई और मुँह में रोटियां डाल कर बाहर को भागी में उस के पीछे चमचा लेकर दरवाज़े से बाहर निकला तो अपने घर की गली में था, बुढ़िया ने जब ये माजिरा सुना तो वो समझ गई के ये मुआमला हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की करामत का नतीजा है, उस ने अपने बेटे को सारी बात गोश गुज़ार करदी अगले दिन दोनों माँ बेटा हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो कर मुरीदों में दाखिल हो गए,
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मुगलों को शिकिस्त :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक मर्तबा मुगलों का एक लश्कर मुल्तान पर चढ़ाई की गरज़ से हमला करने आया, लोग घबरा कर हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और तवज्जुह की दरख्वास्त की आप ने कुछ देर के लिए मुराकिबा किया और फ़रमाया के इत्मीनान रखो मुगलों को शिकस्त होगी चुनाचे मुगलों का लश्कर जब दरिया के नज़दीक पंहुचा तो मुक़ाबले में मौजूद एक मुख़्तसर से लश्कर से शिकस्त फाश हुआ लोगों ने हैरान होकर आप के एक हमराज़ से इस की वजह मालूम की तो उस ने कहा के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनकी मदद के लिए फरिश्तों का एक लश्कर भेज दिया था,
आप के करम से मुरदाह बोलने लगा :- पाकिस्तान के शहर मुल्तान में दो हिन्दू बहने रहा करती थीं, उन में से एक बहन हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह से बहुत ज़्यादा अक़ीदत रखती थी और अक़ीदत की वजह से एक लोटा दूध का रोज़ाना आप के दरबार में पहुंचाया करती थी, अगरचे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के बहुत से मवेशी (जानवर) दरिया पर चरा करते थे और दूध की कुछ कमी नहीं थी लेकिन आप फिर भी उस औरत की अक़ीदत की वजह से दूध कबूल कर लेते थे, कुछ अरसा गुज़र जाने के बाद वो औरत हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे कीमिया की बदौलत मुस्लमान हो गई लेकिन उसने अपना लिबास हिन्दुओं वाला ही रखा और इसी तरह ज़िन्दगी बसर करती रही जब उसकी ज़िन्दगी के दिन पूरे हुए तो उसका विसाल हो गया,
जब उस औरत का विसाल हुआ तो उस के अज़ीज़ों रिश्तेदार हत्ता के उसकी बहन को भी मालूम नहीं था के वो मुस्लमान हो चुकी है, चुनाचे उन्होंने हिन्दू रस्मो रिवाज के मुताबिक उस की चिता तय्यार की और उसे जलाने के लिए मरघट की तरफ ले गए, इस दौरान हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की सवारी उस जगह से गुज़री आप ने पूछा कौन खत्म हो गया है? तो आप को बताया गया वही औरत फौत हो गई है जो आप को रोज़ाना एक लोटा दूध पहुँचती थी और उसके वरिसीन उस को जलाने की तय्यारी कर रहे हैं,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने उस के अज़ीज़ों अक़ारिब को बुला कर फ़रमाया के ये मुस्लमान हो चुकी है तुम इसे क्यों जला रहे हो? उस औरत के रिश्तेदार कहने लगे के ये हमारी अज़ीज़ाह है और हम जानते हैं के ये हिन्दू धर्म पर ही मरी है इस लिए हम इसे मरघट में अपनी रस्मो रिवाज के मुताबिक जलाएँगें, आप ने फ़रमाया के अगर ये औरत खुद अपनी ज़बान से इकरार करले के इसने कलमा पढ़ लिया था तो फिर तुम मान लोगे? वो बोले अगर ये खुद अपनी ज़बान से इकरार कर लेगी तो हमे कोई एतिराज़ नहीं होगा,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह का ये फरमाना था के मय्यत उठ के बैठ गई और उस ने बुलंद आवाज़ से कलमा शरीफ पढ़ना शुरू कर दिया, उस औरत की ये कैफियत देख कर तमाम अज़ीज़ो अक़ारिब वहां से चले गए उस औरत की बहन को जब ये मालूम हुआ तो वो उसी वक़्त हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुई और उस ने दरख्वास्त की के वो उसे भी कलमा पढ़ाकर दीने इस्लाम में दाखिल फरमाएं, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने उस औरत को कलमा शरीफ पढ़ाया और तवज्जुह फ़रमाई वो औरत भी कामिला हो गई,
कुछ अरसे के बाद उस औरत का भी विसाल हो गया और दोनों बहनो की तद्फीन इस्लामी रस्मो रिवाज के मुताबिक हुईं इन दोनों बहनो की कुबूर आज भी मुल्तान शहर के मोहल्ला कमान गिरान में मोजूद हैं,
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हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा में :- हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के एक सिंधी जो के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में रहता था, वो हज के लिए गया उन दिनों मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा में गल्ला महंगा था जिससे वो दिल बर्दाश्त हो कर बोला के मुझे तो हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में चार रोटियां मिला करती थीं यहाँ पर एक भी नहीं मिलती मेरा गुज़ारा किस तरह होगा? एक बुज़रुग ने उस सिंधी की ये बात सुन कर कहा के जुमे की रात को एक बुज़रुग बिला नागा यहाँ तशरीफ़ लाते हैं जो यहाँ खाना तक़सीम करते हैं, उसके बाद उस सिंधी को उस जगह की निशान दही की जहाँ पर वो शैख़ तशरीफ़ लाते थे,
जुमे की रात को वो सिंधी उस जगह पर पहुंच गया जहाँ वो शैख़ तशरीफ़ लाते थे, कुछ देर के बाद वो शैख़ वहां तशरीफ़ लाए तो सिंधी उनको पेचान गया, वो कोई और बुज़रुग नहीं वो हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह थे, आप ने उससे फ़रमाया के परेशान न हो तेरा वज़ीफ़ा तुझे यहाँ भी मिला करेगा, चुनाचे उस के बाद जब तक वो शख्स मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा में रहा एक आदमी उस को आ कर चार रोटियां और सालन दे जाता था,
शैतान का फरेब धोका :- ख़ानक़ाह गौसिया में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह का एक मुरीद इबादत में मसरूफ था, दौरान इबादत उस की आँख लग गई उस ने एक शख्स को ख्वाब में देखा जो उससे कह रहा था के तू हज को चला जा, जब वो मुरीद बेदार हुआ तो उसने हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ ताके अपने खवाब की ताबीर मालूम करें, अभी वो मुरीद शशो पंज में था के कुछ अर्ज़ करे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने उससे फ़रमाया के ये खवाब तुझको शैतान ने दिखाया है और वो चाहता है के तुझे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मशग़ूलियत से हटा दे तुम पर हज फ़र्ज़ नहीं है क्यूंकि तुम एक फ़क़ीर आदमी हो हर गिज़ हज पर मत जाना और अपना काम जारी रखो,
हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “मुर्शिद” हो तो ऐसा जो मुरीद की इस तरह देख रेख करे, हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ये करामत बयान कर रहे थे तो एक शख्स ने पूछा के क्या शैतान नेक कामो का रास्ता भी बताता है हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के वो तो दुश्मन है और हर तरह से धोका दे सकता है और जब वो देखता है के कोई नेक कामो को नहीं छोड़ता तो वो उस को आला से अदना काम की तरफ मुतावज्जेह करता है ताके उस के मरातिब में कमी हो जाए,
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आप को नूरे बातिन की पहचान :- नूरे बातिन से कोई वलियुल्लाह खली नहीं कमो बेश ये नेमत हर साहिबे दिल को हासिल हुई है और इसी से वो अपने मिलने वालों और मुरीदों के दिलों का हाल मालूम कर लेते हैं, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह इस सफ में भी यगाना और ख़ास तौर पर मुमताज़ थे जिस की वजह से आप “अबुल फतह” के लक़ब से मशहूर हुए,
यासुद्दीन तुगलक शहंशाहे हिन्द मौलाना जहीरुद्दीन से मालूम किया क्या तुम ने कभी हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की कोई करामत देखि है? मौलाना ने फ़रमाया के एक बार जुमे के दिन जब लोग आप रहमतुल्लाह अलैह की क़दम बोसी के लिए हाज़िर थे तो मेरे दिल में ये ख़याल आया के हज़रत के पास शायद तस्खीरे खलाइक का कोई अमल है जिस की वजह से लोग उन की खिदमत में हाज़िर होते हैं जब के में आलिमे दीन हूँ और लोग मेरी तरफ मुतावज्जेह नहीं होते, मेने दिल में इरादा किया के कल सुबह में शैख़ की खिदमत में हाज़िर हो कर उन से मालूम करूंगा के वुज़ू में कुल्ली करने और नाक में पानी डालने की हिकमत किया है?
मौलाना जहीरुद्दीन कहते हैं के रात के जब में सोया तो ख्वाब में देखा के शैख़ में मुझे हलवा खिला रहे हैं जिस की मिठास मेने जागने के बाद भी महसूस करता रहा, मेने ख्याल किया के अगर यही करामत है तो शैतान भी अवाम को इसी तरह गुमराह करता है सुबह होते ही शैख़ की खिदमत में हाज़िर हुआ शैख़ ने मुझे देखते ही फ़रमाया,
मौलाना में आप ही का मुन्तज़िर था फिर गुफ्तुगू शुरू करते हुए फ़रमाया जिनाबत “नापाकी” दो तरह की होती है जिनाबते दिल जिनाबते जिस्म जिस्म की जिनाबत का सबब बिकुल ज़ाहिर है मगर दिल की नापाकी ना अहिल आदमियों की सुहबत से पैदा होती है जिस्म तो पानी से पाक हो जाता है मगर दिल की नापाकी आँखों के ज़रिए दूर होती है,
नीज़ ये भी फ़रमाया पानी में तीन सिफ़तें हैं रंग, मज़ा, और बू, इसी लिए शरीअत ने वुज़ू में कुल्ली करने और नाक में पानी डालने के पहले रखा है कुल्ली से मज़ा मालूम होता है, और नाक में डालने से बू महिक मालूम होती है उस के बाद फ़रमाया जिस तरह नबी की सूरत में शैतान ज़ाहिर नहीं हो सकता क्यूंकि हकीकी शैख़ कामिल नबी की पैरवी हासिल होती है, फिर फ़रमाया मौलाना अगरचे तुम उलूमे ज़ाहिरी से मालामाल हो लेकिन उलूमे बातिन से ख़ाली हो,
मौलाना जहीरुद्दीन का बयान है के जब हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ये इरशाद फरमा रहे थे मेरे पूरे बदन से पसीना इस तरह जारी था जैसे पानी बह रहा हो,
हज को चले जाओ :- हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने मुझे शैखुल इस्लाम का “मनसब” अता किया और चालीस खानकाहें मेरे तसर्रुफ़ में दे दीं, जिस दिन मुहम्मद तुगलक ने मुझे ये मुझे मनसब और खानकाहें तसर्रुफ़ में दीं, उस रात मुझे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत नसीब हुई, आप ने मुझे फ़रमाया, सय्यद जलालुद्दीन फ़ौरन यहाँ से चले जाओ वरना हलाक हो जाओगे फिर कुछ देर के बाद फ़रमाया तुम हज को चले जाओ,
हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “शैखुल इस्लाम का मनसब और चालीस खानकाहें” अगर किसी के पास एक ख़ानक़ाह हो तो वो घमंड करता है और यहाँ मेरे पास चालीस खानकाहें थीं, लेकिन मेने हज़रत के फरमान के मुताबित सब कुछ छोड़ दिया और हज की तय्यारी करने लगा मेरे पास उस वक़्त हज पर जाने का कोई इंतिज़ाम नहीं था,
सुबह होते ही मेरी मुलाकात हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की मस्जिद के इमाम से हुई, उन्होंने मुझे देखते ही कहा के तुम यहाँ पर हो फौरन हज के लिए रवाना हो जाओ, शैख़ के इरशाद के बाद देर करना मुनासिब नहीं, चुनाचे में वालिद साहब की खिदमत में हाज़िर हुआ और उन से इजाज़त लेकर हज के लिए रवाना हो गया, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मेरे लिए ये इंतिज़ाम फ़रमा दिया के मेरा एक अज़ीज़ हज के लिए जा रहा था वो घर वापस आ गया और उसने अपना तमाम ज़ादेह राह मेरे सुपुर्द कर दिया,
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हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की इजाज़त :- हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में तक़रीबन छेह 6, साल तक हरमैन शरीफ़ैन का मुजावर रहा और शैख़े मक्का अब्दुल्लाह याफई रहमतुल्लाह अलैह और शैख़े मदीना अब्दुल्लाह मितरी रहमतुल्लाह अलैह जैसे बुज़ुर्गों की सुहबतमें रहा, सातवीं बरस में शैख़े मदीना अब्दुल्लाह मितरी रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत को आया तो वो इन दिनों सख्त अलील (बीमार) थे,
उन्होंने मुझे मुखातिब होते हुए फ़रमाया ए फ़रज़न्दे रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का की तरफ चले जाओ और तब तक वहां से नहीं निकलना जब तब तक हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह इजाज़त न दें, मेने हज़रत की बात सुनली और दिल में कहा के इन को इस हाल की खबर शायद करामत की बदौलत हुई,
खिरकाए हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह :- हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के जब हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह मितरी रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद तीसरी रात मुझे ख्वाब में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत हुई, उनहोंने मुझे खिरका अता किया और फ़रमाया के तुम ये खिरका शैख़ अब्दुल्लाह मितरी रहमतुल्लाह अलैह के छोटे साहबज़ादे को पहना देना,
आप फरमाते हैं के जब में बेदार हुआ तो वो खिरका मेरे बदन पर मौजूद था जो शैख़ ने अता किया था, में शैख़ अब्दुल्लाह मितरी रहमतुल्लाह अलैह के मकान पर गया तो वहां पर बड़े बड़े शैख़ मौजूद थे, उन में से एक बुज़रुग ने मुझ से मुखातिब होते हुए फ़रमाया,
ए सय्यद जो खिरका हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने तुम्हे पहनाया है वो इस छोटे लड़के को पहनादो, आप फरमाते हैं के मेने दिल में सोचा के मेने तो अपना ख्वाब किसी को बयान नहीं किया इन्हें किस तरह मालूम हुआ के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने मुझे ये खिरका अता करने का हुक्म दिया है, चुनाचे मेने हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के इस फरमान के मुताबिक वो खिरका शैख़ के छोटे साहबज़ादे को पहना दिया और उसे मसनद नशीं फ़रमाया,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की रहनुमाई :- हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा से मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा तशरीफ़ ले गया, एक रात मुझे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत बसआदत नसीब हुई आप ने मुझ से फ़रमाया,
सय्यद जलालुद्दीन तुम्हारा बाप तुम्हारे फ़िराक में बेचैन है लिहाज़ा तुम घर वापस जाओ, चुनाचे आप फरमाते हैं के में घर वापस लोट आया, इस तरह मेरा ये सात साल का सफर जो हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के फरमान से शुरू हुआ खत्म हुआ और इस तमाम सफर में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने मेरी हर मुआमले में रहनुमाई फ़रमाई और मेरी तरबियत का इंतिज़ाम फ़रमाया,
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हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की सैरो सिहायत :- सैरो सिहायत सूफ़ियाए किराम की ज़िन्दगी में एक अहम पहलू है, सूफ़ियाए किराम के सफर का मक़सद शैख़े तरीक़त की तलाश और हक़ाइक़ व मआरिफ़ का जानना होता है, सूफ़ियाए किराम अपने इस सफर के दौरान फियूज़ो बरकात से मालामाल होते हैं और फिर अपने इस इल्मो इरफ़ान को फ़ैलाने के लिए सफर करते हैं ताके खुदा की मख्लूक़ उन से फ़ैज़याब हो,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने हुसूले फैज़ान के लिए सैरो सिहायत नहीं की क्यूंकि वो जिस घराने में पैदा हुए वहां पर उनकी वालिदा अपने दौर की आरिफा, वालिद अपने दौर के आरिफ़े बिल्लाह और आप के दादा अपने वक़्त के ग़ौस थे, इराक से शैख़ इराकी रहमतुल्लाह अलैह हिरात से शैख़ हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह बुखारा से सय्यद जलालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह सफर कर के आए और इस सोहरवर्दिया ख़ानक़ाह से फ़ैज़याब हुए,
चुनाचे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह भी अपने जद्दे अमजद की नज़रे कीमिया से बचपन ही में तवज्जुह का मर्कज़ रहे और इसी वजह से आप को किसी जगह जाने की ज़रुरत पेश नहीं आई,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह जब सुलूक की मनाज़िल तय करने के बाद मसनद नशीन हुए और लोगों को राहे हक़ की दावत दी तो उस दौरान बर्रे सगीर हिंदुस्तान पाकिस्तान के मुख्तलिफ मक़ामात के दौरे किए और वहां पर मौजूद दीगर फुकरा से भी मुलाक़ातें कीं आप रहमतुल्लाह अलैह के तअल्लुक़ात अपने दौर के सलातीन से भी थे जिन का मक़सद सिर्फ खिदमते ख़ल्क़ के लिए था,
हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के बाज़ ज़मीने शिकायत करती हैं ए अल्लाह तू ने हम पर कोई ऐसा बन्दा नहीं भेजा जो तेरी इबादत करता और कसरत से ज़िक्रो फ़िक्र में मशगूल रहता, यही वजह है के बाज़ मशाइख एक जगह से सफर कर के दूसरी जगह तशरीफ़ ले गए,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने कई बार दिल्ली का सफर किया और दिल्ली का सफर आप सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की मुहब्बत में करते,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह अक्सर फरमाते के मुझे दिल्ली में सिर्फ “भाई निज़ामुद्दीन” की मुहब्बत खींच लाती है,
सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह को भी हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह से वालिहाना मुहब्बत थी, चुनाचे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह जब भी दिल्ली तशरीफ़ लाते तो एक तरफ तो कसरे शाही इस्तकबाल के लिए खड़े होते तो दूसरी तरफ फ़क़रो विलायत के ताजदार सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह मौजूद होते, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह हमेशा सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह को तरजीह देते थे,
एक बार एक शख्स ने सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह से पूछा के इस की वजह क्या है के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह मुल्तान से इस जगह तशरीफ़ लाते हैं?
हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह ने उस शख्स के सवाल का जवाब देते हुए फ़रमाया,
लोहे मेहफ़ूज़ में लिखा है के बन्दगाने खुदा उन से बैअत होंगें और वो लोग मुल्तान नहीं जा सकेंगें, चुनाचे क़ज़ा व क़द्र हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह उस जगह तशरीफ़ लाते हैं ताके उन के आने की वजह से वो ज़ईफ़ और कमज़ोर लोग शरफ़े बैअत हासिल कर सकें,
सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह से आप की मुलाकात :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह अलाउद्दीन खिलजी की दावत पर दिल्ली तशरीफ़ लाए, जब आप दिल्ली के क़रीब आए तो सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह आप के इस्तकबाल के लिए मौजूद थे, इन दोनों बुज़ुर्गों की मुलाकात होज़ खास के पास हुई और उस वक़्त फजर का वक़्त था,
दोनों बुज़ुर्गों ने फजर की नमाज़ अदा की, सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के साथ निहायत ख़ुलूस और अक़ीदत से पेश आये, ये मुलाकात मुख़्तसर सी थी और हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह इस मुलाक़ात के बाद वापस लोट आए,
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दिल्ली का दूसरा सफर :- क़ुतुब सैर से हमें मालूम होता है के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने दिल्ली का दूसरा सफर भी सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की दावत पर किया था, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह जब दूसरी मर्तबा दिल्ली तशरीफ़ ले गए तो इन दिनों हज का ज़माना था, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह से मिलने के लिए किलोखड़ी तशरीफ़ ले गए, दौराने मुलाकात हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया हज़रत ये हज का ज़माना है और में हज की सआदत हासिल नहीं कर सका लेकिन इस उम्मीद से आप की ज़्यारत के लिए हाज़िर हुआ हूं के हज का सवाब हासिल कर सकूं,
हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की तरफ से इज़्ज़तो तौक़ीर पर अबदीदाह हो गए,
आप का विसाल :- आप का विसाल सात 7, जमादिउल ऊला 735 हिजरी को हुआ, आप की वसीयत के मुताबिक आप को आप के दादा जान शैखुल इस्लाम हज़रत बाबा बहुद्दीन ज़करिया मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के दकमो पेहलूओं में दफ़न किया गया, आप का मज़ार शरीफ पाकिस्तान के शहर मुल्तान में हैं, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
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आप की औलाद व खुलफाए किराम :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की कोई औलाद नहीं थी, आप ने अपने भाई हज़रत शैख़ इमादुद्दीन इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह के बेटे हज़रत शैख़ सदरुद्दीन मुहम्मद हाजी रहमतुल्लाह अलैह को अपनी फ़रज़न्दी में लेकर उनकी तालीमों तरबियत फ़रमाई, आप ने हज़रत शैख़ सदरुद्दीन मुहम्मद हाजी रहमतुल्लाह अलैह की तालीम व तरबियत में कोई कसर न छोड़ी,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने विसाल के वक़्त मसनदे गौसिया पर हज़रत शैख़ सदरुद्दीन मुहम्मद हाजी रहमतुल्लाह अलैह को क़ाइम कर दिया,
मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए औलियाए मुल्तान, तज़किराए औलियाए हिन्द, तारीखे हिन्द, सेरुल अक़ताब, सीरते पाक हज़रत शाह रुकने आलम, तज़किराए सूफ़ियाए सिंध, तज़किराए हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह, ख्वाजगानें चिश्ती, हयाते अमीर खुसरू, करामाते औलिया, औलियाए पाकिस्तान जिल्द अव्वल, खज़ीनतुल असफिया जिल्द पांच,
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