आप का तआरुफ़ :- हज़रत शैख़ इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह अपने वक़्त के अज़ीम और मशहूर औलियाए किराम से हैं, और आप का तअल्लुक़ सिलसिलए क़ादरिया से था, आप की ज़िन्दगी में ज़ुहदो तक़वा और ज़ज़्ब बहुत नोमाया है आप की बुज़ुर्गी और अज़मत मश्हूरो मारूफ है,
आप का इसमें गिरामी :- आप का असली नाम “शाह अब्दुल लतीफ़” है, और आपके वालिद माजिद का इसमें गिरामी “सय्यद सखी महमूद” था, आप के वालिदैन मौज़ा कुरसाल तहसील चकवाल ज़िला जेहलम इस्लामाबाद पाकिस्तान में रिहाइश पज़ीर यहीं रहते थे, और आप इसी गाऊँ में 1026, हिजरी में पैदाई हुए, ये बादशाह जहांगीर का अहदे हुकूमत था,
हज़रत शैख़ इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह का सिलसिलाए नसब :- आप का सिलसिलाए नसब हज़रत इमाम मूसा काज़िम से मिलता है जो इस तरह है: (1) शाह अब्दुल लतीफ़ बर्री (2) महमूद शाह (3) सय्यद अहमद या हामिद (4) बूद लाश (5) अस्कंदार (6) अब्बास (7) अब्दुल गनी (8) सय्यद हुसैन (9) सय्यद आदम (10) अली शेर (11) अब्दुल करीम (12) वजीहुद्दीन (13) मुहम्मद वली (14) मुहम्मद सानी अल गाज़ी (15) रज़ा दीन (16) सदरुद्दीन (17) मुहम्मद अहमद साबिक़ (18) अबुल कासिम (19) पीर बर बिरियाँ (20) सुल्तान अब्दुर रहमान (21) इस्हाक़ सानी (22) मूसा अव्वल (23) मुहम्मद आलम (24) क़ासिम अब्दुल्लाह (25) मुहम्मद अव्वल (26) इस्हाक़ (27) हज़रत इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु,
हज़रत शैख़ इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह के बच पन के हालात :- आप का बचपन आम बच्चों से बिलकुल मुख्तलिफ अलग था, बचपन ही में आप का रुजहान लगाओ ज़ुहदो तक़वा तरके दुनिया और मज़हब की तरफ माइल था, और आप गाऊँ के दीगर यानि दूसरे बच्चों से मिल कर नहीं खेलते बल्के अपने मवेशियों को लेकर गाऊँ से दूर लेकर निकल जाते थे और एक तरफ अलग बैठ कर इबादत में मशगूल हो जाते थे, और मवेशी जानवर इधर उधर चरते रहते और शाम को उन्हें इकठ्ठा कर के वापस घर ले जाते अपने वालिद से मज़हबी तालीम हासिल करते, कभी झूट नहीं बोलते और किसी को गाली नहीं देते थे, किसी की ग़ीबत नहीं करते थे और शरारत से हमेशा दूर रहते थे आप के इस रुजहान लगाओ और मालिके हकीकी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से इश्क़े सादिक़ का नतीजा ये हुआ के आप छोटी सी उमर में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के महबूब बन गए, और आप की ज़बान में तासीर पैदा हो गई, जो बात मुँह से निकालते वो पूरी हो जाती,
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बागे कलां में आप का क़याम :- हज़रत सय्यद अब्दुल लतीफ़ बिकुल बच्चे ही थे, के आप के वालिद अपने आबाई गाऊँ मौज़ा कुरसाल से नकल मकानी करके (एक मकान से दूसरे मकान में चले जाना) मोज़ा बाग़ कलां यानि आब पारा इस्लामाबाद के मकाम पर आकर रिहाइश पज़ीर हुए, हस्बे मामूल मवेशी चराने का काम शुरू कर दिया, बचपन में हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह भी मवेशी चराने चले जाते थे, एक दिन का वाकिअ है के आप तक़रीबन एक सद भैंसों का गल्ला लेकर पहाड़ के दामन में चराने गए और हस्बे मामूल उन्हें छोड़ कर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इबादत में मशगूल हो गए, और इबादत में इस क़द्र खो गए के भैंसे करीबी खेत में घुस गईं और फसल को तबाह कर दिया, लेकिन आप को खबर नहीं हुई खेत का मालिक ये कैफियत देख रहा था, और अपने नुकसान पर बहुत नाराज़ हुआ और फ़ौरन गाँव पहुंच कर हज़रत शाह मेहमूद से शिकायत की हज़रत शाह मेहमूद उठे और शाह लतीफ़ को उनकी गफलत पर शिकायत करने के लिए पहाड़ के दमन में जा पहुंचे, चारों तरफ निगाह दौड़ाई और देखा के के शाह लतीफ़ यानि हज़रत इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह शीशम के एक पेड़ के नीचे ख्वाब में हैं शाह मेहमूद ने आप को एक ज़र्ब लगाई आप फ़ौरन उठ कर बैठ गए और फ़रमाया अब्बा जान में जन्नतुल फिरदोस की सैर कर रहा था, आप ने मुझे क्यों वापस बुला लिया, शाह मेहमूद ने फ़रमाया ए जाने पिदर तुम्हारी गफलत से इस काश्तकार किसान की फसल भैंसे खा गईं हैं और इस ने तुम्हारी शिकायत की है शाह अब्दुल लतीफ़ ने जवाब दिया अब्बा जान उस के खेत में कोई भी नुक्सान नहीं हुआ है आप खुद देख लीजिए इस पर शाह मेहमूद और शाह अब्दुल लतीफ़ काश्तकार किसान को लेकर खेत में पहुंचे शाह मेहमूद और काश्तकार ये देख कर हैरान व शुश्दर रह गए, के इस के खेत में पूरी फसल खड़ी है और इस में एक पत्ते का भी नुकसान नहीं हुआ है इस पर हज़रत शाह मेहमूद ने किसान से कहा के तुम्हारी फसल तो ठीक है फिर तुमने गलत इलज़ाम क्यों लगाया किसान इस का कोई जवाब नहीं दे सका,
आप की तालीमों तरबियत :- आप को ज़ाहिरी इल्मे दीन हासिल करने के लिए गौर ग़शी ज़िला कैम्पल पुर में भेजा गया जो उस ज़माने में दीने इस्लाम का मरकज़ था वहां आप ने क़ुरआन शरीफ, इल्मे तफ़्सीर, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, मंतिक और इल्मे रियाज़ी हासिल किया, इस के अलावा इल्मे तिब भी हासिल किया ज़ाहिरी उलूम हासिल करने के बाद आप कश्मीर, बदख़्शा, मशहद नजफ़ अशरफ, कर्बला मुअल्ला, बग़दाद शरीफ, बुखारा, मिस्र, दमिश्क की सैरो सियाहत करते रहे, फिर वहां से मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा और मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तशरीफ़ ले गए,
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आप के पिरो मुर्शिद कौन हैं? :- हज़रत शैख़ इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह के पिरो मुर्शिद का नाम “हज़रत हयातुल मीर रहमतुल्लाह अलैह” है आप ही के हाथ पर बैअत की जिनके सिलसिलए तरीक़त का ताअल्लुक़ सरदारे औलिया महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी पिरे लासानी सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से मिलता है इसी तरह आप ने क़ादरी सिलसिले में रह कर इक्तिसाबे फैज़ किया,
आप की दावते हक़ व तब्लीग :- हालते ज़ज़्ब से पहले आप ने चोर पुर में क़याम किया जो बाद में “नूर पुर शाहा” के नाम से मशहूर हुआ और वहां आप ने रुश्दो हिदायत का सिलसिला अहसन अच्छे तरीके से शुरू किया, दीने इस्लाम को मुनज़्ज़म तरीके से जारी करने के लिए दरस गाहें क़ाइम कीं, आप खुद क़ुरआन मजीद का दरस देते और वाइज़ भी किया करते थे, आप की रूहानियत और इल्मी शोहरत सुन कर दूर दूर से लोग आप के दरस में शरीक होते थे, आप ने अपनी दरस गाह में तलबा के लिए खाने पीने का कभी इंतिज़ाम कर रखा था,
जिसका पूरा बार खर्च अल्लाह पाक अपने ख़ज़ानों से पूरा करता था, आप एक आलिमे बा अमल थे, हक़ीक़तों तरीकत आप पर रोज़े रौशन की तरह अयाँ ज़ाहिर थी, नोजवानो की ज़िन्दगी और उन के तख़य्युल की रिफ़अत व पाबंदी आप की तरबियत पर मुन्हसिर थी, जब किसी मुल्क के इंफिरादी अख़लाक़ी निज़ाम की इस्लाह नहीं होती तो क़ौमो की ज़िन्दगी की इस्लाह नामुमकिन ही नहीं होती बल्के मुश्किल तिरीन होती, हज़रत शैख़ इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह दीनी उलूम की तरवीजो इशाअत और अपने अफ़कार को फ़ैलाने के लिए तीन इदारों का क़याम ज़रूरी समझा, सब से पहले आप ने मदरसा क़ाइम करने की तरजीह दी, जहाँ अरबी उलूमे शरीअत की तालीम के अलावा दरसे निज़ामी को फरोग मिला, सूफ़ियाए किराम के लिए तसव्वुफ़ की तालीमों तरबियत के लिए ख़ानक़ाह के क़याम का इंतिज़ाम किया गया आम लोगों के लिए मस्जिद में वाइज़ो हिदायत का इंतिज़ाम किया गया, हज़रत शैख़ इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने इन इदारों से दीने इस्लाम की खूब ज़ोरों शोर से तब्लीग की, यही नहीं आप एक जगह बैठ कर तब्लीग का काम किया बल्के इलाके में जा जा कर भी इस्लाम की तब्लीग की और लोगों को खुदा की वहदानियत का दरस दिया जिससे सैंकड़ों लोग हल्का बगोशे इस्लाम हो गए, धीर कूट में एक क़ौम सती आबाद थी इस को इस्लाम की हिदायत और नसीहतों से मुशर्रफ बा इस्लाम किया,
आप फ़रमाया करते थे क़ुरआन मजीद और सुन्नते रसूल की अहमियत व अफ़ादीत को समझने के लिए उलूमे ज़ाहिरी व बातनि का हासिल करना बड़ा ज़रूरी है आप ने अपने दरस में मोमिन के अक़ीदए तौहीद व रिसालत की अहमियत पर ज़ोर बहुत दिया आप के अक़वाल आलमे तसव्वुफ़ में वो हैसियत रखते हैं, जैसे चाँद सितारों में इल्मे हक़ाइक़ पर रौशनी डालते हुए आप ने फ़रमाया अल्लाह तआला का इल्म है जिसका मतलब ये है के अल्लाह तआला हमेशा से है और हमेशा रहेगा उसका कोई शरीक नहीं अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हर चीज़ पर क़ादिर है वो जनता है और देखता है ये इल्मे सिफ़ात की तारीफ है खुदा के इल्म के अफआल के इल्म के बारे में आप का फरमान है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ही कायनात का पैदा करने वाला है और उसने ही अपने प्यारे मेहबूब रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे शरीअत अता फ़रमाई है, इल्मे शरीअत में किताबुल्लाह, सुन्नते रसूलुल्लाह और इजमाए उम्मत शामिल है,
आप अपने मुरीदों को हमेशा सिराते मुस्तक़ीम पर चनले की तलकीन करते थे, हसद, ग़ीबत, और कीना परवरी से आप ने हमेशा बाज़ रहने की हिदायत की, हज़रत शैख़ इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फलाहो कामयाबी के सर चश्मा थे, आप ने मुसलमानो को इस्लाम की तालीम देकर उम्मते मुहम्मदिया की भलाई के लिए मेहनते शाक़्क़ा की वो खुतूत क़ाइम किए जिन पर चल कर इंसान की भलाई और रज़ाए इलाही हासिल होती है,
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चंद हिंदूंओ का इस्लाम क़बूल करना :- रिवायत है के एक रोज़ शाह अब्दुल लतीफ़ चोर पुर के जंगल में एक सूखे शीशम के पेड़ के नीचे बैठे थे, के वहां हिन्दुओं का एक काफिला पंहुचा, आप ने इन काफिलों वालों से पूछा तुम लोग इतना साज़ो सामान लेकर कहाँ जा रहे हो उन में से एक ने जवाब दिया “प्रयाग” आप ने पूछा वहां क्या करोगे उन्होंने जवाब दिया गंगा और जमना के संगम पर इसनान (नहाना ग़ुस्ल करना) कर के अपने पाप गुनाहों को साफ़ करेंगें, आप ने फ़रमाया गुनाह नहाने से साफ़ नहीं होते, नेको कारी और इबादते इलाही से ही गुनाह साफ़ होते हैं उन हिन्दू यात्रियों ने आप की बातों का मज़ाक़ उड़ायाऔर एक हिन्दू प्रोहित बोला अगर छुप कर इबादत ही से इंसान खुदा के क़रीब हो सकता है तो आप कई सालों से इस सूखे और पुराने शीशम के पेड़ के नीचे इबादत कर रहे हो, मगर खुदा ने आप पर रहिम नहीं फ़रमाया, और न वो इस दरख़्त को हराभरा करके आप के सर पर छाओं का इंतिज़ाम कर देता हिन्दू प्रोहित की इस तक़रीर पर आप मुस्कुराए और फ़रमाया मेरे खुदा के लिए ये कोई बड़ी बात नहीं है हम मुस्लमान उस की ज़ात पर तवक्कुल रखते हैं वो बड़ा बख्शने वाला महिरबान है अगर को चाहे तो इस दरख़्त को फ़ौरन हरा भरा कर दे क्यूंकि वो हर चीज़ पर क़ादिर है ये कह कर आप ने आयते करीमा पढ़ी और दुआ के लिए हाथ उठाए अल्लह रब्बुल इज़्ज़त ने आप की दुआ क़बूल की और शीशम का सूखा और कई साल पुराना पेड़ फ़ौरन हरा भरा हो गया उसकी शाखें फ़ैल गईं हिन्दू यात्रियों का पूरा काफिला ये देखकर हैरान रह गया, और आप के दस्ते मुबारक पर मज़हबे इस्लाम कबूल कर लिया,
इस काफिले के कुछ लोग अपने घरों को वापस जाते हुए मौज़ा बागान से गुज़रे और चोर पुर के जंगल में एक साहिबे करामात बुज़ुर्ग की मौजूदगी का ज़िक्र किया जब हज़रत शाह मेहमूद ने ये चर्चा सुना तो फ़ौरन समझ गए के हज़रत शाह अब्दुल लतीफ़ घर के क़रीब ही छुपे हुए हैं आप चंद आदमियों को लेकर चोर पुर पहुंचे और आप से लिपट कर खूब रोए, आप की बेक़रारी देखकर आप ने फ़रमाया अब्बा जान आप बेक़रार क्यों हैं में यहाँ बड़े मज़े में हूँ,
शाह मेहमूद ने फ़रमाया नूर चश्म अब तुम घर वापस चलो तुम्हारी वालिदा तुम्हारे लिए बेकरार रहती हैं, और उसकी सेहत बिलकुल खराब हो चुकी हज़रत शाह अब्दुल लतीफ़ ने जवाब दिया अब्बा जान अब में घर में नहीं रह सकता, में यादे खुदा में इतना मदहोश हो चुका हूँ के अब मुझे अपना होश नहीं, बेहरेहाल अम्मी जान की क़दम बोसी की खातिर ज़रूर हाज़िर हूँगा, शाह मेहमूद वापस चले गए और उस के तक़रीबन एक हफ्ते बाद हज़रत शाह अब्दुल लतीफ़ भी मोज़ा बागान पहुंच गए, मगर आप ने वहां ज़्यादा देर क़याम न किया और वालिदा साहिबा से ये कह कर वापस जाने की इजाज़त तलब करली के मेने जिस जगह नूर पुर पाया है मेरा मकान व मकाम अब वही है हज़रत शाह अब्दुल लतीफ़ के इन अलफ़ाज़ ही की बिनापर चोर पुर का नाम “नूर पुर” हो गया जो के बाद में “नूर पुर शाहाँ” कहलाया,
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हज़रत शैख़ इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह को “बर्री” क्यों कहा जाता है? :- खुद्दाम की आदम के बाद आप नूर पुर में एक बड़े गार में चिल्लाह कशी के लिए दाखिल हुए और कई साल तक बाहर नहीं निकले आखिर आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत शैख़ सखी हयातुल मीर रहमतुल्लाह अलैह” जो ग़ौसुल आज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के पोते थे, तशरीफ़ लाए और गार के दरवाज़े पर खड़े हो कर आवाज़ दी ए अब्दुल लतीफ़ अब चिल्ले से बाहर आओ आज का दिन बड़ा मुबारक है शाह अब्दुल लतीफ़ रहमतुल्लाह अलैह ने गार के अंदर से जवाब दिया खैर मुबारक या हज़रत अब आप बाहर निकले हज़रत सखी हयातुल मीर से बगल ग़ीर हुए और आप के इल्मे सुलूक पर मुसर्रत व इंबिसात का इज़हार किया और फ़रमाया लतीफ़ अब तुम ज़ाहिरी व बातनि रुमूज़ो असरार से मामूर हो चुके हो, आज से तुम “इमाम बर्र” हो इस सी वजह से आप को हज़रत शाह अब्दुल लतीफ़ इमाम “बर्री” का लक़ब हासिल हुआ है रहमतुल्लाह अलैह,
आप की दुआ से बेटा मिल गया :- रिवायत में आता है के एक बूढ़ी औरत ने पहले हज़रत शाह चुन चिराग रहमतुल्लाह अलैह के पास हाज़िर हो कर अर्ज़ की के आप दुआ फरमा दें, के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मुझे बेटा इनायत फरमाएं, हज़रत शाह चुन चिराग रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के बेटा नहीं बेटी मिलेगी, वो औरत फिर हज़रत शैख़ इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुई और उन से भी बेटे की इल्तिजा की, आप ने मोराकीबा करने के बाद फ़रमाया के तुम्हारी किस्मत में बेटा आया है उस औरत ने अर्ज़ की के में तभी तो हाज़िर हुई हूँ, के अगर मेरी किस्मत में बेटा नहीं तो भी आप की दुआ से मेरा काम हो जाएगा, जब उस औरत ने इज्ज़ो इंकिसारी का इज़हार किया, तो हज़रत इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के जाओ के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम्हे बेटा अता फरमाएगा, चुनाचे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उस औरत को जब लड़का आता फ़रमाया तो बर्री इमाम की हाज़री की नियत से चल पड़ी, जब रावलपिंडी पहुंची तो ख्याल आया के शाह चुन चिराग रहमतुल्लाह अलैह की भी हाज़री देनी चाहिए चुनाचे शाह चुन चिराग रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुई और अर्ज़ की के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने बर्री इमाम रहमतुल्लाह अलैह की दुआ से मुझे बेटा अता किया है, शाह चुन चिराग रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया नहीं बेटी है, जब देखा तो हकीकत में वो बेटी ही थी, आखिर हैरान व परेशान हो कर हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुई और पूरा वाक़िया बयान कर दिया, तो हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के परेशानी की कोई ज़रुरत नहीं तुम्हारी गोद में लड़का है जब देखा तो लड़का ही था,
फिर वापसी पर हज़रत शाह चुन चिराग की हाज़री दी और कहा के हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह की दुआ से लड़का है आप ने फ़रमाया लड़का नहीं लड़की है, जब देखा तो लड़की ही थी, वो औरत बहुत ग़मज़दाह हुई और फिर ख्याल आया के बर्री इमाम की खिदमत में हाज़िर हो कर दुआ कराई जाए, चुनाचे जब बर्री इमाम की खिदमत में हाज़िर हो कर सारा माजरा बयान किया आप की दुआ से वो लड़की लड़का बन गया इस के बाद बर्री इमाम ने कहा जाते हुए शाह चुन चिराग के पास मत जाना और सीधे अपने घर जाना, चुनाचे उस बुढ़िया ने हुक्म के मुताबिक ऐसा ही किया और बा मुराद हो कर अपने घर चली गई,
फन्ने शाह बुखारी का विलायत सल्ब करने का हुक्म :- रिवायत में है के ऊच शरीफ (पाकिस्तान का शहर है) के एक बुज़रुग फन्ने शाह बुखारी जब हज़रत इमाम बर्री क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह की करामातों की शोहरत सुनी तो उन्होंने कहा के हमारी विलायत में एक मशहदी कैसे दाखिल हो गया है हम उसकी तमाम क़ुव्वतें सल्ब कर लेगें,
इस के बाद वो एक लाख मुरीदों की फौज लेकर पिंडी की तरफ बढ़े हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह ने फन्ने शाह बुखारी के इस कूच का मंज़र हालते कश्फ़ में देखा, तो आप ने मुरीदों से फ़रमाया के फन्ने शाह बुखारी एक लाख मुरीदों का लश्कर लेकर आ रहा है तुम होशियार हो, जब फन्ने शाह बुखारी अपने मुरीदों के साथ जेहलम के नज़दीक पहुंचे तो हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह ने जेहलम की तरफ अंगुश्त उठाई और फन्ने शाह बुखारी का आधा जिस्म बेकार हो गया, फन्ने शाह बुखारी बड़े हैरान हुए के ये किया माजरा है, तो उन्होंने फ़ौरन हज़रत माहिर शाह खुरासानी की तरफ रुजू किया, हज़रत माहिर शाह खुरासानी भी कश्फ़ की हालत में ये नज़ारा देख रहे थे, उन्होंने फ़रमाया फ़ौरन हज़रत इमाम बर्री से दरख्वस्त की के फन्ने शाह बुखारी की गुस्ताखी माफ़ की जाए, और उन्हें अज़ाब से निजात दिलाई जाए, हज़रत इमाम बर्री ने फन्ने शाह बुखारी को गिरफ्त से आज़ाद कर दिया और इस के साथ ही पैगाम भेजा के अगर आप को यहाँ आना है तो मेहमान की हैसीयत से आओ, बयान किया जाता है के फन्ने शाह बुखारी अपने एक लाख मुरीदों के साथ हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह के पास आये, इस पर हज़रत के मुरीदीन परेशान हो गए, के इतने आदमियों को कहाँ से खिलाया पिलाया जाएगा उन्होंने अपनी शिकायत मुश्किलात हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह के सामने रखीं, आप ने उन्हें एक कूंडा और थोड़ा सा आटा लाने का हुक्म दिया, जब आटा लयगय तो आप ने ये आटा अपने हाथ से गूँधा, और फिर इस पर अपना रुमाल डाल दिया और फ़रमाया के इस में से आटा लेते जाओ और रोटियां पकाओ, चुनाचे इससे रोटियां पका कर एक लाख मुरीदीन को खिलाई गईं, और वो ख़त्म नहीं हुआ, फिर फन्ने शाह बुखारी ने हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के मेरी सवारी के शेर और हाथ में रखने के सांप के लिए भी खुराक की ज़रुरत है, तो इमाम बर्री के हुक्म से रात को एक गए शेर एक सामने छोड़ दी और मुर्ग सांप के सामने ताके उनकी खुराक हो जाए, लेकिन सुबह को जब देखा तो गाय और मुर्ग तो मौजूद हैं, लेकिन सांप और शेर गायब हैं, गाय ने शेर को और मुर्ग ने सांप को निगल लिया था, जब ये माजरा देखा तो फन्ने शाह बुखारी परेशान हुए, तो हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह ने गाय के पास जाकर फ़रमाया ये हमारे मेहमान हैं इनकी अमानत वापस कर दो तो गाय ने शेर मुँह से निकाल कर बाहर फेंक दिया, और मुर्ग को हुक्म दिया तो उस ने भी सांप बाहर फेंक दिया और वो दोनों अज़ सरे नो यानि पहले ही की तरह ज़िंदह हो गए, नूरपुर शाहा की शुमाली पहाड़ियों के साथ एक जगह लोई दनदी के नाम से मशहूर है जहाँ एक लम्बा सा पथ्थर पहाड़ी के से लटका था जिस के बारे में बयान किया जाता, के वो एक देओ था, हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह की इबादत में खलल होता था, आप ने उसे कई बार मना किया मगर वो बाज़ नहीं आया आप को एक रोज़ गुस्सा आया आप मुसल्ले से उठे और देओ को गर्दन से दबोच कर हवा में उछाल दिया, वो औंधे मुँह गिरा और पथ्थर बन गया जो अब भी मोजूद है,
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आप के सामने झूट बोलने की सज़ा :- बयान किया जाता है के आप ने मोज़ा बाग़ में एक खेत किसी किसान को बटाई पर दे रखा था, उस ने एक बार माश की फसल बोई, जब फसल पक कर तय्यार हुई तो किसान की नियत में फुतूर पैदा हो गया, और वो सारी फसल उठा कर अपने घर ले गया और आप की खिदमत में हाज़िर हो कर कह दिया के फसल में कुछ नहीं हुआ आप खामोश रहे, कुछ दिनों के बाद आप किसान के घर तशरीफ़ लेगए, और फ़रमाया के खाना लाओ, जब किसान खाना लाया, तो उस में माशा (माश एक फली होती है) मौजूद थे आप ने फ़रमाया ये इतने अच्छे माश कहाँ से लाए हो,
किसान ने जवाब दिया बाहर से आये हैं आप ने फिर पूछा सामने वाली कोठरी में जो बोरियां पड़ी हैं, उन में क्या भरा है किसान ने जवाब दिया बस कंकरियां भरी हैं आप खामोश हो गए, और खाना खाने के बाद आप वापस तशरीफ़ ले गए, किसान आप की कशफो करामात से वाक़िफ़ था जब आप तशरीफ़ ले गए तो वो कुछ घबराया और उस ने बोरी को खोल कर देखा तो उस में सिवाए कंकरों और पथ्थरों के कुछ नहीं था, अब उस ने दूसरी बोरी खोली उस में भी कंकर और पथ्थर निकले, किसान झूट बोलने और आप को धोका देने पर सख्त नादिम और परेशान हुआ और आप की खिदमत में हाज़िर होकर मुआफी मांगी आप ने उसे झूट और फरेब से हमेशा परहेज़ करने की तलकीन की और माफ़ कर दिया, जो माश कंकरियां और पथ्थर बने थे, वो आज तक मोज़ा बाग़ कलां में हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह के वालिद शाह मेहमूद के मज़ार के करीब पड़े हुए हैं,
बहादुर शाह अव्वल आप की बारगाह में हाज़िर हुआ :- एक रिवायत बयान की जाती है एक मर्तबा शहंशाहे दिल्ली बहादुर शाह अव्वल आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और आप को ज़र्द जवाहर पेश किए, आप ने फ़रमाया मुझे ज़रद जवाहर की ज़रुरत नहीं ये चीज़ें दुनिया के कुत्तों के लिए हैं,
बहादुर शाह अव्वल दिल में नाराज़ हुआ और फिर ज़िद करने लगा इस पर आप ने फ़रमाया तू दिल में फ़ासिद ख्याल रखता है में तेरे जवाहर को रेत के ज़र्रों के बराबर भी नहीं समझता बहादुर शाह अव्वल ने अपनी ज़िन्दगी में कभी ऐसी गुफ्तुगू नहीं सुनी थी वो कुछ रंजीदा हो गया, इस पर आपने ने कहा ऐ बादशाह अपनी आखें बंद करो और मुराक़बे में जाओ बहादुर शाह अव्वल मुराक़बे में गया तो यर देखकर हैरान रह गया के शाह अब्दुल लतीफ़ के मुसल्ले के नीचे बे अंदाज़ दौलत जवाहर के अम्बार लगे हुए हैं,
देख कर बादशाह बड़ा शर्मिंदाह हुआ और माफ़ी मांगी इस मौके पर आप ने फ़रमाया के दुनिया के जवाहर से ज़्यादा कीमती वो जवाहर हैं जो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इबादत से हासिल होते हैं, आपने बहादुर शाह अव्वल को हुक्म दिया के वो इस्लाम के अरकान को क़ाइम रखे और दीन के उसूलों को तरक्की दे,
और नाच गाने से बचे शराब को हराम समझे जूँए और ज़िना के गुनाहे अज़ीम समझ कर उससे दूर रहना और अपनी रियाया को भी इससे बचाना,
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शहज़ादा आलमगीर और हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह :- शाहज़हां बादशाह किसी मुहिम पर हज़ारा के दौरे पर आया हुआ था, यहाँ हासिदीन ने हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह की बढ़ी हुई मकबूलियत को बादशाह के लिए खतरा साबित करने की कोशिश की, बादशाह भी लोगों की बातों में आ गया और उस ने एक फौज तय्यार की जो हज़रत इमाम बर्री की ख़ानक़ाह पर जाकर उनको और उनके मोतक़िदीन को गिरफ्तार करने पर मुतअय्यन की गई थी, उस के लिए बादशाह ने शहज़ादा औरंगजेब की डियूटी लगाई औरंज़ेब आप की दरसगाह पर फौज लेकर पहुंच गया, मगर आप ने उस की आमद की बिलकुल परवाह नहीं की और न ही फौज से घबराए बल्के क़ुरआन मजीद का दरसो तदरीस में मशगूल रहे, शहज़ादा बहुत मुतअस्सिर हुआ, के ये वाक़ई कोई दुर्वेश इंसान है जिसने न सिर्फ मेरी आमद की परवाह की बल्के फौज से मरऊब नहीं हुआ,
आप ने शहज़ादे की दिली कैफियत को भांप लिया, और क़ुरआने मजीद की एक आयात तिलावत फ़रमाई, जिस का तर्जुमा ये था, “बेशक अल्लाह के वली किसी खौफ और हुज़नो मलाल गम से नहीं डरते” इस आयात के बयान के बाद आप ने दोबारा दरस व तदरीस में मशगूल हो गए शहज़ादा खड़ा आप को देखता रहा, अब शहज़ादे ने भी एक आयात तिलावत की जिस में अल्लाहो रसूल की इताअत के अलावा हाकिमे वक़्त की इताअत का भी हुक्म दिया गया था, आप ने जवाब में इरशाद फ़रमाया “में अल्लाहो रसूल की इताअत में ग़र्क़ हूँ अमीर की परवाह किस तरह करूँ” फिर आपने दरस देते हुए फ़रमाया “अल्लाह पाक के लिए तमाम तारीफें हैं जो लाइके हम्दो सना है” वो हर चीज़ पर क़ादिर व क़ाबिज़ है उस का नूर चारों तरफ है उस का कोई शरीक व सानी नहीं, वो हर बुराई से पाक व साफ़ है, उस के बाद शहज़ादे ने आप से दुआ करवाई आप ने उस के हक़ में तफ्सीली दुआ की उस को दुआ की अहमियत के मुतअल्लिक़ बताया इस जिम्न में रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात बयान किए के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को दुआ से ज़्यादा कोई चीज़ पसंद नहीं जो शख्स अल्लाह पाक से दुआ नहीं मांगता अल्लाह उस पर ग़ज़बनाक होता है दुआ मोमिन का हथियार है और दुआ क़बूलियत का यकीन रख कर मांगनी चाहिए शहज़ादे ने दुआ के क़बूल न होने के बारे में भी आप से बात की उस का जवाब देते हुए आप ने फ़रमाया अक्ले हलाल की दुआ की क़बूलियत के लिए सब से बड़ी चीज़ है, हदीस शरीफ में आया है के एक सहाबी ने हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ की आप मेरे लिए दुआ फरमा दीजिए मेरी दुआ क़बूल नहीं होती है, आप ने उस से फ़रमाया हलाल कमाई का इंतिज़ाम करो क्यूंकि दुआ की क़बूलियत रिज़्क़े हलाल से होती है,
हराम लुक्मा से चालीस रोज़ तक दुआ क़बूल नहीं होती, दूसरी बात इस्तगफार की है इंसान ऐबों का ऐतिराफ़ और कमज़ोरियों का इकरार कर के इस्तगफार करे और आइंदा के लिए मुहतात दूरी से काम ले तो भी दुआ क़बूल हो जाती है और अगर इंसान अपनी मज़मूम बुरी हरकतों पर भी क़ाइम रहे और दुआ भी करता रहे तो फिर दुआ क़बूल नहीं हो सकती वक़्त ज़ाए हो सकता है फिर आप ने उस के बाद शहज़ादे औरंगज़ेब को खुशखबरी दी के तुम “हिंदुस्तान के बादशाह बनोगे” मगर याद रखो जब तक तुम रिज़्के हलाल नहीं कमाओगे अपनी औलाद को पाक और अच्छी रोज़ी नहीं खिला सकते तुम्हारी दुआ हरगिज़ क़बूल नहीं होगी, औरंगज़ेब पर आप की हकीमाना बातों का बहुत असर हुआ, उस ने बादशाहत से पहले और बादशाहत के बाद हमेशा क़ुरआने मजीद को लिख कर के रोज़ी कमाई और हलाल रिज़्क़ खाया,
आप ने औरंगज़ेब को ये भी हुक्म दिया के “रियाया के साथ इंतिहाई मुहब्बत और शफकत का सुलूक करना” बादशाह को बड़ी ताकत देता है ऐसे बादशाहों को ही दवाम हमेशगी मिलती है जो अपनी रियाया में मकबूल हो,
एक और रिवायत में है के बादशाह औरंगज़ेब कुछ खादिमो के साथ बतौर तोहफे तहाईफ़ नज़राने वगैरा कुछ जवाहिरात एक असा और एक तस्बीह लेकर हज़रत इमाम बर्री रहमतुल्लाह अलैह के पास हाज़िर हुआ, उस वक़्त आप तलबा को सबक़ पढ़ा रहे थे, शहज़ादे औरंगज़ेब खादिमो के साथ खड़े रहे, आप ने कुछ तवज्जुह नहीं दी आप बराबर दरस देते रहे, खादिम तो ये बे परवाही देख कर नाराज़ हुए, लेकिन औरंगज़ेब का अक़ीदा मज़बूत हो रहा था, फिर जब पढ़ाई से फारिग हुए तो मुलाकात का शराफ बख्शा औरंगज़ेब ने नज़राना पेश किया, तो आप ने फ़रमाया आप की सल्तनत में कई मुहताज यतीम और बेवाएँ हैं ये जवाहिरात उन को दीजिए हमारा वक़्त खुदा के करमो फ़ज़ल से गुज़र रहा है और असा भी वापस दे दिया,
साथ ही फ़रमाया के ये असाए हुकूमत समझो जब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम्हे हुकूमत दे तो अदलो इंसाफ से हुकूमत करना ज़ुल्म नहीं करना, तस्बीह के मुतअल्लिक़ आप ने फ़रमाया के देखो इस के दाने रियाया की मिसाल हैं और इमाम बादशाह की तरह है दानो का तअल्लुक़ दोनों तरफ से इमाम के साथ हैं और उसने सब का बोझ बर्दाश्त किया हुआ है बादशाह को भी ऐसा ही होना चाहिए, अल गरज़ औरंगज़ेब जब ये तमाम मंज़र देख कर वापस शाहजहां की पास पंहुचा तो उस ने बादशाह से अर्ज़ की आप की तमाम बादशाही में उन जैसा कोई आदमी नहीं है जिसे लोग वाजिबुल क़त्ल समझते हैं, वो अल्लाह पाक का वली है और दुनिया से बेनियाज़ है तब शाजहाँ का गज़ब कम हुआ, ये भी रिवायत है की हज़रत को लंगर की लिए जागीर देने की पेश कश की गई तो आप ने इंकार कर दिया,
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आप की शादी :- आप ने ज़िला हज़ारा की एक मुअज़ज़ खानदान के सरदार सय्यद नूर मुहम्मद की साहबज़ादी बीबी दामन खातून से शादी की अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप को एक लड़की अता की जो कुछ ही अरसे के बाद विसाल फरमा गईं, इस हादिसे के कुछ मुद्दत के बाद आप की ज़ौजा अहलिया मुहतरमा भी विसाल फरमा गईं, आप ने दूसरी शादी नहीं की और घरेलू ज़िम्मेदारियों से आज़ाद होकर अपना सारा वक़्त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की राह में गुज़ारना शुरू कर दिया, आप ने अपनी ज़िन्दगी का एक बाब बतौरे सालिक गुज़ारा जब के दूसरा दौर आपने मजज़ूब के तौर पर गुज़ारा, आप की ज़िन्दगी इत्तिबाए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक अनमोल नमूना थी, आप ने पूठ्ठोहार के इलाके में रुश्दो हिदायत के वो चिराग रोशन किए के तमाम इलाके की काया ही पलट गई, आपने बेलौस दीनी खिदमत सर अंजाम दी आप के दम क़दम से कुफ्र और ज़ुल्मतों के बदल छट गए, आप ने लोगों को जहाँ अख़लाक़ इस्लामी और मज़हबी तालीम दी, वहां तसव्वुफ़ और रूहानियत के जाम लुटाए आप एक इन्किलाब आफरीन हस्ती थे आप की नादिर रोज़गार दरसगाह ने इस्लाम को बहुत तरक़्क़ी दी, आप ने इस्लाम की हकीकी खिदमत कर के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की रज़ा हासिल की,
आप का विसाल :- हज़रत इमाम बर्री क़ादरी शाह अब्दुल लतीफ़ रहमतुल्लाह अलैह ने 4, जमादिउल अव्वल 1117, हिजरी में विसाल फ़रमाया, जहाँ बाद में आप का मज़ार पक्का तामीर किया गया, ये मज़ार नूर पुर शाहा इस्लामाबाद पाकिस्तान में ज़्यारत गहे खासो आम है,
मआख़िज़ व मराजे :- औलियाए पाकिस्तान जिल्द अव्वल,
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