हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने दुरवेशों की ख्वाइश पूरी फ़रमाई :- एक मर्तबा हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह फ़क़ीरों की जमात के साथ एक गड्ढे के पास से गुज़रे और उस में लकड़ियां बहुत सारी पढ़ी हुई थीं, दुरवेशों (सूफी अल्लाह तक पंहुचा हुआ दुनिया को छोड़ने वाला परहेज़गार) ने कहा आज की रात इसी जगह लकड़ी जला कर गुज़ारी जाए, हज़रत ने दुरवेशों की बात मानली और इसी जगह बैठ गए, दुर्वेश किले से आग लेकर आए, और आग जलाकर रोटी बनाकर खाने लगे, और हज़रत नमाज़ पढ़ने में मशगूल हो गए, इन दुरवेशों में से एक ने कहा काश के इस वक़्त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हलाल गोश्त खाने को भेज देता हम लोग भून कर खाते, हज़रत ने ये बात सुनली, हज़रत ने सलाम फेरने के बाद फ़रमाया, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस पर क़ादिर है के वो तुम लोगों को इस वक़्त हलाल गोश्त भेजदे, ये कह कर आप फिर नमाज़ में मशगूल हो गए, थोड़ी ही देर हुई थी, के एक शेर के गुर्राने की आवाज़ इन लोगों ने सुनी और देखा के एक शेर एक गोर खर को दबोचे पकड़े हुए सामने से आ रहा है, और वो गोर खर इतना ज़ख़्मी हो चुका है, के चलने की ताक़त नहीं रखता, दुरवेशों ने एक साथ हमला कर दिया, शेर अपनी जान बचा कर भाग गया, और गोर खर छोड़ गया, दुरवेशों ने गोर खर पकड़ कर ज़िबह किया और कबाब बनाकर खाया, लेकिन हज़रत ने उस में से कुछ भी नहीं खाया और आप सुबह तक नमाज़ ही पढ़ते रहे,
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कुँए से पानी के बजाए सोना निकल आया :- हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह एक बार कुँए पर पहुंचे पानी निकालने के लिए कुँए में डोल डाला जब आप ने डोल बाहर निकाला तो वो चाँदी से भरा हुआ था, आप ने उसे फेंक कर फिर डोल डाला तो इस मर्तबा सोने से भरा हुआ निकला, तीसरी बार उसे फेंक कर फिर डोल डाला तो मरवा रेद (एक किस्म का मोती, मोंगा) से भरा हुआ निकला, उसको भी आप ने फेंक दिया, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में अर्ज़ किया ये सब मालो दौलत मुझे किस लिए दिखाता है तेरे इस गुलाम ने इस तरह की बहुत सी चीज़ों को लुटा कर तुझ से दिल लगा लिया है तू मुझे इन्ही चीज़ों को दिखा कर फ़रेफ्ता आशिक करना चाहता है तेरी यकताई की कसम में इन को आँख उठा कर भी नहीं देखूँगा मुझ पर महिरबानी करके, पानी अता फ़रमा के में वुज़ू और तहारत के बाद तेरी इबादत में मशगूल होजाऊं, ये कह कर फिर आप ने कुँए में डोल डाला तो अब इस बार पानी से भरा हुआ निकला, आप ने खुदा का शुक्र अदा करके वुज़ू किया और नमाज़ में मशगूल हो गए,
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यादे खुदा में आप का डूबे रहना :- हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने जब सल्तनत हुकूमत छोड़ कर मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तशरीफ़ तशरीफ़ ले गए, तो आप के वज़ीरों को इसकी खबर हो गई, ये लोग आप के छोटे बच्चे को लेकर पहुंच गए इस बच्चे से हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह को बहुत मुहब्बत थी, इस बच्चे को देख कर आप की मुहब्बत और बढ़ गई, और अपने इस बेटे को लेकर अपनी ज़ानो पर बिठा लिया यकायक ग़ैब से आवाज़ आयी ए इब्राहीम तूने मेरी दोस्ती का झूठा दावा क्यों किया था, इस बेटे को देख कर तू मुझे भूल गया,
ये सुन कर आप का रंग मुतग़य्यर हो गया और आप ज़ारो क़तार रोने लगे फिर आप ने फ़रमाया ए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त जिस ने इब्राहीम को तेरी इबादत से गाफिल कर दिया, उस को फना कर दे, उसी वक़्त बेटे की जान निकल गई, और अपने उस बेटे को अपने हाथों से दफ़न करके सज्दए शुक्र अदा किया,
दरियाए दजला की हज़ारों मछलियां पानी के ऊपर सोने की सूइयां लेकर आ गईं :- हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह जब बल्ख (अफगानिस्तान का सूबा है) की सल्तनत छोड़ कर निकले, तो कुछ अरसे के लिए दरियाए दजला के किनारे ठहिर गए, और आप के उमरा वज़ीर व अराकीने सल्तनत आप की तलाश में आप के पीछे पीछे वहां तक पहुंच गए, उस वक़्त आप अपना खिरका (दुरवेशों का लिबास) सिल रहे थे, जब आप ने इन लोगों की भीड़ देखि तो पूछा तुम लोग कौन हो, और कहाँ से आ रहे हो, इन लोगों ने हक़ीकते हाल बताई, और कहा के हुज़ूर फिर बल्ख वापस तशरीफ़ ले चलें आप ने मना कर दिया, जब उन लोगों ने बहुत ज़िद्द की तो आप ने अपने हाथ की सुई जिससे आप कपड़ा सिल रहे थे, उसको आपने दरियाए दजला में फेंक दिया और फ़रमाया के अगर मेरी ये सुई दरिया से निकाल दो तो में तुम लोगों की बात मान लूँगा, उन लोगों ने बहुत कोशिश की लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ, फिर आप ने फ़रमाया के ए दरिया की मछलियों मेरी सुई तुम्हारे जिस किसी के पास है मुझे लाकर दो, फ़ौरन एक हज़ार मछलियां सोने की सुइंयाँ मुँह में लेकर दरिया से ऊपर निकल आयीं उन में से एक के पास हज़रत की भी सुई थी आप ने अपनी ही सुई लेली, और कहा ए उमरा वज़ीरों मुझे बल्ख की बादशात नहीं चाहिए तुम लोग जाओ जिस को इस काम के लाइक समझो अपना बादशा बनालो, और आप ने कहा कमतीरीन मर्तबा जो मेने सल्तनत छोड़ कर पाया है इससे ज़्यादा देखने की तो ताक़त नहीं रखता, वो सब हैरान और न उम्मीद होकर वापस चले गए,
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पहाड़ की फरमा बरदारी :- एक दिन हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह अल्लाह कोहे कबीस की चोटी पर बैठे अपने साथियों से बातें कर रहे थे, दौरान गुफ्तुगू आप ने फ़रमाया अगर अल्लाह का वली पहाड़ को चलने का हुक्म दें तो पहाड़ हरकत में आजाए, ये जुमला ख़त्म होते ही पहाड़ में हरकत पैदा हो गयी, और वो चनले लगा, आप ने अपने पैर मुबारक को पहाड़ पर मारते हुए कहा के रुकजा में तो बतौर मिसाल दोस्तों से कह रहा था तुझे चले को नहीं कहा था,
आप का नस्बुल ऐन :- एक दिन खलीफा मोतसिम बिल्लाह हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और आप से पूछा के कोई हाजत है तो फरमाएं, आप ने जवाब दिया के मेने दुनिया दुनिया वालों के लिए और आख़िरत आख़िरत वालों के लिए छोड़ दी है और खुद इस दुनिया में यादे खुदा को और उस दुनिया में इस के दीदार को अपना नस्बुल ऐन बना लिया, एक और शख्स ने आप से यही सवाल किया तो आप ने फ़रमाया के अल्लाह वालों को कोई हाजत नहीं होती,
आप के बैठने का तरीक़ा: हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह कभी पालती मार के नहीं बैठते थे किसी शख्स ने आप से इस के बारे में पूछा तो फ़रमाया के एक दिन में चार ज़ानों बैठा हुआ था, तो ग़ैब से आवाज़ आयी के अदहम के बेटे क्या गुलाम अपने आक़ा के सामने इस तरह बैठते हैं बस मेने उसी रोज़ से तौबा करली,
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फ़क़ीरी किसे कहते हैं सही मने में फ़क़ीर कौन होता है? :- एक दिन हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत ख्वाजा शफ़ीक़ बल्खी रहमतुल्लाह अलैह एक साथ ही एक जगह पर बैठे हुए थे, एक साहिबे कशफो करामात दुर्वेश अल्लाह वाले तशरीफ़ लाए, हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने उन से पूछा के आप अपना गुज़ारा किस तरह करते हैं दुर्वेश ने जवाब दिया के जब खाने को मिल जाता है शुक्र अदा करता हूँ और जब खाने को नहीं मिलता, तो सब्र कर लेता हूँ, हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ये तो खुरासान के कुत्ते भी करते हैं, फिर आपने अपने खलीफा “हज़रत ख्वाजा शफ़ीक़ बल्खी रहमतुल्लाह अलैह” से फ़रमाया तुम अपना गुज़ारा किस तरह करते हो, तो उन्होंने जवाब दिया के जब मुझे कुछ मिलता है में तकसीम बाँट देता हूँ और अगर कुछ नहीं मिलता तो शुक्र अदा करता हूँ, हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने उठ कर आप की पेशानी चूमली और फ़रमाया के “फ़क़ीरी” यही है,
आप के खलीफा :- हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह के दो कामिल और जय्यद खलीफा थे, एक हज़रत ख्वाजा हुज़ैफ़ा मरअशी रहमतुल्लाह अलैह, और दूसरे हज़रत ख़्वाजा शफ़ीक़ बल्खी रहमतुल्लाह अलैह,
आप का विसाले पुरमलाल :- हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 22, बाईस जमादिउल अव्वल दो सौ अस्सी 280, हिजरी में हुआ, और बाज़ हज़रात का कहना है के आप की वफ़ात 161, हिजरी में हुई, और एक क़ौल के मुताबिक आप का विसाल माहे शव्वाल की एक तारीख 187, हिजरी को अबू अब्दुल्लाह तीसरे खलीफा के अहदे हुकूमत में हुआ, और आप के मज़ार शरीफ के बारे में इख्तिलाफ है के बाज़ हज़रात कहते हैं के बग़दाद शरीफ में है और बाज़ का क़ौल है के मुल्के शाम सीरिया में है लेकिन ज़्यादा सही ये है के हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के मज़ार शरीफ के पास है,
मआख़िज़ व मराजे :- मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया जिल्द दो, तज़किरातुल औलिया, सैरुल अक़ताब, सफ़ीनतुल औलिया, तज़किराए ख्वाजगाने चिश्त, महफिले औलिया, सैरुल औलिया,
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