आपके इब्तिदाई हालात :- हुज़ूर सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका, मुहसिने अहले सुन्नत, ख़लीफ़ए आला हज़रत “मुसन्निफ़े बहारे शरीअत” हज़रते अल्लामा व मौलाना अल्हाज मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रज़वी सुन्नी हनफ़ी क़ादरी बरकाती रहमतुल्लाह अलैह हिजरी 1300 मुताबिक़ सन 1882 में पूरबी यूपी (हिंदुस्तान) क़स्बा मदीनतुल उलमा घोसी मऊ में आपकी पैदाइश हुई | आपके वालिद माजिद हकीम जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह और आपके दादा हुज़ूर खुदा बख्श रहमतुल्लाह अलैह फन्ने तिब के माहिर थे | हुज़ूर सद रुश्शरिया अल्लामा अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने शुरू की तालीम अपने दादा हज़रत मौलाना खुदा बख्श रहमतुल्लाह अलैह से घर पर हासिल की फिर अपने क़स्बा ही में मदरसा नासिरुल उलूम में जाकर गोपाल गजं के मौलवी इलाही बख्श साहब रहमतुल्लाह अलैह से कुछ तालीम हासिल की | फिर जौनपुर पहुंचें और अपने चचा ज़ाद भाई और उस्ताज़ मौलाना मुहम्मद सिद्दीक़ रहमतुल्लाह अलैह से कुछ अस्बाक पढ़े फिर जामे माक़ूलात व मन्क़ूलात हज़रत अल्लामा हिदायतुल्लाह खान अलैहिर्रहमा से इल्मे दीन के छलकते हुए जाम नोश (पीना) किए और यहीं से दरसे निज़ामी की तकमील की | फिर दोरए हदीस की तकमील पीलीभीत में उस्ताजुल मुहद्दिसीन हज़रत अल्लामा वसी अहमद मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह से की | हज़रत अल्लामा वसी अहमद मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह ने होनहार शागिर्द की अला सलाहियतों का ऐतिराफ़ इन अलफ़ाज़ में किया: “मुझ से अगर किसी ने पढ़ा है तो अमजद अली ने” |
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पैदल बैल गाड़ी से सफर :- हुज़ूर सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका, मुहसिने अहले सुन्नत,रहमतुल्लाह अलैह ने इल्मे दीन हासिल करने के लिए जब मदीनतुल उलमा घोसी से जौनपुर का सफर इख़्तियार किया, उन दिनों सफर पैदल या बैल गाड़ियों पर होता था जैसा के राहे इल्म के मुसाफिर हुज़ूर सद रुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह मदीनतुल उलमा घोसी मऊ से पैदल सफर करके आज़म गढ़ आए फिर यहां से ऊँट गाढ़ी पर सवार होकर आप रहमतुल्लाह अलैह जौनपुर पहुंचें | (बहारे शरीअत की पहली जिल्द)
आपका हैरत अंगेज़ क़ुव्वते हाफ़िज़ा :- हुज़ूर सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका, मुहसिने अहले सुन्नत, मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह का हाफ़िज़ा बहुत मज़बूत था | हाफ़िज़ा की क़ुव्वत, शौक़ व मेहनत और ज़िहानत की वजह से तमाम तलबा से बेहतर समझे जाते थे | एक मर्तबा किताब देखने या सुनने से बरसों तक ऐसी याद रहती जैसे अभी अभी देखि या सुनी है तीन मर्तबा किसी इबारत को पढ़ लेते तो याद हो जाती एक मर्तबा इरादा किया के “काफिया” की इबारत ज़बानी की जाए तो फायदा होगा तो पूरी किताब एक ही दिन में याद करली |
तदरीस का आगाज़ :- सूबा बिहार (हिंदुस्तान पटना) में मदरसा अहले सुन्नत एक मुमताज़ दरस गाह थी जहां मुक़्तदिर हस्तियां अपने इल्मों फ़ज़ल के जोहर दिखा चुकी थीं | खुद हुज़ूर सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका, रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताज़े मुहतरम हज़रत अल्लामा मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह बरसो वहां शैखुल हदीस के मनसब पर फ़ाइज़ रह चुके थे मदरसे के मतवल्ली क़ाज़ी अब्दुल वहीद मरहूम की दरख्वास्त पर हज़रत अल्लामा मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह ने मदरसे अहले सुन्नत (पटना) के सदर मुदर्रिस के लिए सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका रहमतुल्लाह अलैह का इंतखाब फ़रमाया आप रहमतुल्लाह अलैह उस्ताज़े मुहतरम की दुआओ के साये में पटना पहुंचे और पहले ही सबक़ में उलूम के ऐसे दरया बहाए के उलमा और तलबा सबकी तबियत बाग बाग हो गयी क़ाज़ी अब्दुल वहीद अलैहिर्रहमा जो खुद भी मुताबहहिर (इल्म का दरया) आलिमे दीन थे सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका रहमतुल्लाह अलैह की इल्मी वजाहत और इन्तिज़ामी सलाहियत से मुतअस्सिर मदरसा के तालीमी उमूर आप के सुपुर्द कर दिए |
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आला हज़रत की पहली बार ज़ियारत :- कुछ अरसे बाद क़ाज़ी अब्दुल वहीद रहमतुल्लाह अलैह बानिये मदरसा अहले सुन्नत (पटना) शदीद बीमार हो गए क़ाज़ी साहब एक निहायत और दीनदार व दीन परवर रईस थे इल्मे दीन से आरास्ता होने के साथ साथ अंग्रेजी तालीम में बी ऐ थे उनके वालिद उन्हें बैरिस्ट्री के इम्तिहान के लिए लंदन भेजना चाहते थे लेकिन क़ाज़ी साहब के मुक़द्दस मदनी जज़्बात ने यूरोप के मुल्हिदाना गंदे माहौल को सख्त नापसंद किया चुनाचे आपने इस सफ़र से तहरीज़ फरमाया और सारी जिंदगी खिदमत दीन ही को अपना शिआर बनाया उनकी परहेजगारी और मदनी सोच ही की कशिश थी के मेरे आका आला हजरत इमामे अहले सुन्नत वलिए नेमत अज़ीमुल बरकत अज़ीमुल मरतबत, परवानाए, शमए रिसालत, मुजद्दिदे दिनों मिल्लत, हामिए सुन्नत, माहिए बिदअत, आलिमे शरीअत, पिरे तरीक़त, बाइसे खैरोबरकत, हज़रत अल्लामा व मौलाना अल्हाज अल हाफ़िज़ अल कारी अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह और हज़रते क़िब्ला मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह जैसे मसरूफ बुज़ुर्गाने दीन क़ाज़ी साहब की इयादत केलिए रोहिलखण्ड से पटना तशरीफ़ लाए | इसी मौके पर हज़रत सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका, मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने पहली बार मेरे आक़ा आला हज़रत आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत की आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की शख्सियत में ऐसी कशिश थी के बे इख्तियार सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका रहमतुल्लाह अलैह का दिल आपकी तरफ माइल हो गया और अपने उस्ताज़े मुहतरम हज़रत अल्लामा मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह के मशवरे से सिलसिलए आलिया क़दीरिया में आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से “बैअत” हो गए | मेरे आक़ा आला हज़रत और सय्यदी मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह की मौजूदगी में ही क़ाज़ी साबह ने वफ़ात पाई | आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने नमाज़े जनाज़ा पढाई और मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह ने क़ब्र में उतारा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उनपर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
इल्मे तिब की तहसील :- क़ाज़ी साहब रहमतुल्लाह अलैह की रेहलत के बाद मदरसे का इंतिज़ाम जिन लोगों के हाथ में आया, उनके नामुनासिब क़दम उठाने की वजहः से सद रुश्शारिया रहमतुल्लाह अलैह सख्त कबीदाह और दिल बर्दाशता हो गए और सालाना छुट्टी में अपने घर पहुंचने के बद अस्तीफा भिजवा दिया और मुतआला क़ुतुब में मसरूफ हो गए | पटना में मगरिब ज़दाह लोगों के बुरे बर्ताओ से मुतअस्सिर हो कर मुलाज़िमत से बेज़ार हो गए थे मुआश के लिए किसी मुनासिब काम की तलाश थी वालिद मुहतरम की नसीहत याद आयी “के वालिद की मीरास हासिल करना चाहते हो तो वालिद का इल्म सीखो” ख्याल आया के क्यूना इल्मे तिब (हिकमत हकीमी काम) खानदानी पेशा ही को अपनाया जाए जैसा के शव्वालुल मुकर्रम 1326 हिजरी में लखनऊ जाकर दो साल में इल्मे तिब (हिकमत हकीमी काम) सीखने के बाद वतन वापस आए और खानदानी पेशा और खुदा दाद क़ाबिलियत की बिना पर हिकमत का काम निहायत कामयाबी के साथ चल पढ़ा | (बहारे शरीअत की पहली जिल्द)
सद रुश्शरिया आला हज़रत की बार गाहे अज़मत में :- ज़रियाए मआश से मुत्मइन होकर जमादिउल ऊला 1329 हिजरी आप किसी काम से “लखनऊ” तशरीफ़ ले गए वहां से अपने उस्ताज़े मुहतरम की खिदमत में “पीलीभीत” हाज़िर हुए हज़रत मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह को जब मालूम हुआ के उनका होनहार शागिर्द तदरीस छोड़ कर हकीमी काम में मशगूल हो गया है तो उन्हें बेहद अफ़सोस हुआ सद रूश्शरीअ रहमतुल्लाह अलैह का इरादा बरेली शरीफ हाज़िर होने का भी था चुनाचे बरेली शरीफ जाते वक़्त मुहद्दिसे सूरती रहमतुल्लाह अलैह ने एक खत इस मज़मून का आला हज़रत की खिदमत में तहरीर फरमा दिया “के जिस तरह भी मुमकिन हो आप इन यानी सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका,मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह को खिदमते दीन व इल्मे दीन की तरफ मुतवज्जेह कीजिए जब मेरे आक़ा आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के दरे दौलत पे हाज़री हुई तो आप निहायत लुत्फ़ो करम से पेश आए और इरशाद फ़रमाया: आप यहीं क़ायम कीजिए और जब तक में न कहूँ वापस नहीं जाना और दिल बस्तगी के साथ कुछ तहरीरी काम सुपुर्द कर दिया दो महीने बरेली शरीफ क़ायम किया आपने और मेरे आक़ा आला हज़रत की सुहबत में इल्मी फैज़ और दीनी मुज़किराह का सिलसिला जारी रहा यहाँ तक के रमजान क़रीब आ गया सद रुश्शरिया ने घर जाने की इजाज़त मागि तो आला हज़रत ने फ़रमाया अब जाइए लेकिन जब कभी में बुलाऊँ तो फ़ौरन चले आना | (बहारे शरीअत की पहली जिल्द)
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तबाअत से दीनी खिदमत की तरफ आपका आना :- सद रुश्शारिया खुद फरमाते हैं में जब आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर हुआ तो मुझसे पूछा मौलाना क्या करते हो? मेने अर्ज़ की मतब (हकीमी काम) करता हूँ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया मतब भी अच्छा काम है और इल्म दो हैं इल्मे दीन और इल्मे तिब मगर मगर खराबी ये है के सुबूह सुबूह पेशाब देखना पढता है इस इरशाद के बाद मुझे पेशाब देखने से सख्त नफरत हो गई और आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत रहमतुल्लाह अलैह का कश्फ़ था कियुँकि में मर्ज़ों की जांचपड़ताल पेशाब से ही लेता था और ये तसर्रुफ़ था के मरीज़ो का पेशाब देखने से सख्त नफरत हो गई |
बरेली शरीफ में दोबारा हाज़री :- घर जाने के बाद कुछ महीने बाद बरेली शरीफ से खत पहुंचा के आप फ़ौरन चले आइए | चुनाचे सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका रहमतुल्लाह अलैह दोबारा बरेली शरीफ में हाज़िर हो गए इस बार “अंजुमन अहले सुन्नत की” निज़ामत और उसके प्रेस के इंतिज़ाम के अलावा मदरसे का कुछ तालीमी काम भी सुपुर्द कर दिया गया गोया मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत रहमतुल्लाह अलैह ने बरेली शरीफ में आपके रहने के लिए इंतिज़ाम भी कर दिया इस तरह सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका रहमतुल्लाह अलैह ने 18 साल मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत रहमतुल्लाह अलैह की सुहबत बा बरकत में गुज़ारे |
बरेली शरीफ में मसरूफियात :- बरेली शरीफ में दो मुस्तक़िल काम थे एक मदरसे में तदरीस, दूसरे प्रेस का काम यानि कापियों और प्रूफ़ों को जांचना देखना तसही करना किताबों की रवानगी, खतों के जवाब, आमद खर्च का हिसाब ये सारे काम तनहा अंजाम दिया करते थे | इन कामो के अलावा आला हज़रत के कुछ मुसव्वदात का यानि नए सिरे से लिखना फतवों की नक़ल और उनकी खिदमत में रह कर फतवा लिखना ये काम भी मुस्तक़िल तौर पर अंजाम देते थे फिर शहर और बाहर के शहर के अक्सर तबलीग़े दीन के जलसों में भी शिरकत फरमाते थे |
रोज़ाना का जदवल यानि निज़ामुल औक़ात :- सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका रहमतुल्लाह अलैह का रोज़ाना का जदवल यानि निज़ामुल औक़ात कुछ इस तरह था के बादे नमाज़े फज्र ज़रूरी वज़ाइफ़ व तिलावते क़ुरान के बाद घंटा डेढ़ घंटा प्रेस का काम अंजाम देते फिर फ़ौरन मदरसा जाकर पढ़ाते | दो पहर के खाने के बाद कुछ देर तक फिर प्रेस का काम अंजाम देते नमाज़े ज़ोहर बाद असर तक फिर मदरसा में तालीम देते बादे नमाज़े असर मगरिब तक आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में बैठा करते | बादे मगरिब ईशा तक और ईशा के बाद से 12 बजे तक आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में फतवों को लिखा करते थे | उसके बाद घर वापसी होती और कुछ तहरीरी काम करने के बाद तक़रीबन रात को 2 बजे आराम फरमाते | आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के आखीर ज़माने हयात तक यानि काम व बेश 10 साल तक रोज़ यही मामूल रहा | सद रुश्शरिया बद रुत्तरिका मुफ़्ती अमजद अली रहमतुल्लाह अलैह की इस मेहनती शाक़्क़ा व अज़्म से उस दौर के उलमा हैरान थे आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के भाई हज़रत नंन्हे मियां मौलाना मुहम्मद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के मौलाना अमजद अली काम की मशीन हैं और वो भी ऐसी मशीन जो कभी फेल न हो |
तर्जुमाए कंज़ुल ईमान कर वाना :- सही और गलतियों से पाक हदीसे नबवी व अक़्वाले अइम्मा के मुताबिक़ एक तर्जुमा की ज़रूरत महसूस करते हुए आपने तर्जुमाए क़ुरआने पाक के लिए आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की बारगाहे अज़मत में दरख्वास्त पेश की तो इरशाद फ़रमाया: ये तो बहुत ज़रूरी है मगर छपने की किया सूरत होगी उसकी छपाई का इंतिज़ाम कौन करेगा? बा वुज़ू कापियों को लिखना, बा वुज़ू कापियों और हुरूफ़ की तसही यानि जांचपड़ताल करना और तसही भी ऐसी हो के ऐराब नुक़्ते या अलामतों की भी गलती न रह जाए फिर ये सब चीज़ हो जाने के बाद सब से बड़ी मुश्किल तो ये है के प्रेस में हर वक़्त वुज़ू के साथ रहे बगैर वुज़ू न पथ्थर छुए और न काटे, पथ्थर काटने में भी एहतियात की जाए और छपने में जो जोड़ियां निकली हैं उनको भी बहुत एहतियात से रखा जाए आपने अर्ज़ की इंशा अल्लाह जो बातें ज़रूरी हैं | उनको पूरी कोशिश करने की कोशिश की जाएगी बिलफर्ज मान लिया जाए के हम से ऐसा न हो सका तो जब एक चीज़ मौजूद है तो हो सकता है आइंदा कोई इसके छपने का इंतिज़ाम करे और खुदा की मख्लूक़ को फ़ायदा पहुंचे और अगर इस वक़्त ये काम न हो सका तो आइंदा इसके न होने का हम को बढ़ा अफ़सोस होगा | आपकी इस दरख्वास्त के बाद क़ुरआन शरीफ के तर्जुमे का काम शुरू कर दिया गया बी हमदिल्लाह आपकी कोशिशे जमीला से खातिर ख़्वाह कामयाबी हुई और आज मुसलमानो की बहुत बड़ी तादाद मुजद्दिदे आज़म इमामे अहले सुन्नत रहमतुल्लाह अलैह के लिखे हुए क़ुरआने पाक के सही तर्जुमा “तर्जुमाए कंज़ुल ईमान” से मुस्तफ़ीद होकर आप रहमतुल्लाह अलैह यानि सद रुश्शारिया के ममनून और एहसान मंद हैं और इंशा अल्लाह ये सिलसिला क़यामत तक जारी रहेगा |
मज़ारे मुबारक हुज़ूर सद रुश्शारिया बद रुत्तारिका रहमतुल्लाह अलैह घोसी ज़िला आज़म गढ़ यूपी
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वक़ीले रज़ा :- मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने सिवाए सद रुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह के किसी को भी हत्ता के शहज़ादगान को भी अपनी बैअत लेने के लिए वकील नहीं बनाया था |
आपको सद रुश्शरिया का लक़ब किसने दिया :- अल्मलफ़ूज़ हिस्सा अव्वल में है के मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: मौजे दीन में तफककोह जिसका नाम है वो मौलवी अमजद अली साहब में ज़्यादा पाएगा, इसकी वजह यही है के वो इस्तिफता सुनाया करते थे और जो में जवाब देता हूँ वो लिखते हैं तबीअत आखख़ाज़ है तर्ज़ से “वाक़फ़ियत” हो चली है मेरे आक़ा आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने ही हज़रत मौलाना अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह को “सद रुश्शरिया” के लक़ब से नवाज़ा |
सरकार आला हज़रत ने आपको काज़िए शरआ बनाया :- एक दिन सुबह तक़रीबन 9 बजे मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह मकान से बाहर तशरीफ़ लाए, तख़्त पे कालीन बिछाने का हुक्म दिया, सब हाज़रीन हैरत ज़दाह थे के हुज़ूर ये एहतिमाम किस लिए फरमा रहे हैं फिर आला हज़रत एक कुर्सी पर तशरीफ़ फरमा हुए और फ़रमाया के में आज बरेली में “दारुल क़ज़ा” बरेली के क़ायम की बुनियाद रखता हूँ और “सद रुश्शरिया” को अपनी तरफ बुला कर उनका सीधा हाथ अपने दस्ते मुबारक में लेकर “क़ाज़ी के मनसब” पर बिठा कर फ़रमाया: में आपको हिंदुस्तान के लिए “काज़िए शरआ” बनाता हूँ मुसलमानो के बीच अगर ऐसे कोई मसाइल पैदा हों जिनका शरई फैसला काज़िए शरआ ही कर सकता है वो काज़िए शरआ का इख़्तियार आपके ज़िम्मे है फिर ताजदारे अहले सुन्नत मुफ्तिए आज़म हिन्द हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह और बुरहाने मिल्लत हज़रते अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद बुरहानुल हक़ रज़वी रहमतुल्लाह अलैह को “दारुल क़ज़ा” बरेली में मुफ्तिए शरआ की हैसियत से मुक़र्रर फ़रमाया, सद रुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह ने दुसरे दिन ही काज़िए शरआ की हैसियत से पहली नशिश्त की और वरासत के एक मुआमले का फैसला फ़रमाया | (बहारे शरीअत की पहली जिल्द)
आस्तानए मुर्शिद से वफ़ा :- एक मर्तबा किसी साहब ने ताजदारे अहले सुन्नत मुफ्तिए आज़म हिन्द हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा खान शहज़ादए आला हज़रत मौलान मुस्तफा रज़ा खान अलैहिर्रहमा के सामने सद रुश्शरिया, मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा का तज़किराह फ़रमाया तो मुफ़्ती आज़म की चश्माने करम से आँसूं बहने लगे और फ़रमाया के सद रुश्शरिया ने “अपना कोई घर नहीं बनाया बरेली ही को अपना घर समझा वो साहिबे असर भी थे तलबा के उस्ताज़ भी वो चाहते तो आसानी से कोई “ज़ाती दारुल उलूम” ऐसा खोल लेते जिस पे वो तनहा क़ाबिज़ रहते मगर उनके ख़ुलूस ने ऐसा नहीं करने दिया |
ये मेरे मुर्शिद का करम है :- दारुल उलूम मोइनिया उस्मानिया अजमेर शरीफ में वहाँ के आप सद रूल मुदर्रिसीन होकर रहे जब आप पहुंचे और वहां के लोग आपके “अंदाज़े तदरीस पढ़ाने का तरीक़ा” देखकर बहुत मुतअस्सिर हुए तो आपके रूबरू इस का ज़िक्र आया के आपकी तालीम बहुत कामयाब नज़र आ रही है ये मरकज़ी दारुल उलूम बुलंद होता जा रहा है आपने फ़रमाया: “ये मुझ पर आला हज़रत का फ़ज़्लो करम है” |
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सद रुश्शरिया की सुहबत की अज़मत :- शागिर्द व खलीफा सद रुश्शरिया मौलाना सय्यद ज़हीर अहमद ज़ैदी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं मुझे सात साल के अरसे में बेशुमार मौलाना की खिदमत में हाज़री का मौक़ा मिला लेकिन मेने आपकी मिजलिसों को ऐबों से पाक पाया जो आम तौर से बिला इम्तियाज़ आम व ख़ास हमारे मुआशिरे का हिस्सा बन गए हैं मसलन, ग़ीबत, चुगली, दूसरों के ऐब तलाश करना वगैरह आपकी ज़िन्दगी निहायत मुक़द्दस व पाकीज़ा थी मुझे आपकी ज़िन्दगी में झूट बोलने का शाएबा भी नहीं गुज़रा आपके मामूलात क़ुरआन व सुन्नत के मुताबिक़ थे गुफ्तुगू भी निहायत अदब से फरमाते थे | (बहारे शरीअत की पहली जिल्द)
आपका सब्र व तहम्मुल :- आपके बड़े साहब ज़ादे हज़रत मौलाना हकीम शमशुल हुदा साहब रहमतुल्लाह अलैह का इन्तिक़ाल हो गया तो सद रुश्शारिया उस वक़्त नमाज़े तरावीह अदा कर रहे थे आपको खबर दी गई तशरीफ़ लाए “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैह ही राजिऊन” पढ़ा और फ़रमाया: अभी आठ रकअत तरावीह बाक़ी हैं फिर आप नमाज़ पढ़ने लगे |
हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख्वाब में आकर फ़रमाया :- सद रुश्शारिया की शहज़ादी “बनु” सख्त बीमार थीं इस दौरान एक दिन बाद नमाज़े फज्र हज़रत सद रुश्शारिया ने क़ुरआन ख्वानी के लिए तलबा व हाज़िरी को रोका बाद खत्मे क़ुरआन मजीद आपने मजलिस को ख़िताब फ़रमाया के मेरी बेटी “बनु” की बीमारी बहुत लम्बी हो गई कोई इलाज कार गर नहीं हुआ और फायदे की कोई सूरत नहीं निकल रही है, “आज रात मेने ख्वाब देखा के सरवरे कौनैन रहमते आलम रूही फ़िदा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम घर में तशरीफ़ लाए हैं और फरमा रहे हैं के “बनु” को लेने आए हैं” सय्यदुल अनाम हुज़ूरे अकरम अलैहिस्सलाम को ख्वाब में देखना भी हक़ीक़त में बिला शुबा आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखना है बनु की दुनियावी ज़िन्दगी अब पूरी हो चुकी है मगर वो बड़ी ही खुश नसीब है के उसे आक़ा व मौला रहमते आलम महबूबे रब्बुल आलमीन सलल्लाहु अलैहि वसल्लम लेने के लिए तशरीफ़ लाए और मेने ख़ुशी से सुपुर्द किया दुआए खैर के बाद मजलिसे क़ुरआन ख्वानी ख़त्म हो गई गालिबन उसी दिन या दुसरे दिन बनु का इन्तिक़ाल हो गया |
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शेहज़ाद गान पर शफ़क़त :- शेहज़ाद गान पर शफ़क़त का जो आलम था वो शेह्ज़ादाए सद रुश्शरिया शैखुल हदीस हज़रत अल्लामा अब्दुल मुस्तफा अज़हरी अलैहिर्रहमा अपने मज़मून में तफ्सील से बयान किया है के में आपकी खिदमत में हाज़िर था मौलाना सनाउल मुस्तफा,मौलाना बहाउल मुस्तफा, मौलाना फिदाउल मुस्तफा, उस वक़्त बहुत छोटे बच्चे थे वो गन्ना लेकर आते और कहते “अना जी इसे गला बना दो “यानि इसे छील कर काट के छोटे छोटे टुकड़े कर दीजिए आप सद रुश्शरिया बड़े प्यार मुहब्बत से मुस्कुरा कर गन्ना हाथ में लेकर चाकू से उसे छीलते फिर छोटे छोटे करके उन लोगों के मुँह में डालते |
घर के कामो में हाथ बटाते :- बुखारी शरीफ में है: हज़रते सय्यदह आएशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने घर में काम काज में मशगूल रहते यानि घर वालों का काम करते थे | (सही बुखारी जिल्द अव्वल) इसी सुन्नत पे अमल करते हुए सद रुश्शरिया घर के काम काज से शर्म महसूस नहीं फरमाते बल्कि सुन्नत पे अमल करने की नियत से उनको बा ख़ुशी अंजाम देते |
सद रुश्शरिया का सुन्नत के मुताबिक़ चलने का अंदाज़ :- शागिर्द व खलीफा सदरे शरीअत, हाफिज़े मिल्लत हज़रते अल्लामा व मौलाना अब्दुल अज़ीज़ मुबारक पूरी अलैहिर्रहमा बयान करते हैं हमारे उस्ताज़े मुहतरम सद रुश्शरिया सुन्नत के मुताबिक़ चलते थे उनसे हमने इल्म भी सीखा और अमल भी यही हुज़ूर हाफिज़े मिल्लत फरमाते हैं: में दस साल हज़रत सद रुश्शरिया की खिदमत में रहा आपको हमेशा सुन्नत का पाबंद पाया |
नमाज़ की पाबन्दी :- सफर हो या हज़र सद रुश्शरिया कभी नमाज़ क़ज़ा न फरमाते शदीद से शदीद बीमारी में भी नमाज़ अदा फरमाते अजमेर शरीफ में एक बार शदीद बुखार में मुब्तिला हो गए यहाँ तक के बेहोशी तरी हो गई | दोपहर से पहले ग़शी तरी हुई और असर तक रही हाफ़िज़ मिल्लत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ अलैहिर्रहमा खिदमत के लिए हाज़िर थे सद रुश्शरिया
को जब होश आया तो आपने सब से पहले पूछा के किया वक़्त है ज़ुहर का वक़्त है या नहीं हाफ़िज़ मिल्लत ने अर्ज़ की के इतने बज गए हैं अब ज़ुहर का वक़्त नहीं ये सुनकर आपको इतनी तकलीफ हुई के आँसू जारी हो गए हाफ़िज़ मिल्लत ने कहा के हुज़ूर कहीं दर्द है कहीं तकलीफ है फ़रमाया बहुत बड़ी तकलीफ है के ज़ुहर की नमाज़ क़ज़ा हो गई हाफिजे मिल्लत ने अर्ज़ की हुज़ूर आप बेहोश थे बेहोशी के आलम में नमाज़ क़ज़ा होने पे कोई पकड़ पूछ गूछ नहीं फ़रमाया आप पकड़ की बात कर रहे हैं वक़्ते मुक़र्ररा पर दरबारे इलाही की एक “हाज़री” से तो महरूम रहा |
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बीमारी में भी रोज़ा नहीं छोड़ा :- एक बार रमज़ानुल मुबारक में सख्त सर्दी का बुखार चढ़ गया उसमे खूब ठण्ड लगती और सख्त बुखार चढ़ता है प्यास इतनी सख्त लगती है के न क़ाबिले बर्दाश्त हो जाती है तक़रीबन एक हफ्ते तक इस बुखार में गिरफ्तार रहे ज़ुहर के बाद खूब सर्दी चढ़ती फिर बुखार आ जाता मगर क़ुर्बान जाइए इस हाल में भी कोई रोज़ा नहीं छोड़ा |
ज़कात की अदाएगी :- शरह बुखारी हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद बहुत बड़े ताजिर थे और हिसाब के माहिर, सद रुश्शरिया उनको बुला कर ज़कात का पूरा हिसाब लगवाते फिर उन्ही से कपडे का थान मगाकर औरतों के लाइक अलग मर्दों बच्चों के लाइक अलग और सबको मुनासिब तक़सीम फरमाते कोई साइल कभी दरवाज़े से खली वापस न जाता बहुत बड़े मेहमान नवाज़ और मेहमान आते रहते सबको खाने पीने उठने बैठने और आराम का इंतिज़ाम फरमाते मेहमानो के लिए उनकी ज़रूरियात की चीज़ें हर वक़्त घर में रखते |
दुरूदे रजविया पढ़ने का जज़्बा :- कितनी ही मसरूफियत हो नमाज़े फज्र के बाद एक पारे की तिलावत फरमाते और फिर एक चेपटर दलाईलुल खैरात शरीफ पढ़ते, उसमे कभी नागा नहीं होता और बादे नामज़े जुमा बिला नागा 100 बार “दुरूदे रज़विया” पढ़ते | सफर में भी जुमा होता तो नमाज़े ज़ुहर के बाद दुरूदे रज़विया न छोड़ते, चलती हुई ट्रेन में खड़े हो कर पढ़ते |
ख्वाब में आकर रहनुमाई की :- ख़लीले मिल्लत हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद खलील खान बरकाती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं तलबा की तरफ भर पूर तवज्जु का अंदाज़ा इस वाक़िअ से लगाईए के फ़क़ीर को एक मर्तबा एक मसला लिखने में उलझन पेश आयी “अल हमदू लिल्लाह मेरे उस्ताज़े गिरामी” हुज़ूर सद रुश्शरिया अलैहिर्रहमा ने ख्वाब में तशरीफ़ लाकर इरशाद फ़रमाया “बहारे शरीअत का फुलां हिस्सा देख लो” सुबह उठकर बहारे शरीअत उठाई और मसला हल कर लिया विसाल शरीफ के बाद फ़क़ीर ने ख्वाब में देखा के हुज़ूर सद रुश्शरिया अलैहिर्रहमा दरसे हदीस दे रहे हैं मुस्लिम शरीफ सामने है और साफ़ लिबास में तशरीफ़ फरमा हैं मुझ से फ़रमाया आओ तुम भी मुस्लिम शरीफ पढ़ लो |
हज़रत शाहे आलम अहमदाबादी का तख़्त :- हज़रत सय्यदना शाहे आलम अहमदाबादी रहमतुल्लाह अलैह बहुत बड़े आलिमे दीन और पाए के वलियुल्लाह थे | अहमदाबाद शरीफ (गुजरात हिंदुस्तान) में आप निहायत ही लगन के साथ इल्मे दीन की तालीम देते थे एक बार बीमार हो कर साहिबे फराश हो गए और पढ़ाने की छुट्टियां हो गईं जिसका आपको बेहद अफ़सोस था | तक़रीबन 40 दिन के बाद सिहत याब हुए और मदरसे में तशरीफ़ लाकर हस्बे मामूल अपने तख़्त पर तशरीफ़ फरमा हुए 40 दिन पहले जहाँ सबक़ छोड़ा था वहीँ से पढ़ना शुरू किया तलबा ने तअज्जुब होकर अर्ज़ की: हुज़ूर आपने तो ये मज़मून बहुत पहले पढ़ा दिया है कल तो आपने फुलां सबक़ पढ़ाया था ये सुनकर फ़ौरन आप मुराक़िब हुए उसी वक़्त सरकार मदीना करारे कलबो सीना सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत हुई | सरकार सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के लबहाए मुबारक के ये अलफ़ाज़ निकले “शाहे आलम” तुम्हे अपने अस्बाक रह जाने का बहुत अफ़सोस था लिहाज़ा तुम्हारी जगह तुम्हारी सूरत में तख़्त में बैठ कर में रोज़ाना सबक़ पढ़ा दिया करता था जिस तख़्त पे सरकार नामदार सलल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ फरमा हुआ करते थे उस पर अब हज़रते क़िब्ला सय्यदना शाहे आलम अलैहिर्रहमा किस तरह बैठ सकते थे लिहाज़ा फ़ौरन तख़्त पर से उठ गए | और ये तख़्त आज भी यहां की मस्जिद में लटका दिया गया है उसके बाद हज़रते सय्यदना शाहे आलम रहमतुल्लाह अलैह केलिए दूसरा तख़्त बनाया गया आपके विसाल के बाद उस तख़्त को भी लटका दिया गया और इस जगह पर दुआ क़बूल होती है |
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मदीने का मुसाफिर हिन्द से पंहुचा मदीने में :- ख़लीफ़ए सद रूश्शरिया पिरे तरीक़त हज़रत अल्लामा व मौलान हाफ़िज़ करि मुहम्मद मुसलीहुद्दीन सिद्दीक़ी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के “मुसन्निफे बहारे शरीअत” हुज़ूर सद रूश्शरिया मौलाना अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह के साथ मुझे मदीनतुल औलिया अहमदाबाद शरीफ (गुजरात हिंदुस्तान) में हज़रते सय्यदना शाहे आलम रहमतुल्लाह अलैह के दरबार में हाज़री की सआदत हासिल हुई, हम इन्ही दोनों तख्तों के दरमियान हाज़िर हुए और अपने अपने दिल की दुआएं करके जब फारिग हुए तो मेने अपने पिरो मुर्शिद हुज़ूर सद रूश्शरिया मौलाना अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह से अर्ज़ की हुज़ूर आपने किया दुआ मांगी? फ़रमाया “हर साल हज नसीब होने की में समझा हज़रत की दुआ का मंशा यही होगा के जब तक ज़िंदह रहूँ हज की सआदत मिले | लेकिन ये दुआ भी खूब क़बूल हुई के उसी साल हज का इरादा फ़रमाया मदीना शरीफ के सफर के लिए अपने वतन मदीनतुल उलमा घोसी ज़िला आज़म गढ़ से मुंबई तशरीफ़ लाए यहाँ आपको नमोनिया (एक क़िस्म का बुखार) हो गया और मदीना शरीफ जाने से पहले ही 1367 हिजरी ज़ीक़ादः की दूसरी रात में 12 बजकर 26 मिनट पर मुताबिक़ 6 1948 ईस्वी को आप वफ़ात पागए |
हुज़ूर सद रूश्शरिया क़यामत तक हज का हज सवाब हासिल करते रहेंगें :- सुबहान अल्लाह मुबारक तख़्त के नीचे मांगी हुई दुआ कुछ ऐसी क़बूल हुई के अब आप इंशा अल्लाह क़यमत तक हज का सवाब हासिल करते रहेगें | खुद हुज़ूर सद रूश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर ज़माना किताब बहारे शरीअत हिस्सा 6 में ये हदीसे पाक नक़ल की है: जो हज के लिए निकला और उसका इन्तिक़ाल हो गया तो क़यामत तक उसके लिए हज करने वाले का सवाब लिखा जाएगा और जो उमराह के लिए निकला और उसका इन्तिक़ाल हो गया उसके लिए क़यामत तक उमराह करने वाले का सवाब लिखा जाएगा और जो जिहाद में गया और उसका इन्तिक़ाल हो गया उसके लिए क़यामत तक गाज़ी का सवाब लिखा जाएगा | (मुसनद अबी याला जिल्द पांच)
आपका मज़ारे मुबारक :- आपके इन्तिक़ाल के बाद हुज़ूर सद रूश्शरिया अलैहिर्रहमा के वुजूदे मसऊद को बा ज़रिये ट्रेन मुंबई से मदीनतुल उलमा घोसी ले जाया गया वहीँ आपका मज़ारे मुबारक मरजए ख़ास व आम है |
आपकी क़ब्र शरीफ की मिटटी से शिफा मिलगई :- मदीनतुल उलमा घोसी के मौलाना फखरुद्दीन के वालिद मुहतरम मौलाना निजामुद्दीन के साहब के गुर्दे में पथ्थरी थी उनहोंने हर तरह का इलाज कराया लेकिन कोई फ़ायदाः हासिल न हुआ बिला आखिर हुज़ूर सद रूश्शरिया अलैहिर्रहमा की क़ब्रे अनवर की मिटटी इस्तेमाल की जिससे अल्हम्दुलिल्लाह उनके गुर्दे की पथ्थरी निकल गई और शिफा हासिल हो गई |
सद रूश्शरिया अलैहिर्रहमा की क़ब्रे अनवर से खुशबू :- आपके दफ़न होने के बाद कई रोज़ बारिश होती रही चुनाचे क़ब्रे अनवर पे चटाइयां दाल दी गईं जब 15 दिन के बाद मज़ार तामीर करने के लिए वो चटाइयां हटाईं गईं तो खुशबू की ऐसी लपटें उठीं के पूरी फ़िज़ा महकने लगी और ये खुशबू बराबर कई दिन तक उठती रही | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उनपर रहमतो अनवार की बारिश हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
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आपने बहुत सारे शागिर्द छोड़े जिनमे से कुछ ऐसे हैं जो असातज़ुल असातज़ा हुए कुछ मशहूर नाम ये है:
- मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान मौलाना सरदार अहमद अलैहिर्रहमा
- शेर बेशए अहले सुन्नत मौलाना हशमत अली खान अलैहिर्रहमा
- हुज़ूर हाफिज़े मिल्लत अलैहिर्रहमा
- हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत अलैहिर्रहमा
- मुनाज़िरे अहले सुन्नत मौलाना रफाक़त हुसैन अलैहिर्रहमा
- मौलाना अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलैहिर्रहमा
हुज़ूर सद रूश्शरिया अलैहिर्रहमा की किताब बहारे शरीअत :- हुज़ूर सद रूश्शरिया बद रुत्तरिका अलैहिर्रहमा का हिंदुस्ता और पाकिस्तान के मुसलमानो पर बहुत बड़ा एहसान है के उनहोंने अरबी क़ुतुब में फैले हुए फ़िक़्ही मसाइल को सिलके तहरीर में पिरोकर एक मक़ाम पे जमा कर दिए इंसान की पैदाइश से लेकर वफ़ात (मरना इन्तिक़ाल हो जाना) तक पेश होने वाले सभी हज़ारहा मसाइल का बयान “बहारे शरीअत” में मौजूद है इस में बेशुमार मसाइल ऐसे भी हैं जिनका सीखना हर इस्लामी भाई और इस्लामी बहिन पर फर्ज़े ऐन है इस किताब “बहारे शरीअत” का लिखने का सबब ज़िक्र करते हुए सद रूश्शरिया फरमाते हैं: के उर्दू ज़बान में अब तक कोई किताब नहीं लिखी गई जो सही मसाइल पर मुश्तमिल हो और ज़रूरियात के लिए काफी हो | फ़िक़ह हनफ़ी की मशहूर किताब “फ़तवाए आलम गिरी” सैंकड़ों उल्माए दीन ने हज़रत सय्यदना शैख़ निजामुद्दीन मुल्लाजीवन रहमतुल्लाह अलैह की निगरानी में अरबी ज़बान में तर्तीब दी गई मगर क़ुर्बान जाइये के सद रूश्शरिया वही काम उर्दू ज़बान में तनहे तनहा अकेले कर दिखाया और इल्मी ख़ज़ाने से न सिर्फ मुफ़्ता बिहि अक़वाल चुन चुन कर बहारे शरीअत में शामिल कर दिए बल्कि सैकड़ो क़ुरान की आयात और हज़ारो अहादीस भी मोज़ू की मुनासिबत की दर्ज की है आप खुद तहदीसे नेअमत के तोर पर इरशाद फरमाते है अगर औरंगज़ेब आलमगीर इस किताब बहारे शरीअत को देखते तो मुझे सोने से तोलते | आप का मकसद ये था के बर्रे सगीर के मुसलमान अपने दीन के मसाइल से बा आसानी सीखलें और इस किताब में इबारत बहुत आसान के समझने परेशानी न हो और कम इल्म और औरतें और बच्चे भी इससे फ़ायदाः हासिल कर सकें |
इस किताब का अरसए तस्नीफ़ :- इस किताब का अरसए तस्नीफ़ (लिखने का वक़्त) “सत्ताईस 27 साल” के अरसे के क़रीब है याद रहे के 27 सालका ये मतलब नहीं आपने इन सालों में हर वक़्त लिखने में लगे रहे बल्कि छुटियों में और दुसरे काम से वक़्त बचा कर ये किताब लिखते जिसके सबब इस की तकमील में काफी देर हो गई |
आपका उर्स मुबारक :- आपका उर्स मुबारक साद रूश्शरिया बद रुत्तरीक़ा हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती मोहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह (उर्स :- 2 ज़िलकाद, मज़ार :- घोसी शरीफ,ज़िला आजमगढ़, यूपी)
(बहारे शरीअत की पहली जिल्द)
(तज़किराए सद रुश्शारिया)
(फ़ैज़ाने सद रुश्शारिया)
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