ख्वाजाये हिन्द वो दरबार है आला तेरा
कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा

अल्लामा हसन राजा खान अलैहिर्रहमा

नाम व नसब :- अताए रसूल, सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन संजरी चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह नजीबुत्तरफेन सय्यद थे आपके वालिद माजिद हज़रत ख्वाजा गियासुद्दीन आलिम व फ़ाज़िल और साहिबे कमाल बुजुर्ग थे आपकी वालिदा माजिदा उम्मुल वरा जिन्हे माहे नूर भी कहा जाता है वो बड़ी नेक दिल आबिदा ज़ाहिदा थीं वालिदैन करीमैन ने आपका नाम मुइनुद्दीन रखा और प्यार व शफकत से इस नेक बख्त बच्चे को हसन के नाम से पुकारा करते थे और आज हिन्दुस्तान पाकिस्तान और दुनिया के दुसरे मुल्क के मुस्लमान अक़ीदत व मुहब्बत के साथ ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से आप को याद करते है और आप को हिन्दुस्तान की चोटी का वलियों का वली मानते है |

आपका नसब नामा वालिद कि तरफ से यह है

ख्वाजा मुईनुद्दीन बिन ख्वाजा गियासुद्दीन बिन कमालुद्दीन बिन अहमद हुसैन बिन ख्वाजा नजमुद्दीन बिन ताहिर बिन सय्यद अब्दुल अज़ीज़ बिन सय्यद इब्राहीम बिन सय्यद इदरीस बिन अली रजा बिन सय्यद इमाम मूसा काज़िम बिन इमाम जफ़र सादिक़ बिन इमाम मुहम्मद बाक़र बिन इमाम ज़ैनुल आब्दीन बिन हज़रत इमाम हुसैन बिन हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन|

आपका नसब नामा वालिदा कि तरफ से यह है


बीबी उम्मुल वरा अल मौसूम बीबी माहेनूर बीबी खास अल मलका बिन्ते सय्यद दाऊद बिन हज़रत अब्दुल्लाह हम्बली बिन सय्यद याह्या ज़ाहिद बिन सय्यद मुहम्मद रूही बिन सय्यद दाऊद बिन सय्यदना मूसा सानी बिन सय्यदना अब्दुल्लाह सानी बिन सय्यद मूसा अख़वंद बिन सय्यद अब्दुल्लाह बिन सय्यदना हसन मुसन्ना बिन सय्यदना हज़रते इमामे हसन बिन हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन|

विलादते मुबारक :- आपकी तारीखे विलादत चौदा रजब 537 हिज़री मुताबिक़ सन 1142 ब वक़्ते सुबुह बरोज़ पीर है सने विलादत के सिलसिले में इख्तिलाफ भी है मगर 537 हिजरी को अक्सर मुअर्रिख़ीन ने तरजीह दी है आप सजिस्तान के क़स्बा संजर में आपकी विलादत हुई बाज़ मुअर्रिख़ीन ने ख़ित्तए अस्फहान को आपकी जाए पैदाइश बताते है आपकी वालिदा माजिदा बयान फरमाती है के जब मुइनुद्दीन मेरे शिकम में थे तो मेरा दिल फरहत व इंबिसात से मामूर था घर में हर वक़्त खैरो बरक़त थी विलादत के वक़्त अजीब सी रौशनी थी मेने देखा के पैदाइश के बाद मेरा बच्चा सिजदे में पड़ा हुआ है और घर भर में खूशबू ही खूशबू थी|

बचपन के हालात :- आप के दीनदार वालिदैन नाज़ो नेअमत के साथ आपकी परवरिश की और आप को पाक़ीज़ा अख़लाक़ व किरदार का हामिल बनाया, आम बच्चो के साथ खेल कूद से आप दूर रहते थे अच्छे और नेक कामो की तरफ आप का मैलान था, आप की पेशानी से नूर चमकता था आपके बचपन के दो मुस्तनद वाक़ियात तहरीर किये जाते है |

आप के बचपन के दो वाक़ियात :- शीर ख्वार के आलम में जब आप अपनी वालिदा माजिदा का दूध पिया करते थे और गोद में खेला करते थे उस वक़्त अगर कोई औरत अपने शीर ख्वार बच्चे को साथ आपके घर आ जाती और बच्चा दूध के लिए रोता तो फ़ौरन आप अपनी वालिदा को इशारा फरमाते इसका मतलब ये हुआ करता था के आप अपना दूध इस बच्चे को पीलादे चुनाचें आपकी वालिदा उस बच्चे को दूध पिलाने लगती जिसे देखकर आप बहुत खुश होते और मुस्कुराने लगते|

आप के बचपन का दूसरा वाक़िया :- आपने बचपन में एक बार अच्छे कपड़ो में मलबूस होकर नमाज़े ईद के लिए घर से बाहर निकले और रास्ते में देखा के एक अँधा बच्चा फटा पुराना कपड़ा पहने हुए है तो आपका दिल बेचैन हुआ और चेहरे पर उदासी सी छाई आप ने फ़ौरन अपने कपड़े उतारकर उस अंधे बच्चे को पहना दिए और खुद पुराने कपड़े पहनकर उसे खुद ईदगाह ले गए|

आपकी तालीम :- आपके वालिद माजिद ने आप को ज़ेवरे तालीम से आरास्ता किया नो साल की उम्र में आपने क़ुरान शरीफ को हिफ़्ज़ किया फिर उसके बाद आपने पंद्रह बरस की उम्र में हुसूले इल्म के लिए सफर इख़्तियार किया और समरक़ंद में हज़रत सय्यद मौलाना शरफुद्दीन की बारगाह में हाज़िर होकर बाक़ायदा इल्मे दीन का आगाज़ किया पहले क़ुरआने पाक हिफ़्ज़ किया और बाद में उन्ही से दीगर उलूम हासिल किये जिसमे आपने इल्मे तफ़्सीर इल्मे हदीस और इल्मे फ़िक़्हा भी हासिल किया मगर जैसे जैसे इल्मे दीन सीखते गए ज़ौक़े इल्मे बढ़ता गया, जैसा के इल्म की पियास को बुझाने के लिए बुखारा का रुख किया और शौहराए आफ़ाक़ आलिमे दीन मौलाना हिस्सामुद्दीन बुखारी के सामने जानुए शागिर्दी किया और फिर उन्ही के शफ़्क़तों के साये में आपने थोड़े ही अरसे में तमाम दीनी उलूम की तकमील कर ली इस तरह आपने मजमूई तौर पर तक़रीबन पांच साल समरक़ंद और बुखारा में हुसूले इल्म के लिए क़याम फ़रमाया|

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रुहानी इन्क़िलाब :- अभी आप की उम्र पंद्रह साल की पूरी नहीं हुई थी कि माहे शाबान 544 हिजरी में आपके वालिद माजिद का सायए शफ़क़त सर से उठ गया और यतीमी का दाग अभी हरा ही था के कुछ अरसे बाद आपकी वालिदा माजिदा भी आपको दागे मफारिकत दे गयीं और हैरानी और परेशानी के आलम में खुद आपको अपने हालात व मुआमिलात का ज़िम्मादार बनना पड़ा सब्रो रजा के साथ आपने ये दिन गुज़ारने शुरू किये और वालिद के तरके से मिले हुए एक बाग़ और पन चक्की को अपना जरिया मआश बनाया |

अल्लाह के वली के झूठे की बरकत :- एक रोज़ हज़रत सय्यदना ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह अपने बाग़ में पौधों को पानी दे रहे थे के एक मजज़ूब बुजरुग हज़रत सय्यदना इब्राहीम कंदोज़ी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाये जैसे ही हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की नज़र अल्लाह अज़्ज़वजल के इस मक़बूल बन्दे पर पड़ी फ़ौरन दौड़े सलाम करके दस्त बौसी की और निहायत अदब व एहतिराम के साथ दरख़्त के साये में बिठाया|फिर उनकी खिदमत में इंतिहाई आजिज़ी के साथ ताज़ा अंगूरों का एक खोशा (गुच्छा) पेश किया दो ज़ानों बैठ गए अल्लाह के वाली को नौजवान बागवान का अंदाज़ भा गया खुश हो कर उन्हों ने एक रोटी का टुकड़ा चबा कर आपके मुँह में डाल दिया रोटी का टुकड़ा जैसे हलक़ से नीचे उतरा आपके दिल की कैफियत एक दम बदल गई और दिल दुनिया की मुहब्बत से उचाट हो गया फिर आपने बाग़, पन चक्की और सारा साज़ो सामान बेच कर उसकी क़ीमत फ़क़ीरों मिस्कीन में तक़सीम फ़रमा दी और हुसूले इल्मे दीन की खातिर रहे खुदा के मुसाफिर बन गए|

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सबक़ :- प्यारे इस्लामी भाइयो बयान करदा वाक़िये से हमें ये दरस मिलता है के जब हम किसी मजलिस में बैठे हों और हमारे बुजरुग, असातिज़ा, माँ बाप या पीर व मुर्शिद आ जायें तो हमें उनकी ताज़ीम के लिए खड़े हो जाना चाहिए इसी लिए कहते हैं कि

“बा अदब बा नसीब बे अदब बद नसीब ”

दो जहाँ के ताजवर, सुल्ताने बेहरोबर, सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया – ऐ अनस ! बड़ों का अदब व एहतिराम और ताज़ीम व तकरीम और छोटों पर शफ़क़त करो, तुम जन्नत में मेरी रिफ़ाक़त पालो नूर के पैकर तमाम नबियों के सरवर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फरमाने आलिशान है: जिसने हमारे छोटों पर रहम न किया और हमारे बड़ों की ताज़ीम न की वो हम्मे से नहीं|

सय्यदे आलम सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया -जो जवान किसी बूढ़े का उसकी उम्र की वजह से इकराम करे उसके बदले में अल्लाह अज़्ज़वजल किसी के ज़रिये उसकी इज़्ज़त अफ़ज़ाई करवाता है |

सैरो सियाहत :- आपने अहलुल्लाह और बड़े बड़े अकाबिर औलिया और बुलंद हिम्मत और बुज़ुर्गो की तरह 550 हिजरी मुताबिक़ सन 1155 से 561 हिजरी मुताबिक़ 1165 तक ज़मीन के मुख्तलिफ हिस्सों की सियाहत करते हुए उलमा व सुल्हा की ज़ियारत की और बग्दाद् हरमैन तय्यिबैन, निशापुर, मुलके शाम, किरमान, तबरेज़, इसतरआबाद, खरकान, समरकंद, हिरात, सब्ज़वार, मुल्तान, लाहौर, गज़नी, रे, वगैरा का सफर किया इन अस्फार में बुज़ुर्गो के फैज़े सोहबत से खूब खूब फायदा उठाया|

बैअत व खिलाफत :- हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैहि जब आपने सैरो सियाहत के दरमियान 552 हिजरी में इलाक़ा निशापुर के क़स्बा हारून में पहुंचे तो वहां पे आरिफ बिल्ला हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी चिश्ती के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत किया और वहीँ ढाई साल तक रियाज़त व मुजाहिदा में मसरूफ रहे और इजाज़त व खिलाफत से सरफ़राज़ हुए|

शजरए बैअत

S.NoShajraye BaitVisalHijri
1हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैहिविसाल633 हिजरी
2ख्वाजा उस्मान हारूनीविसाल617 हिजरी
3ख्वाजा हाजी शरीफ ज़न्दनीविसाल574 हिजरी
4ख्वाजा क़ुतबुद्दीन मौदूद चिश्तीविसाल527 हिजरी
5ख्वाजा नासिरुद्दीन अबू युसूफ चिश्तीविसाल459 हिजरी
6ख्वाजा अबू मुहम्मद बिन अहमद अबदाल चिश्तीविसाल417 हिजरी
7ख्वाजा अबू अहमद अबदाल चिश्तीविसाल355 हिजरी
8ख्वाजा अबू इस्हाक़ शामी चिश्तीविसाल329 हिजरी
9उलू मुम्शाद दिनोरिविसाल299 हिजरी
10ख्वाजा अमीनुद्दीन अबू हीरा अल बसरीविसाल287 हिजरी
11ख्वाजा सदीदुद्दीन हुज़ैक़ा अल मरअशीविसाल252 हिजरी
12ख्वाजा इब्राहीम अदहम बल्खीविसाल261 हिजरी
13ख्वाजा अबुल फैज़ फ़ुजैल बिन अयाज़विसाल187 हिजरी
14ख्वाजा वाहिद बिन ज़ैदविसाल177 हिजरी
15ख्वाजा हसन बसरीविसाल111 हिजरी
16हज़रत अमीरुल मोमिनीनअली रदियल्लाहु अन्हुविसाल40 हिजरी
17महबूबे किरदिगार सय्यदे अबरार सलल्लाहु अलैहि वसल्लमविसाल11 हिजरी
khwaja garib nawaz

ख्वाजा गरीब नवाज़ को चिश्ती क्यों कहा जाता है :- ज़ुहदो तक़वा के इमाम हज़रत शैख़ उलू मुम्शाद दिनोरि के खलीफा व जानशीन हज़रत शैख़ अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के मशाइख तरीक़त में से हैं उनकी तरफ निस्बत करते हुए चिश्ती की शौहरत हुई
पीर चिश्त अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती जब हज़रत ख्वाजा उलू मुम्शाद दिनोरि से बाग्दाद् शरीफ में बैअत हुए तो पुछा तुम्हारा नाम क्या है ? ख्वाजा अबू इस्हाक़ शामी ने नियाज़ मंदी के साथ अर्ज़ किया के मुझे अबू इस्हाक़ शामी कहा जाता है आपने इरशाद फ़रमाया आज से तुम्हे इस्हाक़ चिश्ती कहा जायेगा अहले चिश्त और इस मुल्क के लोग तुमसे हिदायत पाएंगे और जो लोग तुम्हारे सिलसिले में दाखिल होंगे उन्हें भी क़यामत तक चिश्ती कहा जायेगा|

मक़ामे चिश्त इलाक़ा हिरात (मौजूदा अफगानिस्तान का हिस्सा है) में ख्वाजा अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती ने रुश्दो हिदायत की बिसात बिछाई और आप के सिलसिले के दुसरे बुजुर्ग ख्वाजा अबू अहमद चिश्ती, ख्वाजा अबू युसूफ चिश्ती, ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन मौदूद चिश्ती ने भी चिश्त को रौनक बख्शी और चिश्त ही को अपनी आखरी आराम गाह बनाया

सात वास्तो हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के शैख़े तरीक़त चिश्तियों के सालार ख्वाजा अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती की निस्बत से चिश्ती सिलसिले को फरोग हुआ और फिर सुल्तानुल हिन्द अताये रसूल ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती के ज़रिये करोड़ो मुसलमान सिलसिले चिश्त से वबस्ता होकर चिश्ती कहे और लिखे जाने लगे| (ख्वाजाये अजमेर)

बारगाहे इलाही में मक़बूलियत :- एक बार हज के मौक़े पर हज़रत सय्यदना उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैहि ने मिज़ाबे रहमत के नीचे आपका हाथ पकड़ कर बारगाहे इलाही में दुआ की ऐ मौला मेरे मुईनुद्दीन हसन को अपनी बारगाह में क़बूल फरमा ग़ैब से आवाज़ आई मुईनुद्दीन हमारा दोस्त है हमने उसे क़बूल किया| (इक्तिबासूल अनवार ,फैजाने ख्वाजा)

पृथवी राज चौहान और शहाबुद्दीन गौरी :- ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने क़याम शहर के बाद
पृथवी राज चौहान को दावते इस्लाम देते हुए फ़रमाया ऐ राजा तेरा एतिक़ाद जिन जिन लोगों पर था वो बा हुक्मे खुदा मुस्लमान हो चुके हैं अगर भलाई चाहता है तो तू भी मुस्लमान हो जा|वरना ज़लीलो ख्वार होगा|संग दिल पृथवी राज ने इस दावते हक़ को क़बूल न किया तो हज़रत ख्वाजा ने मुराकिबा किया| कुछ देर के बाद जब तफ़क्कुर से सर उठाया तो फ़रमाया अगर ये बद बख्त ईमान न लाया तो उसको ज़िंदा गिरफ्तार कर के इस्लामी लश्कर के हवाले कर दूंगा | (सैरुल अक़ताब)

आपकी रोज़ अफजूं मक़बूलियत और इस्लाम की तरफ अवाम की बढ़ती हुई रगबत देख कर राजा पृथवी राज चौहान और उसके अरकाने सल्तनत घबरा उठे | छोटे छोटे ऐसे कुछ वाक़िआत भी हुए जिन से खाव्जा और राजा के दरमियान कश्मकश पैदा हो गई | ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का एक मुरीद जो राजा के यहां मुलाज़िम था उसे राजा ने परेशान करना शुरू किया | ख्वाजा ने उसे ज़ुल्म से बाज़ रहने की नसीहत की | मगर राजा ने इस नसीहत पर अमल करने के बजाये ग़ज़बनाक हो कर कहा के ये शख्स किसी तरह यहां से चला जाता तो बहुत ही अच्छा होता | ये शख्स यहां आकर गैब की बातें करता है | राजा की ये गुस्ताखी जब ख्वाजा के कानो तक पहुंची तो आपने आलमे जलाल में इरशाद फ़रमाया | पिथौरा रा ज़िंदाह गिरफ़्तम व दादेम (यानि अपने फ़रमाया कि मैंने पृथ्वी राज को शाहबुद्दीन गौरी के हवाले कर दिया) (सैरुल अक़ताब, मोनीसुलअरवाह, फवाई दुस्सलईकीन)

बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर :-अपने पिरो मुर्शिद ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी के हवाले से फरमाते हैं के एक मर्तबा में ख्वाजा क़ुतबुद्दीन ख्वाजा मुईनुद्दीन की खिदमत में बैठा था | इन दोनों राये पिथोरा और पृथ्वी राज चौहान ज़िंदाह था और कहा करता था किया ही अच्छा होता के ये फ़क़ीर (ख्वाजा मुईनुद्दीन) यहां से चले जाएँ ये बात हर शख्स से कहा करता था पहुँचते पहुँचते ख्वाजा मुईनुद्दीन तक ये खबर पहुँच गई इस वक़्त आप हालत सुककर में थे फोरन आपने मुराकीबा ही की हालत में आपकी ज़बान पर ये कलमात जारी हुए पिथोरा रा ज़िंदाह गिरफतेम व दादेम हमने राये पिथोरा को ज़िंदाह गिरफ्तार करके मुसलमानो के हवाले किया |
(मलफ़ूज़ात ख्वाजगाने चिश्त)

एक दिन राजा ने ख्वाजा के पास पैगाम भेज दिया के आप कल (मुहर्रम 588) हिजरी को अजमेर से चलें जाएँ | जवाब में ख्वाजा ने राजा के पास ये कहला भेजा | हम तो जाते हैं मगर तुमको निकालने वाला शहाबुद्दीन गौरी अनक़रीब आता है | (इफाज़ाते हमीद)


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खुरासान में सुल्तान शहाबुद्दीन गौरी ने एक शब् ख़्वाब देखा के सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती इससे फरमा रहे हैं |

अल्लाह तबारक व तआला ने तुम्हे हिंदुस्तान की सुल्तानी बख्श दी है उसकी तरफ जल्दी तवज्जो करो और राजा राये पिथोरा को ज़िंदाह गिरफ्तार करो| (सैरुल अक़ताब)

इधर कन्नौज का राजा जय चंद, राजा राये पिथोरा का शदीद मुखालिफ था उसने अपने क़ासिदों के ज़रिये शहाबुद्दीन गौरी को दावत दी के राये पिथोरा (पृथ्वी राज चौहान) पर हमले का निहायत मुनासिब वक़्त है मेरा हर तरह का तअव्वुन आपके साथ है दीगर तफ्सीलात आपसे मालूम करलें

शहाबुद्दीन गौरी गज़नी अफगानिस्तान से पूरी तैयारी के साथ (588) हिजरी मुताबिक़ सं (1122) में एक लाख हज़ार लश्कर के साथ तराइन (पंजाब) में आकर खेमा ज़न हुए | राये पिथोरा अभी डेढ़ सौ राजाओं के साथ 3 लाख से ज़्यादा का लश्करे जर्रार ले कर मैदाने जंग में मुक़ाबले के लिए सफ आरा हो गया घमसान का रन पड़ा दोनों फौजों ने अपनी अपनी बहादुरी के जोहर दिखाए लेकिन शहाबुद्दीन की शुजाअत और जंगी हिकमत अमली ग़ालिब रही | सुल्तान शहाबुद्दीन गौरी को फ़तेह और राजा पृथ्वी राज को शिक्शित हुई राजा ने मैदाने जंग से भागना चाहा मगर उसे ज़िंदाह गिरफ्तार करके कल्त कर दिया गया | (तारीखे फरिश्ता)

इस जंग से शानदार फ़तेह का आगाज़ हुआ इस ने शुमाली हिन्द का नक़्शा पलट दिया | मुसलमानो की शान व शौकत में इज़ाफ़ा हुआ और शहाबुद्दीन गौरी ने हांसी, सरस्वती, अजमेर, दिल्ली को भी कुछ ही दिन में फ़तेह कर लिया और फिर शहाबुद्दीन गौरी के मुक़र्रर करदा अमला ने दो तीन साल के अंदर ही बियाना, गोवालिअर, कन्नौज, मेरठ, अलीगढ़, बदायूं, कालपी, कालंजर, बनारस, ऊध, बिहार, बंगाल, गुजरात, सब पर रफ्ता रफ्ता क़ब्ज़ा करके अपनी हुकूमत में शामिल कर लिया और मुसलमानो का इन सारे इलाक़ों में उरूज हो गया |

जिस वक़्त शहाबुद्दीन गौरी अपनी फ़तेह के बाद अजमेर शहर में दाखिल हो रहा था | तो सूरज ग़ुरूब हो रहा था और उसने खिलाफ तवक़्क़ो चंद ही लम्हो बाद सुना के कहीं से अल्लाह हो अकबर की सदा बुलंद हो रही है उसने मालूम किया तो पता चला के यहां एक दुर्वेश आये हुए हैं जिनकी बरकत व दावत से बहुत से लोग मुस्लमान हो चुके | शहाबुद्दीन तेज़ी के साथ उस जगह पहुंचा जहां से अल्लाह हो अकबर की सदा बुलंद हो रही थी उसने देखा नमाज़े मगरिब के लिए जमाअत खड़ी है और एक दुर्वेश इमामत फ़रमा रहे हैं शहाबुद्दीन गौरी लपक कर शरीके जमाअत हुआ | जमाअत खत्म होने के बाद अचानक ये देख कर हैरान रह जाता है के दुर्वेश (ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती) वही हैं जिन्हों ने उसे फ़तेहो कामरानी की बशारत दी थी |

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शहाबुद्दीन गौरी ने बढ़कर दुर्वेश के क़दमों पर अपना सर रख दिया और ज़ारोकतार रोने लगा | कुछ देर बाद जब कुछ सुकून हुआ तो उसने दरख्वास्त की के मुझे अपने गुलामो में क़बूल कर लीजिये ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने करम फरमाते हुए उसे शरफ़े बैअत से सरफ़राज़ फ़रमाया
शहाबुद्दीन गौरी फ़तेह तराइन (पंजाब) के बाद अजमेर राये पिथोरा के लड़के को लाकर ऐहदो पैमान के बाद अपना बाज गुज़ार हाकिम और दिल्ली में क़ुतुबुद्दीन ऐबक को अपना नायब मुक़र्रर करके हिंदुस्तान से वापस चला गया तीन शाबान 202 हिजरी को मुताबिक़ पन्दरह मार्च 1202 को शहीद हो कर वासिले बहक हुआ | (खवाजाये अजमेर)

मुरीद हो तो ऐसा :- हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रदियल्लाहु अन्हु कई साल तक अपने पिरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर रहे और मारिफ़त की मंज़िल तय करते हुए बातनी उलूम से फ़ैज़याब होते रहे | हज़रत सय्यदना ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह जहां भी तशरीफ़ ले जाते आप रहमतुल्लाह अलैह उनका सामान अपने कन्धों पर उठाये साथ जाते और आप रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: जब मेरे पिरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह ने मेरी खिदमत और अक़ीदत देखि तो ऐसी कमाले नेअमत अता फ़रमाई जिसकी कोई इंतिहा नहीं | हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह बारगाहे मुर्शिद में इस क़द्र मक़बूल थे के एक मौके पर खुद मुर्शिदे करीम ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैहि ने फ़रमाया: हमारा मुईनुद्दीन अल्लाह अज़्ज़ावजल का मेहबूब है हमें अपने मुरीद पर फख्र है |

khwaja garib nawaz

बारगाहे रिसालत से हिन्द की सुल्तानी :- एक मर्तबा हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को मदीने शरीफ की हाज़री का शरफ़ मिला तो निहायत अदब व एहतिराम के साथ सलाम अर्ज़ किया: “अस्सलातु वस्सलामु अलइका या सय्यदुल मुर्सलीन व खातमुन्नबी ईंन” इस पर रोज़ाये अक़दस से आवाज़ आयी: व अलैकुमुस्सलाम व क़ुत्बुल मशाइख हज़रत सय्यदना ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह को ये बशारत मिली तुझे हिंदुस्तान की विलायत अता की और आपको हिंदुस्तान की सुल्तानी भी बारगाहे रिसालत सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ही से अता हुई |

सुल्तानुल हिन्द का सफरे हिन्द :- सरकार ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह इस बशारत के बाद हिंदुस्तान रवाना हुए और समरक़ंद, बुखारा, उरूसुल बिलाद बग़दाद शरीफ, तबरेज़, निशापुर, ऊश, अस्फहान, सब्ज़ावार, खुरासान, ख़रक़ान, इसतरआबाद, बल्ख और गज़नी वगैरह से होते हुए हिंदुस्तान के शहर अजमेर शरीफ (सूबा राजिस्थान) पहुंचे और इस पूरे सफर में आपने सैंकड़ों औलिया अल्लाह से अकाबीरीन उम्मत से मुलाक़ात की जैसा के आपने तबरेज़ में शैख़ बदरुद्दीन अबू सईद रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह से इल्मे मीरास हासिल किया | अस्फहान में शैख़ मेहमूद अस्फहानी रहमतुल्लाह अलैह के पास हाज़िर हुए और ख़रक़ान में शैख़ अबू सईद अबुल खैर और ख्वाजा अबुल हसन ख़रक़ानी क़ुद्दीसा सिर्रो हुमा के मज़ारात पर हाज़री दी इसतरआबाद में हज़रत अल्लामा शैख़ नासिरुद्दीन इसतरआबादी रहमतुल्लाह अलैह से कसबे फैज़ किया | हिरात में शैखुल इस्लाम इमाम अब्दुल्लाह अंसारी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पर ज़ियारत की और बल्ख में शैख़ अहमद ख़िज़्रविया रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में क़याम फ़रमाया | (फैजाने ख्वाजा)

दाता के मज़ार पर हाज़री :- इसी सफर में आपने हज़रत दाता बख्श सय्यद अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे अक़दस पर न सिर्फ हाज़री दी बल्कि चालीस दिन आपने चिल्ला भी किया और हज़रत सय्यद दाता गंज बख्श अलैहिर्रहमा का खुसूसी फैज़ हासिल किया मज़ारे पुर अनवार से रुखसत होते वक़्त दाता गंज बख्श रहमतुल्लाह अलैह की अज़मत व फैज़ान का बयान इस शेर के ज़रिये किया

गंज बख्श आलमे मज़हरे नूरे खुदा
ना किसां रा पिरे कामिल कामिला रा रहनुमा

यानी गंज बख्श दाता अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह का फैज़ सारे आलम पर जारी है और आप नूरे खुदा के मज़हर हैं आपका मक़ाम ये है के राहे तरीक़त में जो नाक़िस (अधूरा) हैं उनके लिए पिरे कामिल और जो खुद पिरे कामिल हैं उनके लिए भी रहनुमा (मिरअतुल असरार)

तिलावते क़ुरआन और शब् बेदारी :- हज़रत सय्यदना ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह का मामूल था के सारी सारी रात इबादते इलाही में मसरूफ रहते हत्ता के इशा के वुज़ू से नमाज़े फजर अदा करते और तिलावते क़ुरआन से इस क़द्र मुहब्बत थी के दिन में दो क़ुरआने पाक ख़त्म फ़रमा लेते, दौरान सफर भी क़ुरआने पाक की तिलावत जारी रहती | (मिरअतुल असरार)

ख़ौफ़े खुदा :- हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह पर ख़ौफ़े खुदा इस क़द्र ग़ालिब था के आप हमेशा खशीयते इलाही से कांपते और गिर्योज़ारी करते ख़ल्क़े खुदा को ख़ौफ़े खुदा की तलक़ीन करते हुए इरशाद फ़रमाया करते: ए लोगों अगर तुम ज़ेरे ख़ाक सोये हुए लोगों का हाल जान लो तो मारे खौफ के खड़े खड़े पिघल जाओ | (मुईनुल अरवाह)

फरमाने गौसे आज़म पर सर झुका दिया :- जिस वक़्त हज़रत सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने बगदादे मुक़द्दस में इरशाद फ़रमाया: के मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है | तो उस वक़्त ख्वाजा गरीब नवाज़ सय्यदना मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह अपनी जवानी के दिनों में मुल्क खुरासान में वाक़े एक पहाड़ी के दमन में इबादत किया करते थे जब आपने ये फरमाने आली सुना तो आपने सर झुका लिया और फ़रमाया: बल्के आपके क़दम मेरे सर और आँखों पर है | (गॉस पाक के हालत)

आपकी तसानीफ़

S.NoAapki Tasanif
1अनीसुल अरवाह (पिरो मुर्शिद ख्वाजा उस्मान हारूनी के मलफ़ूज़ात)
2कशफ़ुल असरार (तस्सव्वुफ़ के मदनी फूलों का गुल दस्ता)
3गंजुल असरार (सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश की तालीम व तलक़ीन के लिए लिखी)
4रिसाला आफ़ाक़ व नफ़्स (तस्सव्वुफ़ के निकात पर मुश्तमिल)
5रिसाला तस्सव्वुफ़ मन्ज़ूम
6हदीसुल मआरिफ़

ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह की करामात

मुर्दा ज़िंदाह हो गया :- एक रोज़ आपकी खिदमत में एक औरत रोती हुई आयी, अर्ज़ की के मेरे बेटे को हाकिमे शहर ने क़त्ल कर दिया, आपको रहम आ गया और खादिमों के साथ असा लिए हुए क़त्ल की जगह पर पहुंचे | मक़तूल का सर धड़ से मिला कर फ़रमाया के ए शख्स अगर वाक़ई तू बेगुनाह मारा गया है तो अल्लाह के हुक्म से उठ खड़ा हो | ज़बाने मुबारक से ये अलफ़ाज़ निकलने थे के मक़तूल की लाश को हरकत हुई, ज़िंदाह हो गया और अपना सर उठा कर ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह के पैर पर रख दिया और ख़ुशी ख़ुशी अपनी माँ के साथ चला गया हाकिमे शहर ये सुन कर लरज़ गया और उसने आकर माफ़ी मांगी |

छह रोटियां :- एक शख्स ने ख्वाजा फरीदुद्दीन गंजे शकर की खिदमत में हाज़िर हो कर कहा के मेरी ज़िन्दगी बड़ी ही तंग दस्ती में गुज़र रही थी मेने ख्वाजा गरीब नवाज़ की तरफ रुजू किया ख्वाब देखा के आप ने तशरीफ़ लाकर मुझे छह रोटियां इनायत कीं | वो दिन है और आज का दिन साठ बरस गुज़र चुके हैं हर रोज़ मुझे ज़रुरत के मुताबिक़ खर्च मिल जाता है और में और मेरे तमाम घर वाले आराम व आसूदगी में ज़िन्दगी बसर करते हैं |बाबा साहब ने फ़रमाया के वो ख़्वाब न था वो खुदा का फ़ज़्ले इलाही था हल्क़ये औलिया ने तुझ पर करम फ़रमाया |

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ग़ैब की खबर :- एक रोज़ आप मुशाहिदा हक़ में मसरूफ थे के एक मुरीद ने आकर अर्ज़ की हुज़ूर हाकिमे शहर मुझे बहुत तंग करता है और मेरी जिला वतनी का हुक्म भी सादिर कर दिया पुछा हाकिम कहाँ है ? सवार होकर कहीं बाहर गया है आपने फ़रमाया तू जा वो घोड़े से गिर कर मर गया जब ये वापस गया तो ये खबर मशहूर थी |

हाकिमे सब्ज़ावार की तौबा :- सफरे हिन्द दौरान जब हज़रत सय्यदना ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह का गुज़र इलाक़ा सब्ज़ावार (सूबा खुरासान ईरान) से होते हुए आपने वहाँ एक बाग़ में क़ायम फ़रमाया जिसके वस्त में एक खुशनुमा हौज़ था | ये बाग़ हाकिमे सब्ज़ावार का था जो बहुत ही ज़ालिम और बद मज़हब शख्स था उसका मामूल था के जब बाग़ में आता तो शराब पीता और नशे में खूब शोरगुल मचाता | आपने हौज़ से वुज़ू किया और नवाफिल अदा करने लगे | मुहाफिजों ने आपने हाकिम की सख्त गीरी का हाल अर्ज़ किया और दरख्वास्त की के यहां से तशरीफ़ ले जाएँ कहीं हाकिम आपको कोई नुकसान न पहुंचा दे |

आपने फ़रमाया अल्लाह अज़्ज़ावजल मेरा हाफ़िज़ और नासिर है (मददगार) इसी दौरान हाकिम बाग़ में दाखिल हुआ और सीधा हौज़ की तरफ आया | अपनी ऐश व इशरत की जगह पर एक अजनबी दुर्वेश को देखा तो आग बगुला हो गया और उससे पहले के वो कुछ कहता आपने एक नज़र डाली और उसकी काया पटल दी हाकिम आप की नज़रे जलालत की ताब न लासका और बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर पड़ा खादिमो ने मुँह पर पानी के छींटें मारे जैसे ही होश आया फ़ौरन आपके क़दमों पर गिर पड़ा बद मज़हबियत और गुनाहों से ताईब हो गया और आपके दस्ते मुबारक पर बैअत हो गया पिरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैहि की कोशिश से उसने ज़ुल्मो जोर से जमा की हुई सारी दौलत असल मालिकों को लौटा दि और आपकी सुहबत को लाज़िम पकड़ लिया आपने कुछ ही अरसे में उसे फियूजे बातनि से माला माल करके खिलाफत आता फ़रमाई और वहाँ से रुखसत हो गए | (अल्लाह के ख़ास बन्दे, मिरअतुल असरार)

ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह के खुलफ़ा :- हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह का विसाल (633) हिजरी में हुआ सैरुल अक़ताब के अंदर हज़रत के खुलफ़ा की तादाद 13 बताई गई है मगर खज़ीनतुलअसफिया के बयान के मुताबिक़ हज़रत के इक्कीस खुलफ़ा हैं जिनके नाम ये हैं:

S.NoKhwaja Garib Nawaz Rahmatullah Alaih Ke Khulfa
1हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह (दिल्ली)
2हज़रत शैख़ हमीदुद्दीन नागौरी अलैहिर्रमा (नागौर शरीफ)
3हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फ़रज़न्दे अर्ज़ मंद हज़रत ख्वाजा साहब अलैहिर्रमा (सरवार शरीफ)
4हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन उर्फ़ बद्र अलैहिर्रमा (बद्र शरीफ)
5हज़रत शैख़ वजीहुद्दीन अलैहिर्रमा (हिरात)
6हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन अरब अलैहिर्रमा (अजमेर शरीफ)
7हज़रत शैख़ अहमद अलैहिर्रहमा (अजमेर शरीफ)
8हज़रत शैख़ मुहसिन अलैहिर्रमा
9हज़रत शैख़ शमशुद्दीन अलैहिर्रहमा
10हज़रत ख्वाजा हसन खइयात अलैहिर्रमा
11हज़रत अब्दुल्लाह जिनका नाम जय पाल था अलैहिर्रमा (अजमेर शरीफ)
12हज़रत शैख़ सदरुद्दीन किरमानी अलैहिर्रमा
13हज़रत बीबी जमाल सबीया साईदह अलैहिर्रमा
14हज़रत शैख़ मुहम्मद तुर्क नार नूनी (दिल्ली)
15हज़रत शैख़ अली संजरी अलैहिर्रमा
16हज़रत ख्वाजा याद गार अली अलैहिर्रमा
17हज़रत ख्वाजा अब्दुल्लाह बयाबानी अलैहिर्रमा
18हज़रत शैख़ मतआ अलैहिर्रमा
19हज़रत शैख़ वहीद अलैहिर्रमा
20हज़रत शैख़ मसऊद गाज़ी अलैहिर्रमा (नोट: ये हज़रत सालार मसऊद गाज़ी के अलावा हैं)
21हज़रत सुलेमान गाज़ी अलैहिर्रमा

विसाले मुबारक :- आपके विसाल की शब् में बाज़ औलिया किराम ने ख़्वाब में देखा के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये फरमाते सुना: मेरे दीन का मुईन हसन संजरी आ रहा है में अपने मुईनुद्दीन के इस्तक़बाल के लिए आया हूँ जैसा के (6) रजाबुल मुरज्जब 633 हिजरी मुताबिक़ 16 मार्च बरोज़ पीर फजर के वक़्त आपने विसाल फ़रमाया और विसाल के वक़्त देखने वालों ने ये हैरत अंगेज़ रूहानी मंज़र अपनी आंखों से देखा के आपकी नूरानी पेशानी पर ये लिखा हुआ था के अल्लाह अज़्ज़वजल का महबूब बंदह मुहब्बते इलाही में विसाल कर गया | (खजाये अजमेर)

मज़ार शरीफ और उर्स मुबारक :- सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाये खवाजगान चिश्ती अहले बहिश्त चिश्तियों के सरदार पेशवाये शरीअत व तरीक़त सय्यदुल अबिदीन ताजुल आरिफ़िन अलैहिर्रमा का मज़ार हिंदुस्तान के मशहूर शहर अजमेर शरीफ (सूबा राजिस्थान) में है जहां आपका उर्स मुबारक छह रजब को निहायत तुज़्क़ व एहतिशाम के साथ मनाया जाता है और इसी तारीख की निस्बत से उर्स मुबारक को “छटी शरीफ” भी कहा जाता है|

बादशाहो की दरबारे ख्वाजा में हाज़री

सुलतान महमूद खिलजी की आमद :- सरकार गरीब नवाज़ से बेहद अक़ीदत रखता था उसने गुम्बद मुबारक और उससे मिली हुई मस्जिद और बुलंद दरवाज़ा तामीर कराके अपनी इस अक़ीदतो मुहब्बत का सबूत पेश किया |

शहंशाह अकबर की आमद :- शहंशाह अकबर ने भी दरबार ख्वाजा गरीब नवाज़ में हाज़री दी है और निहायत ही अक़ीदतो मुहब्बत का सबूत पेश किया है उसकी अक़ीदत की निशानी दरगाह वक़्फ़ का क़याम |

जहांगीर की आमद :- जहांगीर आपने वालिद की तरह दरवारे गरीब नवाज़ में निहायत अक़ीदतो मुहब्बत से हाज़िर होता था उर्से मुबारक की महफ़िल में भी उसने शिरकत की | हिजरी 128 के उर्स में रजब की छटी रात को आदि रात तक क़वाली की महफ़िल में शिरकत की | वो खुद लिखता है आधी रात तक मेने वहां क़याम किया | खुद्दाम व सूफ़िया ने वज्दो हाल किया |

शहंशाह शाहजहां की आमद:- शहंशाह शाहजहां की अक़ीदत उसकी तारीखी इमारात से जाहिर है जो उसने दरगाहे मुअल्ला में और शहर अजमेर में आना सागर तालाब के किनारे बनवाई है |

औरंजेब आलमगीर की आमद :- हज़रत औरंजेब आलमगीर रहमतुल्लाह जहाँ दुनयावी हुक्मरान गुजरे है वहीँ खुदा तरस और शरीयते मुतारहा के पाबंद थे | आप भी हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन अजमेरी रहमतुल्लाह की बारगाह में बारहा हाज़िर हुए और उन के दरबार में नियाज़ मंदी का सबूत पेश किया | सलातीन के अलावा नवाबो और गैर मुस्लिम राजाओ ने भी हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह की बारगाह में हाज़िरी दी है, जिन में से नवाब हैदर आबाद, राज जोधपुर, राज गुआलियार के नाम मशहूर है

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए ख़्वाजगाने चिश्त, मिरातुल असरार, ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द दो, (मिरअतुल असरार, फैजाने ख्वाजा, हयाते सुल्तानुल हिन्द, ख्वाजाये अजमेर, फैजाने ख्वाजा गरीब नवाज़, खवाजाये अजमेर)

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