हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की मोहब्बत असल ईमान बल्क़ि ईमान उसी मोहब्बत ही का नाम है जब तक हुज़ूर की मोहब्बत माँ, बाप, औलाद और सारी दुनिया से ज़्यादा न हो आदमी मुसलमान हो ही नहीं सकता

की मुहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे है
ये जहाँ चीज़ क्या है लहो क़लम तेरे है

By - Allama Iqbal

अक़ीदा :- हुज़ूर की इताअत एन (बिलकुल) इताअते इलाही है और इताअते इलाही बिना हुज़ूर की इताअत के नामुमकिन है | यहां तक की कोई मुसलमान अगर फ़र्ज़ पढ़ रहा हो और हुज़ूर उसे याद फरमाएं मतलब आवाज़ दें तो वो फ़ौरन जवाब दे और उसकी खिदमत में हाज़िर हो | वह शख्स जितनी देर तक भी हुज़ूर से बात करे वह उस नमाज़ में ही है | इससे इससे नमाज़ में कोई खलल नहीं |

अक़ीदा :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की ताज़ीम व अज़मत का एतिक़ाद रखना ईमान का हिस्सा है और ईमान का रुक्न है और ईमान के बाद ताज़ीम का काम हर फ़र्ज़ से पहले है | हुज़ूर की मुहब्बत भरी इताअत के बहुत से वाक़िआत मिलते हैं | यहां समझाने के लिए नीचे दो वाक़िआत लिखे जाते हैं जो की हदीसे पाक में गुज़रे |

1. हदीस शरीफ में है की, ग़ज़वए खैबर से वापसी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ‘सहबा’ नाम की जगह पर असर की नमाज़ पढ़कर मौला अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु ताला अन्हु के ज़ानों पर अपना मुबारक सर रख कर आराम फरमाने लगे | मौला अली ने असर की नमाज़ नहीं पढ़ी थी | देखते देखते सूरज डूब गया और असर की नमाज़ का वक़्त चला गया लेकिन हज़रते अली ने अपनी ज़ानों को इस ख्याल से नहीं सरकाया की शायद हुज़ूर के आराम में खलल आये | जब हुज़ूर ने अपनी आँखें खोलीं तो हज़रत अली ने अपनी अस्र की नमाज़ के जाने का हाल बताया | हुज़ूर ने सूरज को हुक्म दिया डूबा हुवा सूरज पलट आया | मौला अली ने अपनी असर की नमाज़ अदा की और जब हज़रते अली ने नमाज़ अदा कर ली तो सूरज फिर डूब गया |
इससे साबित हुवा की मौला अली ने हुज़ूर की इताअत और मोहब्बत में इबादतों में सबसे अफ़ज़ल नमाज़ और वो भी बीच वाली (अस्र) की नमाज़ हुज़ूर के आराम पर क़ुर्बान कर दी क्योकि हकीकत में बात यह है की इबादतें भी हमें हुज़ूर ही के सदक़े में मिली हैं
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2. दीस शरीफ में है किहिज़रत के वक़्त पहले खलीफा हज़रते अबूबक्ररदियल्लाहु तआलाअन्हु हुज़ूर के साथ थे | रास्ते में “गारे सौर ” मिला | गारे सौर में हज़रते अबूबक्रपहले गए देखा की गार में बहुत से सूराख हैं | उनहोंने अपने कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के सूराख बंद किये इत्तिफ़ाक़ से एक सूराख बाक़ी रह गया उनहोंने उस सूराख में अपने पाँव का अंगूठा रख दिया फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को बुलाया सरकारतशरीफ़ ले गए और हज़रते
अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु के ज़ानों पर सर रखकर आराम फरमाने लगे | इधर अंगूठे वाले सूराख में एक ऐसा सांप था जो सरकार की ज़ियारत के लिए बहुत दिनों से बेताब था | उसने अपना सर हज़रते सिद्दीक़ के अंगूठे पर रगड़ दिया लेकिन इस ख्याल से की हुज़ूर के आराम में फ़र्क़ न आये  पैर को नहीं हटाया | आखिकर कर उस सांप ने काट लिया | सांप के काटने से हज़रते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु को बहुत तकलीफ हुई | यहां तक की हज़रते अबूबक्र की आँखों में आँसूं आ गए और आसूंओं के क़तरे हुज़ूर के चेहराये अनवर पर गिरे | सरकार ने आँखें खोल दी | हज़रते अबूबक्र ने सरकार से अपनी तकलीफ और सांप के काटने का हाल बताया | हुज़ूर ने तकलीफ की जगह पर अपना लुआबे दहन लगा दिया | लुआबे दहन लगातेही उन्हें आराम मिल गया लेकिन हर साल उन्ही दिनों में सांप के ज़हरका असर ज़ाहिर होता था बारह बरस के बाद उसी ज़हरसे हज़रते अबूबक्र की शहादत हुई

साबित हुवा की जुमला फ़राइज़ फ़रूअ हैं | 
असलुल उसूल बंदगी उस ताज वर की है |

उसके तुफैल हज भी खुदा ने करा दिए |
असले मुराद हाजरीन उस पाक दर की है |

(Hada e ke Bakhshish)
By - Aala Hazrat Imam Ahmed Raza

अक़ीदा :- हुज़ूर की ताज़ीम और तौक़ीर अब भी उसी तरह फर्ज़े ऐन है जिस तरह उस वक़्त थी कि जब हुज़ूर हमारी ज़ाहिरी आँखों के सामने थे | जब हुज़ूर का ज़िक्र आये तो बहुत आजिज़ी, इंकिसारी और ताज़ीम के साथ सुने और हुज़ूर का नाम लेते ही और उनका नाम पाक सुनते ही दरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है |

Allahumma Salli Ala Sayyedna Wa Maulana 
Muhammadin Maadinil Judil Wal Karmi Wa Aale
Hil Kirami Wa Sahbihil Ilzami Wabarik Wasallim
Darood e Ghousiya

तर्जुमा :- “ए अल्लाह तो दरूद, सलाम और बरकत नाज़िल फर्मा हमारे आक़ा व मौला पर जिनका नाम पाक मुहम्मद है | जो सखावत और करम का खज़ाना हैं उनकी करामत वाली औलादों और उनके अज़मत वाले दोस्तों पर भी”

हुज़ूर से मुहब्बत की अलामत यह है की ज़्यादा से ज़्यादा उनका ज़िक्र करें और ज़्यादा से ज़्यादा उन पर दरूद भेजें | और जब हुज़ूर का नाम लिख जाये तो “सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम” पूरा लिखा जाये | कुछ लोग ‘सलअम’ या स्वाद लिख देते है ये नाजाइज़ व हराम है |
हुज़ूर से मुहब्बत की पहचान यह भी है | की हुज़ूर के आल,असहाब, मुहाजिरीन, अंसार तमाम सिलसिले और तअल्लुक़ रखने वालो से मुहब्बत रखी जाए और अगरचे अपना बाप, बेटा, भाई और खानदान का कोई करीबी क्यों न हो अगर हुज़ूर से उसे, किसी तरह की दुश्मनी हो तो उससे अदावत रखी जाए अगर कोई ऐसा न करे तो वह हुज़ूर के मुहब्बत के दाबे में झूठा है |सब जानते है कि सहाबए किराम ने हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में अपने रिश्तेदारों करीबी लोगों बाप भाइयो और वतन को छोड़ा क्योकि यह कैसे हो सकता है की अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत भी है और उनके दुश्मनो से भी मुआहब्बत बाक़ी रहे | ये दोनों चीज़ें एक दूसरे की ज़िद है और दो अगल अलग रास्ते हैं, एक जन्नत तक पहुँचाता है और एक जहन्नम के घाट उतारता है |

हुज़ूर से मुहब्बत की निशानी ये भी है की हुज़ूर की शान में जो अल्फ़ाज़ इस्तिमाल किये जाएँ वो अदब में डूबे हुए हों | कोई ऐसा लफ्ज़ जिससे ताज़ीम में कमी की बू आती हो कभी ज़ुबान पर न लाएं |

अगर हुज़ूर को पुकारना हो तो उनको उनके नाम के साथ न पुकारो मुहम्मद या मुस्तफा, या मुर्तज़ा न कहो बल्कि इस तरह कहो :-

या नबी अल्लाह या रसूलल्लाह या या हबीबल्लाह 

तर्जुमा :- ऐ अल्लाह के नबी , ऐ अल्लाह के रसूल , ऐ अल्लाह के हबीब |

ज़ियारत की दौलत मिल जाये तो रौज़े के सामने चार हाथ के फासले से अदब के साथ हाथ बाँध कर (जैसे नमाज़ में खड़े होते हैं) खड़े होकर सर झुकाये हुए सलातो सलाम अर्ज़ करें | बहुत क़रीब न जांयें और न इधर उधर देंखें और खबर दार कभी आवाज़ बुलंद न करना क्योंकि उम्र भर का सारा किया धरा अकारत (बेकार) जायेगा |

हुज़ूर से मुहब्बत की निशानी ये भी है की हुज़ूर की बातें उनके काम और उनका हाल लोगों से पूछे और उनकी पैरवी करे | हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अक़वाल, अफआल किसी अमल और किसी हालत को अगर कोई हिकारत की नज़र से देखे वो काफिर है |

अक़ीदा :- हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के नायब हैं | सारा आलम हुज़ूर के तसर्रुफ़ (इख़्तियार या क़ब्ज़े) में कर दिया गया है | जो चाहें करें, जिसे जो चाहें दें, जिससे जो चाहें वापस ले लें | तमाम जहां में उनके हुक्म का फेरने वाला कोई नहीं तमाम जहान उनका महकूम है | वो अपने रब के सिवा किसी के महकूम नहीं और तमाम आदमियों के मालिक है | जो उन्हें अपना मालिक न जाने वो सुन्नत की मिठास से महरूम रहेगा |तमाम ज़मीन उनकी मिलकियत है, तमाम जन्नत उनकी जागीर है, मालकतुस्समावाती वल अर्द यानी आसमानो और ज़मीनो के फरिस्ते हुज़ूर ही के दरबार से तकसीम होती है | दुनिया और आखरत हुज़ूर की देन का एक हिस्सा है | शरीअत के एहकाम हुज़ूर के क़ब्ज़े में कर दिए गए की जिस पर जो चाहें हराम कर दें और जिस के लिए जो चाहें हलाल कर दें और जो फ़र्ज़ चाहें माफ़ कर दें |

अक़ीदा :- सब से पहले नुबुव्वत का मर्तबा हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मिला और मिसाक के दिन तमाम नबिओं से हुज़ूर पर ईमान लाने और हुज़ूर की मदद करने का वादा लिया गया और इसी शर्त पर उन नबिओं को ये बड़ा मनसब दिया गया | मीसाक का मतलब ये है की एक रोज़ अल्लाह तआला ने सब रूहों को जमा करके ये पुछा की क्या में तुम्हारा रब नहीं हूँ तो जवाब में सब से पहले हमारे हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हाँ, कहा था तो अल्लाह तआला ने सबको और सारे नबिओं को हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर ईमान लाने और उनकी मदद करने का वादा लिया था | यही “मीसाक का मतलब है | हुज़ूर सारे आलम के नबी तो हैं ही लेकिन साथ ही नबियों के भी नबी हैं और सारे नबी हुज़ूर के उम्मती हैं | इसी लिए हर नबी ने अपने अपने ज़माने में हुज़ूर के क़ाइम मुक़ाम काम किया अल्लाह तआला ने हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मुनव्वर किया | इस तरह हुज़ूर सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हर जगह मौजूद हैं | जैसा की एक शायर का अरबी शेर है |

आप ऐसे नूर हैं जैसा की सूरज बीच आसमान में है और उसकी रोशनी 
तमाम शहरों में बल्कि मशरिक़ से मगरिब तक हर सम्त में फैली हुई है

तर्जुमा :- आप ऐसे नूर है जैसा की सूरज बीच आसमान मैं है और उसकी रौशनी तमाम शहरों में बल्क़ि मशरिक़ से मगरिब तक हर सिम्त में फैली हुई है |

 गर न बिनद बरोज़ शप्परा चश्म 
चश्मए आफताब रा चे गुनाह

तर्जुमा :- अगर चमगादड़ दिन को नहीं देखता तो इसमें सूरज की रौशनी का क्या कसूर है |

एक ज़रूरी मसअला

अम्बिया अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम से जो लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र क़ुरान शरीफ और हदीस शरीफ की रिवायत के अलावा बहुत सख्त हराम है | दुसरो को उन सरकारों के बारे में ज़बान खोलने की मजाल और हिम्मत नहीं | अल्लाह तआला उनका मालिक है जिस तरह चाहे सुलूक करे और वो उसके प्यारे बन्दे है, अपने रब के लिए जैसी चाहे इंकिसारी करे |किसी दूसरे के लिए यह हक़ नहीं की नबियों ने जो अलफ़ाज़ अपने लिए इंकिसारी से इस्तिमाल किये है उनको सनद बनाये और उनके लिए बोले |
फिर यह की उनके यह काम जिनको लग़्ज़िश कहा गया है उनसे बहुत से फायदों और बरकतो का नतीजा निकलता है |

सय्यदना हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की एक लग़्ज़िश को देखिये की उससे कितने फायदे है |अगर वह जन्नत से न उतरते तो दुन्या आबाद न होती ,किताबें न उतरती, नबी और रसूल न आते आदमी न पैदा होते, आदमियों की ज़रुरत की लाखों चीज़े न पैदा की जाती, जिहाद न होते और करोड़ो फायदे की वो चीज़े जो हज़रते आदम की लग़्ज़िश के नतीजे में पैदा की गई है उनका दरवाज़ा बंद रहता है | उन तमाम चीज़ो के वजूद में आने के लिए हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की एक लग़्ज़िश का मुबारक नतीजा अच्छा फल है बुन्याद है |फिर यह की नबियों की लग़्ज़िश का यह आलम है की सिद्दिक़ीन की नेकीओ से भी फ़ज़ीलत रखती है |हमारी और आपकी क्या गिनती | जैसा की मिसाल मशहूर है की :-

"नेक लोगों के अच्छे काम मुक़र्रबीन के लिए बुराइया है"

हवाला – बहारे शरीयत जिल्द अव्वल पहला हिस्सा

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