हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु पर ऐतिराज़ात और उसके जवाबात :- हज़रते उस्मान बिन अब्दुल्लाह बिन मोहिब रदियल्लाहू अन्हु फरमाते है की मिस्र का रहने वाला एक शख्स हज के इरादे से बैतुल्लाह शरीफ आया इस ने एक जगह कुछ लोगों को बैठे हुए देखा तो पूछा की ये कौन लोग है? जवाब दिया गया की ये लोग क़ुरैश हैं उसने पूछा के इन लोगों का शैख़ कौन है? जवाब दिया गया के इन लोगों के शैख़ हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु हैं अब इस ने हज़रत इबने उमर रदियल्लाहु अन्हु की तरफ मुतवज्जेह होकर कहा के ऐ इबने उमर में कुछ सवाल करना चाहता हूँ आप इस का जवाब दें क्या आप को मालूम है के उस्मान उहद की जंग से भाग गए थे | हज़रत इबने उमर रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के हाँ ऐसा हुआ था फिर उस शख्स ने पूछा के क्या आपको मालूम है के बदर की लड़ाई से उस्मान गायब थे और जंग में वो शरीक न हुए थे हज़रत इबने उमर रदियल्लाहू अन्हुमा ने जवाब दिया की हाँ वो बदर की जंग में मोजूद न थे फिर इस शख्स ने पुछा आप को मालूम है की उस्मान बैअते
रिज़वान के मौका पर भी गायब थे और इस में शरीक न हुए थे हज़रत इबने उमर रदियल्लाहू अन्हुमा ने फ़रमाया की हा वो बैअते रिज़वान के मौका पर भी मोजूद न थे और इस में शामिल न थे हज़रत इबने उमर रदियल्लाहु अन्हुमा से तीनों बातों की तस्दीक़ सुनकर उस शख्स ने कहा अल्लाहु अकबर | बज़ाहिर इस मिसरी शख्स का सवाल था लेकिन हक़ीकत में हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहू अन्हु की ज़ाते गिरामी पर उसका एतिराज़ था हज़रत इबने उमर रदियल्लाहु अन्हुमा ने उससे फ़रमाया के इधर आ में तुझ से हक़ीकते हाल बयान करके तेरे शुबहात यानि शक को दूर कर दूँ “उहद की जंग” से हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहू अन्हु के भाग जाने के मुतअल्लिक़ में तुझ से ये कहता हूँ के ख़ुदाए ज़ुल जलाल ने उनकी गलती को माफ़ कर दिया है जैसा के क़ुरआने मजीद में इरशादे खुदा वन्दी है:
اِنَّ الَّذِیْنَ تَوَلَّوْا مِنْكُمْ یَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِۙ-اِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّیْطٰنُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُوْاۚ-وَ لَقَدْ عَفَا اللّٰهُ عَنْهُمْؕ-اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ حَلِیْمٌ۠
तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- बेशक वो लोग जो तुममे से फिर गए जिस दिन दोनों फौजें मिली थीं उनके बाज़ आमाल के सबब उन्हें शैतान ने ही लग़्ज़िश दी और बेशक अल्लाह ने उन्हें माफ़ फरमा दिया बेशक अल्लाह बख्शने वाला हिल्म वाला है | (सूरह आले इमरान आयत 155, पारा 4,)
और जंगे बदर में हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु का मौजूद न होना इस का वाक़िया ये है के हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा यानि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी और हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की बीवी उस ज़माने में बीमार थीं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को इनकी देख भाल के लिए मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में छोड़ दिया था” और फ़रमाया था की उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को जंगे बदर में शरीक होने वालों में से एक मुजाहिद का सवाब मिलेगा और माले गनीमत में से भी एक शख्स का हिस्सा दिया जाएगा अब रहा मुआमला बैअते रिज़वान से हज़रत उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु का गायब होना तो इस की वजह ये है की अगर मक्का मुअज़्ज़मा में हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से ज़्यादा बा इज़्ज़त और हर दिल अज़ीज़ कोई और शख्स होता तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस को मक्का मुअज़्ज़मा भेजते मगर चूँकि हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से ज़्यादा हर दिल अज़ीज़ और बा इज़्ज़त मक्का शरीफ वालों की निगाह में कोई और शख्स न था इस लिए रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनको मक्का मुअज़्ज़मा रवाना फ़रमाया ताकि वो आप की तरफ से कुफ्फारे मक्का से बात चीत करे तो हज़रत उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से मक्का में चले गए इस तरह इन की गैर मौजूदगी में बैअते रिज़वान का वाकिया पेश आया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बैअते रिज़वान के वक्त अपने दाहिने हाथ को उठा कर फ़रमाया ये उस्मान का हाथ है और फिर इस हाथ को अपने दूसरे हाथ पर मार कर फ़रमाया की ये उस्मान की बैअत है इस के बाद हज़रत इबने उमर दियल्लाहु अन्हुमा ने फ़रमाया की अभी जो में ने तेरे सामने बयान किया है तू उसको लेजा के यही तेरे सवालात के मुकम्मल जवाबात हैं | (सही बुखारी शरीफ)
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हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की खिलाफत :- हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सीयूती रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब “तारीख़ुल खुलफ़ा” में तहरीर फरमाते हैं के ज़ख़्मी होने के बाद हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की तबीयत जब ज़्यादा नासाज़ हुई तो लोगों ने आप रदियल्लाहु अन्हु से अर्ज़ किया के या अमीरुल मोमिनीन आप हमे कुछ वसीयतें फरमाइए और खिलाफत के लिए किसी का इंतिख़ाब (चुनना छांटना सेलेक्ट करना) फ़रमा दिजिये “हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया के खिलाफत के लिए अलावा इन 6 सहाबा के जिन से रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम राज़ी और खुश रह कर इस दुनिया से तशरीफ़ ले गए हैं में किसी और को मुस्तहिक़ नहीं समझता हूँ | फिर हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते उस्माने गनी, हज़रते अली, हज़रते तल्हा, हज़रते ज़ुबैर, हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ और हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन के नाम लिए” और फ़रमाया के मेरे लड़के अब्दुल्लाह मजलिसे शूरा में उसके साथ रहेंगें | लेकिन खिलाफत से उन्हें कोई सरोकार नहीं होगा | अगर सअद बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हु का इंतिख़ाब (चुनना छांटना सेलेक्ट करना) हो जाए तो वो इस का हक़ रखते हैं वरना इन 6 सहाबियों में से जिस को चाहें मुन्तख़ब (चुनना छांटना सेलेक्ट करना) करलें और मेने सअद बिन अबी वक़्क़ास को किसी आजिज़ी और खयानत के सबब मअज़ूल नहीं किया था | फिर हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के में अपने बाद खलीफा होने को वसीयत करता हूँ के वो अल्लाह तआला से डरता रहे और सब अंसार व मुहाजिरीन और सारी रिया के साथ भलाई से पेश आता रहे |
जब हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु का विसाल हो गया और लोग उनकी तज्हीज़ व तकफीन से फारिग हो गए तो तीन दिन के बाद खलीफा को मुन्तख़ब (चुनना छांटना सेलेक्ट करना) करने के लिए जमा हुए हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने लोगों से फ़रमाया के पहले तीन आदमी अपना हक़ तीन आदमियों को देकर दस्त बरदार हो जाएं | लोगों ने इस बात की ताईद की तो हज़रते ज़ुबैर, हज़रते अली को, हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास हज़रत अब्दुर रहमान को और हज़रत तल्हा हज़रत उस्माने गनी को अपना हक़ देकर दस्त बरदार होगए रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन |
ये तीनो हज़रात राए मशवरा करने के लिए एक तरफ चले गए वहां हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के में अपने लिए खिलाफत पसंद नहीं करता अब आप लोगों में से भी जो खिलाफत की ज़िम्मेदारी से दस्तबरदार होना चाहे वो बता दे इसलिए के जो बरी होगा हम खिलाफत उसी के सुपुर्द करेंगें और जो शख्स खलीफा हो उस के लिए ज़रूरी है के वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत में सब से अफ़ज़ल हो और इस्लाहे उम्मत की बहुत ख्वाइश रखता हो | इस बात के जवाब में हज़रते उस्मान और हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुमा यानि दोनों हज़रात चुप रहे तो हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के अच्छा आप लोग इस इंतिख्वाब का काम हमारे सुपुर्द करदें क़सम खुदा की में आप लोगों में से बेहतर और अफ़ज़ल शख्स का इंतिख्वाब करूंगा दोनों हज़रात ने फ़रमाया के हम लोगों को मंज़ूर है हम इंतिख्वाबे खलीफा का काम आप के सुपुर्द करते हैं |
अब इस के बाद हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु को लेकर एक तरफ गए और उन से कहा के ऐ अली आप रदियल्लाहु अन्हु इस्लाम क़बूल करने में साबिक़ीन अव्वालीन में से हैं और आप रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़रीबी अज़ीज़ हैं लिहाज़ा आप को अगर में खलीफा मुक़र्रर कर दूँ तो आप क़बूल फरमालें और अगर में किसी दूसरे को आप पर खलीफा मुक़र्रर करदूँ तो उसकी इताअत करेंगे हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के मुझे मंज़ूर है | (तारीख़ुल खुलफ़ा, सही बुखारी शरीफ)
इस के बाद हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को लेकर एक तरफ गए और उन से भी तन्हाई में इसी क़िस्म की गुफ्तुगू की तो उन्होंने भी दोनों बातों को तस्लीम कर लिया “जब इन दोनों हज़रात से अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने इस क़िस्म का ऐहदो पैमान लेलिया तो इस के बाद आप ने हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के हाथ पर बैअत करली और उनके बाद हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने भी बैअत करली |
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हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की खिलाफत पर राए आम्मा यानि ज़्यादातर लोगों की यही मरज़ी थी के आप ही खलीफा बनें :- “तारीख़ुल खुलफ़ा” में इबने असाकर के हवाले से है के हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के बजाए हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को इस लिए खलीफा मुन्तख़ब किया (चुनना छांटना सेलेक्ट करना) के जो भी साहिबुर राए में इन से मिलता वो यही मशवरा देता के खिलाफत हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को मिलनी चाहिए वो इस लिए के सब से ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं |
चुनाचे एक रिवायत में यूं आया है के हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने हम्दो सलात के बाद हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया “ऐ अली मेने सब लोगों की राए मालूम करली है खिलाफत के बारे में सब की राए हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के लिए है” ये कह कर अपने हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु का हाथ पकड़ा और कहा के में सुन्नते खुदा, सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और इन दोनों खुलफ़ा की सुन्नत पर आप से बैअत करता हूँ इस तरह सब से पहले हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से बैअत की फिर तमाम मुहाजिरीन व अंसार ने इन से बैअत की | (अल सुनन कुबरा)
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु तीसरे खलीफा क्यों नहीं बने? :- और मुसनदे इमाम अहमद में हज़रत अबू वाइल रदियल्लाहु अन्हु से इस तरह मरवी है के उन्होंने फ़रमाया के हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु से मालूम किया के आप ने हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को छोड़ कर हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से क्यों बैअत की? उन्होंने फ़रमाया के इस में मेरा क़ुसूर नहीं है “मेने पहले हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु से ही कहा के में किताबुल्लाह, सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु और हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की सुन्नत पर आप से बैअत करता हूँ तो उन्होंने फ़रमाया के में इस की इस्तिआत यानि ताक़त नहीं रखता उस के बाद मेने हज़रत उस्मान गनी रदियल्लाहु अन्हु से इसी क़िस्म की गुफ्तुगू की तो उन्होंने क़बूल कर लिया |
(तारीख़ुल खुलफ़ा, अल मुसनद इमाम अहमद बिन हंबल)
गुनिया तुतालिबीन जो हज़रत गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु की किताब मशहूर है इस में भी यही रिवायत मज़कूर है तो इस रिवायत की बुनियाद पर ये कहा जाए के गालिबन हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु ने उस वक़्त खिलाफत से इंकार कर दिया के उन पर आम सहाबए किराम रिद्वानुल्लाही तआला अन्हुम का रुजहान ज़ाहिर हो चुका था के वो मेरे बजाए हज़रत उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को खलीफा मुक़र्रर करना चाहते हैं तो आपने सहाबा की मरज़ी के खिलाफ ज़बरदस्ती उनका खलीफा बनना पसंद न फ़रमाया |
और एक रिवायत में ये भी है के हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मेने तन्हाई में हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से मालूम किया के अगर में आप से बैअत न करूँ तो मुझे आप किस्से बैअत करने का मशवरा देंगें उन्होंने फ़रमाया के अली रदियल्लाहु अन्हु से फिर मेने इसी तरह तन्हाई में हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु से कहा के अगर में आप की बैअत न करूँ तो आप मुझे किस की बैअत का मशवरा देंगें उन्होंने फ़रमाया उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु फिर मेने हज़रत ज़ुबैर रदियल्लाहु अन्हु को बुलाकर इसी तरह तखलिया में मेने उन से मालूम किया के अगर में आप की बैअत न करूँ तो आप मुझे किस्से बैअत करने की राए देंगें? उन्होंने फ़रमाया के हज़रत अली या हज़रत उस्मान रदियल्लाहु अन्हुमा से | (तारीख़ुल खुलफ़ा)
हज़रते अब्दुर रहमान रदियल्लाहु अन्हु फरते हैं के फिर मेने हज़रते सअद रदियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उन से कहा के मेरा और आपका इरादा ख़लीफ़तुल मुस्लिमीन बनने का तो है नहीं तो फिर आप मुझे किस्से बैअत करने का मशवरा देंगें? उन्होंने फ़रमाया के हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से फिर हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु ने तमाम मुहाजिरीन व अंसार से मशवरा किया तो अक्सर ज़्यादातर लोगों की राए हज़रत उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के बारे में पाई गई इस लिए उन्होंने हज़रत उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हुसे बैअत की |
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एक राफ्ज़ी का एतिराज़ और उस का जवाब :- राफ्ज़ी कहते हैं के सब से पहले खिलाफत के हक़दार हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु थे मगर लोगों ने उनके हक़ को ग़सब कर लिया के पहले हज़रत अबू बक्र फिर हज़रत उमर और फिर हज़रत उस्मान को खलीफा बनाया इस तरह मुसलसल हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु की हक़ तल्फी की गई |
फिर राफ्ज़ी इसी पर इक्तिफा नहीं करते बल्कि हज़रात खुलफाए सलासा और दीगर सहाबए किराम रिद्ववानुल्लाही तआला अन्हुम जिन्होंने उनको खलीफा मुन्तख़ब किया इन सब से बुग्ज़ व अदावत रखते हैं और उनको बुरा भला कहते हैं |
इस एतिराज़ का जवाब ये है के हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु से पहले जो लोग खलीफा हुए और जिन्होंने खलीफा बनाया ये वो लोग हैं के जिन की ख़ुदाए तआला ने मदाह यानि तारीफ़ फ़रमाई और उन की तारीफ़ व तौसीफ में क़ुरआन मजीद की बहुत सी आयाते करीमा नाज़िल हुई हैं सूरह हदीद आयत 10 पारा 27 में है:
لَا یَسْتَوِیْ مِنْكُمْ مَّنْ اَنْفَقَ مِنْ قَبْلِ الْفَتْحِ وَ قٰتَلَؕ-اُولٰٓىٕكَ اَعْظَمُ دَرَجَةً مِّنَ الَّذِیْنَ اَنْفَقُوْا مِنْۢ بَعْدُ وَ قٰتَلُوْاؕ-وَ كُلًّا وَّعَدَ اللّٰهُ الْحُسْنٰىؕ
तर्जुमाए कंज़ुल इमाम :- तुम में बराबर नहीं वो जिन्होंने फ़तेह मक्का से पहले खर्च और जिहाद किया वो मर्तबे में इन से बड़े हैं जिन्होंने फ़तेह मक्का के बाद खर्च और जिहाद किया और इन सब से अल्लाह जन्नत का वादा फ़रमा चुका |
सूरह तौबा आयत 100 में है:
وَ السّٰبِقُوْنَ الْاَوَّلُوْنَ مِنَ الْمُهٰجِرِیْنَ وَ الْاَنْصَارِ وَ الَّذِیْنَ اتَّبَعُوْهُمْ بِاِحْسَانٍۙ-رَّضِیَ اللّٰهُ عَنْهُمْ وَ رَضُوْا عَنْهُ
तर्जुमाए कंज़ुल इमाम :- और सब में अगले पहले मुहाजिरीन व अंसार और जो भलाई के साथ उनकी इत्तिबा किए अल्लाह उन से राज़ी हो और वो अल्लाह से राज़ी हुए |
सूरह हशर आयत 8 पारा 28 में है:
لِلْفُقَرَآءِ الْمُهٰجِرِیْنَ الَّذِیْنَ اُخْرِجُوْا مِنْ دِیَارِهِمْ وَ اَمْوَالِهِمْ یَبْتَغُوْنَ فَضْلًا مِّنَ اللّٰهِ وَ رِضْوَانًا وَّ یَنْصُرُوْنَ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗؕ-اُولٰٓىٕكَ هُمُ الصّٰدِقُوْنَۚ
तर्जुमाए कंज़ुल इमाम :- हिजरत करने वाले फ़क़ीरों के लिए जो अपने घरों और मालों से निकाले गए अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रज़ा चाहते हैं और अल्लाह व रसूल की मदद करते हैं वही लोग सच्चे हैं |
फिर इसी पारे 28 सूरह हशर आयत 9 में है:
وَ الَّذِیْنَ تَبَوَّؤُ الدَّارَ وَ الْاِیْمَانَ مِنْ قَبْلِهِمْ یُحِبُّوْنَ مَنْ هَاجَرَ اِلَیْهِمْ وَ لَا یَجِدُوْنَ فِیْ صُدُوْرِهِمْ حَاجَةً مِّمَّاۤ اُوْتُوْا وَ یُؤْثِرُوْنَ عَلٰۤى اَنْفُسِهِمْ وَ لَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ ﳴ وَ مَنْ یُّوْقَ شُحَّ نَفْسِهٖ فَاُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَۚ
तर्जुमाए कंज़ुल इमाम :- और जिन लोगों ने पहले से इस (मदीना मुनव्वरा) शहर में और ईमान में घर बना लिया, वो दोस्त रखते हैं इन लोगों को जो इन की तरफ हिजरत कर गए और वो लोग अपने दिलों में कोई हाजत नहीं पाते इस चीज़ की (मुहाजिरीन माले गनीमत) दिए गए और अंसार अपनी जानो पर उनको तरजीह देते हैं अगरचे इन्हें शदीद मुहताजी हो और जो अपने नफ़्स के लालच से बचाया गया तो वही कामयाब हैं | पारा चार सूरह आले इमरान आयत 64 में है:
لَقَدْ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ إِذْ بَعَثَ فِيهِمْ رَسُولًا مِّنْ أَنفُسِهِمْ يَتْلُوا۟ عَلَيْهِمْ ءَايَٰتِهِۦ وَيُزَكِّيهِمْ
तर्जुमाए कंज़ुल इमाम :- बेशक अल्लाह का मुसलमानो पर बड़ा एहसान हुआ के उनमे उन्ही में से एक रसूल भेजा जो उन पर ख़ुदाए तआला की आयतें पढ़ता है और उन्हें पाक करता है |
इस क़िस्म की और भी बहुत सी आयाते करीमा हैं जिनमे ख़ुदाए अज़्ज़ा वजल ने अपने प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असहाब की वाज़ेह लफ़्ज़ों में तारीफ़ व तौसीफ बयान फ़रमाई है |
अब आप लोग गौर कीजिए की पहली आयते करीमा में है: (وَ كُلًّا وَّعَدَ اللّٰهُ الْحُسْنٰىؕ) यानि फ़तेह मक्का से पहले और उसके बाद अल्लाह की राह में खर्च करने और लड़ाई करने वाले हर एक से अल्लाह तआला ने भलाई का वादा फ़रमाया है |
और दूसरी आयते मुबारिक में है: (رَّضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ) अल्लाह तआला उन से राज़ी है और वो अल्लाह तआला से राज़ी हैं |
और तीसरी आयते मुबारिका में फ़रमाया गया: (اُولٰٓىٕكَ هُمُ الصّٰدِقُوْنَۚ ) वही लोग सच्चे हैं | और चौथी आयते मुबारिका में है: (فَاُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَۚ) वही लोग फलाह याफ्ता और कामयाब हैं और पांचवी आयते मुबारिका में है: (وَيُزَكِّيهِمْ) नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनका तज़किया फरमाते हैं यानि न पसंदीदा ख़सलतों और बुरी बातों से उनको पाक व साफ़ करते हैं और सलाह बनाते हैं |
अल्लाह तआला ने इस आयते मुबारिका में खबर दी है :- के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “मुज़क्की” हैं तो इस बात पर ईमान लाना ज़रूरी है के सहाबए किराम के क़ुलूब का उन्होंने तज़किया फ़रमाया इस लिए के अगर उन के क़ुलूब का तज़किया नहीं फ़रमाया तो वो “मुज़क्की” नहीं हो सकते और जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के क़ुलूब का तज़किया फ़रमाया तो मानना पड़ेगा के वो नेकोकार और सालेह हैं उन के अख़लाक़ बुलंद हैं, वो औसाफ़े हमीदा वाले हैं उन की नियतें सही हैं और उन का अमल हमारे लिए मशअले राह है, लिहाज़ा सहाबए किराम
रदियल्लाहु तआला अन्हुम के “जिन से अल्लाह तआला ने भलाई का वादा फ़रमाया है, अल्लाह तआला उनसे राज़ी और वो अल्लाह तआला से राज़ी और ऐसे लोग के जो फलाह याफ्ता और सच्चे हैं जिनके क़ुलूब मुज़क्का व मुजल्ला हैं उन के बारे में ये फ़ासिद एतिक़ाद रखना के उन्होंने के हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु के हक़ को ग़सब कर लिया इंतिहाई बद नसीबी व बद बख्ती है बल्कि क़ुरआने मजीद को झुटलाना है | मआज़ अल्लाह |
बादशा जिस जमात से राज़ी हो और उनकी तारीफ व तौसीफ बयान करता हो इस जमात से बुग्ज़ व अदावत दुश्मनी और उनकी बुराई करना बादशाह की नाराज़गी का सबब होगा तो खुदाई ज़ुल जलाल जो सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम से राज़ी और अपनी किताब क़ुरआने मजीद में जगह जगह उनकी तारीफ व तौसीफ बयान फरमाता है इस मुबारक जमात से बुग्ज़ व अदावत और उनकी बुराई करना ख़ुदाए तआला की सख्त नाराज़गी का सब है |
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सहाबा का गुस्ताख़ बे दीन है :- हज़रते अल्लामा अबूज़रआ रदियल्लाहु अन्हु जो तबे ताबईन में से हैं उन्हेने इस सिलसिले में निहायत ही उम्दह बात फ़रमाई है के जब तुम किसी शख्स को देखो के वो रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असहाब में से किसी की तनक़ीस करता है उन में नुक़्स यानि कमी निकलता है तो जान लो के वो ज़िन्दीक यानि जहन्नमी और बे दीन है इस लिए के क़ुरआन और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हर फरमान हमें सहाबा ही के वास्ते से मिला तो उनकी ज़ात में बुराई साबित करना और उन को गलत ठहराना क़ुरआन व हदीस को बातिल क़रार देना है मआज़ अल्लाह | (तारीखे मदीना दमिश्क़)
आपका पहला खुत्बा :- तारीख़ुल खुलफ़ा में इबने सअद के हवाले से है के खलीफा मुन्तख़ब होने के बाद जब हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु खुत्बा देने के लिए खड़े हुए तो आप कुछ बयान न कर सके | सिर्फ इतना फ़रमाया के ऐ लोगों पहली मर्तबा घोड़े पर सवार होना बड़ा मुश्किल होता है आज के बाद बहुत से दिन आएंगें अगर में ज़िंदा रहा तो इंशा अल्लाह तआला आप लोगों के सामने ज़रूर खुत्बा दूंगा | हमारे खानदान के लोग खतीब नहीं हुए हैं ख़ुदाए तआला से उम्मीद है के वो अनक़रीब हमें खुत्बा देने पर क़ुदरत अता फरमाएगा | (अल तबक़ातुल कुबरा)
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बराबरी का तसव्वुर भी नहीं :- आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के मिम्बर के तीन ज़ीने थे अलावा ऊपर के तख्ते के जिस पर बैठते हैं | हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दरजे बाला पर खुत्बा फ़रमाया करते | हज़रते सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु ने दुसरे पर पढ़ा, हज़रते उमर फ़ारूक़ी आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने तीसरे पर, जब ज़मानाए ज़ुन्नुरैन यानि हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु का ज़माना आया तो अव्वल पे खुत्बा फ़रमाया | सबब पूछा गया फ़रमाया अगर दूसरे पर पढ़ता लोग गुमान करते के में सिद्दीक़ का हमसर हूँ और तीसरे पर, तो वहम होता के फ़ारूक़े आज़म के बराबर हूँ लिहाज़ा वहां पढ़ा जहाँ इसका तसव्वूर ही नहीं होता | (फतावा रज़विया, तिरमिज़ी शरीफ)
फिर हज़रते उस्माने गनी ज़ुन्नुरैन रदियल्लाहु अन्हु का ये जुमला भी क़ाबिले तवज्जुह है के मेने वह खुत्बा पढ़ा जहाँ ये यानि हमसरी और बराबरी तसव्वुर ही नहीं मतलब ये हुआ के सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम में से कोई भी ये तसव्वुर कर ही नहीं सकता था के हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बराबरी व हमसरी का दावा कर सकते हैं | साबित हुआ के अगर कोई आक़ाए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बराबरी व हमसरी का दावा करे तो वो गुस्ताख़ बे अदब है और सहाबए किराम
रदियल्लाहु तआला अन्हुम के रास्ते से अलग है और हदीस शरीफ “मा अना अलईही व असहाबी” के मुताबिक़ इन्ही के रास्ते पर चलने वाले जन्नती हैं बाक़ी सब जहन्नमी |
आप के ज़मानए खिलाफत के फुतूहात :- हज़रते उस्माने गनी ज़ुन्नुरैन रदियल्लाहु अन्हु के ज़मानए खिलाफत में भी इस्लामी फुतूहात का दाईराह
बराबर वसी यानि बढ़ता रहा | चुनाचे आप रदियल्लाहु अन्हु के ज़मानए खिलाफत के पहले साल यानि 24 हिजरी में “रे” फ़तेह हुआ | रे खुरासान का एक शहर है जो आज कल ईरान का दारुल सल्तनत है और इसे तेहरान कहते हैं 26 हिजरी में शहर “साबूर” फ़तेह हुआ |(तारीख़ुल खुलफ़ा)
बेहरी बेड़े के ज़रिए हमला :- हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु जो हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में मुल्के शाम के गवर्नर थे उन्होंने हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु से कई बार ये दरख्वास्त पेश की थी के बेहरी बेड़े के ज़रिए कबरस पर हमला की इजाज़त दी जाए मगर अपने इजाज़त नहीं दी लेकिन जब हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु का इसरार बहुत ज़्यादा हुआ तो आप रदियल्लाहु अन्हु ने अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु को लिखा के आप रदियल्लाहु अन्हु समंदर और बादबानी जहाज़ों की कैफियत मुफ़स्सल तरीके से लिखकर मुझे रवाना करो उन्होंने लिखा के मेने बादबानी जहाज़ को देखा है जो एक बड़ी मख्लूक़ है और इस पर छोटी मख्लूक़ सवार होती है जब वो जहाज़ ठहर जाता है तो लोगों के दिल फटने लगते हैं और जब वो चलता है तो अक़्लमंद लोग भी खौफ ज़दह हो जाते हैं इस में अच्छाइयाँ कम हैं और खराबियां ज़्यादा हैं इस में सफर करने वालों की हैसियत कीड़ो मकोड़ो जैसी है अगर ये सवारी इसी तरफ झुक जाए तो उमूमन लोग डूब जाते हैं और अगर बच जाते हैं तो इस हाल में साहिल तक पहुंचते हैं के कांपते रहते हैं |
हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने जब हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु रदियल्लाहु अन्हु का खत इस मज़मून का पढ़ा तो हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु को लिखा के क़सम है ख़ुदाए तआला की में ऐसी सवारी पर मुसलमानो को भी सवार नहीं कर सकता इस तरह हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में कबरस पर मुसलमानो का हमला नहीं हो सका “लेकिन जब हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु का ज़मानए खिलाफत आया तो उन के हुक्म से 27 हिजरी में जहाज़ के ज़रिए हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने लश्कर ले जाकर कबरस पर हमला कर के उसको फ़तेह कर लिया और जुज़िया लेने की शर्त मंज़ूर करली | (तारीख़ुल खुलफ़ा)
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और कोई ग़ैब क्या :- जिस लश्कर ने बेहरी रास्ते से जा कर कबरस पर हमला किया था | इस लश्कर में मशहूर सहाबी उबादा बिन सामित रदियल्लाहु अन्हु अपनी एहलिया मुहतरमा उम्मे हराम बिन्ते मल्हान अंसारिया रदियल्लाहु अन्हा के साथ मौजूद थे आप रदियल्लाहु अन्हु की बीवी जानवर से गिरकर इन्तिक़ाल कर गईं तो उन को वहीँ कबरस में दफ़न कर दिया गया | इस लश्कर के मुतअल्लिक़ अल्लाह के मेहबूब दानाए गूयूब जनाबे अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पेशन गोई फ़रमाई थी के उबादा बिन सामित रदियल्लाहु अन्हु की बीवी भी इस लश्कर में होगी और कबरस में ही उसकी क़ब्र बनेगी चुनांचे ये पेशन गोई हर्फ़ बा हर्फ़ सही हुई | और क्यों न हो के नदी का बहता हुआ धारा रुक सकता है दरख़्त यानि पेड़ अपनी जगह से टल सकता है मगर अल्लाह के महबूब प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान नहीं टल सकता | (सही बुखारी शरीफ)
दीगर (दूसरा दूसरी) फुतूहात व माले गनीमत और अफ्रीका पर फ़तेह
दीगर (दूसरा दूसरी) फुतूहात और माले गनीमत :- और इसी 27 हिजरी में जारजान और दारे बज रद फ़तेह हुए | और इसी साल हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु ने अब्दुल्लाह बिन सअद बिन अबी सराह को मिस्र का गवर्नर बनाया तो उन्होंने मिस्र पहुंच कर हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के हुक्म पर अफ्रीका पर हमला किया और उसको फ़तेह करके सारी सल्तनतों को हुकूमते इस्लामिया में शामिल कर लिया | इस जंग में इस क़द्र माले गनीमत मुसलमानो को हासिल हुआ के हर सिपाही को एक एक हज़ार दीनार और बाज़ रिवायात के मुताबिक़ तीन तीन हज़ार दीनार मिले | दीनार साड़े चार माशा सोने का एक सिक्का होता था | “इस फ़तेह अज़ीम के बाद इसी 27 हिजरी में इस्पैन यानि हिस्पानिया भी फ़तेह हो गया और 29 हिजरी में हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के हुक्म से इस्तखर कसा और उन के अलावा बाज़ दूसरे मुल्क भी फ़तेह हुए |
और 30 हिजरी में जोर, खुरासान और निशापुर सुलेह के ज़रिए फ़तेह हुए इसी तरह मुल्के ईरान के दूसरे शहरों तूस, सर खस, मरवावर बहिक भी सुलेह से फ़तेह हुए इस क़द्र फुतूहात से जब बेशुमार माले गनीमत हर तरफ से दारुल खिलाफत में पहुंचेगा हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु को इन मालों की हिफाज़त के लिए कई महफूज़ ख़ज़ाने बन बाने पड़े और लोगों में इस फराख दिली से माल तक़सीम फ़रमाया के एक एक शख्स को एक एक लाख बदरे मिले जब के एक बदरा दस हज़ार दिरहम का होता है | (तारीख़ुल खुलफ़ा)
(तारीख़ुल खुलफ़ा) (खुलफाए राशिदीन) (सही बुखारी शरीफ) (फतावा रज़विया, तिरमिज़ी शरीफ) (अल तबक़ातुल कुबरा) (तारीखे मदीना दमिश्क़) (पारा चार सूरह आले इमरान आयत 64 में है) (फिर इसी पारे 28 सूरह हशर आयत 9 में है) (सूरह हशर आयत 8 पारा 28 में है) (सूरह तौबा आयत 100 में है) (सूरह हदीद आयत 10 पारा 27 में है) (तारीख़ुल खुलफ़ा, अल मुसनद इमाम अहमद बिन हंबल) (अल सुनन कुबरा) (तारीख़ुल खुलफ़ा, सही बुखारी शरीफ) (सूरह आले इमरान आयत 155, पारा 4,)
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