सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की जूदू अता सखावत और आप की करम नवाज़ी:
“जवामिउल किलम” :- में मन्क़ूल हैं के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह जब किसी को कुछ अता फरमाना होता तो ये नहीं फरमाते के उसे फुँला चीज़ दे दो और फुलां चीज़ नहीं दो बल्के ख़्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह से इरशाद फरमाते के इन को कुछ दे दो ख़्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह थैले में हाथ डालते और मुठ्ठी भरकर उस शख्स को दे देते अब ये उस शख्स की क़िस्मत होती के उस की तक़दीर में अशर्फियाँ लिखी थीं या रुपया, आप रहमतुल्लाह की बख़्शिश आम थी और जिस किसी पर अगर खास तवज्जु फरमाते तो उसकी सातों पुश्तों दुनिया की फिक्र से आज़ाद हो जातीं,
खानकाहे निज़ामिया: में ये मामूल था के जब भी किसी उर्स का मौक़ा होता तो बिला इम्तियाज़ हर शख्स को खाना और नकदी दी जाती, एक बार हज़रत ख़्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह ने जो के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के ख़ास खादिम थे, एक औरत को एक रूपया नक़द और एक खुराक खाना भेजा सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की तरफ से उस औरत का वज़ीफ़ा दो खुराक और दो रुपए नक़द देते थे,
जब वो खुराक और रूपया उस औरत के पास पंहुचा तो उस औरत ने लाने वाले से कहा के ज़रूर तुमने मेरा बाक़ी वज़ीफ़ा चुराया है उस शख्स ने कहा के मुझे हज़रत ख़्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह ने यही दे कर भेजा है जब सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को तमाम सूरते हाल के बारे में मालूम हुआ तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख़्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के उस औरत को एक खुराक और एक रूपया और भिजवा दो वो औरत बेचारी गरीब है,
“तारीखे हिंदी” में है के खानकाहे निज़ामिया में तीन हज़ार उलमा, व फुज़्ला, व मुरीदीन, और तालिबे इल्म और दो सौ क़व्वाल हर वक़्त मौजूद रहते थे और आप रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह से ही उनका गुज़र बसर होता था इस के अलावा बेशुमार लोग ऐसे थे जो के गिरदो नवाह और दरवाज़े के इलाक़ों से आते थे जिनकी ज़िम्मेदारी भी खानकाहे निज़ामिया पर थी,
“जवामिउल किलम” :- में मन्क़ूल हैं के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह के नज़दीक औरत कुँए से पानी भर रही थी आप ने उसे देख कर फ़रमाया के तुम दरिया के किनारे पर कुँए से पानी निकालने की परेशानी क्यों उठा रही हो इसे दरिया से ही भर लो, उस औरत ने कहा मेरा शोहर बहुत गरीब है और हमारे घर में खाने की कोई चीज़ भी नहीं है दरिया का पानी भूक बढ़ाता है इस लिए हम कुएँ का पानी पीते हैं उस औरत की बात सुनकर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ज़ारो कतार रो पड़े और ख़्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के इस औरत के घर का खर्च अब ख़ानक़ाह के ज़िम्मे है ताके ये कुँए का पानी नहीं पिएं,
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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का गरीबो की मदद करना :- एक बार सख्त गर्मी के मौसम में ग़यास पुर में आग लग गयी और बहुत से लोगों के मकानात भी जल गए, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने जब ये देखा तो बहुत रोए, जब आग बुझ गई तो ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के जितने माकन जले हैं उनकी गिनती करो और हर मकान में दो ख्वान खाना और दो मटके पानी और दो अशर्फियाँ पहुचाओ, याद रहे के उस ज़माने में दो अशर्फियों से बहुत बड़ा छप्पर तय्यार होता था और दो ख्वान खाना कसीर जमात के लिए काफी होता था,
किताब जवामिउल किलम :- में मन्क़ूल हैं के एक बार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह को बुलाया तो एक छोटा बच्चा जिस का नाम ख्वाजा अज़ीज़ था हाज़िरे खिदमत हुआ और अर्ज़ क्या के ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह बाज़ारों का सामान दे रहे हैं, आप रहमतुल्लाह अलैह उठकर ख्वाजा इकबाल के पास पहुंचे और फ़रमाया के इक़बाल तुमने खूब दूकान लगाई है फिर खुद अपने हाथों से तमाम बाज़ारों में एक एक कपड़ा तकसीम फरमा दिया, जो बच गया वो सब फ़क़ीरों मसाकीन में बाँट दिया,
नफ़्हातुल उन्स में मन्क़ूल है :- के एक सौदागर दिल्ली से मुल्तान जा रहा था के रास्ते में लुटेरों ने उसका तमाम माल लूट लिया, वो सौदागर निहायत परेशानी के आलम में मुल्तान पंहुचा और आरिफ़े बिल्लाह हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ करने लगा हुज़ूर में दिल्ली वापस जाना चाहता हूँ आप की निहायत महिरबानी होगी के आप सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में मेरी सिफारिश का एक परवाना अता फरमा दें के वो मेरे हाल पर नज़रे करम फरमाएं और मुझे दोबारा तिजारत के लिए सरमाया अता फ़रमादें,
आरिफ़े बिल्लाह हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने उस सौदागर के हाल को मद्दे नज़र रखते हुए एक रुक्का (खत) सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को लिख दिया, जब वो शख्स रुक्का (खत) लेकर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में दिल्ली पंहुचा तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के कल सुबह तक जो भी फुतूहात (नज़राना) आए वो इस शख्स को दे देना चुनाचे ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह ने उस शख्स को अपने पास बिठा लिया, और जो भी फुतूहात (नज़राना) अता गया वो इस शख्स के हवाले कर दिया यहाँ तक के अगले दिन सुबह तक उस सौदागर के पास 12000, रूपये इकठ्ठे हो गए उसने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर होकर क़दम बोसी की सआदत हासिल की और रुखसत हो गया,
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शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खवाब में ज़्यारत :- सैरुल औलिया में मन्क़ूल है के एक बार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह हुजरे के अंदर क़ैलूला (दोपहर का खाना खा कर सो जाना) फरमा रहे थे एक शख्स ख़ानक़ाह में दाखिल हुआ ख़ानक़ाह में उस वक़्त कोई चीज़ मौजूद नहीं थी इस लिए खादिमो ने उस शख्स को व पास कर दिया इसी वक़्त आप रहमतुल्लाह अलैह को अपने पिरो मुर्शिद हज़रत शैख़ बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत नसीब हुई, और हज़रत शैख़ बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के अगर घर में कोई चीज़ मौजूद न भी हो तो आने वाले के साथ हुसने सुलूक से पेश आना चाहिए के कहाँ से आया है? न के उसको खस्ता दिल के साथ रुखसत कर दिया जाए,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह बेदार हुए और इस बारे में खादिमो से मालूम किया तो उनको मालूम हुआ के एक गरीब हाल शख्स आया था जो के बगैर दाद रसी के रवाना कर दिया गया, आप ने फ़रमाया के मुझे शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर की ज़्यारत हुई और उन्होंने इस बारे में मुझ से कहा था, इस वाक़िए के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह ने मामूल बना लिया के जब भी कैकूला से बेदार होते तो सब से पहले मालूम करते के कोई आया तो नहीं था फिर नमाज़े ज़ुहर के बाद जो भी आया होता उनको बुलाते और उनकी दिल जोई फरमाते,
बादशाह
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को बहकाना :- बादशा सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के वज़ीरों और कुछ लोगों ने सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को बहकाना शुरू कर दिया, उनको सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की बढ़ी हुई शोहरत और इज़्ज़त से खतरा महसूस हो रहा था और वो आप को नुकसान पहुंचाने की कोई भी सूरत हाथ से जाने नहीं देते थे, उन्होंने बादशाह को बहकाया के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त मुक़्तदाए आलम बने हुए हैं और लोग उन से इस क़द्र अक़ीदत रखते हैं के वो उनके दरकी ख़ाक को अपने सर का ताज तस्लीम करते हैं और उनके दस्तर ख्वान पर हर किस्म के खाने पकते हैं हमें अंदेशा है के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह कहीं मक्कारी से सल्तनत हासिल न करलें क्यों के माज़ी में अक्सर लोग इसी तरीके से सल्तनत हासिल करते रहे हैं,
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी आक़िल शख्स था उस ने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में एक खत भेजा ताके मालूम कर सकें के आप दुनियावी उमूर की तरफ किस क़द्र लगाओ है बादशाह ने खत में लिखा के आप पूरे आलम के मखदूम हैं और दीं व दुनिया की हर हाजत आप के दर पर पूरी होती है अल्लाह तआला ने इस दुनिया में इस मुमलिकत का इख़्तियार मुझे दिया है और आप को रूहानी शहनशाहियत अता फ़रमाई है लिहाज़ा बंदा ये अर्ज़ करता है के अगर मुझे कभी दुनियावी काम में कोई मुश्किल दर पेश हो तो में आप की खिदमत में पेश करूँ ताके आप कोई ऐसी तदबीर करें जिससे मेरी और सल्तनत की खैरियत हो पस चंद बातें पेशे खिदमत हैं इन का तसल्ली बख्श जवाब दे कर मुझे मश्कूर फरमाएं, जब अरीज़ा मुकम्मल हो गया तो सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने अपने बेटे ख़िज़्र खान जो के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का मुरीद था के हाथ सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में रवाना कर दिया ख़िज़्र खान ने हाज़िरे खिदमत होकर क़दम बोसी की सआदत हासिल की और वो अरीज़ा पेश किया सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने अरीज़ा मुलाहिज़ा फ़रमाया तो हाज़िरीने मजलिस से फ़रमाया के हम फातिहा पढ़ते हैं, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने ख़िज़्र खान को मुखातिब करते हुए फ़रमाया के में दुर्वेश हूँ मुझे बादशाहों के काम से क्या मतलब में शहर से बाहर एक कोने में बैठा हूँ और बादशाह समीत दूसरे मुसलमानो के लिए दुआ करता हूँ, अगर इस किस्म की बात बादशाह ने दोबारा कही तो में इस जगह चला जाऊँगा अल्लाह की ज़मीन बहुत बड़ी है,
ख़िज़्र खान सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का जवाब सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को पंहुचा दिया, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी जवाब सुनकर खुश हुआ और कहा के में तो पहले ही जानता था के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को सल्तनत से कोई मक़सद नहीं, फिर उस ने एक माफ़ी नामा सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में भेजा और कहा के में आप रहमतुल्लाह अलैह का अदना गुलाम हूँ अगर मुझ से कोई गलती हुई है तो उस को माफ़ कर दीजिए और मुझे इजाज़त दें के में क़दम बोसी की सआदत हासिल करूँ,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के तुम्हे आने की कोई हाजत नहीं है में दुआ करता रहूंगा अगर बादशाह ने ख़ानक़ाह में आने की कोशिश की तो इस ख़ानक़ाह के दो रस्ते हैं बादशाह एक दरवाज़े आएंगे तो में दूसरे से बाहर चला जाऊँगा,
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सुल्तान क़ुतबुद्दीन खिलजी की दुश्मनी :- “खैरुल मजालिस” मन्क़ूल है के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से हसद करने वाले बहुत से उलमा ज़ाहिर हुए उस वक़्त सुल्तान क़ुतबुद्दीन के दरबार में मौजूद थे जो के हर वक़्त सुल्तान के आगे आगे आप रहमतुल्लाह अलैह की बुराई करते थे, एक बार ऐसा हुआ के इन हासिदीन ने सुल्तान क़ुतबुद्दीन से कहा के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह आप को बुरा भला कहते हैं हालांके आप उनकी खिदमत में नज़रो नियाज़ भी भेजते हैं और उनकी ख़ानक़ाह में जो रौनक है वो आप ही की बदौलत है इस तरह की कई और बातें करके इन लोगों ने सुल्तान को आप रहमतुल्लाह अलैह के खिलाफ भड़का दिया और उस न आक़िबत अंदेश सुल्तान ने गुरूर में आकर हुक्म दिया के अब हमारे लश्कर और दरबार मे से कोई भी शख्स उन की खिदमत में हाज़िर नहीं होगा और न ही किसी किस्म की कोई नज़रो नियाज़ पेश करेगा, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को जब इस की खबर हुई तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाजा इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह को बुलाकर हुक्म दिया के दस्तर ख्वान को और बढ़ा कर दो और एक तावीज़ भी लिख कर दिया के इसको एक ताक में रख दो जब भी किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो तो बिस्मिल्लाह पढ़ कर इस ताक़ में हाथ डालकर निकाल लेना,
“चिश्तिया बहिश्तीया” में मन्क़ूल है के सुल्तान क़ुतबुद्दीन को जब इस बात की खबर हुई तो उसकी दुश्मनी और बढ़ गई और उस ने शहर भर में ऐलान कर दिया के कोई भी दुकानदार या शख्स सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के किसी खादिम या मुरीद को कोई भी चीज़ नहीं बेचेगा, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को मालूम हुआ तो आप ने खादिमो और मुरीदों को हुक्म दिया के तुम्हे जब भी किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो तुम शहर निज़ाम आबाद चले जाओ मुरीदों ने अर्ज़ किया हुज़ूर हमने इस शहर का नाम कहीं नहीं देखा आप ने फ़रमाया के तुम दरियाए जमना की तफ चले जाओ तुम्हे शहर निज़ाम आबाद मिलेगा,
चुनाचे पिरो मुर्शिद के हुक्म के मुताबिक़ दरियाए जमना के पार चले गए तो उन्होंने एक शहर को देखा शहर की तमाम दुकाने सजी हुई थीं और गल्ला वग़ैरा और दूसरी चीज़ों के अंबार ढेर लगे लगे हुए थे खादिमो ने इन दुकानों से चीज़ें खरीदीं और जब उनकी अदाएगी करने लगे तो दुकानदारों ने पैसे लेने से इंकार कर दिया और कहने लगे के ये बाजार अल्लाह पाक का है और यहाँ जो कुछ भी है वो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का है पस तुम्हे जो कुछ भी चाहिए तुम लेलो, खुद्दाम अब ज़्यादातर ज़रुरत की चीज़ें इसी शहर से लेने लगे,
सुल्तान क़ुतबुद्दीन को जब तमाम हालात मालूम हुए तो बजाए इस के वो हाज़िर होकर माज़िरत करता उसकी दुश्मनी और बढ़ गई,
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शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के उर्स की बरकत :- “तज़किरतुल अतक़िया” में मन्क़ूल है के सुल्तान क़ुतबुद्दीन की दुश्मनी इस क़द्र बढ़ गई के उसने ऐलान कर दिया के हज़रत शैख़ बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह के उर्स के मौके पर शहर में कोई दुकानदार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के खादिमो को कोई चीज़ नहीं देना,
जब उर्स के दिन शुरू हुए तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने हस्बे दस्तूर सब लोगों को बुलाया जब मजलिस सज गई तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के खादिम परेशान हो गए के हज़ारो लोग इकठ्ठे हो गए मगर खाने का कुछ इंतिज़ाम नहीं है, चुनाचे जब मजलिस ख़त्म हुई दस्तर ख्वान बिछाने का वक़्त आया तो खादिमो ने देखा के दरियाए जमना में कुछ कश्तियाँ सामान से लधि हुई आ रही हैं जब वो कश्तियाँ किनारे आ गईं तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने हुक्म दिया के इन कश्तियों से सामान उतार लो, जब सामान उतारा गया तो उसमे खाने पीने की चीज़ें मौजूद थीं खादिमो ने वो चीज़ें दस्तर ख्वान पर सजानी शुरू करदीं हाज़रीने मजलिस ने पेट भकर खाना खाया,
“चिश्तिया बहिश्तीया” में मन्क़ूल है के एक बार सुल्तान क़ुतबुद्दीन का गुज़र खानकाहे निज़ामिया से हुआ, उस वक़्त लोगों का हुजूम जमा था उसने अपने वज़ीरों से मालूम किया के ये कौन सी जगह है? वज़ीरों ने कहा के ये सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह है सुल्तान क़ुतबुद्दीन ने अपने वज़ीरों से कहा के इन से कहो के मेरी हुकूमत से चले जाएं या फिर अपनी कोई करामत मुझे दिखाएं,
उन दिनों सुल्तान क़ुतबुद्दीन के पेट में तकलीफ रहती थी इस बात के कहने के साथ ही उसके पेट में एक बार फिर दर्द उठा और वो दर्द इतना सख्त था के डाक्टरों के इलाज के बावजूद फाइदा नहीं हुआ जब तकलीफ बढ़ी और कोई दवा भी मुआस्सिर नहीं हुई तो सुल्तान क़ुतबुद्दीन की माँ खानकाहे निज़ामिया में आयी और सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की क़दम बोसी के बाद अपने बेटे की सेहत याबी के लिए दुआ की दरख्वास्त की के उसे सेहत नसीब हो,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के अगर बादशाह खास मुहर से दिल्ली की सल्तनत इस फ़क़ीर के नाम लिख दे तो दुआ कर देगें, चुनाचे सुल्तान क़ुतबुद्दीन की माँ ने सल्तनत के कागज़ात तय्यार करवा कर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में रवाना कर दिया, आप रहमतुल्लाह अलैह ने वो कागज़ात मुलाहिज़ा फरमाए और कहा के फ़क़ीर के नज़दीक दिल्ली की सल्तनत पेशाब की तरह है फिर आप रहमतुल्लाह अलैह ने दुआ फ़रमाई तो सुल्तान क़ुतबुद्दीन तंदुरुस्त हो गया लेकिन इस के बावजूद वो आप का मोतक़िद होता उस की दुश्मनी दिन बदिन बढ़ती गई,
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सुल्तान क़ुतबुद्दीन खिलजी की हलाकत :- “सैरुल औलिया” में मन्क़ूल है के सुल्तान क़ुतबुद्दीन खिलजी ने गयास पुर में एक नई मस्जिद तामीर कराइ और सब उलमा व फुज़्ला को इस मस्जिद में नमाज़े जुमा पढ़ने का हुक्म दिया सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह और आप के मोतक़िदीन के अलावा बाक़ी सब लोग इस मस्जिद में नमाज़े जुमा पढ़ने गए, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के जामा मस्जिद किलोकड़ी क़दीम मस्जिद है और हमारी ख़ानक़ाह से नज़दीक है इस लिए वो मस्जिद नमाज़े जुमा के लिए ज़्यादार हक़दार है इस लिए हम किसी दूसरी मस्जिद में नहीं जा सकते,
हासिदीन ने सुल्तान क़ुतबुद्दीन को बहकाया के बा ज़ोरे बाज़ू सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को हाज़िर किया जाए सुल्तान क़ुतबुद्दीन ने फरमान जारी किया के अगर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह आइंदा हाज़िर नहीं हुए तो उन को बज़ोरे बाज़ू हाज़िर किया जाए, जब ये खबर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को मिली तो आप ने बजाए कुछ कहने के अपनी वालिदा माजिदा के मज़ार पर हाज़री दी और अर्ज़ किया अगर बादशाह अपनी इन हरकतों से बाज़ नहीं आया तो में आइंदा आप रहमतुल्लाहि तआला अलैहा की खिदमत में हाज़िर नहीं हूँगा, उसके बाद आप अपनी ख़ानक़ाह में वापस तशरीफ़ लाए इस वाक़िए के कुछ दिनों बाद सुल्तान क़ुतबुद्दीन को उस के महल में खुसरू खँ ने सर काट के महल से नीचे फेंक दिया और खुद तख़्त पर बैठ गया,
खुसरू खँ का अंजाम: क़ुतुब सैरुल में मन्क़ूल है के जब खुसरू खँ तख़्त पर बैठा तो उसने क़ुतबुद्दीन खिलजी की तमाम औलाद को क़त्ल कर दिया और क़ुतबुद्दीन की बीवी से शादी करली तख़्त पर बैठने के बाद उस ने उलमा व मशाइख को तोहफे भेजे जिनको बहुत उलमा व मशाइख ने क़बूल कर लिया, सय्यद अलाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह और शैख़ वहीदुद्दीन और शैख़ उस्मान सय्याह रहमतुल्लाह अलैह ने इन तोहफों को लेने से इंकार कर दिया, खुसरू खँ ने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में भी पांच लाख रूपये नज़राना भेजा जिनको आप रहमतुल्लाह अलैह अलैह ने उसी वक़्त फ़क़ीरों और मसाकीन में बाँट दिए,
चार महीने के बाद गाज़ी मालिक ने शहर दीबालपुर से खुसरू खँ पर हमला कर के उसको क़त्ल कर दिया और खुद तख़्त पर बैठ गया, और “गयासुद्दीन तुगलक” लक़ब इख़्तियार किया और गयासुद्दीन तुगलक ने उन तमाम उलमा और मशाइख से वो तोहफे वापस ले लिए जो खुसरू खँ ने उनको दिए थे, गयासुद्दीन तुगलक ने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से भी पांच लाख रूपये मांगें आप ने फ़रमाया की वो रक़म बैतुल माल की थी और मेने वो मुस्तहक़ीन यानि गरीब फ़क़ीर मिस्कीन को देदी,
“हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” (अभी दिल्ली दूर है) :- सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के साथियों ने उसको उभारा के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की मौजूदगी उसकी सल्तनत के लिए खतरा है सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक उन दिनों बंगाल की मुहिम पर था उसने बंगाल से एक खत लिखा जिस में सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के वो दिल्ली से निकल जाएं ख्वाजा अहमद अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह जो के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के मीर ईमारत (चौधरी इंजिनियर) थे और सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे उन्होंने वो खत आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया आप ने ख्वाजा अहमद अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के इस खत की पेशानी पर लिख दो
“हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” (अभी दिल्ली दूर है) और आप ने फ़रमाया इस खत के क़ासिद के हाथ वापस बंगाल भेज दो उन दिनों सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की बाओली तामीर (एक बड़ा हौज़ जिससे लोग वुज़ू ग़ुस्ल करते हैं) हो रही थी, सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल से एक खत रवाना किया जिस्म में हुक्म दिया था के कोई भी दुकानदार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों और खादिमो को तेल न बेचे ताके वो रात के अँधेरे में काम जारी न कर सकें में बंगाल वापस आ रहा हूँ और में हुक्म देता हूँ के
वो मेरे आने से पहले दिल्ली छोड़ दें सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के इस खत के बारे में बताया गया तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने एक बार फिर फ़रमाया “हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” (अभी दिल्ली दूर है)
जब दुकानदार ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के हुक्म की वजह से तेल बेचना बंद कर दिया और बाओली पर काम भी रुक गया तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने अपने मुरीदों के हुक्म दिया के वो बाओली की तामीर में दिन रात हिस्सा लें और बाओली बनाने के दौरान जो पानी निकाला था उसको कूंडों में भर कर चराग रौशन करें चुनाचे जब मुरीदों ने पिरो मुर्शिद के हुक्म पर उस पानी को आग लगाई तो वो पानी रौशन हो गया सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने ये वाज़ेह कर दिया के वो लोगों के मुहताज नहीं हैं,
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सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की मौत :- जिस दिन सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल से रवाना हुआ तो वली अहिद मुहम्मद शाह तुगलक ने दिल्ली शहर से बाहर एक नया शहर तुगलक आबाद के नाम से आबाद करने का हुक्म दिया और एक नया क़िला बनाने का हुक्म दिया ताके सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक का दिल्ली शहर में दाखिल होने से पहले इस्तकबाल किया जा सके और इस दौरान वो शहर से बाहर इस शहर में क़याम करे सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के क़याम के लिए शहर तुग़लका आबाद में एक महल तीन दिन में तय्यार किया गया,
जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक इस महल में पंहुचा तो उसके लिए एक शानदार दावत का इन्तिज़ा किया गया इस दावत में शहर भर के सभी अमीर भी शामिल थे, वली अहिद ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की खिदमत में हाथी नज़राने में पेश किए, हाथी जैसे है महल में दाखिल हुए सारा महल ज़मीन बोस हो गया और सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक अपने दुसरे साथियों के साथ इस महल के मलबे के नीचे हालाक हो गया, इसी तरह सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का ये फरमान भी पूरा हो गया के “हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” (अभी दिल्ली दूर है)
सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक की हुकूमत :- सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की मौत के बाद, सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक तख़्त पर बैठा, सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक शुरू में नेक और रहम दिल इंसान था इस ने सब से पहले सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का मज़ारे पाक बनवाया, इस के बाद सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह के मुरीदों और खुलफ़ा के खिलाफ हो गया और उसने तमाम खुलफ़ा और मुरीदों और खास तौर से हज़रत ख्वाजा मेहमूद रौशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को सख्सत तकलीफें पहुचायीं, जिस साल सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक तख़्त पर बैठा उसी साल सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह का विसाल हुआ सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक 27, साल की हुकूमत करने के बाद ठठ्ठा के मक़ाम पर दरियाए सिंध के करीब बीमार होकर मर गया, सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक के मरने के बाद उसका भतीजा फ़िरोज़ शाह तुगलक तख़्त पर बैठा,
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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने शादी क्यों नहीं की? :- सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने सारी ज़िन्दगी शादी नहीं की आप के मुजर्रद रहने के कई वाक़िआत क़ुतुब सैर में मिलते हैं, उनमे से एक ये भी है,
क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक बार मेने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर था, तो मेने आप से शादी न करने की वजह मालूम की तो आप ने फ़रमाया के मेरे पिरो मुर्शिद ने और उनके पिरो मुर्शिद ने भी निकाह किया और में सुन्नते रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंकार नहीं करता लेकिन में इस फरमाने इलाही से भी डरता हूँ के तुम्हारी दौलत और तुम्हारी औलाद तुम्हारे लिए फितना होती है जब में इस फरमाने खुदा के पढता हूँ तो मुझे खौफ होता है के कहीं सुन्नत की पैरवी में निकाह तो करलूं लेकिन खुदा के फ़राइज़ से गाफिल न हो जाऊं, और औलाद के फ़ितने में शामिल होजाऊं मेरे पिरो मुर्शिद और उनके पिरो का ये कमाल था के वो कई कई शादियां करने के बाद भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के अहकाम व फ़राइज़ से गाफिल नहीं हुए लेकिन में अपने आप को इस क़ाबि नहीं समझता,
मज़ामीर समा के ताअल्लुक़ आप की राय :- एक मर्तबा एक शख्स आया और उसने अर्ज़ की के कुछ दुरवेशों ने मज़ामीर यानि ढोल बाजा हरमोनियम के साथ समा सुनते हैं और रक़्स करते हैं तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के उनका ये काम दुरुस्त नहीं है एक शख्स ने कहा अगर हम ऐसे लोगों से वजह मालूम करते हैं तो वो कहते हैं के हम ऐसे मुस्तगरक़ (डूब जाना) हैं के हम को मज़ामीर यानि ढोल बाजा हरमोनियम की कुछ खबर ही नहीं हुई आप रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने फ़रमाया उनका ये कहना गलत है, और वो हर गुनाह की निस्बत में ऐसी बात कह सकते हैं के हमे इसकी खबर नहीं,
एक मर्तबा एक शख्स ने हाज़िर हो कर अर्ज़ की के फुँला महफ़िल में आप रहमतुल्लाह अलैह के अहबाब दोस्त वगैरा ने मज़ामीर यानि ढोल बजा हरमोनियम के साथ समा क़व्वाली सुना है, आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के मेने मना किया है के मज़ामीर यानि ढोल बाजा हरमोनियम के साथ मत सुनो अगर कोई तरीक़त से गिरता है तो उसका ठिकाना कहीं नहीं होता, इसी तरह की रिवायत “फवाईदुल फवाइद” शरीफ जो आप की किताब है उस में साफ साफ लिखा है के मज़ामीर यानि ढोल बजा हरमोनियम हराम है, आज कल कुछ लोग ये झूट फैलते हैं के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह क़व्वाली सुनते थे ये सरासर झूट है अगर आप सुनते थे तो आप ने ऐसा क्यों फ़रमाया इससे साबित हुआ के मज़ामीर यानि ढोल बजा हरमोनियम के साथ आप समा क़व्वाली नहीं सुनते थे क्यूंकि आज कल जो लोग क़व्वाली गाते हैं वो अक्सर बे नमाज़ी दाढ़ी मुंडे फ़ासिक़ फ़ाजिर होते हैं और क़व्वाली भी ऐसी होती है बाज़ वक़्त जिसमे नाजाइज़ हराम अशआर पढ़ते हैं और मर्द व औरत एक साथ गाते हैं जो बिलकुल हराम है फ़र्ज़ कर लीजिए अगर वो सुनते भी थे तो बुज़ुर्गों की क़व्वाली में और आज की क़व्वाली में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है क्यूंकि बुज़ुर्गों की महफ़िल मज़ामीर यानि ढोल बाजे हरमोनियम कुछ नहीं होता था उसमे सब बाशरा दाढ़ी वाले और नमाज़ी हुआ करते थे,
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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह पैदाइशी वली :- “सिराजुल हिदायत” में मन्क़ूल है के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह जिस वक़्त इस दुनिया में तशरीफ़ लाए तो उस वक़्त बदायूं शरीफ में आप के पड़ोस में एक नुजूमी रहता था, उसने जब आप का ज़ाइचा देखा तो बताया के ये लड़का निहायत ही आला मर्तबे पर बुलंद होगा किसी शख्स ने मालूम किया के क्या ये वक़्त का बादशाह होगा उस नुजूमी ने जवाब दिया के नहीं बल्के ये वली होगा और उसके दर पर हाज़री के लिए बादशाह हाज़री देंगें बड़े बड़े लोग आप के दर की हाज़री सआदत तसव्वुर करेंगे इस लड़के का शोमर नाबगाए रोज़गार औलिया अल्लाह में होगा चुनाचे जिस वक़्त आप रहमतुल्लाह अलैह गयास पुर में अपनी ख़ानक़ाह में जलवा अफ़रोज़ थे उस वक़्त बड़े बड़े लोगों की एक क़तार आप रहमतुल्लाह अलैह के दर पर हाज़री के लिए खड़ी रहती थी उस वक़्त के बादशाह आप रहमतुल्लाह अलैह के दर पर हाज़री की तमन्ना रखते थे,
फरमाने रब्बी :- “सैरुल औलिया” में मन्क़ूल है के एक बार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पाक पर इबादत में मसगूल थे इबादत के दौरान ही आप की आँख लग गई जब बेदार हुए तो बहुत खुश थे, मौलाना बेहराम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेने आप से जब ख़ुशी की वजह मालूम की तो आप ने फ़रमाया के इस ख़ुशी का सबब ये है के आज मुझे दिखाया गया के जो कोई भी एक बार मेरी ज़्यारत करेगा तो अल्लाह पाक उस को बख्श देगा,
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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत की वजह से निजात हो गई :- “जवामिउल किलम” में मन्क़ूल है के एक मर्तबा एक शख्स रोता हुआ सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में दाखिल हुआ आप ने उससे रोने की वजह मालूम की तो उस शख्स ने कहा के मेरा बाप निहायत फ़ासिक़ व फ़ाजिर शख्स था, अब वो इस दुनिया से इन्तिकाल कर गए है, मेरी इल्तिजा है के आप रहमतुल्लाह अलैह उन के हक़ में दुआए खैर फरमाएं सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने पूछा क्या तुम्हारे वालिद ने कभी मुझ से मुलाकात की है उस ने कहा के नहीं आप से उनकी कभी मुलाकात नहीं हुई, फिर आप ने मालूम किया के क्या कभी वो गयासपुर मेरी ख़ानक़ाह के नज़दीक से गुज़रे थे, उस शख्स ने कहा के एक बार उन्होंने मुझे बताया था के उनका गुज़र गयासपुर की किसी ख़ानक़ाह से हुआ था आप ने फ़रमाया के गयासपुर में सिर्फ मेरी है ख़ानक़ाह मौजूद है,
फिर आप ने फ़रमाया उनकी निजात के लिए इतना ही काफी है के वो मेरी ख़ानक़ाह के नज़दीक से गुज़र गए, अहले इखलास के लिए ये निहायत ही,
ख़ुशी का मक़ाम है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को ये मर्तबा अता फ़रमाया के एक फासिक शख्स जो के आप रहमतुल्लाह अलैह के नज़दीक से गुज़रा उस को बख्श दिया गया वो लोग निहायत ही खुश नसीब हैं जो आप रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पाक की ज़्यारत करते हैं,
मआख़िज़ व मराजे :- मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, अख़बारूल अखियार, बुज़ुर्गों के अक़ीदे, सैरुल आरफीन, राहतुल क़ुलूब, तारीखे औलिया, तज़किराए औलियाए हिन्द, खैरुल मजालिस, जवामिउल किलम, चिश्तिया बहिश्तीया, महबूबे इलाही, फवाइदुल फवाइद,
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