सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह का इल्मे ग़ैब के बारे मे आप का अक़ीदा क्या है?

दिल की बात जान ली :- हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के एक बार एक शख्स सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में खाना लेकर आया, खाना लाते वक़्त रास्ते में उस के दिल ख्याल आया के अगर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह अपने दस्ते मुबारक से मेरे मुँह में निवाला रखें तो ये मेरी कितनी खुश नसीबी हो होगी जब वो शख्स सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पंहुचा तो दस्तर ख्वान बढ़ाया जा चुका था यानि खाना खा चुके थे और उस वक़्त सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह पान खा रहे थे, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह थोड़ा पान अपने मुँह से निकाल कर उस के मुँह में रख दिया और आप ने कहा लो ये उस निवाले से बेहतर है,
आप ने वुज़ू के बारे में जान लिया: और तहरीर फरमाते हैं एक दिन दो मुरीद सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए, उन में से वुज़ू में एक ने एहतियात नहीं थी, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंचे तो सब से पहले जो बात आपने उन से की वो ये थी के वुज़ू में एहतियात करनी चाहिए यानि वुज़ू सही तरीके से किया करो के वुज़ू अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के राज़ो में से रक राज़ है,
ईमान की खराबी से निजात: “चिश्तिया बहिश्तीया” में मन्क़ूल है के एक मर्तबा मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह की खिदमत में आ रहे थे के रास्ते में उनकी मुलाकात एक शख्स से हुई जिसने जानमाज़ कन्धों पर डाल रखी थी और हाथ में असा और तस्बीह पकड़ रखी थी जब वो शख्स सामने आया तो सलाम करने के बाद कहने लगा के में मुसाफिर हों और दूर दराज़ सफर कर के आ रहा हूँ टेक मुझे जो इल्मी मुश्किलात दरपेश हैं वो में तुम से हल करवा सकूं,
उस के बाद उस शख्स ने आप से कुछ आलिमाना सवालात किए जिनका आप ने शाफ़ी जवाब दिया फिर जब वो शख्स सवालात से फारिग हुआ तो काजने लगा आप कहाँ जा रहे हैं? आप ने फ़रमाया के में आपने पिरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़री के लिए जा रहा हूँ उस शख्स ने कहा के तुम्हारे मुर्शिद के पास कुछ इल्म नहीं जो तुम्हारे पास है है में उनके पास गया हूँ वो मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं दे सके,
मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह उसकी बात सुनकर बोले के तुम ये क्या कहते हो? मेरे शैख़ सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह इल्मे लदुन्नी जानते हैं और वो हर उलूम से आशना हैं लेकिन वो शख्स ज़िद करता रहा के उनके पास कुछ इल्म नहीं मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने उसकी ज़िद देख कर लाहौल शरीफ पढ़ा जब उस शख्स ने ये सुना तो मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से कहने लगा तुम ये मत पढ़ो मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को यक़ीन हो गया के ये शख्स शैतान है जो इस कलमे से इंकार कर रहा है चुनाचे उन्होंने फिर एक बार लाहौल शरीफ पढ़ा तो वो शख्स गायब हो गया,
मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जब सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने उनके बयां करने से पहले ही फ़रमाया के मौलाना तुमने उस शख्स को खूब पहचाना वरना उसने तुम्हारा ईमान ख़राब कर दिया था,
खाना लाने वाले की दिली तमन्ना आरज़ू को आप ने जान लिया वुज़ू करने वाले की बे एहतियाती से आगाह बा ख़बर हो गए उसने वुज़ू सही तरीके से नहीं बनाया था आपने जान लिया, और मौलाना वजीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को रास्ते में पेश आने वाले पूरे वाक़िए का जान लेना और उसकी खबर देना ये सब ग़ैब की बातें हैं जिनको सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने साफ़ साफ़ ज़ाहिर फरमा कर वाज़ेह कर दिया के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के फ़ज़्लो करम से हम ग़ैब की बातें जान लेते हैं हमारा ये अक़ीदा है,
घोड़ी मिल गई: और हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द किरमानी लिखते हैं के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के गयस पुर में रहने से पहले में किलोखड़ी की मस्जिद में जुमा पढ़ने के लिए जाया करता था, गरम हवाएं चलती थीं और मस्जिद का फ़ासिला तीन किलो मीटर दूर था में रोज़े से था मुझे चक्कर आने लगे और में एक दुकान पर बैठ गया मेरे दिल में ख्याल गुज़रा के अगर मेरे पास सवारी होती तो में उसपर सवार होकर जाता, मेने इस ख्याल से तौबा की इस वाकिए को तीन दिन गुज़र चुके थे, के खलिया मालिक यार परां मेरे लिए एक घोड़ी लेकर आया और मुझ से कहा इसे क़बूल कीजिए मेने उससे कहा के तुम खुद एक दुर्वेश हो में तुम से ये कैसे क़बूल कर सकता हूँ, उन्होंने कहा तीन रातों से में बराबर ख्वाब देख रहा हूँ के मेरे शैख़ मुझ से बराबर फ़रमा रहे हैं के फुलां शख्स के पास घोड़ी लेकर जाओ मेने कहा बेशक तुहरे शैख़ ने तुम से कहा है लेकिन अगर मेरे शैख़ भी मुझ से कहेंगें तो में ये घोड़ी लेलूँगा, इसी रत को मेने ख्वाब में देखा के “शैखुल आलम हज़रत सय्यदना शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गन्जे श्कर रहमतुल्लाह अलैह” मुझ से फरमा रहे हैं के खलिया मालिक यार परां की दिल जोई के लिए वो घोड़ी क़बूल करलो, दुसरे दिन घोड़ी लेकर आया तो मेने उसे क़बूल कर लिया,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने इस वाकिए को बयां करके अपना ये अक़ीदा साबित कर दिया के खलिया मालिक यार परां के शैख़ और हमारे शैख़ हज़रत फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह, भी ग़ैब की बातें जान लेते हैं के ये दोनों बुज़रुग हमारी ज़रुरत और गुफ्तुगू से बाख़बर हो गए और ख्वाब में घोड़ी के लेने देने का हुक्म फ़रमा गए,
एक हिन्दू को ईमान नसीब होगा: हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के नागोर में एक हिन्दू था, जब भी उस पर हज़रत शैख़ हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह की नज़र पढ़ती तो आप फरमाते के ये वली खुदा परस्त होगा और मरने के वक़्त बा ईमान दुनिया से इसका ख़ातिमा बिल्खेर होगा, चुनाचे ऐसा ही हुआ जैसा के आप फरमाते थे,
और आगे तहरीर फरमाते हैं के शैख़ जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह जो के हज़रत शैख़ फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद व खलीफा थे, और आपकी मुरीदी की बदौलत अकाबिर शीयूख के मर्तबे पर पहुंचे, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के जिस ज़माने में हज़रत शैख़ फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह, ने मुझे खिलाफत अता फ़रमाई तो इरशाद फ़रमाया के ये खिलाफत नामा हांसी में मौलाना जमालुद्दीन हांसवी को देखा देना, में खिलाफत से पहले जब शैख़ जमालुद्दीन की खिदमत में जाता था तो वो मेरी ताज़ीम फरमाते और खड़े होकर मुलाकात करते जब में खिउलफत के बाद एक रोज़ उन से मिलने गया तो वो बैठे रहे, मेरे दिल में ये ख्याल आया के ये बात इनकी ख़िलाफ़े आदत है, अभी ये ख्याल दिल में गुज़रा ही था, के उन्होंने बगैर मेरे कुछ कहे फ़ौरन फ़रमाया, मौलाना निज़ामुद्दीन तुम्हारे दिल में ये ख्याल पैदा हुआ के में टूयमहरे लिए खड़ा नहीं हुआ लेकिन इसकी वजह ही कुछ और है वो ये है के जब मेरे और तुम्हारे दरमियान (शैख़ की खिलाफत) अता फरमाने के बाद मुहब्बत का रिश्ता कईं हो चुका है, तो में और तुम एक हो गए अब मेरा अपने लिए खड़ा होना कैसे जाइज़ हो सकता है,
इन तमाम वाक़िआत के पढ़ने के बाद से, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का अक़ीदा साबित हुआ के हज़रत शैख़ हमीदुद्दीन नागोरी और हज़रत शैख़ जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिमा भी ग़ैब जानने वाले हैं के हिन्दू खुदा परस्त वली हो जाएगा, हज़रत शैख़ नागोरी रहमतुल्लाह अलैह ने पहले ही बता दिया, जब आप जानते थे तब ही तो बताया, और हज़रत जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह दिल के ख्याल से आगाह हो गए, और ये वाज़ेह तौर पर साबित कर दिया साफ़ साफ़ ज़ाहिर फरमा कर वाज़ेह कर दिया के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के फ़ज़्लो करम से हम ग़ैब की बातें जान लेते हैं हमारा ये अक़ीदा है,

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सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह का ताज़ीमे नबी के बारे में क्या अक़ीदा है?

नबी की ताज़ीम आप भी करते थे :- मुजद्दिदे वक़्त हज़रत मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामि रहमतुल्लाह अलैह (तारीखे वफ़ात 1017, हिजरी) आप फरमाते हैं एक बार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह अपने दोस्तों अहबाब के साथ बैठे हुए थे के नगाहा यानि अचानक खड़े हो गए फिर बैठ गए, हाज़रीने मजलिस ने आप से पूछा, के हुज़ूर आप अभी किस वजह से खड़े हुए थे? तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के हमारे पीर दस्तगीर की ख़ानक़ाह में एक कुत्ता रहता था, आज उसी सूरत का कुत्ता मुझे नज़र आया के इस गली से गुज़र रहा है में उस की ताज़ीम की खातिर खड़ा हो गया,
जिस बुज़रुग के नज़दीक ऐसे कुत्ते की ताज़ीम के लिए खड़ा होना जाइज़ है जो पिरो मुर्शिद की बारगाह का नहीं बल्के वो कुत्ता मुर्शिद की ख़ानक़ाह के कुत्ते जैसा था, तो इससे मालूम हुआ के आप अपने मुर्शिद की ताज़ीम कितनी करते होंगे और रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ताज़ीम के बारे में आप का अक़ीदा बिलकुल वाज़ेह है,

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क़बरों की ज़िंदगी के बारे में आप का अक़ीदा :- सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में एक बार शैखुल इस्लाम हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे मुबारक की ज़्यारत के लिए गए, मेरे दिल में ये ख्याल आया के इतने बहुत सारे लोग इन बुज़ुर्गों की ज़्यारत के लिए आते हैं, इन के आने की इन बुज़ुर्गों को कुछ खबर होती है या नहीं? मेरे दिल में ये ख्याल गुज़रा ही था और में रोज़ए मुबारिका के क़रीब मुराक़िबे में मशगूल था के मेने आप की क़ब्र से ये शेर सुना,
उसका तर्जुमा :- मुझ को अपनी तरह ज़िंदा समझो में जान के साथ आता हूँ अगर तुम जिस्म के साथ आते हो,
और हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द किरमानी मुसन्निफ़ सैरुल औलिया लिखते हैं के जिस ज़माने में सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह गयासपुर में रहते थे मौलाना फसीहुद्दीन और क़ाज़ी मुहीयुद्दीन काशानी आप की खिदमत में गयासपुर में हाज़िर हुए, क़दम बोसी की सआदत हासिल इन दोनों ने बैअत होने के लिए अर्ज़ किया, आप ने फ़ौरन ही क़ाज़ी मुहीयुद्दीन काशानी को मुरीद कर लिया और मौलाना फसीहुद्दीन से फ़रमाया के में तुम्हारे मुतअल्लिक़ अपने पिरो मुर्शिद हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह से पूछूंगा ये सुनकर मौलाना फसीहुद्दीन को बड़ी हैरत हुई और सोचने लगे के हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह तो फ़वात पा चुके हैं, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह उन से कैसे पूछेंगे ये बात उनके दिल में गुज़री लेकिन उन्होंने ज़बान से कुछ नहीं कहा और क़दम बोसी के बाद लोट आए, जब वो दूसरी बार सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से मिले तो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने उन से फ़रमाया के मेने तुम्हारे बारे में अपने पिरो मुर्शिद हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह अर्ज़ किया था, आप ने क़बूल फ़रमा लिया है अब तुम बैअत हो सकते हो, चुनाचे सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से बैअत हो गए, जब वो बैअत कर चुके तो मौलाना फसीहुद्दीन ने अर्ज़ किया के मखदूम हज़रत बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह तो वफ़ात पा चुके हैं, आप ने किस्से पूछा है? तो आप ने फ़रमाया जब मुझे किसी बात में तरद्दुद होता है में अपने पिरो मुर्शिद हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह से पूछता हूँ और आप के हुक्म के मुताबिक काम करता हूँ,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के इस फरमान से के मेने रोज़े मुबारक यानि क़ब्र से सुना और इस फरमान से के जब मुझे किसी बात में तरद्दुद होता है तो में अपने पिरो मुर्शिद हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह से ही पूछता हूँ, इससे साफ़ ज़ाहिर है के आप का भी ये अक़ीदा है के अल्लाह के वली विशाल के बाद अपनी क़बरों में ज़िंदह रहते हैं, और पहले वाक़िए से आप का ये अक़ीदा भी साबित हुआ के बुज़ुर्गाने दीन क़बरों में रहते हुए दुनिया वालों के दिलों के हालात से भी वाक़िफ़ हो जाते हैं, और ये भी साबित हुआ के मज़ाराते औलिया पर जाना भी जाइज़ है अगर नाजाइज़ होता तो आप हर गिज़ नहीं जाते,

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क़बरों से फाइदा हासिल करना और आपका अक़ीदा :- आप ने फ़रमाया के मौलाना केथली ने मुझ से बयान किया के दिल्ली में एक साल कहित पड़ा, में किरबासी के बाजार से गुज़र रहा था और भूका था, मेने खाना खरीदा और खुद से कहा के इस खाने को तनहा नहीं खाना चाहिए, किसी को बुलाकर खाने में उस को भी शरीक करूँ, एक कमली वाले दुर्वेश को देखा जो गुदड़ी पहले हुए मेरे सामने से गुज़र रहा था, मेने उससे कहा के ए मेरे ख्वाजा में दुर्वेश हूँ और तुम भी दुर्वेश हो और में गरीब हूँ तुम भी गरीब दिखाई देते हो कुछ खाना मौजूद है आओ ताके मिलकर खाएं वो दुर्वेश राज़ी हुए हम दुकान पर गए और खाना खाया,
खाने के दौरान मेने दुर्वेश से कहा ए ख्वाजा मुझ पर बीस रूपये का क़र्ज़ हो गया है, मेरा वो क़र्ज़ अदा होना चाहिए इस दुर्वेश ने कहा तुम इत्मीनान से खाना खाओ में बीस रुपये तुमको देता हूँ, मौलाना केतली ने कहा मेरे दिल में ख्याल आया के इस फटे हाल शख्स के पास बीस रुपये कहाँ होंगे, जो मुझ को देगा, जब खाना खा चुके वो उठे और मुझे आपने साथ लेकर चले, वो मस्जिद की तरफ गए मस्जिद में एक क़ब्र थी उसके सिरहाने खड़े होकर उन्होंने कुछ माँगा, और एक छोटी लकड़ी उन के हाथ में थी, हलके से दोबारा क़ब्र पर मारा और कहा इस दुर्वेश को बीस रुपये की ज़रूरत है इस को दो ये कहा और मेरी तफ मुँह करके मुझ से कहा मौलाना वापस जाओ आप को बीस रुपये मिल जाएंगे,
मौलाना केथली ने कहा जब मेने ये बात सुनी इस दुर्वेश का हाथ चूमा और उनसे जुदा होकर शहर की तरफ चल पड़ा, में इस वक़्त हैरत में था के वो बीस रुपये मुझे कहाँ से मिल जाएगें, मेरे पास एक खत था जो किसी के घर पर देना था इस दिन वो खत लेकर दरवाज़ा कमाल पंहुचा एक तुर्क आपने घर के छज्जे पर बैठा था, उसने मुझको देखा और आवाज़ दी और आपने गुलामो को दौड़ाया वो मुझे पूरी कोशिश से ऊपर लेगया उस तुर्क ने मुझे बहुत खुश किया, मेने उस को काफी कोशिश की पहचानने की मगर नहीं पहचान सका, वो तुर्क यही कहता किया तुम वो अक़लमंद नहीं हो जिसने फुला जगह मेरे साथ बहुत नेकी की थी, खुद को क्यों छुपाते हो, इस किस्म की बहुत से बातें हुईं इस के बाद बीस रुपये लाया और बड़ी माज़रत के साथ मुझ को दे दीये,
इस वाक़िए से सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने बिला तरदीद बयान फरमा कर अपना ये अक़ीदा साबित कर दिया के जिस ज़ाहिरी ज़िन्दगी में औलिया अल्लाह से किसी चीज़ को देने के लिए अर्ज़ करना जाइज़ है ऐसे ही विसाल के बाद भी उनकी क़ब्र के पास हाज़िर होकर किसी चीज़ को देने के लिए कहना जाइज़ है इस लिए के हकीकत में देने वाला अल्लाह ही है औलिया अल्लाह की तरफ निस्बत मिजाज़न है जैसे हकीकत में बीमार को अच्छा करने वाला अल्लाह पाक है लेकिन मरीज़ कहता है डाक्टर साहब हमको अच्छा कर दीजिए,

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दिल के हालात जान लिए :- “फवाइदुल फवाइद” में मन्क़ूल है के एक मर्तबा मालिक मुहम्मद यार अपने तीन दोस्तों के साथ रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए, मालिक मुहम्मद यार के दिल में ख्याल आया के आज रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ख़रबूज़ा अता फ़रमादें तो मेरी खुश नसीबी होगी, जब मालिक मुहम्मद यार अपने दोस्तों के साथ ख़ानक़ाह में दाखिल हुए तो रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया बैठ जाओ,
और ख्वाजा इकबाल रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के वो ख़रबूज़ा फूलां जगह रखा है वो ले आओ और मालिक मुहम्मद यार को दे दो और फुला ताक में मिसरी और खजूरें रखीं हैं वो इन तीनो दोस्तों को दे दो मालिक मुहम्मद यार ने जब रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का फरमान सुना तो क़दम बोसी की के हुज़ूर आप तो अहवाले दिल से आगाह हैं हमने जो कुछ दिल में चाहा वो पालिया,
इस वाकिए से रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने अपना अक़ीदा साबित कर दिया के में ग़ैब जानता हूँ, आप जानते हैं तभी तो दिल की बात जानली,

  • रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के खुलफाए किराम की एक तवील (लम्बी) फेहरिस्त है यहाँ पर हम आप रहमतुल्लाह अलैह के चंद नामवर खुलफ़ा ज़िक्र कर रहे हैं :-
  • हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन मेहमूद रौशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार चिराग दिल्ली में है,
  • हज़रत शैख़ क़ुतबुद्दीन मुनव्वर रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार हांसी में है,
  • हज़रत मौलाना बुरहानुद्दीन गरीब रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार महराष्ट्र के सूबा औरंगाबाद ज़िले के क़स्बा दौलत आबाद में है,
  • हज़रत ख़्वाजा सय्यद हुसैन किरमानी रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार महराष्ट्र के सूबा औरंगाबाद ज़िले के क़स्बा दौलत आबाद में है,
  • हज़रत ख़्वाजा सय्यद रफीउद्दीन हारुन रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार चिराग दिल्ली में है,
  • हज़रत क़ाज़ी सय्यद मुहीयुद्दीन काशनी रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार चिराग दिल्ली में है,
  • हज़रत अमीर हसन संजरी रहमतुल्लाह अलैह, आप का मज़ार महराष्ट्र के सूबा औरंगाबाद ज़िले के क़स्बा दौलत आबाद में है,
  • हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह, रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार से पहले ही है यानि आप के पैरो की जानिब निज़ामुद्दीन बस्ती दिल्ली में है,
  • आप के दूसरे खुल्फ़ए किराम:
  • हज़रत मौलाना जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना जलालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना क़ाज़ी शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन बरनी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख़्वाजा शमशुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना अलाउद्दीन इंदरपति रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना हुज्जातुतदीन मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख़्वाजा अहमद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना मुहम्मद युसूफ बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना हाफिज सिराजुद्दीन बदायूंनी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना वजीहुद्दीन पाइली रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना फखरुद्दीन राज़ी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना अलाउद्दीन नीली रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मौलाना हस्सामुद्दीन मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह,
  • आप के खिदमत गार:
  • सैरुल औलिया में रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के खादिमो में लोगों के नाम मिलते हैं उनके नाम ये हैं,
  • हज़रत ख़्वाजा मुबश्शिर रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख़्वाजा सय्यद नूरुद्दीन मुबारक किरमानी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख़्वाजा सय्यद हुसैन किरमानी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख़्वाजा अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख़्वाजा मुहम्मद इक़बाल रहमतुल्लाह अलैह,

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SARKAAR MEHBOOBE ILAAHI NIZAMUDDEEN AULIYA RAHMATULLAH ALAIH KA MAZAR DELHI ME NIZAMUDDEEN BASTI ME HAI AAP KA MAZAR SHARIF NIZAMUDDEEN STATION KE PAAS ME HAI

सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने शादी क्यों नहीं की? :- सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने सारी ज़िन्दगी शादी नहीं की आप के मुजर्रद रहने के कई वाक़िआत क़ुतुब सैर में मिलते हैं, उनमे से एक ये भी है,
क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक बार मेने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर था, तो मेने आप से शादी न करने की वजह मालूम की तो आप ने फ़रमाया के मेरे पिरो मुर्शिद ने और उनके पिरो मुर्शिद ने भी निकाह किया और में सुन्नते रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंकार नहीं करता लेकिन में इस फरमाने इलाही से भी डरता हूँ के तुम्हारी दौलत और तुम्हारी औलाद तुम्हारे लिए फितना होती है जब में इस फरमाने खुदा के पढता हूँ तो मुझे खौफ होता है के कहीं सुन्नत की पैरवी में निकाह तो करलूं लेकिन खुदा के फ़राइज़ से गाफिल न हो जाऊं, और औलाद के फ़ितने में शामिल होजाऊं मेरे पिरो मुर्शिद और उनके पिरो का ये कमाल था के वो कई कई शादियां करने के बाद भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के अहकाम व फ़राइज़ से गाफिल नहीं हुए लेकिन में अपने आप को इस क़ाबि नहीं समझता,

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आप का विसाल :- सैरुल औलिया में मन्क़ूल है के रकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का विसाल अठ्ठाईस रबीउल आखिर 28, सात सौ पच्चीस 725, हिजरी को इस दुनिया से तशरीफ़ लेगए, आप का मज़ार हुमायूँ के मक़बरे के क़रीब ही में निज़ामुद्दीन बस्ती में है, और निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से एक या दो किलो मीटर दूर है, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |

मआख़िज़ व मराजे :- मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, अख़बारूल अखियार, बुज़ुर्गों के अक़ीदे, सैरुल आरफीन, राहतुल क़ुलूब, तारीखे औलिया, तज़किराए औलियाए हिन्द, खैरुल मजालिस, जवामिउल किलम, चिश्तिया बहिश्तीया, महबूबे इलाही, फवाइदुल फवाइद,

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