सायाए जुमला मशाइख या खुदा हम पर रहे
रहिम फरमा आले रहमा मुस्तफा के वास्ते
आप की विलादत बा सआदत :- आप की विलादत बा सआदत 22, ज़िल्हिज्जा 1310, हिजरी मुताबिक़ 18, जुलाई 1893, ईस्वी बरोज़ पीर बरैली शरीफ में हुई |
आप का इसमें गिरामी :- जिस वक़्त आप की पैदाइश हुई उस वक़्त आप के वालिद माजिद सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह मारहरा शरीफ में जलवा अफ़रोज़ थे वहीं रात में ख्वाब देखा के लड़के की पैदाइश हुई है | ख्वाब ही में “आले रहमान” नाम रखा | हज़रत मखदूम शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने “अबुल बरकात मुहीयुद्दीन जिलानी” नाम तजवीज़ फ़रमाया | बाद में “मुस्तफा रज़ा” खान उर्फ़ क़रार फ़रमाया और खानदान की रस्म के मताबिक़ “मुहम्मद” के नाम पर अक़ीक़ा हुआ |
आप के पीरो मुर्शिद की बशारत :- हज़रत मखदूम शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया, मौलाना जब में बरेली आऊँगा तो इस इस बच्चे को ज़रूर देखूंगा वो बहुत ही मुबारक है चुनाचे जब आप बरेली शरीफ रौनक अफ़रोज़ हुए उस वक़्त सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुहम्मद मुस्तफा रज़ा खान नूरी रहमतुल्लाह अलैह की उमर शरीफ छह 6 महीने की थी ख्वाइश के मुताबिक़ बच्चे को देखा और इस नेमत के हुसूल पर इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह को मुबारक बाद दी और फ़रमाया ये बच्चा दीनो मिल्लत की बड़ी खिदमत करेगा |
और मख़लूक़े खुदा को इस की ज़ात से बहुत फैज़ पहुंचेगा ये बच्चा “वली” है इस की निगाहों से लाखों गुमराह इंसान दीने हक़ पर होंगें ये फैज़ का दरिया बहाएगा ये फरमाते हुए हज़रत नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी मुबारक उंगलियाँ बुलंद इक़बाल बच्चे के दहन (मुँह) मुबारक में डाल कर मुरीद किया और इसी वक़्त तमाम सलासिल की इजाज़त व खिलाफत भी अता फ़रमाई |
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आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के 41 इकतालीस वे इमाम व शैख़े तरीक़त व पीरे कामिल हैं :- आफ़ताबे इल्म व मारफत, माहिताबे रुश्दो हिदायत, वाक़िफ़े असरारे शरीअत दानाए रुमूज़ो हक़ीक़त ताजदारे अहले सुन्नत, जामे माक़ूलात व मन्क़ूलात, शमशुल आरफीन, नाइबे सय्यदुल मुर्सलीन, मुहद्दिसे अकमल, फकीहे अजल, मुक़्तदाए आलम, शहज़ादए मुजद्दिदे आज़म हुज़ूर सय्यदी व मुर्शीदी मुफ्तिए आज़म हिन्द मौलाना अल्हाज अश्शाह अबुल बरकात मुहीयुद्दीन जिलानी आले रहमान मुहम्मद मुस्तफा रज़ा खान नूरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह | “आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के 41 इकतालीस वे इमाम व शैख़े तरीक़त व पीरे कामिल हैं” |
हुज़ूर मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी अशफ़री आप के तअल्लुक़ से क्या फरमाते हैं? :- मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी अशफ़री रहमतुल्लाह अलैह ने मुंबई में फ़रमाया था आज कल दुनिया में जनका फतवा से बढ़ कर तक़वा है | एक शख्सियत मुजद्दिदे हाज़िरा के फ़रज़न्दे दिल बंद का प्यारा नाम “मुस्तफा रज़ा” है जो बेसाख्ता ज़बान पर आता है और ज़बान बेशुमार बरकतें लेती है | नूर चश्म आला हज़रत राहते दिल मुफ्ती आज़म बनाम मुस्तफा शाहे ज़मन और हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द के एक शरई फतवा पर मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी अशफ़री रहमतुल्लाह अलैह लिखतें हैं “ये एक ऐसे आलिम का क़ौल है जिनकी इताअत लाज़िम व ज़रूरी है
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हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुर रशीद साहिब फतेहपुरी :- हज़रत मौलाना मुफ़्ती गुलाम मुहम्मद खान साहब शैखुल हदीस जामिया अमजदिया नागपुर किसी से मुरीद नहीं हुए थे किसी भी सिलसिले में व बस्ता होने के लिए बेचैन थे आखिर कार एक दिन हिंदुस्तान के मशहूर आलिम हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुर रशीद साहिब (बानी जामिया अमजदिया नागपुर) से पूछा के हुज़ूर मुरीद होने के लिए बेचैन हूँ किसी से मुरीद होना चाहिए? तो हज़रत ने इरशाद फ़रमाया मौलाना अब कहाँ ऐसे लोग रह गए हैं जो शरीअत व तरीक़त में कामिल हों सिवाए “मुफ्तिए आज़म हिन्द” के |
हुज़ूर हाफिज़े मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह :- हुज़ूर हाफिज़े मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के अपने शहर में किसी को इज़्ज़त व मक़बूलियत नहीं मिलती लेकिन हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द को अपने दयार में जो इज़्ज़तो मक़बूलियत हासिल है इस की मिसाल कहीं नहीं मिलती ये उनकी करामत विलायत की खुली दलील है मज़ीद फरमाते हैं के हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द शहंशा हैं शहंशा यानि हज़रत के साथ शहंशा जैसा बर्ताव करना चाहिए |
हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह :- हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं इस दौर में इनकी (हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह) हस्ती फ़क़ीदुल मिसाल है खुसूसियत के साथ बाबे इफ्ता में बल्के रोज़ मर्रा की गुफ्तुगू में जिस क़द्र मुहतात और मौज़ू अलफ़ाज़ और कियूद इरशाद फरमाते हैं अहले इल्म ही उनकी मंज़िल से लुत्फ़ अन्दोज़ होते हैं |
ग़ज़ालिए दौरां हज़रत अल्लामा सईद अहमद काज़मी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं :- के सय्यदी मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह की शान इस हकीकत से ज़ाहिर है के हज़रत ममदूह इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दिनों मिल्लत मौलान शाह इमाम अहमद रज़ा खान साहब बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के लख्ते जिगर और सही जानशीन हैं |
हज़रत कारी मुसलीहुद्दीन साहब फरमाते हैं :- हज़रत सय्यदी व मुर्शिदी सद रुश्शरिया बद रुत्तरीका के विसाल के बाद मेरी तमन्नाओं और आरज़ू का मरकज़ हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द ही की ज़ात है और वो मेरे ही क्या तमाम सुन्नियों की तमन्नाओं का मर्कज़ हैं |
हुज़ूर शम्सुल उलमा क़ज़िए मिल्लत हज़रत अल्लामा शम्सुद्दीन रज़वी जौनपुर फरमाते हैं :- फ़िक़ह का इतना बड़ा माहिर इस ज़माने में कोई दूसरा नहीं में उनकी खिदमत में जब हाज़िर होता हूँ तो सर झुका कर बैठा रहता हूँ और ख़ामोशी के साथ उनकी बातें सुनता हूँ उन से ज़्यादा बात करने की हिम्मत नहीं पढ़ती |
हज़रत मौलाना शाह अहमद नूरी सदर जमीअतुल उलमा पाकिस्तान फरमाते हैं :- मुफ्तिए आज़म हिन्द इल्मों फ़ज़ल और फ़िक़्ही बसीरत के एतिबार से “ला सानी” थे इस्लाम और आलमे इस्लाम के लिए आप की अज़ीम ख़िदमात नाक़ाबिले फरामोश हैं |
अदीबे शहीद हज़रत मुहम्मद मियां सहिसरामी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं :- एहदे हाज़िर की लाइक सद तकरीम ज़ात और क़दम क़दम पर अक़ीदतों के फूल निछावर किए जाने वाली शख्सियत है हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द जिनकी ज़िन्दगी का एक एक लम्हा और हयात की एक एक घड़ी सरमाए सआदत और दौलते इफ्तिखार है जिन की सारी उमर शरीअत की तालीम फ़ैलाने और तरीक़त की राह बताने गुज़री और जिन की ज़िन्दगी का एक एक अमल शरीअत की मीज़ान और तरिकक़्त की तराज़ू पर तौला हुआ है इस दौर में ममदूह की शख्सियत मुसलमानाने हिन्द की सरमदी सआदतों की ज़मानत है |
ख़लीफ़ए आला हज़रत हज़रत अल्लामा शाह ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द वो दर्जाए सिद्दिक़ियत पर फ़ाइज़ हैं |
हज़रत अल्लामा अब्दुल मुस्तफा अज़हरी पाकिस्तान फरमाते हैं :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द अमानत दियानत शफ़क़त और तवाज़ो व इंकिसारी का अज़ीम पैकर थे |
हज़रत सय्यद मुख़्तार अशरफ अशरफी जिलानी सज्जादा नशीन किछौछा शरीफ फरमाते हैं: हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह बिला शुबा उन्ही अकबिरीन में से थे जो दिनों सुन्नियत को फरोग देने के लिए पैदा होते हैं हज़रत की पूरी ज़िन्दगी पर एक ताइराना निगाही डालिए तो ये हक़ीक़त निख़र कर सामने आजाती है के खुलूसु लिल्लाहि हिलियत उनकी शख्सियत का ट्रेड मार्क था |
उन का कोई क़ौल या अमल मेरी निगाह में ऐसा नहीं है जो खुलूसु लिल्लाहि हिलियत से आरी हो वो अगर एक तरफ मुताबाहिर आलिम, मुस्तनद, और मोतबर फ़क़ीह, मुख्तलिफ उलूम व फुनून के माहिर शेरे अदब के मिजाज़ आशना थे तो दूसरी जानिब रियाज़त इबादत, मुकाशिफ़ा व मुजाहिदा और असरार बातनि के भी मेराम थे और हर मैदान में उन के खुलूसु लिल्लाहि हिलियत की जलवागरी नुमाया तौर पर दिखाई देती थी वो एक ऐसी शमा थे जिस के गिर्द लाखों परवाने इक्तिसाबे फैज़ नूर की खातिर ज़िन्दगियों को दाओ पर चढ़ा रहे रहते थे मेरे घराने के बुज़ुर्गों से उन के देरीना और गहरे तअल्लुक़ात थे इस पस मंज़र में मुझे उनका क़ुरबे ख़ास हासिल था |
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आप की तालीम व तरबियत :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह एक ऐसे इल्मी व रूहानी खनवादे के चश्मों चिराग हैं जहाँ का पूरा माहौल इल्म व नूर के सच्चे में ढाला हुआ है फिर आप इससे मुतअस्सिर न हो ये कैसे हो सकता है चुनाचे खूब खूब इक्तिसाबे फैज़ किया और जहाँ भी मौक़ा मिला शोक से हासिल किया चुनाचे आप ने हज़रत मौलाना शाह रहम इलाही मंगलोरी व मौलाना बशीर अहमद अलीगढ़ अलैहिर्रहमा से खुसूसी दरस हासिल किया उस के | बाद उलूम व फुनून सरकार अला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की आग़ोशे तरबियत में जुमला उलूम व फुनून को पाए तकमील तक पहुँचाया |
तफ़्सीर, फ़िक़्ह, उसूले फ़िक़हा, सरफो नहो, के अलावा तजवीद, अदब, फलसफा, मंतिक, रियाज़ी, इल्मे जफर व तकसीर, इल्मे तौक़ीत, और फन्ने तारिख गोई में भी कमाल हासिल किया |
बैअत व खिलाफत :- आप को बैअत का शरफ़ क़ुत्बे आलम शैख़े तरीक़त हज़रत शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारेहरवी रहमतुल्लाह अलैह से था और छेह 6 साल की उमर शरीफ में आप के शैख़े तरीक़त ने बैअत करने के बाद जुमला सलासिल मसलन क़दीरिया, चिश्तिया, नक्शबंदिया, सोहरवर्दिया, मदारिया वगैरह की इजाज़त से भी नवाज़ा था अपने शैख़े तरीक़त के अलावा वालिद माजिद इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह से भी खिलाफत व इजाज़त हासिल थी |
25 सफर 1340 हिजरी मुताबिक़ 28 अक्टूबर 1921 ईस्वी बरोज़ जुमा के वालिद माजिद इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह का विसाल हुआ खलफ़े अकबर हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम मौलाना शाह हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह के मंसबे सज्जादगी और खानकाहे आलिया क़दीरिया बरकातिया रज़विया और मन्ज़रे इस्लाम के तमाम उमूर व फ़राइज़ की ज़िम्मेदारी आप के सौंप दी गई हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम के विसाल के बाद बा इत्तिफ़ाक़े राए हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह खानकाहे आलिया क़दीरिया बरकातिया रज़विया और मन्ज़रे इस्लाम की सज्जादगी और तमाम उमूरे दीनिया के फ़राइज़ की ज़िम्मेदारी आप के सुपुर्द की गई |
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आप का पहला फतवा :- आप ने सिर्फ तेहरा 13 साल की क़लील उमर में रज़ाअत का मसला लिखा बादे फरागत आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की हयाते तय्यबा में ही फतवा नवेसी का काम सौंप दिया गया था जिस की इब्तिदा यानि शुरू का वाक़िअ बड़ा दिल चस्प है हज़रत अल्लामा ज़फरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह व हज़रत मौलाना सय्यद अब्दुर रशीद साहब रहीमा हुमुल्लाह दारुल इफ्ता में काम करते थे अभी आप की नो उमरी का आलम था एक दिन दारुल इफ्ता में पहुंचे तो देखा के हज़रत अल्लामा ज़फरुद्दीन बिहारी रहमतुल्लाह अलैह फतवा लिख रहे थे मराजे के लिए फतावा रज़विया अलमारी से निकलने लगे इस पर हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया क्या फतावा रज़विया देख कर जवाब लिखते हैं |
मौलाना ने फ़रमाया अच्छा तुम बगैर देखो लिखदो तो जाने हज़रत ने कमल बर्दाश्त जवाब लिख दिया जो रज़ाअत का मसला था ये आप का पहला फतवा था जो अपनी ज़िन्दगी में क़लम बंद फ़रमाया इसलाहो तसही के लिए वो जवाब इमामे अहले सुन्नत की ख़िदमात में पेश किया गया सेहत जवाब पर इमामे अहले सुन्नत बहुत खुश हुए और “अल जवाब बी ओनिल्लाहिल अज़ीज़िल वह्हाब” लिख कर दस्त खत फरमाए यही नहीं बल्के इनआम के तौर पर “अबुल बरकात मुहीयुद्दीन जिलानी आले रहमान मुहम्मद उर्फ़ मुहम्मद मुस्तफा रज़ा” की मुहर मौलाना हाफ़िज़ यक़ीनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के भाई से बनवा कर अता फ़रमाई ये वाक़िअ 1328 हिजरी का है बाराह 12 साल तक वालिद माजिद की ज़िन्दगी में फतवा नवेसी करते रहे जिस का सिसिला आखरी उमर तक जारी रहा ये मुहर हज़रत के तीसरे हज मौके पर जद्दा में दीगर सामानो के साथ गम हो गई |
आप का अख़लाक़ो किरदार व खुसूसी आदतें :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह उस खानवादे के चश्मों चिराग हैं जिन्होंने ज़माने के तहज़ीब व अख़लाक़, उख़ुवत मसावाते इस्लामी का दरस दिया जिन का दर हर मांगता के लिए हर वक़्त खुला रहता है आप में खुश अख़लाक़ी शफ़क़त तवाज़ो इंकिसारी और मुहब्बत व इखलास बदर्जाए अतम पाए जाते थे आप ने कभी किसी गरीब की दावत के रद नहीं फ़रमाया अमीरो कबीर और बड़े लोगों से दूर भागते थे और निहायत ही पाकीज़ा और बुलंद किरदार के मालिक थे |
आप की हयाते तय्यबा में एक बार अकबर अली खान साहब जो यूपी के गवर्नर थे जो आप की ज़यरत करना चाहते थे |
मगर हज़रत उन के आने से कुछ देर पहले पुराना शहर बरेली में एक बीमार दम तोड़ते हुए गरीब सुन्नी की इआदत के लिए तशरीफ़ लेगए |
इसी तरह फखरुद्दीन अली अहमद साबिक़ सदर जम्हूरिया जब वज़ीर थे इसी तरह न जाने कितने वज़ीर और अमीर आते रहते थे मगर हज़रत उन से मिलना गवारा नहीं करते थे क्यूंकि हज़रत के सियासत दुनियादारी से क्या लगाओ मेहमान की खातिर दारी में कोई कसर नहीं उठा रखते, हज़रत मेहमान खाने में तसरीफ ले जाकर एक एक मेहमान से दरयाफ्त फरमाते के खाना खाया के नहीं चाय मिली या नहीं अक्सर ये भी देखा गया के आप खुद ही मेहमानो के लिए घर के अंदर से जाकर खाने का तशत लेकर आते थे |
हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह हर मुस्लमान को ज़ाहिर व बातिन दोनों हालातों में मुस्लमान देखना चाहते थे हर एक को इस्लामी शिआर अपनाने की तालीम उठते बैठते देते थे दाढ़ी मुंडों नग्गे सर वालों और अंग्रेजी लिबास पहिनने वालों से बेज़ारी का इज़हार फरमाते सर पर टोपी लगाने दाढ़ी रखने और इस्लामी लिबास पहिनने की तलक़ीन करते थे |
ताई बांधने वाले से सख्त बेज़ारी इज़हार करते थे |
और ताई खींच लेते बांधने वालों से तौबा कराते थे और उस पे तज्दीदे बैअत व तज्दीदे निकाह का हुक्म लगते थे हर काम या चीज़ के लेने देने का दाहिने हाथ से एहतिमाम फरमाते गौरमिंट को सरकार कहने और कोर्ट को अदालत कहने से मना फरमाते थे |
क़ुतुब अहादीस पर दूसरी किताबें नहीं रखते थे क़िब्ले की तरफ कबि नहीं थूकते और नहीं क़िब्ले की तरफ पाऊँ करते |
क़ब्रिस्तान में जब भी तशीरफ़ ले जाते तो पूरा पैर रख कर नहीं चलते बल्के हमेशा पंजो लके बल तशरीफ़ ले जाते यहाँ तक के धूप में आधा आधा घंटा इसाले सवाब और फातिहा ख्वानी में मसरूफ रहते लेकिन पंजो के बल ही खड़े रहते |
बद फाल निकलने को हमेशा मना करते उलमा की बहुत इज़्ज़त करते सय्यदों का अदब व एहतिराम इस अंदाज़ से करते जैसे कोई रियाया अपने बादशाह का एहतिराम करती है गैर इस्लामी नाम रखने को मना करते और अंग्रेज़ों और गैर मुस्लिमो के नाम रखने को मना फरमाते सख्त नाराज़ होते और नाम बदल देते |
अब्दुल्लाह, अब्दुर रहमान, मुहम्मद, अहमद नाम को पसंद फरमाते |
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आप की तवाज़ो इंकिसारी :- आप के अंदर तवाज़ो इंकिसारी कूट कूट कर भरी हुई थी अगर किसी को गैर शरई हरकत पर दांत देते थे या किसी मौक़ पर नाराज़गी का इज़हार करते थे तो बाद में उसे समझाते और उसकी दिल जो फरमाते और दुआओं से नवाज़ते अक्सर लोग हज़रत की शान में मन्क़बत पढ़ते तो उन्हें उससे रोकते और फरमाते के में इस लाइक कहाँ अल्लाह पाक इस लाइक बना दे |
मांगने वाला सब कुछ पाए रोता आए हसंता जाए
ये है उन की अदना करामत मुफती आज़म ज़िंदाबाद
आप के लिए ट्रेन रुक गई :- आप सफ़रों हज़र में भी हमेशा बा जमात नमाज़ वक़्ते मुअय्यना पर अदा फरमाते | एक बार नागपुर से तशरीफ़ ले जा रहे थे रास्ते में मगरिब का वक़्त हो गया आप फ़ौरन गाड़ी से उतर पड़े लोगों ने कहा भी के गाड़ी चलने ही वाली है मगर हज़रत को फ़िक्र नमाज़ दामनगीर थी हज़रत के उतरते ही आप के साथी भी उतर पड़े वुज़ू कर के अभी नमाज़ की नियत बांधी थी के ट्रेन छूट गई हज़रत और उनके साथियों का सारा सामान ट्रेन ही में रह गया ट्रेन के चलते ही कुछ बद अक़ीदह लोगों ने फब्ती भी कसी के मियां की गाड़ी गई लेकिन हज़रत नमाज़ में मसरूफ थे नमाज़ से फारिग हुए तो पेलेट फॉर्म खली था हज़रत के साथी सामान जाने की वजह से परेशान थे मगर हज़रत मुतमइन थे अभी सब सोच ही रहे थे के सामान का क्या होगा इतने में देखा के गॉर्ड साहब भागे चले आरहे हैं और उनके पीछे पचासों मुसाफिर भी दौड़ते आ रहे हैं गॉर्ड ने कहा हुज़ूर गाड़ी रुक गई हज़रत ने फ़रमाया इंजन ख़राब हो गया है आखिर हज़रत डब्बे में बैठे इंजन बदला गया और इस तरह पोन घंटे की देर के बाद गाड़ी चली |
सरकार गौसे आज़म से आप की अक़ीदत व मुहब्बत :-
ये दिल ये जिगर है ये आँखें ये सर है
जहाँ चाहो रखो क़दम गौसे आज़म
हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह को गौसे समदानी महबूबे सुब्हानी सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से कितनी अक़ीदत व मुहब्बत थी इस वाक़िये से अंदाजा होता है | एक बार सय्यदना गौसे समदानी महबूबे सुब्हानी सरकार गौसे आज़म रादियल्लाहु अन्हु की औलाद में से नो जवान पीर ताहिर अलाउद्दीन गिलानी साहब क़िब्ला बरैली शरीफ तशरीफ़ लाए तो हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह की न्याज़ मंदी और अक़ीदत का ये आलम था के उनके पीछे अदब के साथ नग्गे पाऊँ चलते थे जैसे खादिम अपने आक़ा के पीछे चला करता है | हज़रत गौसे आज़म रादियल्लाहु अन्हु की ज़ात में फनाईयत का ये आलम था के आप का जिस्म व शक्ल व शबाहत हज़रत गौसे आज़म रादियल्लाहु अन्हु के हम शक्ल थी
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उलमा व सादाते किराम का एहतिराम :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह को उलमा व सादात किराम का एहतिराम वरसे में मिला था ऐसी वालिहाना अंदाज़ से इन हज़रात की ताज़ीम व तौक़ीर करते थे के इस का बयान करना मुश्किल है | 1979 का वाक़िया है के गर्मी के दोपहर में एक खातून एक बच्चे के साथ तावीज़ लेने के लिए आयीं लोगों ने बताया के हज़रत आराम कर रहे हैं मगर उन्हें तावीज़ की सख्त ज़रुरत थी उन्होंने कहिल वाया के देख लिया जाए के हज़रत जगे हों और मुझे तावीज़ मिल जाए मगर हज़रत के पास किसी को जाने की हिम्मत न हुई |
बिला आखिर वो खातून अपने बच्चे से बोली चलो बेटे ये क्या मालूम था के अब यहाँ सय्यदों की बातें नहीं सुनी जातीं न मालूम हज़रत ने कैसे सुन लिया और ख़ादिमा को आवाज़ देकर कहा जल्दी बुलाओ शहज़ादी कहीं नाराज़ न हो जाएं उन्हें रोक लिया गया बच्चा हज़रत के पास गया हज़रत ने नाम पूछा उस ने ना बताया सय्यद फुलाँ, हज़रत ने इस बच्चे को इज़्ज़तो मुहब्बतों के साथ बिठाया प्यार से सर पर हाथ फेरा सेब मँगाकर दिया और फिर परदे की आड़ से मुहतरम खातून से हाल मालूम करके उन्हें उसी वक़्त तावीज़ लिख कर दिया और घर में ये कह कर रुकवा लिया के धूप ख़त्म हो जाए तब जाने देना और उनकी ख़ातिरो मदारात में कमी न करना |
उर्से आला हज़रत में जब हज़रत सद रुश्शारिया मौलाना अमजद अली साहब आज़मी रहमतुल्लाह अलैह बरेली शरीफ तशरीफ़ लाए तो हज़रत उन के इस्तक़बाल के लिए इस्टेशन जाते और बेपनाह इज़्ज़त व क़द्रो मन्ज़िलत करते | हाफिज़े मिल्लत हज़रत मौलाना अश्शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे मुरादाबादी साहब व शेर बेशाए अहले सुन्नत हज़रत मौलाना हशमत अली खान साहब रही माहुमुल्लाहु तआला अलैह | की बड़ी इज़्ज़त करते थे ख़लीफ़ए आला हज़रत हुजुए बुरहानुल हक़ साहब जबलपुरी रहमतुल्लाह अलैह उन के साहबज़ाद गान से बहुत मुहब्बत फरमाते थे और जब भी ये हज़रात बरैली शरीफ आते तो हज़रत इन की बे इंतिहा क़द्रो मन्ज़िलत करते थे | हुज़ूर मुजाहदे मिल्लत मौलाना शाह हबीबुर रहमान साहब अलैहिर्रहमा की भी बहुत इज़्ज़त करते थे अपने खुलफ़ा, व तलामिज़ा व दुसरे मुरीदीन और पीर ज़ादगान और मारहरा शरीफ का खादिम भी आ जाता तो उन तमाम की इसी अंदाज़ा में इज़्ज़त अफ़ज़ाई करते थे के वो बेचारे खुद शर्मिंदाह हो जाते थे |
बारगाहे गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रदियल्लाहु अन्हु की मक़बूलियत :- जनाब अब्दुल क़य्यूम साहब जो हुज़ूर मुफ्तिए आज़मे हिन्द के मुरीद थे एक मर्तबा अपने दोस्त जनाब आशिक़ अली साहब को लेकर हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द की बारगाह में हाज़िर हुए ताके उनको मुरीद करवा दें हज़रत ने बैअत के कलिमात जनाब आशिक़ अली साहब को कहलवाना शुरू किया और जब आखिर में फ़रमाया के कहो के मेने अपना हाथ हुज़ूर गौसे आज़म के हाथ में दिया तो जनाब आशिक़ अली साहब बोले के मेने अपना हाथ मुफ्तिए आज़म के हाथ में दिया हज़रत ने फ़रमाया में जो कहता हूँ वो कहो के हुज़ूर गौसे आज़म के हाथ में दिया तो जनाब आशिक़ अली साहब बोले के अभी आपने मुझ से कहल वाया के झूठ नहीं बोलूंगा और आप कह रहे हो के हुज़ूर गौसे आज़म के हाथ में दिया? इस पर हज़रत ने फ़रमाया के हुज़ूर गौसे आज़म के सिलसिले में इसी तरह दाखिल करते हैं हमारे मशाइख का यही तरीक़ा है तुम्हे हुज़ूर गौसे आज़म तक पहुंचा दिया जाएगा | हज़रत ने फ़रमाया कहो के हुज़ूर गौसे आज़म के हाथ में दिया उन्होंने फिर भी नहीं कहा बस हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द को जलाल आ गया आपने अपना अमामा उतर कर जनाब आशिक़ अली साहब के सर पर रख दिया और बुलंद आवाज़ में जलाल में फ़रमाया के कहता क्यों नहीं के मेने अपना हाथ हुज़ूर गौसे आज़म के हाथ में दिया? बस इतना सुन्ना था के जनाब आशिक़ अली बार बार कहने लगे के मेने अपना हाथ हुज़ूर गौसे आज़म के हाथ में दिया और बेहोश हो गए कुछ देर बाद होश आया तो जनाब अब्दुल क़य्यूम साहब ने अलग ले जा कर पूछा के क्या हुआ था कुछ तो बताओ तो जनाब आशिक़ अली साहब बोले के जैसे ही हज़रत ने अपना अमामा मेरे सर पर रखा मेने देखा के “गौसुसकलैन क़ुत्बुल कौनैन सरकार सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु जलवा फरमा हैं और कह रहे हैं के “आशिक़ अली मुफ़्ती आज़म का हाथ मेरा हाथ है ये मेरे नायब और मज़हर हैं कहो के मेने अपना हाथ गौस आज़म के हाथ में दिया” बस मेरा हाथ सरकार गौस आज़म के हाथ में था और में बार बार कहते कहते बेहोश हो गया | फ़िदा तुम पे हो जाए नूरी ऐ मुज़्तर, ये है इस की ख्वाइश दिली गौसे आज़म |
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हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द का इल्मे ग़ैब और इल्मे ग़ैब की दलील अपनी करामात से दी :- सुल्तानुल मशाइख़ हज़रत सय्यदना ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया महबूबे इलाही रादियल्लाहु अन्हु के उर्स शरीफ में शिरकत के लिए हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द दिल्ली तशरीफ़ ले गए तो कूचाए जिलान में क़याम किया वहाँ एक बद अक़ीदा मुल्ला आप से इल्मे ग़ैब के मसले पर उलझ पड़ा साहिबे खाना जनाब अशफ़ाक़ अहमद ने आप से अदब से गुज़ारिश की के हुज़ूर ये कज बहस है इन पर किसी बात का असर नहीं होता आपने अपने मेज़बान से कहा ये इस वक़्त तुम्हारे घर तशरीफ़ लाए हुए हैं इनके मुतअल्लिक़ तुम्हे कोई सख्त बात न कहना चाहिए ये मौलवी साहब ने आज तक किसी की बात सुनी ही नहीं इसलिए असर भी क़ुबूल नहीं किया | ये तो सिर्फ अपनी बात सुनते रहे हे और वो भी अनसुनी कर दी जाती है आज में इनकी बाते तवज्जोह से सुनुँगा हाज़िरीन भी ख़ामोशी से सुने |
(वो बद अक़ीदा) मौलवी सईदुद्दीन अंबालवी ने सवा घंटे तक ये बात साबित करने की कोशिश की के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे ग़ैब नहीं था जब वो थक हार कर खामोश हो गया तो आपने फ़रमाया के अगर कोई दलील तुम अपने मौक़िफ़ के ताईद में बयान करना भूल गए हो तो याद करलो मौलवी साहब फिर जोशे तक़रीर में आ गए और फिर आधे घंटे तक बोलने के बाद कहा के ये बात अच्छी तरह साबित हो गई के हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे ग़ैब नहीं था | हज़रत ने फ़रमाया तुम अपने बातिल अकीदे से फ़ौरन तौबा कर लो हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने ग़ैब का इल्म अता फ़रमाया था आप उसके रद में वो सब कुछ कह चुके है जो कह सकते थे अब अगर ज़ेहमत न हो तो मेरे दलाइल भी सुनले |मौलवी साहब ने बरहम हो कर कहा के मेने तुम जैसे लोगो की सारी दलीले सुन रखी है मुझे सब मालूम है तुम क्या कहोगे हज़रत ने बड़े तहम्मुल से कहा मौलवी साहब बेवा माँ के हुक़ूक़ बेटे पर क्या है? उन्होंने कहा के गैर मुतअल्लिक़ सवाल का जवाब नहीं दूंगा तेज़ आवाज़ में कहा हज़रत ने फ़रमाया अच्छा तुम मेरे किसी सवाल का जवाब न देना मेरे चंद सवालात सुन तो लो मेने डेढ़ पोने दो घंटे तक तुम्हारे दलाइल सुन हैं | हज़रत की बात सुन कर मौलवी साहब खामोश हो गए तो आपने दूसरा सवाल किया के क्या किसी से क़र्ज़ ले कर रूपोश हो जाना (भाग जाना) जाइज़ हैं? क्या अपने माज़ूर बेटे की किफ़ालत से दस्तकश हो कर उसे भीक मांगने के लिए छोड़ा जा सकता हैं? क्या हज्जे बदल के इख़राजात (रूपया पैसा वगेरा) ले कर हज….अभी सरकार मुफ़्ती आज़म ने अपना सवाल पूरा भी नहीं किया था के मौलवी साहब ने आगे बढ़ कर क़दम पकड़ते हुए कहा के बस कीजिये हज़रत मसला हल हो गया ये बात आज मेरी समझ में आ गई हैं के रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे ग़ैब हासिल था और रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास इल्मे ग़ैब होना ही चाहिए वरना मुनाफिक़ीन मुसलमानो की तंज़ीम को बर्बाद कर देते अल्लाह तआला ने जब आपको मेरे मुतअल्लिक़ ऐसी बाते बता दी जो यहाँ कोई नहीं जनता तो बारगाहे अलीम से रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क्या इंकिशाफ़ात न होते होंगे? मौलवी साहब उसी वक़्त ताइब हो कर सरकार मुफ़्ती आज़म हिन्द रदियल्लाहु अन्हु से बैअत हो गए |
माआख़िज़ व मराजे :- तज़किराए मशाइखे क़ादरिया बरकातिया रज़विया , मुफ़्ती आज़म हिन्द नंबर महानामा इस्तेक़ामत कानपूर
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