सायाए जुमला मशाइख या खुदा हम पर रहे
रहिम फरमा आले रहमा मुस्तफा के वास्ते
हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह आप बगैर फोटो के हज के लिए गए :- हज व ज़ियारत हैरमैन शरीफ फैन की सआदत दो बार आप को तक़सीमे हिन्द (जब हिंदुस्तान का बटवारा नहीं हुआ था) से पहले हासिल हुई तीसरी बार 1971 ईस्वी 1391 हिजरी में इस शान के साथ आज़िम (इरादा) हैरमैन शरीफ फैन हुए के बहुत से उल्माए किराम के नज़दीक हज के लिए फोटो जाइज़ है मगर आप की अज़ीमत की बिना पर बैनुल अक़वामी राइजुल वक़्त अमल के वक़्त बगैर फोटो के पास पोर्ट हासिल हुआ और सफरे हज के दौरान जहाज़ में कोई टीका वगैरा भी न लगवा कर एहतियात व तक़वा की इस दौर में एक रोशन मिसाल क़ाइम करदी |
और ज़ोफे नक़ाहत के बावजूद जिस निशात और मुस्ता अद्दीके साथ मानसिक हज अदा किए वो हम सब के लिए क़ाबिले रश्क है |
इस सफर में आप ने मक्का शरीफ में उन उल्माए हैरमैन शरीफ फैन से भी मुलाक़ात की जिन्होंने आला हज़रत फाज़ले बरेलवी से उन के वक़्त हैरमैन शरीफ फैन में मुलाक़ात व इस्तिफ़ादा किया था |
ये हज़रात सय्यद याहया उलमान अलैहिर्रहमा के शागिर्द में से थे उन के नाम ये हैं (1) सय्यदा अमीन क़ुत्बी (2) सय्यद अब्बासी अल्वी (3) सय्यद नूर मुहम्मद, इन तीनो हज़रात ने आला हज़रत फाज़ले बरेलवी के दौर के हालात व वाक़िआत बतलाए उन के इल्मो फ़ज़ल व तौसीफ की और हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द से खिलाफत हासिल की |
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आप का तारीखी फतवा :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह को “मुफ्तिए आलम” कहे जाने के सुबूत में मन्दर्जा ज़ैल वाक़िआ मुलाहिज़ा फरमाए, जज़ल अय्यूब खान के दौर में पाकिस्तान में हुकूमत की तरफ से रूयते हिलाल कमेटी क़ाइम की गई थी जिस के ओहदे दारान ईद व बकरा ईद के मौके पर ख़ास तौर से मशरिक़ी व मगरिबी पाकिस्तान में जहाज़ के ज़रिए से चाँद देखने का एहतिमाम करते थे और फिर उनकी तस्दीक़ पर हुकूमत के जानिब से मुल्क में रूयते हिलाल का ऐलान किया जाता था |
एक बार ईद के मौके पर 29 रमज़ान को इस कमेटी के अफ़राद हवाई जहाज़ के ज़रिए चाँद देखने को उड़े मशरिक़ी पाकिस्तान से मगरिबी पाकिस्तान जाते हुए उन्हें चाँद नज़र आ गया और उन्होंने उसकी खबर हुकूमत को दे दी और फिर हुकूमत की जानिब से रूयत का ऐलान कर दिया गया |
मगर वहां के सुन्नी उलमा ने उस को नहीं माना और उन्होंने दुनिया के तमाम इस्लामी ममालिक जैसे मुल्के शाम, उर्दन, अरब, मिस्र वगैरा के मुफ्तियाने किराम से इस सिलसिले में फतवा माँगा और एक इस्तिफता हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के पास बरैली शरीफ भी रवाना किया तक़रीबन दुनिया के सभी मुफ्तियाने किराम ने रूयते हिलाल कमेटी पाकिस्तान की ताईद की मगर इल्मो फ़ज़ल के ताजदार हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह ने उसे नहीं माना और अपना फतवा दिया के जिस का फतवा मज़मून इस तरह है |
चाँद देख कर रोज़ा रखने और ईद करने का शरई हुक्म है और जहाँ चाँद नज़र न आये वहां शरई सहादत पर क़ाज़ी शरई हुक्म देगा चाँद को सतह ज़मीन से या ऐसी जगह से के जो ज़मीन से मिली हुई हो वहां से देखना चाहिए रहा जहाज़ से चाँद देखना ये गलत है क्यूंकि चाँद ग़ुरूब होता है फना नहीं होता इस लिए कहीं 29 को और कहीं 30 को नज़र आता है और अगर जहाज़ उड़ा कर चाँद देखना शर्त है तो और बुलंदी पर जाने के बाद 27, और 28, तारीख को भी नज़र आ सकता है तो किया 27, और 28, तारीख को भी चाँद का हुक्म दिया जाएगा और न ही कोई आक़िल इस का एतिबार करेगा ऐसी हालत में जहाज़ से 29 को चाँद को देखना कब मोतबर होगा |
हज़रत के इस जवाब को पाकिस्तान के हर अखबार में जली सुर्ख़ियों के साथ छापा गया और इस फतवे को पाकिस्तान में जाने के बाद अगले महीना में 27 और 28 तारीखों को हुकूमत की जानिब से जहाज़ के ज़रिए इस बात की तस्दीक कराइ गई तो बुलंदी पर परवाज़ करने पर चाँद नज़र आया तब हुकूमत ने हज़रत के फतवे को तस्लीम करके रूयते हिलाल कमेटी तोड़ दी और दुनिया के तमाम मुफ्तियाने किराम ने उन की बारगाह में इल्मो फ़ज़ल में सरे अक़ीदत ख़म कर दिया आप ने अपनी उमर शरीफ में कमो बेश पचास हज़ार फतावा सादिर फरमाए |
आप की फुकाहत को बड़े बड़े उलमा ने तस्लीम किया है जैसा के हुज़ूर शम्सुल उलमा काज़िए मिल्लत हज़रत मौलाना शम्सुद्दीन जाफ़री रज़वी जौनपुरी फरमाते हैं फ़िक़ाह का इतना बड़ा माहिर इस ज़माने में कोई दूसरा नहीं है में जब उन की खिदमत में हाज़िर होता हूँ तो सर झुका कर बैठता हूँ और ख़ामोशी के साथ उन की बातें सुनता हूँ उन से ज़्यादा बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती |
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1977,76 का पुर फ़ितन दौर और आप का फतवा नसबंदी हराम है :- 1977,76 का पुर फ़ितन दौर जिस ने हिंदुस्तान के मुसलमानो को एक ऐसे भयानक तूफान में खड़ा कर दिया था जहाँ से इस्लामियाने हिंदुस्तान के सफिनाए एतिक़ाद के तख्ते टूटे हुए नज़र आ रहे थे सऊदी रियाल और अमरीकी डालर हुकूमते वक़्त के टकड़ों पर पलने वाले उलमा के क़दमों में लग़्ज़िश आ गई थी और नसबंदी के जाइज़ पर मसनदे इफ्ता पर बैठने वाले मुफ्तियों ने फतवा सादिर कर दिया था रेडियो अखबारात के ज़रिये खूब खूब प्रचार भी किया गया |
हिंदुस्तान के मुस्लमान अब ऐसे मोड़ पर पहुंच चुका था जहा हर तरफ तारीकी ही तारीकी अँधेरा ही अँधेरा ख़ामोशी ही ख़ामोशी और तूफान ही तूफ़ान था पूरी मुसल्लम क़ौम एक ऐसे कारवां की तलाश में थी जो उसे सहारा दे ईमान व एतिक़ाद की कुश्त वीरान को लाला ज़ार बनाए सब की निगाहें शहर इश्क़ों मुहब्बत पासबाने नामूसे रिसालत बरैली की जानिब लगी हुई थीं यका एक बरेली के मर्दे मुजाहिद मुख़ालिफ़तों की तेज़ आँधियों में अपने इल्मी वक़ार की मशअल लेकर उठता है हदीस शरीफ के मुताबिक़ “ज़ालिम बादशाह के सामने कलमाए हक़ कहना अफ़ज़ल जिहाद है ऐलान फरमा दिया के नसबंदी हराम है हराम है हराम है और मुल्क भर में पोस्टरों के ज़रिए उसे फैलाया हुकूमते वक़्त देखती रही और खुदा का करना कुछ ऐसा हुआ के हज़रत की दुआ से वो हुकूमत है ख़त्म हो गई |
क्या नमाज़ में शैख़ का तसव्वुर कर सकते हैं? :- अल हाज मौलाना अब्दुल हादी साहब अफ्रीकी और सूफी इक़बाल अहमद साहब नूरी ने हुज़ूर मुफ्ती आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह से पूछा क्या नमाज़ में शैख़ का तसव्वुर कर सकते हैं? हज़रत ने फ़रमाया नमाज़ में किसी का तसव्वुर करना ही है तो ताजदारे दो आलम रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तसव्वुर कीजिये हाँ जिस तरह हालते नमाज़ में लोग इधर उधर का ख्याल करते हैं इसी तरह पीर का भी तसव्वुर आ जाए तो हर्ज नहीं |
सुब्हान अल्लाह क्या एहतियात है इस जवाब मे और साथ साथ रद्दे वहाबियत व देओबंदियत भी आप की तसव्वुफो तरीक़त पर पूरी महारत का इल्म तो आप की तसानीफ़ ही से हो सकती है
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आप का ज़ौके शेरो अदब :- हुज़ूर मुफ्ती आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह अपने वक़्त के उस्ताज़ुश्श शोरा और फन्ने शायरी में कामिल व अकमल हैं आप के अक्सर अशआर हमद, नअत, क़सीदाओ मन्क़बत और रुबाईयात पर फैले हुए हैं जो अरबी फ़ारसी, उर्दू हिंदी में पूरी इंफिरादियत के साथ आप के दीवान “समाने बख़्शिश” छप चुके हैं और आप रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फैज़ान ही कहा जा सकता है के एक ऐसा इंसान जो रात व दिन सफर में हो घर पर हो तो “इफ्ता” की ज़िम्मेदारी इस के अलावा दीगर अहम और दीनी ज़रूरतें आखिर कब और कैसे आप को सुकून का वक़्त मयस्सर आया आप ने सभी मोज़ोआत पर क़लम उठाया है और हर एक में तग़ज़्ज़ुल झिलमिला रहा है |
शेरो अदब में आप ने अपना तखल्लुस अपने पीरो मुर्शिद के तखल्लुस पर “नूरी” रखा और इसी शायरी दुनिया में जाने पहचाने जाते हैं |
एक बार बरैली शरीफ के गाँव में हज़रत तशरीफ़ ले गए साहिबे खाना की 8, 9, साल की बच्ची के हाथ में किताब का एक वर्क था जिस पर मिर्ज़ा दाग देहलवी की एक ग़ज़ल थी जिस का एक मिसरा इस तरह था |
“कौन कहता है आँखें चोरा कर चलें”
हज़रत को मिसरा बहुत पसंद आया और वहीँ बैठे बैठे थोड़ी देर में नअत कहदि जिस का पहला मिसरा ये है |
कौन कहता है आँखें चोरा कर चलें
कब किसी से निगाहें बचा कर चलें
ये नअत 34 अशआर पर मुश्तमिल है इस तरह के बेशुमार अशआर आप के दिवान में मौजूद हैं और पूरी तफ्सील के लिए “समाने बख़्शिश” का मुतालआ करें चंद नमूना कलाम हाज़िर है |
तू शमए रिसालत है आलम तेरा परवाना
तू माहे नुबुव्वत है ऐ जलवाए जाना ना
सरशार मुझे कर दे इक जामे लबालब से
ताहश्र रहे साक़ी आबाद ये मैखाना
कियूँ ज़ुल्फ़ मुअमबर से कूचे न महिक उठे
है पंजए क़ुदरत जब ज़ुल्फ़ों का तेरी साना
इस दर की हुज़ूरी का इसयां की दवा ठहरी
है ज़हरि मुआसि का तयबा ही शिफा खाना
पीते हैं तेरे दर का खाते हैं तेरे दर का
पानी है तेरा पानी दाना है तेरा दाना
संगे दरे जाना पर करता हूँ जबीं साई
सजदह न समझ नजदी सर देता हूँ नज़राना
आबाद इसे फरमा वीरां है दिले नूरी
जलवे तेरे बस जाएं आबाद हो वीराना
पयाम लेकर जो आयी सबा मदीने से
मरीज़े इश्क़ की लायी दवा मदीने से
सुनो तो गौर से आयी सदा मदीने से
करें है रहमतो फ़ज़्ले खुदा मदीने से
मिले हमारे भी दिल को जिला मदीने से
के महरो माह ने पायी ज़िया मदीने से
मदीना चश्मए आबे हयात है यारो
चलो हमेशा की ले लो बक़ा मदीने से
तेरे हबीब का प्यारा चमन किया बर्बाद
इलाही निकले ये नजदी बाला मदीने से
तेरे नसीब का नूरी मिलेगा तुझ को भी
ले आये हिस्सा ये शाहो गदा मदीने से
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आप की तसानीफ़ :- हुज़ूर मुफ्ती आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह एक अज़ीम मुहक़्क़िक़ और मुसन्निफ़ भी है | आप की तहरीर में आप के वालिद माजिद इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के उस्लूब की झलक और ज़र्फ़ निगाही नज़र आती है तहक़ीक़ का कमाल भी नज़र आता है और तदक़ीक़ का जमाल भी, फतावा के जुज़ियात पर उबूर का जलवा भी नज़र आता है और अल्लामा शामी के तफककुह का अंदाज़ भी तसानीफ़ में इमाम ग़ज़ाली की तहक़ीक़ और इमाम राज़ी की तदक़ीक़ और इमाम जलालुद्दीन सीयूती की तलाशो जुस्तजू की जलवा गारी नज़र आती है आप की बाज़ तसानीफ़ के नाम ये हैं, अल मोतुल अहमर, मसाइले समा, हाशिया अल इस्तिमदाद, फतावा मुस्तफ़विया अव्वल दोम, नूरुल इरफ़ान, हाशिया फतावा रज़विया, सामाने बख़्शिश, अल मलफ़ूज़ अव्वल ता चार,सैफुल जब्बार वगैरा |
आप के मशाहीर खुल्फ़ए किराम :- हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा ही की तादाद इतनी है जितने बड़े बड़े पीरों के मुरीदों की तादाद नहीं हो गी हज़रत के खुलफ़ा हज़ारों की गिनती में हैं जो न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि बैरूने ममालिक यानि हिंदुस्तान से भहर तक फैले हुए हैं |
हैर मैन शरीफ़ैन :- में हज़रत सय्यद अब्बास अल्वी साहब, हज़रत सय्यद नूर मुहम्मद साहब, हज़रत सय्यद मुहम्मद अमीन साहब, |
अमरीका :- हज़रत गुफरान साहब सिद्दीक़ी, लन्दन :- हज़रत मौलाना इब्राहीम खुश्तर साहब, अफ्रीका :- हज़रत मौलाना अब्दुल हादी साहब, हज़रत मौलाना अब्दुल हमीद साहब, हज़रत मौलाना अहमद मुक़द्दम साहब, मोरिशस :- हज़रत मौलाना अय्यूब रज़वी साहब, हॉलैंड :- हज़रत मौलाना बदरुल क़ादरी साहब, |
पाकिस्तान :- हज़रत मौलाना करि मुसलीहुद्दीन साहब, हज़रत मौलाना मुफ़्ती गुलाम सरवर साहब, हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन साहब, हज़रत मौलाना सय्यद शाह तुराबुल हक़ साहब, हज़रत मौलाना मरातिब अली साहब, हज़रत मौलाना अब्दुल वहाब साहब, हज़रत मौलाना मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम साहब हज़ारवी, हज़रत मौलाना मुज़फ्फर इक़बाल साहब, हज़रत मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद साहब |
आप के हिंदुस्तान के खुलफ़ा :- हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहिम रज़ा खान साहब, हज़रत मौलाना साजिद अली साहब, हज़रत मौलाना तहसीन रज़ा खान साहब बरेलवी, हज़रत मौलाना रिहान रज़ा खान साहब बरेलवी, हुज़ूर सरकार ताजुश्शरिया अख्तर रज़ा खान साहब अज़हरी मियां बरेलवी, हज़रत मौलाना खालिद अली खान साहब बरेलवी, हज़रत मौलाना सिब्तैन रज़ा खान साहब बरेलवी, हज़रत मौलाना तौसीफ रज़ा खान बरेलवी, हज़रत मौलाना मुफ़्ती शरीफुल हक़ साहब आज़मी, हज़रत मौलाना मुहम्मद जहांगीर खान साहब फतेहपुरी, हज़रत मौलाना मफ्ती गुलाम मुहम्मद साहब, हज़रत अल्लामा मुहद्दिसे कबीर ज़ियाउल मुस्तफा साहब आज़मी, हज़रत मौलाना मौलाना सनाउल मुस्तफा साहब आज़मी, हज़रत मौलाना बहाउल मुस्तफा साहब आज़मी, हज़रत मौलाना मुफ़्ती क़ाज़ी अब्दुर रहीम साहब, हज़रत मौलाना अब्दुल हफ़ीज़ साहब मुरादाबादी सरबराहे आला अल जामिअतुल अशरफिया मुबारकपुर आज़म गढ़, हज़रत मौलाना मुफ़्ती अब्दुल मन्नान साहब आज़मी, हज़रत मौलाना अर्शदुल क़ादरी साहब बलयावी, हज़रत अल्लामा व मौलाना मुश्ताक़ अहमद निज़ामी इलाह आबाद, हज़रत मौलाना मज़हर रब्बानी साहब, हज़रत हाजी मुबीनउद्दीन साहब, हज़रत अल्लामा व मौलाना गुलाम जिलानी साहब आज़मी, हज़रत मौलाना जलालुद्दीन साहब, हज़रत मौलाना बदरुद्दीन साहब, हज़रत मौलाना नसीम बस्तवी साहब, हज़रत मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद आज़म साहब बरैली, हज़रत मौलाना मुशाहिद रज़ा खान साहब, हज़रत मौलाना अब्दुल वहाब साहब, हज़रत मौलाना मंसूर अली खान साहब, हज़रत मौलाना सूफी इक़बाल साहब बरेलवी, हज़रत मौलाना मुहम्मद ग़ौस खान साहब, हज़रत राज़ इलाह आबादी, |
आप के मुरीदीन की तादाद सवा करोड़ है :- हज़रत के मुरीदों में बड़े बड़े उलमा, सुल्हा, मशाइख, शोरा, व अदीब मुफक्किरीन व क़ाइदीन स्कॉलर्स प्रोफ़ेसर भी हैं जो हज़रत की गुलामी पर फख्र करते हैं हज़रत के मुरीद की तादाद लग भग 10000000, एक करोड़ से लेकर सवा करोड़ तक जो क़रीब क़रीब पूरी दुनिया में फैले हुए हैं |
यहाँ तक के हरमैन शरीफ़ैन में भी आप के मुरीद हैं और वहां के कुछ खुद्दाम भी हज़रत के मुरीदों में दरगाह अजमेर मुक़द्दस के जामा मस्जिद के इमाम भी हज़रत के मुरीद हैं | और दरगाह शरीफ के बहुत सारे गद्दी नशीन भी हज़रत से बैअत हैं इन में से कुछ हज़रात को खिलाफत भी हासिल है |
खुद हज़रत के शैख़े तरीक़त हज़रत नूरी मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के खानवादे के कुछ शहज़ाद गान और शहज़ादियों ने भी हज़रत के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत की हज़रत मना फरमाते रहे के मुझे जो कुछ मिला है आप ही के दर से आप ही के घर से मिला है में इस लाइक कहाँ लेकिन वो हज़रत से इसरार करके बैअत हुए |
आप की औलाद :- हज़रत को छह 6, साहबज़ादियाँ और एक साहबज़ादे थे, साहबज़ादे अनवर रज़ा का विसाल नो उमरी में हो गया हज़रत का सिलसिलए नसब आप के नवासे व नवासियां से चला जिन में पांच नवासे और तीन नवासियां हैं |
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सरकार मुफ़्ती आज़म हिन्द के विसाल के हैरत अंगेज़ वाक़िआत :- हज़रत को इस बात का इल्म था के उन का विसाल किस दिन होगा चुनाचे 6 मुहर्रमुल हराम 1406 हिजरी फरमाते हैं के जो लोग भी मुझ से मुरीद होने की चाहत रखते थे और किसी मजबूरी की वजह से मेरे पास बैअत होने के लिए न आ सके मेने उन सभी लोगों को बैयत किया और इन का हाथ सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते पाक में दिया |
इस के अलावा 12 मुहर्रमुल हराम को फ़रमाया के जिसे ने मुझ से दुआ करने के लिए कहा था मेने उन सब के जाइज़ मक़ासिद के पूरे होने के लिए दुआ करता हूँ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़बूल फरमाए इसी रोज़ हाज़रीन से पूछा के आज कौनसा दिन है? हाज़रीन ने अर्ज़ की हुज़ूर आज मंगल है और मुहर्रम की बारह 12 तारीख हज़रत जवाब सुनकर खामोश हो गए फिर 13 मुहर्रमुल हराम को कुछ मुरीदीन व मोतक़िदीन हाज़िरे खिदमत हैं सुबह के दस बजे का वक़्त है हज़रत पूछते हैं आज कौन सा दिन है? गुलाम अर्ज़ करते हैं हुज़ूर आज चार शंबा यानि बुध का दिन है और मुहर्रमुल हराम की 13 तारीख है हज़रत फरमाते हैं नमाज़ नो मोहल्ला मस्जिद में होगी |
हाज़रीन इस का मतलब समझ नहीं पाए मगर अदबन कोई सवाल नहीं करते और खामोश रहे कुछ देर के बाद फरमाते हैं क्या किसी ने नमाज़ के लिए कह दिया है जुमा की नमाज़ नो मोहल्ला मस्जिद में पढूंगा कुछ देर के बाद फरमाते हैं क्या किसी ने फातिहा के लिए कहा हाज़रीन एक दुसरे का मुँह तकते हैं और खामोश रहते हैं |
मज़कूरा वाक़िआत की रौशनी में हुज़ूर मुफ़्ती आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह अपने तर्ज़े अमल से बेक़रारों को हौसला दिए रखा और अपने सफर आख़िरत की इत्तिला भी दी तो इस तरह के इज़्तिराबे ख़ल्क़ एतिदाल की हदें न फलांग सकें |
आप हमेशा मस्जिद में नमाज़ अदा करते थे मगर बुध के दिन ज़ुहर और असर के लिए जब आप मस्जिद में न पहुंचे तो लोगों के दिल इस एहसास से धड़कने लगे के आप की तबियत ज़्यादा नासाज़ हो गई है ख़िलाफ़े मामूल नमाज़ें घर पर ही अदा फ़रमाई मगरिब की अज़ान हुई तो आपने तीमारदारों से कहा आप सब मस्जिद में जाकर मगरिब अदा करें लोग चले गए तो आप ने फ़रमाया मुझे उठाओ ताज़ा वुज़ू करूंगा आप की हालत देखकर लोग आबदीदा हो गए |
मगर तीन अफ़राद ने सहारा देकर उठाया और वुज़ू गाह तक ले गए हाथ पैरों पर लरज़ा तारी था बैठा भी नहीं जा रहा था एक साहब ने वुज़ू करने के लिए लोटा उठाया तो उन से कहा लोटा रख दो वुज़ू में खुद करूंगा और फिर बदिक़्क़त तमाम वुज़ू किया और मुसल्ले पर खड़े होकर नमाज़ अदा की खादिम पास ही खड़े रहे के सहारा की ज़रुरत पड़े तो सभाल सकें |
मगर नमाज़ आप के लिए सर चश्मए तवानाई थी इस तरह अदा की जैसे आप बीमार ही न हों मगर जब दुआ से फारिग हो गए तो लोगों को सहारा देकर उठाना पड़ा आप को बिस्तर पर लिटा दिया गया अभी कुछ देर ही गुज़री थी के आपने बिस्तर से उठने की कोशिश की मगर जिस्म ने इरादे से ताव्वुन न किया तो लेट गए और फिर आपने रिजालुल ग़ैब और उन जिन्नो को बैअत किया जो दुनिया के दूर दराज़ इलाक़े से आये थे | हाज़रीन बैअत होने वालों को तो न देख सके मगर आप को देख रहे थे |
आप का हाथ उठा हुआ था बिलकुल इसी अंदाज़ से जिस अंदाज़ से आप किसी को बैअत किया करते थे मेने तुम्हारा हाथ गौसे आज़म के हाथ में दिया तुम भी कहो मेने अपना हाथ गौसे आज़म के हाथ में दिया बैअत होने वालों को जेब से तावीज़ निकाल कर देते थे जेब से जब हाथ निकलता था उस में तावीज़ मौजूद होता मगर जब हाथ गैर मुरीद को तावीज़ देकर उठाते तो हाथ खली हो जाता था ईशा की नमाज़ बिस्तर पर ही अदा फ़रमाई इस के बाद सब पर दम किया और ख़ामोशी से ऑंखें बंद करके लेट गए ताके मामूलात मुकम्मल करलें अब जुमेरात की शब् अपना निस्फ़ सफर तय कर चुकी थी |
आप की आखरी वसीयत :- आधी रात गुज़र गई तो आखें खोल कर बड़े ज़ब्त से मगमूम चेहरों पर नज़ए डाली और फिर बतौरे वसीयत फ़रया “सुन्नते मुस्तफा पर हर हाल में अमल पैरा रहना के यही राहे निजात व कामरानी है”
फिर कुछ देर के बाद फ़रमाया “हस्बू नल्लाहो व नेमल वकील” पढ़ते रहना इन दो अहम वसीयतों के बाद पहले सूरह मुल्क की तिलावत फ़रमाई इस के बाद आयतुल कुर्सी कलमा तय्यबा का विरद पढ़ते पढ़ते विसाल फ़रमा गए | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
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आप का ग़ुस्ल व जनाज़ा शरीफ :- बरोज़ जुमा 15 मुहर्रमुल हराम 1402 हिजरी 13 नवम्बर 1981 सुबह आठ बजे हज़रत के जनाज़े को ग़ुस्ल दिया गया हज़रत के नवासे मौलाना मन्नान रज़ा खान साहब ने वुज़ू कराया और ग़ुस्ल हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने कराया सुल्तान अशरफ साहब लोटे से पानी डालते थे ग़ुस्ल के वक़्त हज़रत अल्लामा रिहान रज़ा खान साहब, सय्यद मुश्ताक़ अली साहब, सय्यद मुहम्मद हुसैन साहब, सय्यद चीफ साहब कानपुरी मौलाना नईमुल्लाह साहब, मौलाना अब्दुल हमीद साहब अफ्रीकी, मुहम्मद ईसा साहब मोरिशस, अली हुसैन साहब, अब्दुल गफ्फार साहब, कारी अमानत रसूल साहब, हाजी मुहम्मद फ़ारूक़ साहब बनारस, और दुसरे मुरीदीन और खानदान के लोग भी मौजूद थे सब ने ग़ुस्ल में हिस्सा लिया |
आप के ग़ुस्ल के वक़्त अज़ीम करामत :- हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह व हज़रत अल्लामा रिहान रज़ा खान साहब व हज़रत कारी अमानत रसूल व जनाब हाजी मुहम्मद फ़ारूक़ साहब बनारस व जनाब मास्टर शमीम अहमद रज़वी बनारस और दुसरे उल्माए अहले सुन्नत का बयान है के जब हज़रत के जनाज़े को ग़ुस्ल दिया जा रहा था तो सहोवन रान के ऊपर से चादर ज़रा सी हैट गई यका यक हज़रात के दस्ते मुबारक ने दो उँगलियों ने चादर को पकड़ कर रान को छुपा लिया लोगों ने समझा शायद यूँही उँगलियाँ फैन गयीं होंगीं ज़ोर लगा कर छोड़ाना चाहा लेकिन उँगलियाँ चादर से नहीं हटी इस तरफ सब से पहले हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह की तवज्जु गई फिर उन्होंने सब को दिखाया उँगलियाँ उस वक़्त तक नहीं हटी जब तक उन लोगों ने रान का वो हिस्सा ठीक से छुपा नहीं दिया |
आप की नमाज़े जनाज़ा :- वारिसे उलूमे आला हज़रत सरकार ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान साहब रहमतुल्लाह अलैह ने पढ़ाई |
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जुलूसे जनाज़ा :- आप का जनाज़ा सुबह 10 बज कर 35 मिनट पर आप के दौलत कदे से उठा खानदान के अफ़राद और दुसरे मुरीदीन व मोतक़िदीन ने कांधा दिया जुलूसे जनाज़ा के साथ सोगवारों का एक अज़ीमुश्शान बेहरे बेकरां रवा दवां था एक मुहतात अंदाज़े के मुताबिक़ 250000 पच्चीस लाख अफ़राद ने आप की नमाज़े जनाज़ा व जुलूस में शिरकत की इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के बाद चश्मे फलक ने ऐसा मजमा न देखा था के तमाम गवरमेंट दफ्तर ट्रैफिक यहाँ तक के चाय व पान की दोकाने भी बंद थीं और पूरे शहर में एक सोगवार मंज़र तारी था |
यहाँ तक के मुख्तलिफ शाहराहों से गुज़रता हुआ जनाज़ा शरीफ ख़ानक़ाह रज़विया शरीफ में शाम को पंहुचा |
जनाब हाजी मुहम्मद फ़ारूक़ साहब बनारसी और हज़रत के भतीजे नबीरए उस्ताज़े ज़मान मौलाना सिब्तैन रज़ा खान साहब क़ब्र शरीफ में उतरे खानदान के अफ़राद व हाज़िरीन का आखरी दीदार किया और फिर जनाज़ा क़ब्र शरीफ में उतार दिया गया क़ब्र में उतारते ही हज़रत का चेहरा खुद बखुद क़िब्ले को हो गया और “बिस्मिल्लाह ही अला मिलते रसूलिल्लाह” की गूँज में आफताब इल्मों हिकमत माहताब विलायत व करामत क़यामत तक के लिए अपने वालिदे माजिद सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह के पहलू में इकसठ 61 साल की जुदाई के बाद जलवागर हो गया |
तारीखे विसाल :- आप 13 मुहर्रमुल हराम 1402 हिजरी मुताबिक़ 11 नवम्बर 92 साल बरोज़ बुध बा वक़्ते एक बज कर चालीस मिनट रात में दाई अजल को लब्बैक कहा |
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आप का मज़ारे मुबारक :- आप का मज़ारे मुबारक मुक़द्दस खानकाहे रज़विया बरैली शरीफ उत्तर प्रदेश में है इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के बाएं पहलू में ज़्यारत गाह खासो आम हैं हर साल लाखों अक़ीदत मंद मशाइख व उलमा दानिश्वरान शरीक होते हैं और फुयूज़ व बरकात से मुस्तफ़ीज़ होते हैं | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
माआख़िज़ व मराजे :- तज़किराए मशाइखे क़ादरिया बरकातिया रज़विया, मुफ़्ती आज़म हिन्द नंबर महानामा इस्तेक़ामत कानपूर |
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