बेहरे मारूफ़ू सरी माअरूफ़ दे बेखुद सिरि
जिन्दे हक़ में गिन जुनैदे बा सफा के वास्ते
आप की विलादत बा सआदत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु तीसरी सदी हिजरी में इराक़ की राजधानी बगदाद शरीफ में पैदा हुए, आप रहमतुल्लाह अलैह की तारीखे पैदाइश “कारनामा बुज़ुर्गाने ईरान” में गालिबन 218, हिजरी 27, रजाबुल मुरज्जब बगदाद में हुई,
आप का नामे नामी व इस्मे गिरामि :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु, का नाम “जुनैद बग़दादी” है, आप की कुन्नियत “अबुल कासिम” और अलक़ाब सय्यदुत ताइफ़ा, (सूफियों का सरदार) ताऊसुल उलमा,कवारीरी, ज़ूजाज, खिज़ारू, लिसानुल क़ौम हैं,
आप के खानदानी हालात :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के आबाओ अजदाद का तअल्लुक़ ईरान के सूबा जिबाल के एक पुराना खूब सूरत शहर “निहावंद” के रहने वाले थे, “निहावंद” शहर सूबा जिबाल का सब से पुराना शहर समझा जाता है और कहा जाता है के ये शहर तूफाने नूह से पहले आबाद हुआ था और हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के ज़मानाए खिलाफत में इसे 17, हिजरी से 21, हिजरी के दरमियानी अरसे में इस्लामी लश्कर ने फतेह किया,
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु का खानदान मजूसी और आतिश परस्त (आग की पूजा करना) था फिर जब ईरान में इस्लामी फुतूहात का आगाज़ हुआ और दीने इस्लामी की रौशनी इस इलाक़े में फैली तो इस्लाम के नूर से आतिश कदे भी मुनव्वर व रोशन हुए और हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के जद्दे अमजद निहावंद के पहले शख्स थे जिन्होंने इस्लाम क़बूल किया,
खलीफा मंसूर अब्बासी के ज़माने में बगदाद शरीफ की नई तामीर शुरू हुई,
और 150, हिजरी में बगदाद की तामीर मुकम्मल हुई और बगदाद को मुमलिकत इस्लामी के दारुल खिलाफ का दर्जा दिया गया, उस ज़माने में दुनिया भर से अपने अपने फन में महारत रखने वाले लोग यहाँ आबाद हुए और इस तरह बगदाद की रौनक में इज़ाफ़ा हुआ,
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के खानदान के दीगर अफ़राद जो तिजारत से वाबस्ता थे वो भी यहीं आबाद हुए और उनका पेशा आबगीना (शीशे की तिजारत) था,
इस पेशे के एतिबार से हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु को “कवारीरी, ज़ूजाज” के अलक़ाब से भी याद किया जाता है,
जिस के माना आइना फरोश और आइना साज़ के हैं और उस वक़्त तक कोई न जानता था, के आबगीना फरोश का बेटा अपने ज़माने का अज़ीम सूफी बनेगा और इस बच्चे की तालीमात रहती दुनिया तक लोगों के क़ुलूब (दिलों) को पाको साफ़ करेगी,
आप के बचपन की ज़हानत :- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु को बचपन ही से अपने खुसूसी फ़ज़्लो करम से नवाज़ा था और दानिशमंदी के आसार आप के चेहरे से बचपन ही से ज़ाहिर थे, आप बचपन में अपने मामू हज़रत सिर्री सक़्ति रहमतुल्लाह अलैह की सुहबत में रहे अभी आप सात साल के ही थे के मारफअत व असरार व रुमूज़ में अपनी सलाहीयत का सिक्का ज़माने लगे,
बचपन की ज़हानत:
जब आप की उमर शरीफ सात साल की हुई तो हज़रत सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु के साथ ज़्यारते हरमैन तय्येबैन को तशरीफ़ ले गए, जब आप बैतुल्लाह शरीफ हाज़िर हुए, तो वहां चार सौ उलमा व मशाइखे किराम रौनक अफ़रोज़ थे और उनकी इस मजलिस में मस्लए “शुक्र” पर गुफ्तुगू चल रही थी इस मजलिस में हर एक ने अपनी अपनी राए का इज़हार किया आखिर में हज़रत सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु ने अपने भांजे हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया के ए जुनैद तुम्हे भी कुछ कहना चाहिए? इस पर आप ने थोड़ी देर तो सर झुकाए रखा फिर इरशाद फ़रमाया के जो नेमत अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अता की है,
इस नेमत की वजह से नाफरमानी न करे और इस की नेमत को नाफरमानी व मुसीबत का ज़रिया न बनाए, इस जवाब पर सभी उलमा व मशाइखे किराम की जमाअत ने बरजस्ता फ़रमाया ए हमारी आँखों की ठंडक, तूने जो कुछ कहा है बहुत ही अच्छा कहा है और तू अपनी बात में सदिको सच्चा है, और हम इससे बेहतर नहीं कह सकते इस के बाद हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु ने इरशादफ़रमाया के ए बेटे तूने ऐसी बे मिसाल बातें कहाँ से सीखीं? तो आप ने जवाब दिया के हुज़ूर आप ही के फ़ैज़ो बरकात से हासिल किया है और ज़्यारते हरमैन तय्येबैन से फिर आप घर तशरीफ़ लाए,
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आप की तालीमों तरबियत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु को बचपन ही से निहायत उम्दा इल्मी माहौल मुयस्सर (जो आसानी से मिल सके) आया था और आप के घर के दरो दिवार हमेशा ज़िक्रे इलाही से गूंजते रहते थे, घर के तमाम लोग इल्मों अमल का नमूना थे,
आप रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा आबिदा, ज़ाहिदा, और नेक सीरत खातून थीं, और उन के भाई हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु का शुमार उस ज़माने के “शैख़े तरीक़त” में होता था, हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु मुक़्तदाए अहले वक़्त मम्बए जूदू सखा, इल्मों इरफ़ान, में बे मिस्ल और अहले तरीक़त और रुमूज़ो इशाअत में यगानाए रोज़गार थे,
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने इस ईमान अफ़रोज़ घराने में आँखें खोलीं और इन्ही इल्मी पुर फ़िज़ाओं में परवान चढ़े,
हाफ़िज़ क़ुरआन मजीद:
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु बचपन ही से अपने मामू हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु की आगोश में रहे और उनके ज़ेरे साया तरबियत पाई, आप रहमतुल्लाह अलैह का ज़्यादा वक़्त अपने मामू के पास गुज़रता था और आप ने अपने वालिद बुज़र्ग वार से ज़्यादा उनकी सुहबत से फैज़ पाया, हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु अपने ज़माने के मुमताज़ मुहद्दिसीन, इबने अब्बास, यज़ीद बिन हारुन, सुफियान बिन ऊईना रहमतुल्लाह अलैहिम और दूसरों के तरबियत याफ्ता थे, और उन्होंने सुलोकों मारफअत की तालीम हज़रत शैख़ मारूफ करखि रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की, हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु फरमाते थे के मुझे जो मरातिब हासिल हुए वो सब “हज़रत शैख़ मारूफ करखि रहमतुल्लाह अलैह” की सुहबते बाबरकत का असर है, यही वजह है के आप रहमतुल्लाह अलैह ने अपने भांजे हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु की तालीम का बा क़ाइदा आगाज़ मकतब से कर वाया और उन्हें क़ुरआन मजीद हिफ़्ज़ कर वाया और मकतब की ज़रूरी तालीम से भी फारिग हो गए,
आप का इल्मे हदीस हासिल करना:
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु अपने वालिद मुहतरम के विसाल के बाद बा क़ाइदा अपने मामू हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु की सर परस्ती में आ गए, और आप ने हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु से इल्मे हदीस और दूसरी दीनी तालीम हासिल की, रिवायात में आता है के आप ने दस से पंदिरा 15, साल की उमर का ज़माना इल्मे हदीस की तालीम व किताबत का खुशगवार और फ़रीज़ा अंजाम देने में बसर किए और इल्मे हदीस में आप रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताद हज़रत हसन बिन उरफा रहमतुल्लाह अलैह थे,
आप का इल्मे फ़िक़ाह हासिल करना:
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने सोलह 16, साल से बीस साल की उमर का हिस्सा अपने ज़माने के मुमताज़ फुक़्हा हज़रत अबू उबैद और हज़रत अबू सौर रहमतुल्लाह अलैह से इल्मे फ़िक़ाह हासिल किया और आप को फ़िक़्ही उलूम से ख़ास रगबत थी यही वजह है के बीस साल की उमर में ही आप एक “मुफ़्ती और फ़क़ीह” की हैसियत से अपना सिक्का जमाने लगे और अवामुन्नास किसी भी शरई मस्ले में इस नो उमरी मुफ़्ती से रुजू करने लगे और आप रहमतुल्लाह अलैह निहायत एतिमाद के साथ उनके शरई मसाइल के मुताबिक फतवा देने लगे,
आप की बैअत व खिलाफत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने उलूमे शरीअत पर कामिल दस्तरस के बाद तसव्वुफ़ व तरीक़त की इब्तिदाई तालीमात से बखूबी वाक़िफ़ थे और अब आप रहमतुल्लाह अलैह को रूहानियत के इस दरिया में गोता ज़न होने की ज़रुरत थी, वो आप को बैअत व खिलाफत आप के मामू जान “हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु” ने अता फ़रमाई,
शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु के अलावा दूसरे मशाइख की सुहबत इख़्तियार की जिन में हज़रत हारिस मुहास्बी, हज़रत मुहम्मद बिन अली कसाब, हज़रत अबू जाफर अलकबीर, हज़रत अल कलांसी और हज़रत अल क़न्ज़री रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम हैं,
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के असातिज़ा व शीयूख की तादाद सत्तर 70, से भी ज़्यादा है, और आप रहमतुल्लाह अलैह ने इब्तिदाई उमर अपने मामू हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु की सुहबत में बसर की और उन से फ़ैज़ो बरकात हासिल किया, आप ने इल्मे हदीस और तरीक़त की तालीम के साथ साथ समाअत हदीस, इल्मे तौहीद, अमल की अहमियत, मशाइख से मेल जॉल दर्द मंदी सूजे इश्क़ और ज़ोहदो वरा (तक़वा) का सबक़ हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु से हासिल किया,
आप के शैख़े तरीक़त मुर्शिदे कामिल की नज़रे इंतिखाब :- आप जब मकतब में तालीम हासिल कर रहे थे तो उसी ज़माने में आप ने एक दिन अपने वालिद मुहतरम को रोते हुए देखा, आप ने पूछा तो आप के वालिद मुहतरम ने जवाब दिया के आज में ने माले ज़कात में से कुछ हिस्सा तुम्हारे मामू हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु के पास भेजा था मगर उन्होंने लेने से इंकार कर दिया जिस की वजह से मेरी आँखों से बे इख्तियार आँसूं निकल आए, हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया के आप वो माल मुझे अता फरमाएं ताके में उसको हज़रत की खिदमत में दे दूँ, आप के वालिद मुहतरम ने वो दिरहम आप को दे दिए, और आप उस को लेकर हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु के घर तशरीफ़ ले गए, जब आप हज़रत की खिदमत में पहुंचे तो हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के में ज़कात नहीं लूँगा आप ने इरशाद फ़रमाया के क़सम है आप को उस रब्बे काइनात की जिसने आप पर फ़ज़्ल और मेरे बाप से अद्ल किया है,
हज़रत ने फ़रमाया के ए जुनैद वो कोनसा अद्ल है जो तेरे बाप के साथ किया गया है और कोनसा फ़ज़्ल किया गया है, जो मुझ पर किया गया है? आप ने फ़रमाया के आप पर ये फ़ज़्ल किया है के आप को दरवेशी दी और मेरे वालिद के साथ ये अद्ल किया के उनको दुनिया में मशगूल कर दिया अब ये आप की मर्ज़ी है के आप इसे क़बूल फरमाएं या रद्द करदें? मेरा बाप अगर चाहे या न चाहे लेकिन उनके लिए ये ज़रूरी है के वो इस फ़रीज़ाए ज़कात को किसी हक़ दार के हाथों तक पहुंचाएं हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु को ये बात निहायत पसंद आई और इरशाद फ़रमाया के ए बेटा क़ब्ल इस के में ज़कात को क़बूल करूँ मेने तुम को क़बूल किया और फिर ज़कात को क़बूल फ़रमाया और निहायत दर्जा मुहब्बत करने लगे,
आप के फ़ज़ाइलो कमालात :- शैख़े अलल इतलाक़, क़ुत्बे वक़्त, मम्बए असरार, मुरक़्क़ाऐ अनवार, सुल्ताने तरीक़त व इरशाद सय्यदुत ताइफ़ा हज़रत शैख़ जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु “आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के ग्यारवें 11, वे इमाम व शैख़े तरीक़त है” आप उसूल व फुरू में मुफ़्ती और उलूम व फुनून में कामिल थे, कल्माते आलिया और इर्शादाते लतीफा में सबक़त रखते थे,
इब्तिदाई हालत से लेकर दौरे आखिर तक तमाम जमाअतों के मेहमूद व मक़बूल थे,
और सभी लोग आप की इमामत पर मुत्तफ़िक़ थे, आप का सुखन तरीक़त में हुज्जत है और तमाम ज़मानों ने इस की तारीफ की है और कोई शख्स भी आप के ज़ाहिर व बातिन पर अंगुश्त नुमाई न कर सका, सिवाए उस शख्स के जो बिलकुल अंधा था, आप सूफ़िया के सरदार व मुक़्तदा थे, लोगों ने आप को लिसानुल क़ौम कहा है, और आप ने खुद अपने आप को अब्दुल मशाइख लिखा है, उल्माए की जमाअत ने “ताऊसुल उलमा” समझा और सुल्तानुल मुहक़्क़िक़ीन जाना है इस लिए के आप शरीअत व तरीक़त में इनहिता को पहुंच चुके थे,
आप इश्क़ो ज़ुहद में बे मिस्ल और तरीक़त में मुजतहिद अस्र थे, आप अपने वक़्त में मशाइख का मर्जए (ठिकाना, पनाह गाह) थे आप की तसानीफ़ भी बहुत है, जो तमाम इशारात व मआरिफ़ में लिखी है, और जिस शख्स ने इल्मे इशारात को फैलाया वो आप ही है बावजूद इन अज़ीम खूबियों के दुश्मनो ने आप को ज़िन्दीक कहा है,
हज़रत हारिस मुहास्बी रहमतुल्लाह अलैह की सुहबत पाई, हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु से लोगों ने पूछा के किसी मुरीद का पीर से बुलंद दर्जा हुआ है कोई पीर से भी आगे बड़ा है? तो आप ने जवाब दिया के हाँ होता है इसकी दलील ज़ाहिर है के “जुनैद बगदादी मुझ से बुलंद दर्जा रखते है”
हज़रत सुहिल तुस्तरी रहमतुल्लाह अलैह बावजूद इस अज़मतो बुज़ुर्गी के फ़रमाया करते के जुनैद साहिबे आयात व सबाक गयात है, बावजूद इस के दिल नहीं रखते मगर फरिश्ता सिफ़त है, शेवए मारफअत व कश्फे तौहीद में आप की शान निहायत अरफओ आला है,आप मुजाहिदा व मुशाहिदा में अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी हुए है,
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आप की आदात व सिफ़ात :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु सुलूक की उस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ होने के बावजूद अख़लाक़े इस्लामी से मुज़य्यन थे और अपने से कम दर्जे के लोगों के साथ भी खंदा पेशानी से पेश आते थे, चुनाचे एक मर्तबा का वाकिया है के,
आप ने अपने मुरीद से इरशाद फ़रमाया के अगर मुझे ये मालूम हो जाता के दो रकअत नमाज़े निफ़्ल का अदा करना तुम्हारे साथ बैठने से अफ़ज़ल है तो में कभी तुम्हारे साथ न बैठता, आप हमेशा रोज़ा रखा करते थे मगर जब कभी आप के बिरादराने तरीक़त आ जाते तो रोज़ा अफ्तार कर लेते और फरमाते के इस्लामी भाइयों की खातिर व मादरात निफ़्ल रोज़े से अफ़ज़ल है,
तिजारत व अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इताअत :- आप शुरू में आईना शीशे की तिजारत करते थे और उस वक़्त आप का मामूल था के बिला नागा अपनी दूकान पर तशरीफ़ ले जाते और सामने परदे को गिराकर चार सौ रकअत निफ़्ल नमाज़ अदा फरमाते यहाँ तक के एक मुद्दत तक आप ने इस अमल को जारी रखा फिर आप ने अपनी दूकान को छोड़ दिया फिर अपने शैख़े तरीक़त की खिदमत में हाज़िर हुए हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु के मकान के एक कोठरी में आप ने ख़लवत यानि तन्हाई में गोशा नाशी इख़्तियार की अपने दिल की पस्बानी शुरू कर दी और हालते मुराकिबा में आप अपने नीचे से मुसल्ले को भी निकाल डालते ताके आप के दिल पर सिवाए अल्लाह और उस के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख्याल के कोई दूसरा ख़याल न आए और इस तरह आप ने चालीस साल का अज़ीम अरसा गुज़ारा और तीस साल तक आप का मामूल था ईशा की नमाज़ के बाद खड़े हो कर सुबह तक अल्लाह अल्लाह कहा करते, और इसी वुज़ू से सुबह की नमाज़ पढ़ते यहाँ तक के आप खुद फरमाते है, के बीस साल तक तक्बीरे ऊला मुझ से फौत नहीं हुई, और नमाज़ में अगर दुनिया का ख्याल आ जाता तो में उस नमाज़ को दोबारा से फिर पढ़ता और अगर जन्नत व आख़िरत का ख्याल आता तो में सज्दए सहू अदा करता,
आप का लिबास :- आप हमेशा आलिमाना लिबास को ज़ेबेतन फरमाते एक मर्तबा लोगों ने कहा के ए शैख़े तरीक़त क्या ही अच्छा होता के आप
मुरक़्क़ा (फ़क़ीरों की गुदड़ी) पहिनते? तो आप ने इरशाद फ़रमाया के अगर में जानता के मुरक़्क़ा (फ़क़ीरों की गुदड़ी) पर तरीक़त पर इन्हिसार है तो में लोहे और आग का लिबास पहिनता मगर हर वक़्त बातिन में निदा (आवाज़, पुकारना) आती के खिरके का एतिबार नहीं है बल्के जान जलने का एतिबार है,
रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आप का मक़ाम :- एक बुजरुग का वाक़िया है के वो ख़्वाब में सरकारे अबद करार रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत की उन्हों ने देखा की बारगाहे नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम में हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु भी हाज़िर हैं, इसी दरमियान में एक शख्स हाज़िर हुआ और एक इस्तिफता आप की खिदमत में पेश किया रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के “जुनैद” को देदो ताके वो इस का जवाब लिखदें, इस शख्स ने अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह मेरे माँ बाप आप पर क़ुर्बान आप के होते हुए “जुनैद” को कैसे देदूं?
रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के जिस तरह अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को अपनी सारी उम्मत पर फख्र था, मुझ को “जुनैद” पर फख्र है,
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हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम से आप की अक़ीदतो मुहब्बत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं, के उसूलों बला में हमारे मुक़्तदा व पेशवा हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम हैं, चुनाचे एक बार एक सय्यद साहब जो गीलान के रहने वाले थे, और हज के इरादे से अपने घर से निकले हुए थे यहाँ तक के सफर करते हुए बग़दाद पहुंचे और आप की खिदमत में हाज़िर हुए,
आप ने उन से पूछा के कहाँ के रहने वाले हो और किस की औलाद से हो? उन्होंने जवाब दिया के में गीलान का रहने वाला हूँ और अमीरुल मोमिनीन सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम की औलाद से हूँ? तो आप ने उन से बड़े ही मुआस्सिर अंदाज़ में फ़रमाया के तुम्हारे दादा अमीरुल मोमिनी तो दो तलवारें चलाया करते थे एक कुफ़्फ़ारो मुशरिकीन पर और दूसरी नफ़्स पर बताओ तुम को नसी तलवार चलाते हो? सिर्फ इतना सुनते ही उन पर गिरिया (रोना) तारी हो गया और हालते वज्द में ज़मीन पर लौटने लगे और लौटते हुए ये कह रहे थे, के बस मेरा हज यहीं है, आप मुझे राहे खुदा से आगाह फरमा दीजिये? हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया के तुम्हारा ये सीना खुदा का हरमे ख़ास है इस लिए जहाँ तक हो सके उस के हरम खास में किसी ना महरम को जगह न दो,
हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु की नज़र में हज की हक़ीक़ात :- एक मर्तबा आप की खिदमत में एक शख्स हाज़िर हुआ आप ने उससे पूछा के तू कहाँ से आया है? उस शख्स ने जवाब दिया के में हज के लिए गया था, आप ने पूछा तो क्या तुम हज कर चुके हो? उस ने जवाब दिया जी हाँ हज कर चूका हूँ, आप ने फ़रमाया के अच्छा ये तो बताओ के शुरू में जब तुम अपने घर से निकले और अपने वतन को छोड़ा तो क्या सब गुनाहों को भी अपने पीछे छोड़ दिया?
उसने जवाब दिया नहीं, आप ने कहा के तूने हज का सफर इख़्तियार ही नहीं किया,
सवाल :- जब तुम घर से रवाना हुए और जिस जगह रात को क़याम किया तो क्या उस मक़ाम में तूने तरीके हक़ में से कुछ भी क़ता किया? यानि राहे सुलूक की भी मंज़िल तय किया?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया पस तूने कोई मंज़िल तय ही नहीं की,
सवाल :- जब तूने मीक़ात पर एहराम बांधा तो क्या तूने लवाज़िमे बशरीयत को भी वैसे ही उतार के फेंका था जैसे के अपने कपड़ों को?
जवाब :- नहीं आप ने फ़रमाया इस तरह तूने तो एहराम बांधा ही नहीं,
सवाल :- जब तूने अरफ़ात के मैदान में क़याम किया तो क्या इस क़याम में कशफो मुशाहिदा हक़ की सआदत भी तुझे हासिल हुई?
जवाब :- नहीं फिर तूने मैदाने अरफ़ात में क़याम ही नहीं किया,
सवाल :- जब तू मुज़दलफा में गया और तेरी मुराद हासिल हो गई तो क्या इस मुराद को बाक़ी तमाम मुरादों को तर्क (छोड़ना) कर दिया?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया के तू मुज़दलफा में भी नहीं गया,
सवाल :- जब तूने बैतुल्लाह का तवाफ़ किया तू क्या तूने अपने बातिन को मकान तन्ज़िया में लताइफे जमाले हक़ में महिव पाया?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया के तूने तवाफ़ भी नहीं किया,
सवाल :- जब तूने सफा व मरवा के दरमियान सई की तो क्या मक़ामे सफा और दर्जाए मरवा का एहसास व इदराक भी तुझे हुआ?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया के तूने सफा व मरवा के दरमियान सई की ही नहीं,
सवाल :- जब तू मिना में पंहुचा तो क्या तेरी आरज़ूएं तुझ से साक़ित हो गईं?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया के तू अभी मिना में गया ही नहीं,
सवाल :- क़ुर्बान गाह में पहुंच कर जब तूने क़ुरबानी दी तो क्या इस के साथ ही अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात को भी क़ुर्बान कर डाला था?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया के तूने क़ुरबानी भी नहीं की,
सवाल :- जब तूने कंकरियां फेंकी तो क्या तूने नफ़्सानी लज़्ज़तों व शहवात को भी साथ में फेंक दिया था?
जवाब :- नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया के तूने अभी कंकरियां भी नहीं फेंकी और न हज ही किए जाओ और वापस चले जाओ और इस तरह हज कर के आना के तू मक़ामे इब्राहीम तक पहुंच जाए,
मसनदे रुश्दो हिदायत और ख़्वाब में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु जब राहे सुलूक में कामिलो अकमल हो गए और आप की मक़बूलियत हर चहार जानिब फैलने लगी तो हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु ने आप को हुक्म दिया जुनैद अब तुम वाइज़ कहो?
इस बात की वजह से तरद्दुद (शशो पंज, तअज्जुब, डाऊट) में पड़ गए और इरशाद फ़रमाया के शैख़े वक़्त की मौजूदगी में किस तरह तक़रीर करूँ? क्यूंकि ये सरासर अदब के खिलाफ है?
इसी हालत में रहे के रात ख़्वाब में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत से मुशर्रफ हुए तो रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी आप को वाइज़ कहने के लिए इरशाद फ़रमाया आप जब सुबह को बेदार हुए तो अपने शैख़े तरीक़त से ख़्वाब को बयान करने के लिए सोचा यहाँ तक के आप हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में पहुंचे तो देखते क्या हैं के आप के शैख़े तरीक़त हज़रत शैख़ सिर्री सकती रदियल्लाहु अन्हु पहले ही से आप के इन्तिज़ार में दरवाज़े पर खड़े हैं, जब आप क़रीब हुए तो आप से इरशाद फ़रमाया के क्या अभी तक आप इसी ख़याल में हैं के दूसरा आप से वाइज़ कहने के लिए कहे, हम सब तो पहले ही से आप को वाइज़ कहना ही चाहिए तो आप ने अपने शैख़े तरीक़त से फ़रमाया, के आप को किस तरह इल्म हो गया के मेने ख़्वाब में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत की है? तो शैख़े तरीक़त ने इरशाद फ़रमाया के में ने रब्बे काइनात को ख़्वाब में देखा और साथ ही एक गैबी आवाज़ आई के मेरे रसूल ने जुनैद से कहा है के वो मिंबर पर खड़े हो कर वाइज़ कहे तो आप ने फ़रमाया के में इस शर्त पर वाइज़ कहूंगा के 40, चालीस से ज़्यादा आदमी इस में मौजूद न हों चुनाचे आप ने वाइज़ कहना शुरू किया तो अठ्ठारा 18, आदमी जान बहक हो गए फिर आप ने ज़्यादा वाइज़ न कहा और मकान पर वापस आए,
आप के कलाम की फसाहत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के कलाम में अज़ीम खूबी व असर अंदाज़ थी चुनाचे मनकूल है के इबने शरीह का गुज़र आप की मजलिस में हुआ, तो लोगों ने फ़रमाया के आप के कलाम में अजीब शान नज़र आती है फिर लोगों ने सवाल किया के ये तो बतलाएं के हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु जो कुछ इरशाद फरमाते हैं क्या अपने इल्म से फरमाते हैं इबने शरीह ने जवाब दिया के मुझे ये मालूम नहीं लेकिन इतना ज़रूर जनता हूँ के उनका कलाम अजब शानो शौकत का है जिस के बारे में ये कहा जा सकता है के गोया अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उनकी ज़बान से कहिल वाता है,
एक दाना (अक़लमंद) मुरीद :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के एक मुरीद थे जिन की तरफ आप ज़्यादा तवज्जुह फरमाते थे, कुछ लोगों को ये बात पसंद नहीं आयी, जब आप को इस बात का पता लगा तो इरशाद फ़रमाया मेरा ये मुरीद अदब व अक़ल में तुम सब से बुलंद व ऊंचा है इस वजह से में इसे बहुत ज़्यादा चाहता हूँ, जिस का सबूत अभी में तुम्हें दे रहा हूँ?
ताके तुम्हे मालूम हो जाए के इस में को नसी खूबी है चुनाचे आप ने हर एक मुरीद को एक एक छूरी दी और कहा के ऐसी जगह से इन मुर्गियों को ज़िबाह कर के लाओ जहाँ कोई देखने वाला मौजूद न हो? चुनाचे सभी मुरीद चले गए और एक पोशीदा जगहों से इन मुर्गियों को ज़िबह कर के लाए लेकिन वो आप का खास मुरीद इस मुर्गी को ज़िंदा वापस ले आया, हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के तुमने ज़िबह क्यों नहीं किया? उन्होंने जवाब दिया के हुज़ूर में जिस जगह भी पंहुचा वहां क़ुदरते इलाही को मौजूद पाया और उस को देखने वाला पाया इस लिए मजबूरन वापस ले आया हूँ इस जवाब के बाद हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के तुम सभी लोगों ने सुन लिया ये इस का खास वस्फ़ है जिस की वजह से में उसे बहुत चाहता हूँ,
आप का तवक्कुल (भरोसा करना) :- एक बार आप की खिदमत में एक शख्स ने पांच सौ 500, अशर्फियाँ नज़राने के बतौर देना चाहीं, आप ने उससे पूछा क्या तेरे पास इन अशर्फियों के अलावा और भी माल है? उसने जवाब दिया के हाँ हुज़ूर और भी है आप ने दूसरा सवाल किया के ये बताओ के अब आइंदा तुझे और माल की ज़रूरत है या नहीं? उसने कहा हाँ ज़रुरत क्यों नहीं हर वक़्त ज़रूरत है तो आप ने फ़रमाया के बस अपनी अशर्फियाँ वापस ले जाओ तू मुझ से ज़्यादा मुहताज है क्यूंकि मेरे पास कुछ भी नहीं है बावजूद इस के फिर भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं और तेरे पास दौलत है और इस के होते हुए भी और दौलत का ज़रूरत मंद है बराए करम अपना माल लेलो क्यूंकि में मुहताज से नहीं लेता हूँ और में समझता हूँ के एक मेरा “मौला अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त” ही गनी है और दो जहाँ फ़क़ीर है,
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एक ज़ईफा यानि बूढ़ी औरत का वाक़िआ :- एक मर्तबा आप की खिदमत में एक ज़ईफा यानि बूढ़ी औरत आयी और अर्ज़ किया के हुज़ूर मेरा बेटा न मालूम कहाँ चला गया है आप दुआ कर दीजिये ताके वो वापस आ जाए आप ने कहा के सब्र करो,
बढ़िया वहां से घर चली गयी मगर कुछ दिनों के बाद फिर हाज़िर हुई और आप से दुआ की तालिब हुई तो आप ने फिर फ़रमाया के ए ज़ईफा सब्र करो? बढ़िया फिर वापस लोट आयी और कुछ दिनों तक तो सब्र किया मगर जब उस में सब्र की ताक़त नहीं रही तो फिर तीसरी मर्तबा बिलकुल दीवानो की तरह आप की बारगाह में हाज़िर हुई और कहा के ए जुनैद अब मेरे अंदर अपने बेटे की जुदाई पर सब्र करने की ताक़त न रही लिल्लाह आप दुआ कीजिए के मेरा बच्चा वापस आ जाए? तो आप ने कहा ए ज़ईफा अगर तू अपने इज़्तिराब व बेक़रारी में सच्ची है तू अपने घर जा तेरा बच्चा इंशा अल्लाह तुझ को घर मिल जाएगा क्यूंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है अल्लाह तआला बेक़रारों की फर्याद को ज़रूर सुनता है और उसकी तकलीफ को दूर करता है उस के बाद बुढ़िया जब अपने घर लौटी तो देखा की इस का बेटा बड़ी देर से घर आया हुआ है और अपनी ज़ईफा बूढ़ी माँ का इन्तिज़ार कर रहा है,
“आप की कशफो करामात”
एक मुरीद का वाक़िया :- आप का एक मुरीद जो बसरा में रहता था उस के दिल में एक रोज़ गुनाह का ख़्याल पैदा हुआ उस को ये ख़्याल आते ही पूरा चेहरा सियाह हो गया, और जब अपनी सूरत को आईने में देखा तो बड़ा घबराया और शर्मों निदामत के मारे घर से बाहर निकलना भी छोड़ दिया, तीन दिनों के बाद उस के चेहरे की सियाही कम होते होते बिकुल दूर हो गई और उस का चेहरा पहले की तरह रोशन हो गया, उसी दिन एक शख्स आया और हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु का खत दिया, जब उस ने खत पढ़ा तो उस में लिखा था के अपने दिल को काबू में रखो और बंदगी के दरवाज़े पर अदब से रहो इस लिए के आज मुझे तीन दिन व रात से धोबी का काम करना पढ़ा के तुम्हारे मुँह की सीहाई दूर हो,
एक मजूसी (आग की पूजा करने वाला) :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने में एक मजूसी (आग की पूजा करने वाला) ने अपने गले में ज़ुन्नार डाला और मुसलमानो का लिबास पहिन कर आप की खिदमत में हाज़िर हुआ, और कहने लगा हुज़ूर एक हदीस शरीफ का मतलब पूछने आया हूँ, हदीस ये है “मोमिन की फिरासत से डरो इस लिए के वो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नूर से देखता है” इस का क्या मतलब है? आप ने इस के इस सवाल को सुन कर मुस्कुरा कर फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया के इस हदीस का मतलब है के तू अपना ज़ुन्नार, तोड़, कुफ्र छोड़ कर और कलमा तय्यबा पढ़ कर मुसलमान हो जा, मजूसी ने जब आप के इस जवाब को सुना तो वो दंग रह गया फ़ौरन पुकार उठा, “अशहदू अल्ला इलाहा इलल्लाहू व अशहदू अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसुलूह”
मुरीद को शैतानी करिश्मे से निजात दिलाना :- आप के एक मुरीद का वाकिया है के उस पर ये जूनून तारी हो गया के में अब कामिल हो गया हूँ और अब मेरे लिए जल्वत से खल्वत बेहतर है? चुनाचे वो गोशा नशीन हो गया इस की ये हालत हो गई के हर रात वो फरिश्तों को ख़्वाब में देखता जो उस के लिए ऊँट हाज़िर कर के कहता के चलो हम तुम्हें जन्नत में ले चलते हैं? चुनाचे एक सर सब्ज़ो शादाब मक़ाम पर जाता जहाँ वो बहुत से हसीनो जमील आदमियों को देखता और निहायत नफीस व उम्दा खाने लगा और साफ व शफ़्फ़ाफ़ नहरें और फिर वहां कुछ देर क़याम करता और इस की ये हालत यहाँ तक हुई के वो लोगों से कहने लगा के में ऐसा हूँ के हर रोज़ बहिश्त (जन्नत) में जाता हूँ?
इस की खबर जब हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु तक पहुंची तो आप इस की खबर गिरी के लिए तशरीफ़ ले गए, आप ने उस को देखा के वो निहायत शानो शौकत से साथ बैठा हुआ है आप के पूछने पर उस ने तमाम हाल ज़ाहिर किया? तो आप ने उस को समझाया के आज रात जब तुम वहां पहुंचो तो ज़रा “ला होला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अली इल अज़ीम” पढ़ना? वो हस्बे मामूल रात को जब ख़्वाब की हालत में शैतान की जन्नत में पंहुचा तो आज़माइश के तौर पर ला होल पढ़ा इस का ला होल पढ़ना था के सब चीख उठे और उस को छोड़ कर भाग गए, अब वो देखता क्या है घोड़े पर सवार है और मुर्दों की हड्डियां उस के आगे रखी हुई हैं, उस को देख कर वो बहुत तेज़ चौकन्ना और अपनी गलती को फ़ौरन मालूम कर लिया, यहाँ तक के सुबह उठ कर तौबा की और आप की खिदमत में हाज़िर हो गया और ये बात उस के ज़हिन में बैठ गई के मुरीद के लिए तन्हाई ज़हिर है,
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आप की निगाहें गज़ब से मौत :- हज़रत जुनैद बग़दादी रदियल्लाहु अन्हु की शोहरत बड़ी तो कुछ फितना गर आप की मुखालिफत करने लगे, और खलीफा के पास शिकायत की खलीफा ने इन लोगों की बातें सुन कर जवाब दिया के बगैर दलील के इस को किस तरह ज़ेर कर सकते हो? इस लिए मेरे पास एक लोंडी है जिस को तीन हज़ार दीनार में खरीदा है और उस के हुसनो जमाल के मद्दे मुक़ाबिल कोई दूसरी औरत नहीं है, उस को सोने चांदी जवाहिरात और क़ीमती ज़ेवर से आरास्ता और नफीस व पाकीज़ा कपड़े पहिना कर खिदमत में हाज़िर करो जब वो कनीज़ तय्यार हो कर खलीफा के पास आयी तो उसने इस लोंडी से कहा के तुमको फुलां मक़ाम पर जुनैद के पास जाना है और वहां जा कर अपने मुँह से नक़ाब हटा देना और अपने आप को उनके आगे पेश कर देना और उन से कहना के मेरे पास मालो दौलत बहुत है, लेकिन दुनिया से मेरा दिल उठ गया है अब में आप केपास आयी हूँ के आप मुझ को क़बूल करलें और फिर आप की सुहबत में रह कर खुदा की इताअत व बंदगी करूँ, और इस कनीज़ के साथ एक गुलाम भी मुक़र्रर कर दिया ताके वो सब हाल को देखे,
चुनाचे लोंडी आप के पास हाज़िर हुई और आते ही अपने मुँह से नक़ाब उलट दिया और जैसे ही नक़ाब हटाया बे इख़्तियार आप की नज़र उस पर पड़ी और देख कर फ़ौरन अपने सर को नीचे कर लिया, उस वक़्त लोंडी को खलीफा ने जो तालीम दी थी उस को कहना शुरू कर दिया आप ने उसकी पूरी बात सुन कर अचानक सर को उठा कर आह, आह, अपने ज़बान से कहा इतना कहना था के लोंडी ताब न ला सकी और निगाह पढ़ते ही मर गई, खादिम ने जा कर खलीफा से जा कर सारा हाल बयान कर दिया उस के दिल पर बड़ी शदीद चोट लगी और कहा के कुछ लोग मशाइख के खिलाफ ऐसी बातें करते हैं जो नहीं करनी चाहिए, शैख़ एक आला दर्जे पर फ़ाइज़ होता है जो कुछ वो देखता है हमारी निगाहें वहां नहीं पहुंच सकतीं,
मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया, तज़किरातुल औलिया, मसालिकुस सालिकीन, अनवारे सूफ़िया, मिरातुल असरार, बुज़ुरगों के अक़ीदे, ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, सफ़ीनतुल औलिया, हयाते जुनैन बगदादी, कशफ़ुल महजूब, जूनेदो बायज़ीद, शजरतुल कमिलीन, हिलयतुल औलिया, तबक़ातुस सूफ़िया
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