जहाज़ डूबते डूबते बच गया :- 7, सातवीं सदी हिजरी की बात है के ताजिरों (बिजनिसमैन) एक क़ाफ़िला माले तिजारत लेकर मुल्के अदन की जानिब जा रहा था, इन ताजिरों (बिजनिसमैन) में ख्वाजा कमालुद्दीन सऊद शेरवानी भी थे, अचानक समंदर में तूफ़ान आ गया, खौफनाक लहरों थपेड़े जहाज़ से टकराए तो जहाज़ हिच कोले खाने लगा, जहाज़ में रोने धोने की आवाज़ें बुलंद होने लगीं, ख्वाजा कमालुद्दीन सऊद ने ताजिरों को समझाते हुए कहा के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में तौबा कर के दुआ करो के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें खैरो आफ़ियत से मंज़िल तक पहुंचाए और सभी अपना अपना तिहाई माल राहे खुदा में देने की नियत करो सब ने फ़ौरन हामी भरली, उसी वक़्त अपने पीरो मुर्शिद को याद किया और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में मुर्शिद का वसीला पेश करते हुए दुआ की,
लोगों ने देखा के सामने से एक किश्ती में कोई सफ़ेद रेश हसीनो जमील बुज़रुग तशरीफ़ ला रहे हैं, किश्ती जैसे जैसे क़रीब आ रही थी तूफ़ान थमता जा रहा था, यहाँ तक के तूफ़ान ख़त्म हो गया,
जहाज़ अपनी मंज़िल की तरफ पंहुचा और किश्ती भी नज़रों से गायब हो गई, अपने सफर से बखैरो आफ़ियत लौटने के बाद तमाम ताजिरों ने हस्बे नियत अपने अपने माल का तिहाई हिस्सा ख्वाजा कमालुद्दीन के सुपुर्द करते हुए कहा के इसे अपनी मर्ज़ी से राहे खुदा में खर्च कर दीजिये,ख्वाजा कमालुद्दीन ने सारा माल जमा किया और अपने भांजे गिलानी को देकर मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में अपने पिरो मुर्शिद की बारगाह में हदियतन पेश करने के लिए भेज दिया, फखरुद्दीन गिलानी ने सारा माल ख्वाजा कमालुद्दीन के पिरो मुर्शिद की बारगाह में पेश कर दिया, फखरुद्दीन गिलानी ये देख कर हैरान रह गए, के कमो बेश सत्तर लाख रूपये का खज़ाना मुर्शिदे गिरामी ने खड़े खड़े खैरात कर दिया, और एक कौड़ी भी अपने पास नहीं, रखी फखरुद्दीन गिलानी बहुत मुतआस्सिर हुए, और उनके हाथ पर बैअत हो कर मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में सुकूनत इख़्तियार करली,
प्यारे इस्लामी भाइयों :- क्या आप जानते हो के अल्लाह के कर्मो फ़ज़ल और उसकी अता से अपने मुरीदों को तूफान से निकालने वाले और सत्तर लाख की खतीर रक़म एक ही वक़्त में खैरात कर देने वाले ये बुज़रुग कौन थे?
ये बुज़रुग मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ की पहचान, “शैखुल इस्लाम, रईसुल औलिया ताजुल आरफीन, ग़ौसुल आलमीन, हाफ़िज़ कारी, मुहद्दिस, आरिफ शैख़ बहाउद्दीन अबू मुहम्मद ज़करिया सोहरवर्दी मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह थे” आईये आप की हयाते मुबारिका के मुक़द्दस व मुअत्तर गोशे मुलाहिज़ा करते और अपने ईमान को जिला बख्शते हैं,
आप की पैदाइश मुबारक :- शैख़ इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद ज़करिया सोहरवर्दी कुरैशी मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह, की विलादत बा सआदत 27, रमज़ानुल मुबारक 566, हिजरी मुताबिक़ 3, जून 1171, ईस्वी शबे जुमा यानि जुमे की रात को पंजाब के ज़िला लय्या के एक क़स्बे को कोट करोड़ पाकिस्तान में हुई सुबह के वक़्त हुई, कोट करोड़ आज कल करोड़ लाल ईसन के नाम से ज़िला लय्या का शहर है जो लय्या शहर से भकर रोड पर 31, इक्कतीस किलो मीटर के फासले पर है,
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आप का सिलसिलए नसब :- आप रहमतुल्लाह अलैह नसबन क़ुरैशियुल असदी थे और सहाबिये रसूल हज़रत सय्यदना हब्बार बिन अस्वद रदियल्लाहु अन्हु की औलाद से थे, 21, वास्तों से आप का सिलसिलए नसब रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जद्दे अमजद हज़रत क़ुसई बिन किलाब से जा मिलता है, आप का सिलसिलए नसब यूं है हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी बिन मुहम्मद गोस बिन शैख़ अबू बक्र बिन शैख़ जलालुद्दीन बिन शैख़ अली क़ाज़ी बिन शैख़ शमशुद्दीन मुहम्मद बिन हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन हुसैन बिन मुतफिर बिन ख़ुज़ैमा बिन हाज़िम बिन मुहम्मद बिन मुतफिर बिन अब्दुर रहीम अब्दुर रहमान बिन हब्बार बिन अस्वद बिन मुत्तलिब बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा क़ुसई,
आप के वालिदैन :- आप रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद हज़रत मौलाना वजीहुद्दीन मुहम्मद ग़ौस बिन कमालुद्दीन अबू बकर रहमतुल्लाह अलैह ज़बरदस्त आलिमे दीन और कमालाते ज़ाहिरी व बातनि से आरास्ता थे, जब के आप की वालिदा माजिदा बीबी फातिमा रहमतुल्लाहि तआला अलैहा मौलाना हस्सामुद्दीन तिर्मिज़ी रहमतुल्लाह अलैह की साहबज़ादी थीं, आप बड़ी नेक और परसा खातून थीं,
मुल्तान शरीफ में आप की आमद :- मशहूर मुस्लमान सय्याह अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह अल्मारूफ़ इबने बतूता अपने सफर नामे में लिखते हैं: मुझे हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के आलिम और आबिद व ज़ाहिद पोते हज़रत शाह रुकने आलम रहमतुल्लाह अलैह ने बताया: हमारे जद्दे आला सिंध फ़तेह करने वाले उस लश्कर में शामिल थे जिसे हज्जाज बिन युसूफ ने इराक़ से सिंध भेजा था, वो यहाँ रह गए थे और फिर यही औलाद भी हुई,
हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के जद्दे अमजद हज़रत ताजुद्दीन मुतरिफ “ख्वारिज़म” में आदाब हुए और आप के बाद आप की औलाद भी यहीं फैज़े बार रही, हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के जद्दे आला हज़रत कमालुद्दीन अली शाह रहमतुल्लाह अलैह पांचवी सदी हिजरी में सुल्तान मेहमूद ग़ज़नवी के साथ मदीनतुल औलिया मुल्तान तशरीफ़ लाए, कुछ अरसा यहाँ क़याम के बाद सुल्तान मेहमूद ग़ज़नवी ने आप को कोट करोड़ का क़ाज़ी मुक़र्रर फ़रमाया, आप के बाद आप के साहबज़ादे शैख़ जलालुद्दीन, और फिर पोते शैख़ अबू बक्र क़ाज़ी के मनसब पर फ़ाइज़ हुए, फिर, हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह, के वालिद बुज़ुर्गवार हज़रत मौलाना वजीहुद्दीन मुहम्मद गोस क़ाज़ी मुक़र्रर हुए, इसी अरसे में शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के नाना मौलाना हस्सामुद्दीन तिर्मिज़ी रहमतुल्लाह अलैह भी अपने वतन से आ कर कोट करोड़ में आदाब हो गए,
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आप पैदाइशी वली थे :- शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह मादर ज़ाद वाली थे, बुज़ुर्गी के आसार तो वक़्ते विलादत ही पेशानी पर ज़ाहिर थे,
मन्क़ूल है के आप बचपन में भी रमज़ानुल मुबारक में दिन के वक़्त दूध न पीते थे आसार व अलामात विलायत बचपन से ही ज़ाहिर होने लगी थी, आप के वालिद माजिद हज़रत वजीहुद्दीन मुहम्मद गोस रहमतुल्लाह अलैह आप के पास तिलावते क़ुरआने करीम करते तो आप माँ का दूध छोड़ कर तिलावत की तरफ धियान देते गोया क़ुरआन सुन रहे हों,
आप की इब्तिदाई तालीम और हिफ्ज़े क़ुरआने करीम :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने जब होश संभाला तो वालिद माजिद ने मकतब में दाखिल करा दिया और आप की तालीम व तरबियत के लिए मौलाना नसीरुद्दीन बल्खी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमात हासिल कीं, खुदा दाद सलाहीयत और करीम उस्ताद की शफ़्क़तों से आप रहमतुल्लाह अलैह ने सात या बारह साल की उम्र में ही क़ुरआने करीम किराते सबा के साथ हिफ़्ज़ किया, फिर मक़ामी असातिज़ा से इक्तिसाबे इल्म किया, उन में एक नाम मौलाना अब्दुर रशीद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह का लिया जाता है,
वालिद माजिद की जुदाई :- आप रहमतुल्लाह अलैह ने अभी वालिद साहब की शफ़ाक़तों में 12, बहारें ही देखीं थीं के 577 हिजरी में उनका सायाए आतिफ़त सर से उठ गया, अम्मे मुहतरम हज़रत शैख़ अहमद गोस रहमतुल्लाह अलैह ने आप के सर पे वालिद माजिद की दस्तार बाँधी और आबाओ अजदाद की मसनद पे बिठा कर ख़ानक़ाह के सारे इंतज़ामात आप के सुपुर्द कर दिए,
इल्मे दीन हासिल करने का जज़्बा :- आप के दिल में इल्मे दीन हासिल करने का जज़्बा था यही वजह है के आप ने अपने चचा जान को सारे इंतज़ामात सभांले की इल्तिजा की और खुद इल्मे दीन हासिल करने की इजाज़त चाहि, चचा जान अपने भतीजे को गले लगाया और फ़रमाया ये सीमो ज़र (सोने चांदी) के सिक्के तुम्हारी पहचान नहीं, तुम्हारा तखत मसनदे इल्म है और तुम्हारा ताज दस्तार फ़ज़ीलत है और यही तुम्हारी शनाख्त (पहचान) है,
प्यारे इस्लामी भाइयों :- देखा आप ने हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के चचा ने किस तरह अपने भतीजे के तलबे इल्मे दीन के जज़्बे को सराहा और ख़ुशी के साथ इल्मे दीन हासिल करने के लिए इजाज़त अता फरमादी, हमें भी चाहिए के अपनी औलाद या जो हमारी सरपरस्ती में हूँ उन्हें इल्मे दीन हासिल करने का ज़हन दें और जो इल्मे दीन हासिल करने का शोक रखते हों उनकी हौसला अफ़ज़ाई भी करें |
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आप ने 444, चार सौ चवालीस असातिज़ा से इल्म के मोती हासिल किए :- हज़रत शैख़ बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने इल्मे दीन के हासिल करने के लिए आप ने खुरासान, इराक़, और हिजाज़े मुक़द्दसा का सफर इख़्तियार किया और वहां अपने ज़माने के नामवर उलमा से मुर्रव्वजा उलूम हासिल किए,चुनाचे
चचा जान से इजाज़त मिलने के बाद आप ने उस वक़्त की अज़ीम इल्मी रियासत खुरासान की तरफ रखते सफर बांधा और तक़रीबन सात साल तक उलमा व मशाइख की बारगाह से इल्मे दीन हासिल करते रहे, उस के बाद बुखारा का रुख किया और कसीर असातिज़ा की बारगाह में ज़नूए तलम्मुज़ तह किया, वहां से मक्का शरीफ आकर इल्मे दीन हासिल करने लगे हजजे बैतुल्लाह के बाद मदीना शरीफ में जाने काइनात, शाहे मौजूदात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौज़ाए अक़दस पर हाज़िर हुए, मस्जिदे नबवी शरीफ ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में मुहद्दिसे वक़्त शैखुल हदीस हज़रत अल्लामा मौलाना कमालुद्दीन यमनी रहमतुल्लाह अलैह 53, साल से दरसे हदीस दिया करते थे, शैखुल इस्लाम हज़रत शैख़ बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह आप के सफे अव्वल के तलबा में शामिल हो गए और पांच साल तक अहादीसे करीमा के अनवारे जलीला से मुनव्वर होते रहे और हर साल उस्ताज़े मुहतरम के साथ सआदते हज पाते, मन्क़ूल है के “आप ने 444, चार सौ चवालीस असातिज़ा से इल्म के मोती हासिल किए” और उन से इल्म के मोती समेटे, दरसे हदीस की तकमील और सनदे हदीस की तहसील के बाद आप ने बैतुल मुक़द्दस का रुख किया और अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम के मज़ारात से फुयूज़ व अनवार पाए |
आप ने 1380, मशाइख सूफ़िया औलिया की ज़ियारत की :- हज़रत शैख़ बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जहाँ भी जाते उलमा व मशाइख की बारगाह में हाज़री देते और उनकी सुहबतों से खूब फुयूज़ बातनि का खज़ाना कमाते, मन्क़ूल है के हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: मेने 1380, मशाइख सूफ़िया औलिया की ज़ियारत की और शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने मुझ से भी ज़्यादा मशाइख की ज़्यारत की |
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आप के पीरो मुरशिद कौन हैं? :- शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब उलूम व फुनून की तकमील से फारिग हुए तो दिल में अभी बेक़रारी बाक़ी थी, आप का क़ल्बी इज़्तिराब किसी ज़िंदा दिल तबीब यानि मुरशिद कामिल की तलाश में था, तसकीने क़ल्ब और हुसूले फैज़ के लिए पहले बैतुल मुक़द्दस का रुख किया,अम्बियाए अलैहिमुस्सलाम के माज़राते मुक़द्दसा पर हाज़री दी,
उस के बाद रहिये बग़दाद हुए, उस वक़्त बगदादे मुअल्ला में साहिबे “अवारीफुल मआरिफ़” शैख़ुश शीयूख “हज़रत सय्यदना शैख़ अबू हफ्स शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी बगदादी शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह का खूब शोहरा था, हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर हुए तो देखा मुहिब्बीन व मोअतक़िदीन ने आप को घेर रखा था, हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने आप को देखते ही फ़रमाया: “बाज़े सफ़ेद” आ गया ये मेरे सिलसिले का आफताब होगा, आप ने अदब से गर्दन झुकाली और शैख़ुश शीयूख रहमतुल्लाह अलैह ने हल्काए इरादत मुरीदी में दाखिल कर लिया |
रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से ख़िलाफत अता फ़रमाई :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह मुर्शिदे करीम की बारगाह में मार्फ़त की मंज़िल तय फरमा रहे थे के एक रात ख्वाब में देखा एक नूरानी मकान में रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तखत पर तशरीफ़ फरमा हैं, शैख़ शहाबुद्दीन उम्र सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दाएं जानिब हाथ बांधें खड़े हैं एक जानिब रस्स्सी पर कई खिरके (वो लिबास जो शैख़ अपने मुरीद को देकर उसे खिलाफ़तो इजाज़त अता करता है) लटके हुए हैं,
रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बहाउद्दीन जरिया को तलब फ़रमाया शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने शैख़ बहाउद्दीन को रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश किया,
रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया एक खिरका लो और बहाउद्दीन को पहना दो हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह हुक्म की तामील फ़रमाई, सुबह होते ही शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया रहमतुल्लाह अलैह को अपने पास बुलाया आप हाज़िर हुए, तो देखा के वही मकान और इसी तरह रस्सी पर खिरके लटके हुए हैं जैसे रात ख्वाब में देखे थे, हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने वही रात वाला खिरका रस्सी से उठाया और हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के कंधे पर रख के फ़रमाया: बहाउद्दीन ये रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से दिए जाते हैं,
में तो एक दरमियानी वास्ता से ज़्यादा कुछ नहीं हूँ और रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इजाज़त के बगैर किसी को नहीं दे सकता और रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इजाज़त का मुआमला तो तुम रात देख ही चुके हो,
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दुरवेशों का रश्क करना :- शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह को ख़िलाफत मिलने पर कुछ मुरीदों और दुरवेशों को बड़ा रश्क आया के हम एक अरसे से शैख़ की खदमत कर रहे हैं और बहाउद्दीन ज़करिया को सिर्फ सत्तरह दिन में खिरकाए ख़िलाफत मिल गया है, दुरवेशों की ये बात हज़रत सय्यदना शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने नूरे बातिन से जानली और दुरवेशों से फ़रमाया “मुरीद पर लाज़िम है के वो मुर्शिद के फैसले से इख्तिलाफ न करे” और अपने दिलो दिमाग को अंदेशों के गुबार से आलूदा न होने दे, तुम सब गीली लकड़ी की तरह हो जिस पर आग जल्दी असर नही करती और उसे जलाने के लिए बहुत मेहनत दरकार होती है जब के बहाउद्दीन सूखी लकड़ी की तरह था के एक ही फूंक से भकड़ उठा और इश्के इलाही की आग ने उसे अपनी लपेट में ले लिया,
प्यारे इस्लामी भाइयों: बाज़ लोग पीरों मुर्शिद के अदब व एहतिराम से वाक़िफ़ नहीं होने की वजह से उन पर एतिराज़ करते हैं, याद रखिये ये इंतिहाई खरनाक है, मुरीद के लिए ज़हर क़ातिल शैख़ुश शीयूख हज़रत सय्यदना शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं पीर पर एतिराज़ करने से डरना चाहिए के ये मुरीदों के लिए ज़हरे क़ातिल है, शयद ही कोई मुरीद हो जो पीर पर एतिराज़ करने के बावजूद कामयाब हो,
मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में आप की आमद :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में दाखिल हुए तो आप के चचा ज़ाद मखदूम अब्दुर रशीद रहमतुल्लाह अलैह ने शहर से बाहर आ कर इस्तक़बाल किया, बाप के हुक्म के मुताबिक़ तमाम जायदाद और मसनद के मुआमलात शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के हवाले कर दी और अपनी हमशीरा मुहतरमा “रशीदह बनो” का निकाह आप से किया और खुद हरमैन शरीफ़ैन रवाना हो गए,
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हिकमत भरा जवाब :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब मदीनतुल औलिया, मुल्तान शरीफ तशरीफ़ लाए तो वहां के उलमा व सूफ़िया बतोरे किनाया आप की खिदमत में दूध से भरा हुआ एक पियाला भेजा, मतलब ये था के ये शहर उलमा व सूफ़िया से दूध के इस प्याले की तरह भरा हुआ है और मज़ीद गुंजाइश नहीं, आप रहमतुल्लाह अलैह ने इस प्याले के ऊपर एक गुलाब का फूल रख कर वापस भेज दिया जिस का मतलब था के हम यहाँ इस गुलाब की तरह रहें गें जो किसी पर भारी और तकलीफ देह न होगा हाँ अलबत्ता खुशबू ज़रूर देगा, आप की इस दाद पर हैरान रह गए और आप के मोतक़िद हो गए,
अज़ीम इल्मी व रूहानी इन्क़िलाब :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने दुरवेशी के सत्तर हज़ार उलूम तय कर के इन पर अपने अमल को हद्दे कमाल तक पंहुचा दिया था, आप को इतनी रूहानी क़ुव्वत हासिल हो चुकी थी के अगर आसमान की जानिब नज़र उठाते तो अज़मते अज़ीम बेहिजाब मुशाहिदा करते और अगर ज़मीन पर नज़र करते तो तह्तुसरा तक की चीज़ें दिखाई देने लगतीं, बार बार फरमाते थे के दुरवेशी का मर्तबा इससे भी अरफओ आला है, अगर कह डालूं तो सुनने वालों का ज़हरा अब यानि खौफ व दहशत तारी हो जाए ये तो दुरवेशी का अदना दर्जा है,
लोहे मेहफ़ूज़ पर आप का लक़ब “शैखुल इस्लाम” :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के क़रीबी तअल्लुक़ात थे, एक दुसरे से मुलाक़ात के साथ साथ खातों किताबत का सिलसिला भी रहता था, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: के एक रोज़ मेने हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह को किस लक़ब से मुखातिब करूँ? इतने में लाहो मेहफ़ूज़ पर नज़र पड़ी वहां आप का लक़ब “शैखुल इस्लाम” लिखा देखा चुनाचे यही लक़ब लिख दिया,
आप की तबलीग़े दीनो इशाअत :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की आमद मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में एक अज़ीम रूहानी व इल्मी इन्क़िलाब बरपा हुआ, आप ने मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में “सिलसिलए सोहरवर्दिया” का आगाज़ फ़रमाया, के कोने कोने से लोग आप की ज़्यारत के लिए आकर आप के वाइज़ो नसीहत से मुस्तफ़ीज़ होने लगे, थोड़े ही अरसे में आप के मुरीदों की तादाद काठियावाड़, पंजाब, बाबुल इस्लाम सिंध, और दिल्ली तक पहुंच गई, लाखों लोगों ने फुयूज़ो बरकात पाए, आप ने अज़ीमुश्शान जामिआ, रफीउल मन्ज़िलत ख़ानक़ाह, काफी बड़ी लंगर खाना, पुरशिकवा इज्तिमा गाह के दम कदम से उस वक़्त का मदीनतुल औलिया मुल्तान मदीनतुल उलूम बन गया,
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चार यारों के मदनी काफिले :- शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मसरूफियात की बावजूद तबलीग़े क़ुरआन व सुन्नत के लिए राहे खुदा में सफर फरमाते थे, आप के काफिले में अकसर वक़्त हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत सय्यदना उस्मान मरवंदी लाल शाहबाज़ क़लन्दर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैहि और हज़रत मखदूम सय्यद जलालुद्दीन हुसैन बिन अली सुर्ख बुखारी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह होते थे इन चार बुज़ुर्गों को तरीक़त के “चार यार” भी कहा जाता है, इन हज़रात ने सर अनदीप, दिल्ली, कश्मीर, बल्ख, बुखारा, कोहे सलमान और सिंध के मुख्तलिफ इलाक़ों सिखर सिहवन, मंघू पीर और उनके मुज़ाफ़ात की तरफ से सफर फ़रमाया और ख़ल्क़े खुदा की रहनुमाई का फ़रीज़ा सर अंजाम दिया,
बियाबानों और विरानो में इस्लाम कैसे पंहुचा? :- हज़रत शैख़ बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की सीरत से अंदाज़ा होता है के आप ने कैसे मुनज़्ज़म तरीके पर दावते इस्लाम के लिए तरबियत गाहें क़ाइम कीं और अपने मुबल्लिग़ीन को इस्लाम का पैगाम पहुंचने के लिए कैसे कैसे खतरनाक इलाकों, जंगलों और दीहातों में भेजा, ये सूफ़ियाए किराम और औलियाए किराम ही की मेहनतों का नतीजा है के हिंदुस्तान व पाकिस्तान के तरीक तिरीन अँधेरे इलाक़े में भी इस्लाम का पैगाम पंहुचा, खौफनाक जंगलों, दीहातों, अँधेरे गारों, और पुर हॉल बियाबानों में परचमे इस्लाम फ़ैलाने और बुलंद करने वाले यही सूफ़ियाए किराम और औलियाए किराम ही थे,
दस्त बोसी की बरकत से बख्श दिया गया :- मन्क़ूल है के मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में एक शख्स जो बज़ाहिर बड़ा ही गुनहगार था फौत हो गया, इन्तिक़ाल के बाद किसी ने ख्वाब में देखा तो पूछा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तेरे साथ क्या मुआमला किया? उस ने कहा के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे बख्श दिया देखने वाले ने पूछा किस अमल के सबब? उसने कहा के मेरे पास और तो कोई नेक अमल न था मगर एक रोज़ शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह रास्ते से गुज़र रहे थे तो मेने आगे बढ़ कर आप की दस्त बोसी की थी बस इसी अमल के सबब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे बख्श दिया,
लकड़ियों का गठ्ठा सोना बन गया :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह एक बार सर अनदीप तशरीफ़ ले गए और एक पहाड़ पर क़याम किया, एक दिन एक बूढ़ा शख्स लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठाए पास से गुज़रा तो आप ने बा फ़ज़्ले इलाही से जान लिया के वो एक गरीब और अयाल दार शख्स है इस के घर में जवान बेटियां हैं जिसकी रुखसती की ताक़त नहीं रखता था, हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे किमीया का असर पड़ना था के वो लकड़ियों का गठ्ठा सोन बन गया,
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आप की औलादे अम जाद :- हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने दो अक़्द (निकाह) फरमाए, दोनों हरमो से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सात शहज़ादे और तीन शहज़ादियाँ अता फर्माइ, साहबज़ाद गान के असमाए गिरामी ये हैं: शैख़ सदरुद्दीन आरिफ, शैख़ क़ुतबुद्दीन, शैख़ शमशुद्दीन, शैख़ शहाबुद्दीन, शैख़ अलाउद्दीन यहया शैख़ बुरहानुद्दीन कमर, शैख़ ज्याउद्दीन हामिद औरशहज़ादियों में से एक हज़रत शरफुद्दीन बू अली शह क़लन्दर पानी पति रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद के कह में थीं दूसरी हज़रत सुल्तान हमीदुद्दीन हाकिम रहमतुल्लाह अलैह के निकाह में थीं,
आप के खुलफाए किराम :- शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह से कई हस्तियों ने खिलाफत पाई जिन में से चंद एक के नाम ये हैं: हज़रत मखदूम सय्यद जलालुद्दीन हुसैन बिन अली सुर्ख पोश बुखारी रहमतुल्लाह अलैह, नवाबुल औलिया शैख़ मुहम्मद मूसा नवाब सोहरवर्दी कुरैशी हाशमी रहमतुल्लाह अलैह साहिबे ख़ज़ीनतुल अरवाह अमीर हुसैनीसादात हरवी, साहिबे लमआत शैख़ फखरुद्दीन इराक़ी, ख्वाजा हसन अफगानी, सुल्तानुत्त तारीक़ीन शैख़ हमीदुद्दीन हाकिम, शैख़ कबीरुद्दीन इराक़ी, ख्वाजा कमालुद्दीन मसऊद शीरवानी, खजवाजा फखरुद्दीन गिलानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम,
आप का विसाले मुबारक :- 7, सात सफारुल मुज़फ्फर 661, छेह सौ इकसठ हिजरी मुताबिक़ इकीस दिसंबर बारह सौ बासठ 1262, ईस्वी की बात है के शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह अपने हुजरे में खुदा की याद में थे और आप के बड़े साहबज़ादे हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह हुजरे के बाहर तशरीफ़ फरमा थे, अचानक एक नेक सूरत बुजरुग तशरीफ़ लाए और शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह को एक खत देते हुए फ़रमाया बेटा ये बड़ा अहम् खत है अपने वालिद गिरामी को दे दो, आप वालिद माजिद की इजाज़त से हुजरे में दाखिल हुए और खत दे कर वापस अ गए, थोड़ी देर गुज़री थी के आवाज़ आयी “दोस्त से दोस्त मिल गया” ये आवाज़ सुनते ही शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह हुजरे में दाखिल हुए तो देखा के शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन अबू मुहम्मद सोहरवर्दी ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह अपने ख़ालिक़े हक़ीक़ी से जा मिले यानि आप का विसाल हो गया,
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आप का मज़ार फैज़ुल अनवार कहाँ है? :- मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ में ही आप का विसाल हुआ, और इसी शहर में क़िला मुहम्मद बिन क़ासिम के आखिर में आप का मज़ार शरीफ ज़्यारत गाहे खासो आम है, बाबुल इस्लाम सिंध से भी मुरीदीन व मोतक़िदीन के क़ाफ़ले पैदल हाज़िर होते हैं, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
मआख़िज़ व मराजे :- सीरते बहाउद्दीन ज़करिया, तज़किराह बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी, मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, तज़किराये मशाइखे सोहरवर्दिया क़लन्दरिया, मुल्तान और सिलसिलए सोहरवर्दिया, तज़किराये औलियाए हिन्दो पाक, अल्लाह के ख़ास बन्दे, फैजाने बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी, गुलज़ार अबरार, अल्लाह के वली,
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