बर्रे सगीर हिन्दो पाक :- बर्रे सगीर हिन्दो पाक यानि हिंदुस्तान और पाकिस्तान में जिन मुक़द्दस और बुर्गज़ीदाह हस्तियों ने अपने इल्मो फ़ज़ल के ज़रिए इस्लाम की नूरानी शमा रौशन की और उसकी नूर बिखेरती किरनो से तारीक (अन्धेरा) दिल को जगमगाया भटकते ज़हनो को मरकज़े रुश्दो हिदायत पर जमा किया प्यासी निगाहों को इश्क़ो मुहब्बत के जाम से सैराब किया सुलगते दिलों को आदाबे शरीअत की चांदनी से ठंडक बख्शी उनमे आसमाने विलायत के आफताब सिलसिलए आलिया क़ादरिया चिश्तिया के अज़ीम पेशवा शैखुल इस्लाम “हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह” का इसमें गिरामी भी है |
आप की विलादत व सआदत :- सुल्तानुल आरफीन बुरहानुल आशिक़ीन शैखुल इस्लाम हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर फ़ारूक़ी हनफ़ी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश 569, या 571, हिजरी मुताबिक़ 1175, में मदीनतुल औलिया मुल्तान के क़स्बा “खतवाल” मुल्तान पाकिस्तान में हुई | आप रहमतुल्लाह अलैहि की तारीखे विलादत में और भी कई अक़वाल हैं |
आपका नाम व नसब :- आप रहमतुल्लाह अलैहि का असल नाम “मसऊद” है जब के फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि के लक़ब से दुनिया भर में मशहूर व मारूफ हैं | आप रहमतुल्लाह अलैहि का सिलसिलए नसब अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यदना उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु तक पहुँचता है | आप का शजरए नसब इस तरह है: हज़रत फरीदुद्दीन मसऊद बिन शैख़ जमालुद्दीन सुलेमान बिन शैख़ शोएब बिन शैख़ मुहम्मद अहमद बिन शैख़ युसूफ बिन शैख़ शहाबुद्दीन फर्ख शाह काबुली बिन नसीर फखरुद्दीन मेहमूद बिन सुलेमान बिन शैख़ मसऊद बिन अब्दुल्लाह वाइज़ असगर बिन वाइज़ अकबर अबुल फतह बिन शैख़ इस्हाक़ बिन नासिर बिन अब्दुल्लाह बिन उमर फ़ारूक़े आज़म रिदवानुल्लाही तआला अलैहम अजमईन “हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह” के एक सौ एक 101 नाम व अलक़ाबात हैं जिन का विरद हाजत रवाई में बेहद मुआस्सिर है आपके नमो में सब से ज़्यादा मशहूर अलक़ाब “बाबा फरीद” “फरीदुद्दीन” और “गन्जेश्कर” हैं |
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आपका खानदानी पसमंज़र :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का खानदानी तअल्लुक़ काबुल के बादशाह “फ़रख शाह” से था | जब तातारी फितना दुनियाए इस्लाम पर ग़लबा पाने के लिए खून की नदियां बाहा रहा था | उसकी सफ्फाक और खूंख्वार तलवार ने इस्लामी ममालिक को तख्तो तराज (बर्बाद) किया यहाँ तक के काबुल पे हमला किया तो हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के जद्दे अमजद ने उन से जंग करते हुए जामे शहादत नोश किया | काबुल की वीरानी के बाद हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के दादा जान “शैख़ शोएब” रहमतुल्लाह अलैह अपने अहलो अयाल यानि बच्चों के साथ काबुल से हिजरत करके मर्कज़ुल औलिया लाहौर पहुंचे फिर कुछ अरसा “क़सूर” में क़याम फ़रमाया | क़सूर के क़ाज़ी ने सुल्ताने वक़्त को खबर दी के एक आला ख़ानदान का मुमताज़ आलिम उन के शहर में ठहरे हुए हैं | सुल्तान ने उन्हें किसी आला मनसब पर फ़ाइज़ करना चाहा लेकिन शैख़ शोएब रहमतुल्लाह अलैह ने इंकार फ़रमा दिया सुल्तान ने इसरार कर के आप को खतवाल (कोठे वाल) का क़ाज़ी मुक़र्रर कर दिया |
आप के वालिदैन (पेरेंट्स) :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने ज़ाहिरी व बातिनी उलूम के गहवारे में आँख खोली वालिद माजिद “शैख़ जमालुद्दीन सुलेमान रहमतुल्लाह अलैह” मुस्तनद बेहतरीन आलिमे दीन थे | आप रहमतुल्लाह अलैह की शादी हज़रत मौलाना वजीहुद्दीन खुजनदी अब्बासी रहमतुल्लाह अलैह की साहबज़ादी हज़रत बीवी कुरसम खातून रहमतुल्लाहि अलैहा से हुई थी हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के वालिद साहब की कम उमरी में विसाल फरमा गए थे हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की वलिदाह, माजिदाह, आबिदाह, ज़ाहिदाह, और नमाज़े तहज्जुद गुज़ारने के साथ साथ विलायत के आला मर्तबे पर फैज़ थीं यानि आपकी वालीदह भी वलियाह थीं |
एक गैर मुस्लिम चोर को ईमान नसीब हो गया :- एक रात आप की वलिदाह हज़रत सय्यदह कुरसम रहमतुल्लाहि अलैहा नमाज़े तहज्जुद अदा फरमा रही थीं के एक गैर मुस्लिम चोर मौक़ा पाकर जूंही घर में घुसा उसी वक़्त अँधा हो गया | उस ने गिड़गिड़ा कर यूं अर्ज़ की अगर इस घर में कोई मर्द है तो वो मेरा बाप और भाई है और अगर कोई औरत है तो वो मेरी माँ और बहन है बेहरे हाल वो जो भी है मुझे अंदाज़ा हो गया है के उसकी बुज़ुर्गी ने मुझे अँधा किया है लिहाज़ा उसे चाहिए के मेरे हक़ में दुआ करे ताके मेरी रौशनी वापस आजाए हज़रत सय्यदह कुरसम रहमतुल्लाहि अलैहा ने इसी वक़्त दुआ फ़रमाई जिस की बरकत से उसकी रौशनी वापस आ गई और वो शख्स वहां से चला गया जब सुबह हुई उसने अपने घर वालों के साथ इस्लाम क़बूल कर लिया और आइन्दाह चोरी न करने का पक्का अज़्म (इरादा) कर लिया |
आप ने रमज़ान में दूध नहीं पिया :- “असरारुस्सा लीकीन” में है के एक बार 29 शअबान को आसमान अबर आलूद (अब्र) था लोगों ने हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के वालिदे माजिद हज़रत क़ाज़ी जमालुद्दीन सुलेमान रहमतुल्लाह अलैह से मालूम किया के आज मतला अब्र आलूद है अगर आप फरमाएं तो कल रोज़ा रखा जाये? उन्होंने फ़रमाया कल यौमे शक है और यौमे शक का रोज़ा रखना मकरूह है | उस के बाद लोग एक अब्दाल के पास गए जो इसी क़स्बे में रहते थे जब उन से मसला मालूम किया तो उन्होंने फ़रमाया “आज रात क़ाज़ी सुलेमान के एक बेटे की विलादत हुई जो वक़्त का “क़ुतब” होगा अगर वो बच्चा कल दूध न पिए तो तुम रोज़ा रख लेना वरना नहीं | जैसा के इसी रात क़ाज़ी सुलेमान रहमतुल्लाह अलैह के घर नेक बख्त लड़के की विलादत हुई और उस ने अगले दिन दूध नहीं पिया और रोज़ा रखा | उसे देखकर लोगों ने भी रोज़ा रख लिया ये बच्चा कोई और नहीं “हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह” थे |
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सिलसिलए चिश्तिया के तीन अज़ीम पेशवा :- प्यारे इस्लामी भाइयों यूं तो हर मुस्लमान की ज़िन्दगी क़ुरआन व सुन्नत के मुताबिक़ होनी चाहिए मगर माँ बाप का नेक होना ऐसा अम्र है के औलाद की स्वालीहीयत यानि नेक परहेज़गारी में अहम किरदार होता है | रोज़ मर्रा का मुशाहिदाह है के उम्दह से उम्दह बीज भी उसी वक़्त अपने जौहर दिखाता है जब उस के लिए अच्छी ज़मीन का इंतिख्वाब यानि चुनाओ हो | माँ बच्चे के लिए गोया ज़मीन की हैसियत रखती है लिहाज़ा मियां बीवी के इंतिख्वाब यानि चुनाओ के सिलसिले में मर्द को बहुत एहतियात से काम लेना चाहिए के माँ की अच्छी या बुरी आदात कल औलाद में भी होंगीं | हुस्ने इत्तिफ़ाक़ है के “सिलसिलए आलिया चिश्तिया के तीन अज़ीम पेशवा हज़रत सय्यदना ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसूद गजनी शकर और हज़रत सय्यदना मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन की तरबियत माँ ही के हातों हुई क्यूँकि इन तीनो औलियाए किराम के वालिद बचपन में ही इन्तिक़ाल फरमा गए थे | मुतअद्दिद अहादीसे करीमा में मर्द को नेक स्वालिहा, और अच्छी आदात की हामिल पाक दामन बीवी का इंतिख्वाब करने की ताकीद की गई है | जैसा के ताजदारे रिसालत, शहंशाहे नुबुव्वत रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: किसी औरत से निकाह करने के लिए चार चीज़ों को मद्दे नज़र रखा जाता है (1) उसका माल (2) हसब नसब (3) हुस्नो जमाल (4) दीन | फिर फ़रमाया तुम्हारा हाथ खाक आलूद हो तुम दीनदार औरत के हुसूल की कोशिश करो | एक दूसरी रिवायत में यूं इरशाद फ़रमाया औरतों से उनके हुस्न की वजह से निकाह न करो और न ही उनके माल की वजह से निकाह करो कहीं ऐसा न हो के उनका हुस्न और माल उन्हें सरकशी और न फ़रमानी में मुब्तिला करदे बल्कि उनकी दीनदारी की वजह से उनके साथ निकाह करो क्यूँकि चपटी नाक और सियाह रंग वाली कनीज़ दीनदार हो तो बेहतर है |
हज़रत बाबा फरीद को “गंजे शकर” क्यों कहा जाता है? :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को बचपन से शकर बहुत पसंद थी आप की वालीदह मुहतरमा ने पहली बार जब आप से कहा “बेटा नमाज़ पढ़ा करो” अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त राज़ी होता है और इबादत करने वालों को इनआम से नवाज़ता है तुम नवाज़ पढ़ोगे तो तुम्हे “शकर” मिला करेगी | आप रहमतुल्लाह अलैह जब नमाज़ अदा फरमाते तो वालीदह आपके मुसल्ले के नीचे शकर की एक पुड़िया रख दिया करती | आप रहमतुल्लाह अलैह पाबंदी से नमाज़ अदा फरमाते और नमाज़ के बाद शकर की सूरत में अपनी दिली मुराद की तकमील का नज़ारा अपनी आँखों से करते | एक दिन आपकी वालीदह मुहतरमा मसरूफियत की वजह से जा नमाज़ के नीचे शकर रखना भूल गईं जब आप रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ से फारिग हुए तो वालीदह ने पूछा बेटा शकर मिली? सआदत मंद बेटे ने अर्ज़ की जी हाँ मुझे हर नमाज़ के बाद शकर मिल जाती है ये सुनते ही आप रहमतुल्लाह अलैह की वालीदह अश्कबार हो गईं और इस गैबी मदद पर दिल ही दिल में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुक्र अदा करने लगीं |
प्यारे इस्लामी भाइयों वालिदैन को चाहिए अपनी औलाद को दीन का पाबंद बनाने और सुन्नतों पर अमल का जज़्बा दिलाने के लिए ऐसी हिकमते अमली अपनाएं के जिससे उनकी दिल जोई भी हो और उन्हें सुन्नतों पर अमल की रगबत भी हासिल हो हमारे अस्लाफ बच्चों को कैसे अहसन तरीके से दीन की तरफ रागिब करते थे |
“तज़किरातुल आशिक़ीन” में लिखा है के एक सौदागर ने ऊंटों पर शकर लादी और मुल्तान से दिल्ली की तरफ रवाना हुआ जब पाक पाटन पंहुचा तो हज़रत बाबा फरीद ने पूछा के ऊंटों पर किया लादा हुआ है? कहने लगा के इन पर नमक है आप ने फ़रमाया चलो नमक ही सही जब वो अपने घर पंहुचा तो ऊंटों से सामान उतारा तो सारा नमक था | बड़ा हैरान हुआ और बात समझ गया के ये मेरे झूट बोलने की शामत है इसी वक़्त वापस पंहुचा और आप की खिदमत में हाज़िर होकर माज़िरत की और माफ़ी चाही और नियाज़ मंदी का इज़हार किया आप ने फ़रमाया अगर शकर थी तो शकर बन जाएगी चुनाचे वो सारा नमक शकर बन गय “मुफ़्ती गुलाम सरवर लाहोरी “खज़ीनतुल असफिया” अपनी किताब में लिखते हैं के एक दिन हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजशकर रहमतुल्लाह अलैह अपने हुजरे से बाहर निकले दिल में आया के आज अपने पिरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर होना चाहिए ये बरसात का मौसम था हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजशकर रहमतुल्लाह अलैह के पैर में लकड़ी के जूते थे कीचड़ की वजह से आप का पाऊँ फिसल गया और आप गिर गए कुछ ज़मीन से मिटटी आप के मुँह में चली गई अपने महसूस किया ये मिटटी नहीं शकर है | आप उठे पिरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर हुए | आपके पिरो मुर्शिद ने फ़रमाया के फरीदुद्दीन आज जो मिटटी तुम्हारे मुँह में शकर बन गई है वो इस वजह से है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तुम्हे गंजशकर बना दिया है तुम्हे इन नेमतों की क़द्र करनी चाहिए और अल्लाह की मख्लूक़ से महिरबानी और मुहब्बत करनी चाहिए | (खज़ीनतुल असफिया)
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आप की तालीम व तरबियत :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का खानदान शराफत और इल्मी वजाहत में मुमताज़ था | इस लिए बचपन ही से उनकी तालीम व तरबियत का एहतिमाम खानदानी रिवायात के मुताबिक़ हुआ आप रहमतुल्लाह अलैह ने बारह 12 साल की उमर में क़ुरआन शरीफ हिफ़्ज़ कर लिया था खतवाल (कोठे वाल) में अरबी व फारसी और दीनियात की इब्तिदाई यानि शुरू की तालीम हासिल करने के बाद वो अठ्ठारा 18 साल की उमर में मदीनतुल औलिया मुल्तान गए जो उस वक़्त इल्मे ज़ाहिर व बातिन का संगम था | जहाँ हज़रत मौलाना मिन्हाजुद्दीन तिरमिज़ी रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे में दाखिल हो कर क़ुरआन शरीफ, इल्मे हदीस इल्मे फ़िक़्ह व कलाम और दुसरे उलूमे मुरव्वजा के साथ साथ अरबी और फारसी पर भी उबूर हासिल किया आप रोज़ाना एक क़ुरआन शरीफ ख़त्म करते थे |
इल्मे दीन हासिल करने में बड़ी लगन दिखाई जिसकी बिना पर वो उस्तादों की तवज्जुह का मरकज़ बन गए साथ ही साथ ज़ौके रूहानी भी परवान चढ़ने लगा | हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह को उनकी जानिब मुतवज्जेह किया | शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने एक अनार आपको तोहफे में अता फ़रमाया बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह रोज़े से थे इस लिए अपने नहीं खाया आपने दुसरे दुरवेशों को दे दिया उन्होंने खा लिया इफ्तार के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह को अनार के छिलके में एक दाना अनार मिला | आप रहमतुल्लाह अलैह ने वो दाना खाया तो ऐसा महसूस हुआ के रूहानियत की रौशनी से उनका वुजूद जगमगा उठा | जब ये वाक़िया बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह ने अपने पिरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह को सुनाया तो उन्होंने फ़रमाया: सारी बरकत और रोहानी फैज़ इसी दाने में था | बाक़ी फल में कुछ न था |
प्यारे इस्लामी भाइयों कहते वक़्त इस बात का ख्याल रखना चाहिए के खाने का कोई मामूली ज़र्रा भी बर्बाद न हो | हो सकता है खाने की सारी बरकत इसी एक लुक़मे में हो जिसे अपने फेंक दिया है लिहाज़ा कभी दस्तरख्वान पर कोई ज़र्रा गिर जाए तो उसे साफ़ करके खा लेना चाहिए के बख़्शिश की बशारत है | जैसा के हदीसे पाक में है जो खाने के गिरे हुए टुकड़े उठाकर खाए वो फराखि यानि खुशहाली की ज़िन्दगी गुज़ारता है और उसकी औलाद और औलाद की औलाद में कम अक़्ली से हिफाज़त रहती है |
हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाह फरमाते हैं के रोटी के टुकड़ों और रेज़ों को चुन लीजिए इंशा अल्लाह खुशहाली नसीब होगी बच्चे सही व सलामत और बे ऐब होंगें और वो टुकड़ें हूरों का महिर बनेगें |
शरफ़े बैअत यानि आप के पीरो मुर्शिद कौन हैं? :- दौराने तालिबे इल्मी हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह मस्जिद में तशरीफ़ ले जाते और क़िब्ला रुख पीठ करके अपने अस्बाक याद किया करते थे | एक मर्तबा सुल्तानुल मशाइख हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह मदीनतुल औलिया मुल्तान में इसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए तशरीफ़ लाए हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह हस्बे आदत मुतालआ कर रहे थे के एक खुशगवार एहसास ने आप को नज़र उठाने पर मजबूर कर दिया नज़र उठाने की देर थी के एक वालिए कामिल के रोशन और नूरानी चेहरे की ज़्यारत से ऑंखें ठंडी होने लगीं आप फ़ौरन एहतिराम के साथ खड़े हो गए और क़रीब आकर दो ज़ानों बैठ गए हज़रत क़ुत्बुद्दीब बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने फारिग हो कर दरयाफ्त फ़रमाया क्या पढ़ रहे हो? अर्ज़ की फ़िक़ह की किताब “अंनाफ़े” है फ़रमाया क्या तुम्हे मालूम है के इस किताब से नफा होगा अर्ज़ की हुज़ूर नफा तो आपकी नज़रे करम से होगा |
जवाब सुन कर हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह बहुत खुश हुए और शफ़क़त फरमाते हुए आप रहमतुल्लाह अलैह को अपने मुरीदों में शामिल फरमा लिया जब हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह मदीनतुल औलिया मुल्तान शरीफ से रवाना हुए तो आप रहमतुल्लाह अलैह भी पीछे पीछे चलने लगे ये देख कर हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया पहले खूब इल्मे दीन हासिल करो फिर मेरे पास दिल्ली आना क्यूंकि बेइल्म ज़ाहिद शैतान का मसखरा होता है |
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बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह “हनफ़ी” हैं :- प्यारे इस्लामी भाइयों अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें सिराते मुस्तक़ीम पर चलने का हुक्म दिया है और सिराते मुस्तक़ीम वो है जिस पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के इनाम याफ्ता बन्दे हों शरई मसाइल में गैर मुजतहिद के लिए किसी इमाम की तक़लीद वाजिब है यही वजह है के बड़े बड़े औलिया व उलमा किसी न किसी इमाम के मुक़ल्लिद रहे | हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजेशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के मुक़ल्लिद थे | जैसा के हज़रत महबूबे इलाही सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: एक मर्तबा हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया आया अव्वल मज़हब इमामे आज़म अबू हनीफा का है दूसरा मज़हब इमामे शाफ़ई का है तीसरा मज़हब इमाम मालिक का है चौथा मज़हब इमाम अहमद बिन हंबल रहिमा हुमुल्लाहो तआला का है ये चरों मज़हब हक़ हैं किसी क़िस्म का शक नहीं करना चाहिए |
इन चरों में इमामे आज़म अबू हनीफा का मज़हब सब से अफ़ज़ल है | हम इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के मज़हब के पैरोकार हैं फिर अपने फ़रमाया जिस तरह मुरीद को अपने पीर का शजरा जानना ज़रूरी है इसी तरह मज़हब का शजरा जानना भी लाज़िम है अगर कोई तुम से पूछे के तुम कौन से मज़हब के पैरोकार हो? तो कहना इमामे आज़म के मज़हब के और वो मज़हब हज़रत इब्राहीम नखई और हज़रत अलक़मा बिन क़ैस का है, और वो मज़हब अब्दुल्लाह बिन मसऊद रिद वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन का है और वो मज़हब रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का है |
सैरो सियाहत :- हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने हुसूले इल्म और तरबियते नफ़्स के लिए जिन शहरों का तवील लम्बा सफर इख़्तियार किया उनमे बाग्दाद् शरीफ, बुखारा, गज़नी, बद खशा, चिश्त, मुल्के शाम, हरमैन शरीफ़ैन, बैतूल मुक़द्दिस, कंधार, दिल्ली और मदीनतुल औलिया मुल्तान के नाम नुमाया हैं |
इल्मे दीन हासिल करने के लिए आपका सफर :- एक रिवायत के मुताबिक़ तहसीले इल्म की गरज़ से आप रहमतुल्लाह अलैह कुछ अरसा तक कंधार (अफगानिस्तान) में मुक़ीम रहे वहाँ से बगदाद शरीफ मुल्के शाम, दमिश्क़, ईरान, लाहौर और बुखारा वगैरह की सियाहत इख़्तियार की और मशाइखे वक़्त से फैज़ हासिल किया | उनमे से ये हैं |
हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी, हज़रत सादुद्दीन मुहम्मद हमवी, हज़रत औहदुद्दीन हामिद किरमानी, हज़रत फरीदुद्दीन अत्तार निशापुरी, हज़रत सय्यदना सैफुद्दीन बाखरजी, हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन |
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शैतान काबू नहीं पा सकेगा :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह जब बगदाद हाज़िर हुए तो 15 दिन हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की सुहबते बाबरकत में रहे और इस का ज़िक्र आप रहमतुल्लाह अलैह ने खुद फ़रमाया है: हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत इस दुआ गो ने की है और कुछ दिन सुहबत में भी रहा है | जब हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह से रुखसत होने लगे तो आप रहमतुल्लाह अलैह अपनी तसनीफ “अवारिफुल मआरिफ़” का क़लमी नुस्खा अता फरमाते हुए ये इरशाद फ़रमाया: शैतान तुम पर काबू न पा सकेगा |
हज़रत सय्यदना सैफुद्दीन बाखरज़ी की बशारत :- हज़रत सय्यदना सैफुद्दीन सईद बिन मुताहर बाखरजी रहमतुल्लाह अलैह इमाम व मुहद्दिस और बेमिसाल ज़ाहिद गुज़रे हैं आप रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सय्यदना नजमुद्दीन अहमद बिन उमर कुबरा रहमतुल्लाह के मुरीद थे हज़रत सय्यदना इमाम शमशुद्दीन मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी रहमतुल्लाह अलैह आप रहमतुल्लाह अलैह की ज़बान से अदा होने वाले कलमात के बारे में फरमाते हैं: आप रहमतुल्लाह अलैह के कलमात मोती की मानिंद हुआ करते जब बुखारा में आप रहमतुल्लाह अलैह की मुलाकात हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह से हुई तो आप रहमतुल्लाह अलैह तो आप ने सियाह चादर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह को इनायत फ़रमाई फिर पूरी तवज्जुह से आप की जानिब नज़र फ़रमाई और ये बशारत दी: ये दुर्वेश मशाइखे रोज़गार यानि ज़माने के मशाइख से होगा और तमाम आलम उसके मुरीदों और बच्चों से भर जाएगा |
आप के हम अस्र व हम सफर औलियाए किराम :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने तहसीले इल्मे दीन और नेकी की दावत आम करने के लिए मुख्तलिफ औलियाए किराम के साथ सफर किया जिन औलियाए किराम और सुफिअए किराम की सुहबतों से फ़ैज़याब हुए और राहे खुदा के मुसाफिर बने | वो ये हैं (1) हज़रत सय्यदना उस्मान मरवंदी लाल शाहबाज़ क़लन्दर रहमतुल्लाह अलैह, (2) हज़रत सय्यदना बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह, (3) हज़रत सय्यदना मखदूम जलालुद्दीन जहनियाँ जहाँ गश्त बुखारी रहमतुल्लाह अलैह “सुफिअ की इस्तिलाह में इन तीन और चौथे हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह को चार यार कहते हैं |
आप की पीरो मुर्शिद की बारगाह में हाज़री :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह इल्मे दीन हासिल करने के बाद मदीनतुल औलिया मुल्तान से वापस आए और आपने मुर्शिद और शैख़ ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार ऊशी काकी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में दिल्ली हाज़िर हुए और खिरकए खिलाफत पाकर वहीँ दरवाज़ाए ग़ज़नवीया के नज़दीक एक बुर्ज में मुजाहिदा
करने लगे दिल्ली में उन्होंने आपने दादा पीर हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन सय्यद हसन संजरी अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और रूहानी फियूज़ो बरकात हासिल किए और कुछ अरसे बाद आपने शैख़ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार ऊशी काकी रहमतुल्लाह अलैह के हुक्म से कुछ साल हांसी (हरयाना हिंदुस्तान) में भी ठहरे |
ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की आप पर नज़रे करम :- एक बार सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली तशरीफ़ लाए तो वालीए हिंदुस्तान शमशुद्दीन अल्तमश समीत पूरा शहर ज़ियारत व क़दम बोसी के लिए उमन्ड आया सब लोग चले गए तो हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया तुम ने आपने मुरीद “फरीदुद्दीन मसऊद” के बारे में बताया था के वो कहाँ है? हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ की हुज़ूर वो इबादतों रियाज़त में मशगूल है इरशाद फ़रमाया अगर वो यहाँ नहीं आया तो हम उस के पास चलते हैं हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने अर्ज़ किया हुज़ूर उसे यहीं बुलवा लेते हैं लेकिन हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया नहीं हम खुद उस के पास जाएंगे हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह जिस कमरे में इबादत कर रहे थे अचानक वहां खुशबू फ़ैल गई आप रहमतुल्लाह अलैह ने घबरा कर अपनी ऑंखें खोलीं तो सामने पिरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ज़ियारत का शरफ़ बख्शते हुए फरमा रहे थे फरीद अपनी खुश बख्ती पे नाज़ करो के तुम से मिल ने सुल्तानुल हिन्द तशरीफ़ लाएं हैं हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने ताज़ीम के लिए खड़े होने की कोशिश की मगर सख्त मुजाहीदे और रियाज़त से हो ने वाली कमज़ोरी की वजह से लड़खड़ा कर गिर पड़े जब उठ नहीं सके तो बे इख़्तियार आंसू जारी हो गए |
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह ने आप का दायाँ बाज़ो और जब के हज़रत ख्वाजा बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने बायां बाज़ू पकड़ कर ऊपर उठाया फिर हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने दुआ की “इलाही फरीद को क़बूल कर और कामिल तिरीन दुरवेशों के मर्तबे पर पंहुचा आवाज़ आई फरीद को क़बूल किया फरीद फ़रीदे अस्र और वहीदे दहर है” इस के बाद हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह को इसमें आज़म सिखाया, आपने सीने से लगाया आप को ऐसा महसूस हुआ के जिस्म आग के शोलों में घिर गया है फिर यही तपिश आहिस्ता आहिस्ता शबनम की तरह ठंडी होती चली गई आप रहमतुल्लाह अलैह की आँखों के सामने हिजाबात उठ गए लम्बी सियाहत और सख्त रियाज़त के बाद भी जो दौलते इरफ़ान हासिल न हो सकी थी वो हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की एक नज़रे करम से आप के दमन में समा चुकी थी उस वक़्त आप रहमतुल्लाह अलैह की उमर तीस साल की थी |
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हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह का फरमान :- एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह आपने मुरीदों को लेकर आपने मुर्शिद सुल्तानुल हिन्द हज़रत सय्यदना ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर हुए जैसे ही हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह की नज़र हज़रत सय्यदना बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह पर पड़ी तो आपने हज़रत सय्यदना बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया क़ुतबुद्दीन तुम्हारे दाम में ऐसा शाहबाज़ आया है के सिदरतुल मुंतहा के सिवा कहीं क़रार न पकड़ेगा फरीद एक ऐसी शमआ है के जिससे दुरवेशों का खानवादा रौशन होगा |
आप का हांसी हरयाना हिंदुस्तान में क़याम :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने दिल्ली को छोड़ कर कुछ अरसे हांसी हरयाना हिंदुस्तान में क़याम फ़रमाया एक बार पीरो मुर्शिद की ज़ियारत के लिए दिल्ली हाज़िर हुए तो उन्होंने आबदीदा हो कर फ़रमाया तक़दीर में लिखा है के मेरे इन्तिक़ाल के वक़्त तुम मेरी क़ुरबत से महरूम रहोगे, जब लौट कर आओगे तो मेरी क़ब्र पर हाज़री देना और फातिहा पढ़ना में तुम्हारी अमानत खिरकाए खिलाफत क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी चिश्ती के हवाले कर दूंगा चुंनाचे आप रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली से रवाना हो कर हांसी पहुंचे ही थे के पीरो मुर्शिद के विसाल की खबर आ गई | हुक्म की तामील करते हुए दिल्ली रवाना हुए फ़ौरन दिल्ली पहुंचे और रौज़ए अनवर पर हाज़िर होकर फातिहा पढ़ी फिर क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह से खिरकाए खिलाफत हासिल करने के बाद तीन दिन क़याम फरमाकर हांसी लौट आए रवानगी के वक़्त दूसरे खुलफ़ा ने बहुत इसरार यानि ज़िद की के दिल्ली में रहकर पीरो मुर्शिद के फैज़ को आम करें मगर आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया में जहाँ भी रहूँ मेरे पीर का फैज़ मुझे पहुँचता रहेगा और में उसे आम करता रहूंगा |
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पाक पटन (पाक पतन) हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की आमद :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने हांसी को खैर बाद कहा कुछ अरसा आबाई क़स्बा खतवाल (कोठेवाल) में रिहाइश रखी मगर शोहरत से घबराकर यहाँ से भी कूच फ़रमाया आप सफर करते हुए दरियाए सतलिज के किनारे एक गुमनाम छोटी सी जगह अजूधन पाक पतन शरीफ की हुदूद में दाखिल हुए तो यहाँ के बाशिंदों को जोगियों और जादू गैरों का मोतक़िद और दुरवेशों से दूर भागता हुआ पाया लिहाज़ा आप रहमतुल्लाह अलैह ने यहीं क़याम यानि यहीं ठहरने का फैसला किया और जमा मस्जिद के क़रीब मकान बनाकर अहले खाना के साथ रहने लगे उस वक़्त आप की उमर तक़रीबन 70 साल की थी | लेकिन जिस तरह मुमकिन नहीं के मुश्क हो और खुशबू न फैले, सूरज चमके और उजाला न हो इसी तरह ये मुमकिन न था के खानदाने चिश्त का ये आफ़ताबे मारफ़त किसी मक़ाम पर चमके और लोग उसकी नूरानी किरणों से फ़ैज़याब न हों कुछ ही अरसे के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह की शोहरत चरों तरफ फ़ैल गई |
के पाक पटन (पाक पतन) में एक ऐसा आफताब तुलू हुआ है जो अपनी नूरानी नज़र डालकर ज़ाहिर व बातिन को मुनव्वर कर देता है शोहरत से घबराकर यहाँ से भी कुछ का इरादा फ़रमाया तो ख्वाब में पीरो मुर्शिद की जानिब से पाक पटन (पाक पतन) में ही क़ायम यानि ठहरने का हुक्म मिला |
माआख़िज़ व मराजे: हयाते गंजे शकर, सवानेह बाबा फरीद गंजे शकर, तज़किराए औलियाए पाकिस्तान, सैरुल अक़ताब, फवाइदुल फवाइद,अख़बारूल अखियार, खज़ीनतुल असफिया, गुलज़ार अबरार, मिरातुल असरार, अनवारुल फरीद, तज़किराए औलियाए सिंध, हश्त बहिश्त मुतर्जिम |
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